Published on 15 February, 2013
अनिल नरेन्द्र
कश्मीर के बहुचर्चित अलगाववादी नेता यासीन मलिक की
ताजा पाकिस्तान यात्रा को लेकर एक बड़ा विवाद खड़ा हो गया है। भारतीय पासपोर्ट से मलिक
इन दिनों इस्लामाबाद गए हुए हैं। उन्होंने यहां मुंबई हमले के मास्टर माइंड आतंकी सरगना
हाफिज सईद के साथ मंच साझा किया। संसद पर हमले के दोषी अफजल गुरू को फांसी दिए जाने
के बाद इस्लामाबाद में आयोजित नमाज-ए-जनाजा में जमात-उद-दावा के सरगना तथा मुंबई हमले
समेत कई आतंकी वारदातों के मुख्य साजिशकर्ता हाफिज सईद के साथ जेकेएलएफ के नेता यासीन
मलिक भी मौजूद थे। पाकिस्तान में फांसी के विरोध में 24 घंटे के भीतर दर्जनभर आयोजनों
में से आठ में मलिक को सईद के साथ देखा गया। पिछले शुक्रवार की रात जब गृह मंत्रालय
के निर्देश पर जम्मू-कश्मीर पुलिस घाटी में अलगाववादी नेताओं को हाउस अरेस्ट कर रही
थी, तब भी पाकिस्तान में मलिक हाफिज सईद के सम्पर्प में था। सूत्रों के मुताबिक शनिवार
की सुबह अफजल को फांसी देने के समय से लेकर रविवार को देर रात तक हाफिज और यासीन की
कई मुलाकातें खुफिया विभाग ने दर्ज की हैं। उल्लेखनीय है कि मलिक आधिकारिक तौर पर पारिवारिक
कारणों से निजी दौरे पर इस्लामाबाद गए हैं। उनके पास 23 जनवरी से 26 फरवरी तक का वीजा
है। गृह मंत्रालय को आशंका है कि अगर वीजा अभी रद्द किया गया तो इसी आधार पर मलिक पाकिस्तान
में ही ठहर सकता है। भावी रणनीति साफ है, भारत में अलगाववादी और पाकिस्तान में आतंक
सरगना अफजल गुरू की फांसी को मानवाधिकार का मुद्दा बना सकते हैं। इस्लामाबाद में यासीन
मलिक की भूख हड़ताल, हाफिज सईद के संग साझा मंच और भारत में अलगाववादियों के सुर, ये
सब उसी की तरफ इशारा करते हैं। अलगाववादियों के इस कथन में हम नहीं है कि गुरू को फेयर
ट्रायल नहीं मिला। सेशन कोर्ट के फैसले के बाद हाई कोर्ट की डबल बैंच की मुहर, फिर
सुप्रीम कोर्ट में हर पहलू की सुनवाई, 2006 में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद छह साल
तक गुरू की फांसी पेन्डिंग रहना, यह सब फेयरनेस दिखाने के लिए काफी है। देश की सबसे
बड़ी अदालत और राष्ट्रपति के यहां लम्बे समय तक दया याचिका पर विचार के बाद फांसी देना
पूरी तरह कानूनी है। दुनिया की नजर में भी। इस पर तो कोई मुद्दा बनता नहीं, मुद्दा
जबरन बनाने का प्रयास हो रहा है। अब फांसी से पहले परिवार को सूचित न करना, आखिरी बार
मिलने को न बुलाना, डेड बॉडी न देना आदि-आदि मुद्दे बनाए जा रहे हैं। जो लोग इसे जबरन
मुद्दा बनाने की कोशिश कर रहे हैं उनको भी फेयर ट्रायल पर कुछ नहीं कहना, फांसी के
बाद के मुद्दों को उछालना उनकी भावी रणनीति झलकाता है। इनका प्रयास है कि अफजल गुरू
की फांसी को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर उठाया जाए। असल मकसद इन मुद्दों के जरिए कश्मीर
विवाद को सुलगाते रहना है। अफजल एक भारतीय नागरिक था, जिस पर भारत की संसद पर हमले
के आरोप में केस चला और सजा मिली। रही बात मानवाधिकार की, तो जो लोग उस हमले में शहीद
हुए हैं, उनके और उनके परिवारों के भी मानवाधिकार थे। यासीन मलिक के ताजे रवैए पर कोई
हैरानी नहीं हुई यह सभी अलगाववादी पाकिस्तान के आतंकी सरगनाओं से मिले हुए हैं और इनकी
भाषा भी भारत विरोधी है।
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