Published on 21 February, 2013
अनिल नरेन्द्र
श्री मार्कंडेय काटजू जब सुपीम कोर्ट के चीफ जस्टिस
थे तो उन्होंने कई लैडमार्प जजमेंट दिए जो आज भी नोट किए जाते हैं। हालांकि मीडिया
में बने रहने की आदत या कमजोरी तब भी जस्टिस काटजू में थी पर उन्होंने पद की गरिमा
को कभी ठेस नहीं पहुंचाई और उनके आचरण पर किसी ने उंगली नहीं उठाई लेकिन जब से वह भरतीय
पेस परिषद के अध्यक्ष बने हैं तब से एक के बाद एक ऐसा विवादास्पद बयान दे रहे हैं कि
समझ नहीं आ रहा कि उन्हें क्या हो गया है? क्यों वह इस पकार के फिजूल विवाद पैदा करने
के बयान दे रहे हैं? अब आप इनके ताजा विवाद को ही ले लीजिए। उल्लेखनीय है कि पिछले
दिनों मार्कंडेय काटजू ने अंग्रेजी अखबार द हिंदू में एक लेख लिखकर गुजरात के विकास
के दावों के बारे में कुछ सवाल उठाए थे। अगर यहां तक भी बात रुकती तो भी चलो बर्दाश्त
हो जाती पर वह तो इससे कहीं आगे बढ़ गए। 2002 के गुजरात दंगों के बारे में लिखा कि
कोई सरकार महज विकास के नगाड़े बजाकर इतने बड़े दंगों के पाप नहीं छिपा सकती क्योंकि
इन दंगों में जितनी कूरता हुई थी, वह न किसी माफी लायक है और न ही भूलने लायक है। मैं
यह मानने को तैयार नहीं हूं कि 2002 के गुजरात दंगों में मोदी का हाथ नहीं था। काटजू
ने आगे लिखा कि भारतीयों का बड़ा वर्ग नरेन्द्र मोदी को आधुनिक मूसा और मसीहा के तौर
पर पेश कर रहा है, जो देश का नेतृत्व करते हुए लोगों को ऐसी जगह ले जाएंगे जहां दूध
और शहद की नदियां बहती हों। मोदी को भारत के अगले पधानमंत्री के तौर पर सबसे बेहतरीन
नेता के तौर पर पेश किया जा रहा है। ऐसा सिर्प भाजपा या संघ ही नहीं बल्कि शिक्षित
युवाओं सहित देश का तथाकथित शिक्षित वर्ग भी यही राग अलाप रहा है। काटजू ने लिखा, वास्तव
में इस समय गुजरात के मुसलमान डरे हुए हैं कि अगर वे 2002 पर कुछ बोलेंगे तो उन पर
हमला हो जाएगा। मोदी के समर्थक दावा करते हैं कि गोधरा में 59 हिंदुओं की हत्या की
पतिकिया में गुजरात दंगे हुए। मैं इससे सहमत नहीं हूं। गोधरा कांड अब भी रहस्य बना
हुआ है। दूसरा गोधरा के लिए जिम्मेदार लोगों की पहचान होनी चाहिए और उन्हें सजा दी
जानी चाहिए। अंत में मार्कंडेय काटजू ने देश के लोगों से अपील तक कर दी कि देश को वह
गलती नहीं दोहरानी चाहिए जैसी जर्मनी ने 1933 में की थी। यानी हिटलर को सत्ता में लाकर।
काटजू को भाजपा नेता अरुण जेटली ने करारा जवाब दिया है। मैं आज उस पर चर्चा नहीं करूंगा
क्योंकि मेरे सवाल काटजू साहब से अलग हैं। काटजू साहब आज किस पद पर हैं और किस लिए हैं यह याद कराना जरूरी हो गया है। पेस कौंसिल ऑफ
इंडिया एक्ट 1978 की धारा 7(1) में साफ लिखा है कि कौंसिल का अध्यक्ष (इस केस में मार्कंडेय
काटजू) पूरे समय के लिए सरकारी मुलाजिम होंगे। इसके तहत व अन्य सुविधाएं भारत सरकार
तय करेगी। यानी यह फुल टाइम सरकारी अफसर हैं। क्या हमें काटजू को बताना पड़ेगा कि सरकारी
अफसर क्या कर सकता है, क्या नहीं। कोई कोड आफ एंशिक्स नाम की चीज भी होती है। उनका
मुख्य काम मीडिया पर नजर रखने का है कि चैनलों पर कोई आपत्तिजनक चीज तो नहीं दिखाई
जा रही, समाचार पत्रों में कोई आपत्तिजनक लेख या टिप्पणी तो नहीं की जा रही। यह है
उनका काम। यह नहीं कि कभी कह दें कि बिहार में नीतीश कुमार ने मीडिया का गला घोंट दिया
है या ममता बनर्जी तानाशाह बन गई हैं। श्रीमान जी के जो मुंह में आता है बिना सोचे
समझे बोल देते हैं। कभी कहते हैं कि इस देश में 99 पतिशत लोग बेवकूफ हैं तो कभी कह
देते हैं कि कश्मीर का स्थाई हल है भारत-पाक का विलय। एक टीवी चैनल में इंटरव्यू देते
हुए काटजू इतने नाराज हो गए क्योंकि उनसे तीखे सवाल पूछे जा रहे थे कि उन्होंने पत्रकार
को गेट आउट तक कह दिया। क्या काटजू यह सब कांग्रेस पार्टी के कहने पर कर रहे हैं? हमें
नहीं लगता कि कांग्रेस इतनी नासमझी से काम लेगी और ऐसे अपना मजाक बनवाएगी। यह तो काटजू
साहब अपने आकाओं को पसन्न करने के लिए इस पकार की भाषा बोल रहे हैं। जस्टिस मार्कंडेय
काटजू की बातें इतनी एकतरफा और असंतुलित लगती हैं कि इनकी जितनी भी निंदा की जाए कम
है। वह आज एक ऐसे पद पर बैठे हैं जिस पद की गरिमा ऐसे बयानों से नहीं बढ़ती। बजट सत्र
आरम्भ हो रहा है। काटजू ने कांग्रेस पार्टी और यूपीए सरकार के लिए एक और सिरदर्द बढ़ा
दिया है।
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