Sunday 24 February 2013

दुनिया में आतंक से सर्वाधिक प्रभावित देशों में भारत चौथे स्थान पर



 Published on 24 February, 2013 
 अनिल नरेन्द्र 
इधर केंद्रीय गृहमंत्री सफाई दे रहे थे कि भगवा आतंकवाद पर उनके मतलब को गलत समझा गया है और माफी मांग रहे थे उधर हैदराबाद में आतंकी बम फोड़ रहे थे। सुशील कुमार शिंदे ने जब केंद्रीय गृह मंत्रालय का पद्भार सम्भाला था तब भी 2 अगस्त को उनके कार्यभार सम्भालते ही पुणे में चार सिलसिलेवार बम विस्फोट हुए थे। इन विस्फोटों की गुत्थी अभी तक नहीं सुलझी कि शिंदे के कार्यकाल में दूसरा विस्फोट हो गया। निजामों के शहर हैदराबाद में गुरुवार को फिर आतंक का साया पड़ा। महानगर के दिलसुख नगर इलाके में पांच मिनट के अंतराल में दो धमाके हुए। कोणार्प और वेकराद्रि सिनेमा हॉल के करीब हुए इन धमाकों में 16 लोगों की मौत हो गई और 84 लोग जख्मी हुए, जिनमें से कुछ की हालत गम्भीर बताई जा रही है। धमाके में आईईडी (इंफ्रोवाइज्ड एक्सप्लोसिव डिवाइस) का इस्तेमाल किया गया। दो साइकिलों पर रखे गए विस्फोटक में टाइमर के जरिये धमाका किया गया। चूंकि बम विस्फोट एक साथ कई ठिकानों पर हुए इसलिए इसमें कोई संदेह नहीं रह जाता कि इनके पीछे किसी न किसी आतंकी संगठन का ही हाथ होगा। जिस तरह भीड़ भरे इलाके में बम विस्फोट हुए उससे यही स्पष्ट होता है कि आतंकियों का मकसद बड़े पैमाने पर तबाही मचाना था। जैसे ही मैंने हैदराबाद में इन विस्फोटों के बारे में सुना पहली बात मेरे दिमाग में यही आई कि कहीं यह अफजल गुरू की फांसी का जवाब तो नहीं है। बेशक प्लानिंग और योजना सीमा पार बैठे आतंकी सरगनाओं की हो पर उसे अमली जामा तो स्थानीय भारतीय लोगों ने ही पहनाया होगा। यह लश्कर-ए-तैयबा, हिजबुल मुजाहिद्दीन या फिर आईएसआई की साजिश हो सकती है, जिसे अंजाम इंडियन मुजाहिद्दीन या कश्मीरी अलगाववादियों ने दिया है। विस्फोट का पैटर्न यही साबित करता है। जिस तरह से विस्फोट के लिए दोपहिए वाहनों का इस्तेमाल किया गया है और भीड़भाड़ वाले इलाके को चुनकर बम रखे गए, वह देसी पैटर्न स्थापित करता है। ऐसे विस्फोटक देसी होते हैं जो अपेक्षाकृत कमजोर होते हैं लेकिन उन्हें जिस तरीके से प्लांट किया जाता है उससे जानमाल को ज्यादा क्षति होती है। फिर सवाल उठता है कि विस्फोट हैदराबाद में ही क्यों? हैदराबाद के ताजा धमाके जिन स्थानों पर हुए उसकी वीडियो और बाकी जानकारी एकत्रित करने में इंडियन मुजाहिद्दीन का हाथ हो सकता है। बताया जा रहा है कि हैदराबाद जुलाई 2012 से ही आतंकी निशाने पर था। आतंकी संगठन आईएम के दो मेम्बरों ने हैदराबाद के दिलसुख नगर की रेकी की थी। यह रेकी आईएम सरगना रियाज भटकल के निर्देश पर की गई थी। अगस्त 2012 में हुए पुणे धमाके के मामले में आईएम के दो आतंकियों सैयद मकबूल और इमरान को