Published on 7 February, 2013
अनिल नरेन्द्र
पड़ोसी अफगानिस्तान का तालिबानी असर कश्मीर में पड़ने लगा
है। कश्मीर के ग्रैंड मुफ्ती-ए-आजम बशीरुद्दीन ने तालिबानी फतवा जारी किया। उनका कहना
है कि खुलेआम तेज संगीत गैर-इस्लामिक है। दरअसल कश्मीरी लड़कियों ने एक रॉक बैंड पगाश
बनाया है। जिसका अर्थ होता है अंधेरे से उजाले की ओर। लेकिन उनकी यह कोशिश रूढ़िवादी
समाज के लोगों के गले नहीं उतरी। पहले उन्हें ऑनलाइन बैंड बंद करने की धमकी दी गई और
फिर सोशल साइट्स पर भद्दे कमेंट किए गए। इसके बाद उनके खिलाफ फतवा जारी कर दिया गया।
श्रीनगर के मुख्य मुफ्ती बशीरुद्दीन अहमद ने इस बैंड के खिलाफ फतवा जारी किया। उनका
कहना है कि खुलेआम तेज संगीत गैर इस्लामिक है। इसलिए रॉक बैंड में शामिल लड़कियों को
यह काम बंद कर देना चाहिए। मुफ्ती बशीरुद्दीन के अनुसार भारतीय समाज में सारी बुरी
चीजों की जड़ में संगीत है। उन्होंने कहा हमारी लड़कियां जो संगीत की तरफ आकर्षित हो
रही हैं और संगीत को जो बढ़ावा मिल रहा है उससे हमारा देश तरक्की नहीं कर सकता। हालांकि
राज्य के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला समेत तमाम लोगों ने रॉक बैंड पर पाबंदी लगाने की
जमकर आलोचना की है। उमर ने तो इन लड़कियों से गायकी नहीं छोड़ने का आग्रह तक किया।
पर कश्मीरी लड़कियों के पहले रॉक बैंड ने संगीत छोड़ने का दुखद फैसला कर लिया है। ये
लड़कियां अपना बैंड बंद कर रही हैं। बैंड के करीबी सूत्रों ने बताया कि लड़कियों ने
यह फैसला ग्रैंड मुफ्ती के फतवे के कारण किया है। दसवीं क्लास की ये लड़कियां संगीत
की दुनिया में नाम कमाना चाहती थीं। इसलिए उन्होंने रॉक बैंड पगाश बनाया। इसका अर्थ
होता है अंधेरे से उजाले की ओर। हमारा मानना है कि टैलेंट कभी भी साम्पदायिक नहीं हो
सकता और न ही ये फतवों से कुचला जा सकता है। संगीत का हर धर्म में महत्व है। राष्ट्रीय
महिला आयोग की अध्यक्ष ममता शर्मा का कहना है कि आजादी के इतने सालों बाद अगर हम लड़कियों
को कोई काम करने से रोकते हैं तो यह दोहरी मानसिकता है। हम लड़के-लड़कियों को बराबर
भी कहते हैं और लड़कियों पर पाबंदी भी लगाते हैं। यह गलत है। धर्म के नाम पर कुछ भी
कहने से धर्म का कोई भला नहीं होने वाला। आपको गाना अच्छा नहीं लगता, न सुनें, लेकिन
धर्म के नाम पर रोकना कैसे सही है? साम्पदायिकता का जहर बांटने वालों ने बैंड में शामिल
लड़कियों के माता-पिता तक को अपनी बेटियों पर कड़े पहरे बैठाने की हिदायत दी है। ऐसे
में सवाल यह है कि घाटी में नई चेतना का स्वर क्या कुछ दकियानूस लोगों-समूहों के एतराज
के कारण खामोश हो जाएगा? क्या सामाजिक-सांस्कृतिक जड़ता के खिलाफ संगीत को एक औजार
की तरह इस्तेमाल करने का तीन लड़कियों का हौसला बीच राह में ही दम तोड़ देगा? क्या
देश में सांस्कृतिक अराजकतावाद इतना मजबूत हो गया है कि कलाकारों और उनकी कला पर भी
पाबंदी लगाई जाएगी? अगर ऐसा है तो हमें संदेह है कि हम क्या गुजरी सदियों की ओर तो
नहीं बढ़ रहे हैं?
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