Friday 1 February 2013

जेजे बोर्ड का विवादास्पद फैसला ः ऊपरी अदालत में चुनौती देनी होगी


 Published on 1 February, 2013  
  अनिल नरेन्द्र
दिल्ली गैंगरेप का छठा और सबसे खूंखार आरोपी लगता है सस्ते में ही छूट जाएगा। इसलिए कि जुविनाइल जस्टिस बोर्ड (जेजे बोर्ड) ने उसे नाबालिग करार दिया है। सोमवार को जेजे बोर्ड ने यह अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण और मायूस करने वाला फैसला सुनाया। बोर्ड ने यह फैसला आरोपी के स्कूल सर्टिफिकेट के आधार पर लिया है। बोर्ड ने नाबालिग आरोपी को उत्तर प्रदेश के बदायूं जिले के भवानीपुर के उस  स्कूल के सर्टिफिकेट के आधार पर नाबालिग करार दिया है, जहां वह कक्षा-2 तक पढ़ा था। स्कूल के प्रिंसिपल ने जेजे बोर्ड के समक्ष 15 जनवरी को कहा था कि स्कूल रिकार्ड के अनुसार अपराध वाले दिन उक्त आरोपी की उम्र 17 वर्ष, 6 माह, 12 दिन थी। बोर्ड के समक्ष स्कूल के पूर्व हेड मास्टर भी पेश हुए थे। रिकार्ड के अनुसार आरोपी ने 2002 में स्कूल में एडमिशन लिया था। तब उसके पिता ने उसकी उम्र 4 जून, 1995 बताई थी। सवाल यह है कि क्या दूसरी कक्षा में पिता द्वारा लिखाई गई जन्मतिथि काफी है उसकी  उम्र जांचने के लिए? आज-कल तो मेडिकल साइंस ने बहुत तरक्की कर ली है क्या कोई और साइंटिफिक या मेडिकल टेस्ट ऐसा नहीं है जो उम्र का सही अनुमान लगा सके? दिल्ली पुलिस की चार्जशीट के अनुसार यह नाबालिग आरोपी ही इस गुनाह का सबसे बड़ा दरिन्दा है। युवती के साथ उसने ही सबसे अधिक कूरता की थी। मुनिरका बस स्टैंड पर युवती को इस आरोपी ने बहन बनाकर बस में बिठाया था। दुष्कर्म करने के बाद ही इस नाबालिग आरोपी ने युवती के शरीर में लोहे की जंग लगी रॉड डाल दी थी और उसके शरीर से आंतें बाहर खींच ली थीं। बाद में उसी ने युवती और उसके मित्र को नग्न हालत में बस से नीचे फेंकने को कहा था। अब नाबालिग करार देने के बाद उसे अधिकतम तीन साल की सजा हो सकती है। यह अवधि भी उसे जेल में नहीं बल्कि बाल सुधार गृह और स्पेशल होम में काटनी होगी। बोर्ड का दिल्ली पुलिस की उस अर्जी को खारिज करना अपनी समझ से तो बाहर है जिसमें पुलिस ने आरोपी की सही उम्र का पता लगाने के लिए बोन टेस्ट कराने की मांग की थी। दिल्ली पुलिस का निश्चित रूप से बोर्ड के फैसले को ऊपरी अदालत में चुनौती देनी चाहिए। यह दरिन्दा इतनी आसानी से नहीं छूटना चाहिए। नाबालिग होने के प्रावधान से पहले भी बहुत भारी क्षति हो चुकी है। लखनऊ में 17 साल के तरुण ने 3 साल की बच्ची के साथ पार्प में यौन उत्पीड़न किया। बच्ची बेहोश हो गई और अगले दिन जब होश आया तो वह अस्पताल में थी। तरुण मात्र तीन साल की कैद के बाद बाहर आ गया और बच्ची आज भी सिहर उठती है। दूसरा केस दिल्ली के बदरपुर का है। तीन साल की बच्ची से पड़ोस के 17 वर्षीय राहुल ने दुष्कर्म किया। अचेत हालत में उसे छोड़कर भाग गया। पुलिस ने जांच के बाद राहुल को गिरफ्तार कर लिया। कोर्ट ने नाबालिग  करार देकर तीन साल की सजा सुनाई। तीसरा केस कई साल पहले बहादुर शाह जफर मार्ग पर खूनी दरवाजे के अन्दर मौलाना आजाद मेडिकल कालेज की छात्रा से बलात्कार में पकड़े गए युवक ने जन्म प्रमाण पत्र और स्कूल सर्टिफिकेट के आधार पर खुद को नाबालिग बताया था लेकिन बाद में उसकी हड्डियों की जांच हुई तो बालिग साबित हुआ। दिल्ली पुलिस के पास यह केस है और हमें विश्वास है कि ऊपरी अदालत जरूर दिल्ली पुलिस को इस दरिन्दे की हड्डियों की जांच का आदेश देगी ताकि यह इतनी आसानी से न छूट सके। ये महज तीन उदाहरण हैं। देशभर में ऐसे कई मामले हैं जहां भयावह अपराध के बावजूद आरोपी इसलिए बच जाते हैं क्योंकि वह नाबालिग हैं। किशोर न्याय कानून में ऐसे बाल अपराधियों के लिए 3 साल तक की ही सजा है। इसके पीछे मकसद हैöइनके सुधार की कोशिश। लेकिन क्या आरोपी सुधरते हैं? राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो की मानें तो सुधार के बजाय इससे अपराधियों का उल्टा हौसला ही बढ़ता है। एक दशक में बाल अपराधियों द्वारा किए गए अपराधों में तेजी आई है। वर्ष 2000 में जहां नाबालिगों द्वारा किए गए अपराधों की संख्या 198 थी, वहीं 2011 में 1149 हो गई, यानी पांच गुना ज्यादा। इस दौरान नाबालिगों द्वारा किए गए दुष्कर्म के मामलों में भी 170 फीसदी वृद्धि हुई है। मामले बढ़ने की मुख्य वजह नाबालिग को मिलने वाली मामूली सजा से जाहिर है कि नाबालिग होने का सारा लाभ इन दरिन्दों को मिल रहा है जिससे न केवल इनके हौसले बढ़ रहे हैं बल्कि क्राइम ग्राा@फ भी तेजी से बढ़ता जा रहा है।

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