दिल्ली पुलिस ने गिरफ्तार किया था। पूछताछ में इन्होंने बताया था कि हैदराबाद में दिलसुख नगर के अलावा बेगमपेट और एबिंड्स इलाके की रेकी एक मोटर साइकिल से की गई थी। लेकिन इससे पहले कि वे हैदराबाद में धमाके को अंजाम देते भटकल ने उन्हें पुणे में धमाका करने का आदेश दिया। हैदराबाद धमाकों को पिछले साल अगस्त में पुणे में हुए विफल धमाके से जोड़कर देखा जा रहा है। हैदराबाद में 25 अगस्त 2007 को दो जगह हुए धमाकों, दिलसुख नगर में मिले विस्फोटक और 21 फरवरी को तीसरी जगह मिले विस्फोटक के घटनाक्रम में भी साइकिल और टाइमर बम के इस्तेमाल की बात सामने आई है। वर्ष 2007 के दिलसुख नगर धमाके में अमोनियम नाइट्रेट विस्फोटक के साथ बॉल बियरिंग, डिटोनेटर और टाइमर का इस्तेमाल किया गया था। खुफिया ब्यूरो (आईबी) ने 13 फरवरी को पाकिस्तान में यूनाइटेड जेहाद काउंसिल की बैठक के बाद अलर्ट जारी किया था। शिंदे ने भी इसकी पुष्टि की है। बैठक में आतंकी समूहों ने अफजल की फांसी का बदला लेने की बात कही थी। रॉ ने भी लश्कर-ए-तैयबा या उसके सहयोगी गुट की तरफ से हमले की आशंका जताई थी। अलर्ट में इंडियन मुजाहिद्दीन और सिमी का भी नाम था। धमाकों का टाइमिंग भी नोट करें जिस तरह बजट सत्र से कुछ दिन पहले अफजल गुरू को फांसी दी गई थी उसी की तर्ज पर आतंकवादियों ने बजट सत्र शुरू होते ही इस वारदात को अंजाम दिया। साथ ही उत्तर भारत के बजाय इस तरह की घटना दक्षिण भारत में होना एक अलग संकेत देती है क्योंकि केरल, तमिलनाडु, कर्नाटक, महाराष्ट्र सिमी और इंडियन मुजाहिद्दीन के मजबूत बेस हैं जहां उनके मजबूत स्लीपर सेल हैं। इन सूचनाओं से संतुष्ट ही हुआ जा सकता है कि इस तरह की वारदात की आशंका पहले ही जता दी गई थी। यदि वास्तव में ऐसा ही हुआ था तो सवाल यह उठता है कि इन आतंकियों को रोका क्यों नहीं जा सका? यह पहली बार नहीं है जब खुफिया एजेंसियों की ओर से यह दावा किया गया हो कि उन्हें आतंकियों के इरादों की पहले से ही भनक लग गई थी और इसके बारे में संबंधित राज्यों को सूचित भी कर दिया गया था। अब तो ऐसा लगता है कि आतंकी तो अपनी हरकतों को अंजाम देने के लिए नित नए तरीके अपनाते हैं, लेकिन हमारी खुफिया एजेंसियां व सुरक्षा एजेंसियां पुराने ढर्रे पर ही काम कर रही हैं। इससे अधिक दुर्भाग्यपूर्ण और कुछ नहीं हो सकता कि आतंकी खतरे का सामना करने के बावजूद न तो खुफिया एजेंसियों में पर्याप्त तालमेल नजर आ रहा है और न ही सुरक्षा एजेंसियों में। पाठकों को यह जानकर धक्का जरूर लगेगा कि दुनिया में आतंकवाद से सर्वाधिक प्रभावित देशों की सूची में भारत अब चौथे स्थान पर आ गया है। पहले स्थान पर इराक, दूसरे स्थान पर पाकिस्तान, तीसरे स्थान पर अफगानिस्तान और चौथे स्थान पर भारत है।

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