Published on 5 February, 2013
अनिल नरेन्द्र
जैसा मैं बार-बार इस कॉलम में कहता रहा हूं कि दामिनी
की कुर्बानी जरूर रंग लाएगी उसे व्यर्थ नहीं जाने दिया जाएगा। 16 दिसम्बर को इस आत्मा
को झिंझोड़ने वाली घटना ने पूरे देश को हिलाकर रख दिया। दिल्ली के जन्तर-मन्तर पर आज
भी प्रदर्शन-धरने जारी हैं। मीडिया भी एक दिन चुप नहीं बैठा। इस चौतरफे दबाव के कई
अच्छे परिणाम निकल रहे हैं। ताजा परिणाम है केंद्र सरकार द्वारा शुक्रवार को दुष्कर्म
कानून में बड़े परिवर्तन लाने वाले अध्यादेश को कैबिनेट की मंजूरी। महिलाओं के साथ
यौन हिंसा करने वाले अब आसानी से नहीं छूटेंगे। दुष्कर्म के ऐसे जघन्य मामले जिसमें
पीड़ित की मौत हो जाती है या फिर मरणासन्न हालत में पहुंच जाती है उन मामलों में दोषियों
को सजा-ए-मौत दी जा सकेगी। दुष्कर्म की परिभाषा में बदलाव करते हुए सरकार ने इस अध्यादेश
में जस्टिस वर्मा समिति की सिफारिशों के आधार पर और इन सिफारिशों से आगे जाकर भी कई
प्रावधान किए हैं। इसमें दुष्कर्म के आरोपियों को ताउम्र सलाखों के पीछे रखने और तेजाब
से हमला करने वालों को 20 साल की सजा का भी प्रावधान है। इसके साथ ही रेप पीड़ित को
मुआवजा दिए जाने का भी कानूनी प्रावधान किया गया है। केंद्रीय कैबिनेट में निर्णय लेने
के बाद सरकार ने अध्यादेश लाने के लिए प्रस्ताव राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के पास भेज
दिया है। इस अध्यादेश पर राष्ट्रपति की ओर से मुहर लगने के बाद अधिसूचना जारी होगी।
महज 24 घंटे के अन्दर तेजी से घटे घटनाक्रम में अध्यादेश लाए जाने का फैसला हुआ। सोनिया
गांधी ने शुक्रवार सुबह प्रधानमंत्री से टेलीफोन पर बात की। तभी कांग्रेस कोर ग्रुप
की बैठक शाम साढ़े पांच बजे तय हुई। मंत्रियों को भनक तक नहीं थी कि सरकार अध्यादेश
लाने जा रही है। इसके बाद मंत्रियों को सूचित किया गया कि शाम साढ़े छह बजे प्रधानमंत्री
निवास पर कैबिनेट बैठक है, कोर ग्रुप की बैठक में गृहमंत्री, वित्त मंत्री, रक्षा मंत्री
के साथ सोनिया गांधी ने अध्यादेश का अध्ययन किया और रजामंदी दे दी। सोनिया ने मनमोहन
से कहाöआप अध्यादेश लाइए। इससे संसद की स्थायी समिति की सेंक्टिरी पर कोई सवाल नहीं
होगा। हमें देश को बताना चाहिए कि सरकार सख्त कानून के लिए प्रतिबद्ध है। इसमें कोई
दो राय नहीं कि यह अध्यादेश के पीछे ड्राइविंग फोर्स सोनिया गांधी खुद थीं। संसद सत्र
शुरू होने के 20 दिन पहले अध्यादेश का फैसला सरकार की संजीदगी जाहिर करता है। मानना
यह भी पड़ेगा कि वर्मा कमेटी की रिपोर्ट मिलने के 9 दिन के भीतर सिफारिश मानकर सरकार
ने मुस्तैदी दिखाई। इसके पीछे एक मकसद यह भी हो सकता है कि बजट सत्र के दौरान विपक्ष
सरकार को घेर न सके। अब छह महीने के अन्दर संसद को अपनी मंजूरी देनी होगी। सत्तापक्ष
और विपक्ष में आम सहमति बनानी होगी। जस्टिस जेएस वर्मा कमेटी ने रेप-कम-मर्डर मामले
में भी मौत की सजा की सिफारिश नहीं की थी। लेकिन सरकार ने उसकी बात की अनदेखी करके
एक कदम आगे बढ़ गई। सरकार ने 16 दिसम्बर की घटना के बाद देशभर में उपजे रोष और फांसी
की पॉपुलर डिमांड को तरजीह देकर न केवल दामिनी को इंसाफ दिलाने का काम किया है पर करोड़ों
जनता की मांग को पहचाना है। आगे का रास्ता आसान नहीं। कांग्रेस को संसद और राजनीतिक
स्तर पर, मानवाधिकार संगठनों से और अंतर्राष्ट्रीय दबाव का सामना करना पड़ सकता है।
वैसे सरकार कोई नई बात नहीं कर रही है। रेप-कम-मर्डर के रेयरेस्ट ऑफ रेयर मामले में
मौत की सजा का प्रावधान तो पहले ही है। यदि सरकार उस प्रावधान के आधार पर अब खत्म कर
देती तो उसका चौतरफा गलत असर होता और राजनीतिक नुकसान भी हो सकता था। रहा सवाल छठे
आरोपी का नाबालिग होने का तो हमारा तो मानना है कि वह हर हालत में मौत की सजा का हकदार
है। हमारी निजी राय में अपराध की अगर दो श्रेणियों कर दी जाएं एडल्ट क्राइम और ज्यूविनाइल
क्राइम तो स्थिति स्पष्ट हो जाएगी। चाइल्ड या ज्यूविनाइल क्राइम होते हैं जो बच्चे
शरारत करते हैं, उदाहरण के तौर पर गाड़ी घूमने के लिए चुरा ली, चॉकलेट खाने के लिए
पर्स चुरा लिया, क्लास की लड़कियों पर फब्ती कस दी इत्यादि इत्यादि। जब एक ज्यूविनाइल,
रेप, अत्याचार, मर्डर का सोचा-समझा प्लान बनाकर उसे अमली जामा पहुंचाता है तो वह ज्यूविनाइल
क्राइम नहीं एडल्ट क्राइम है और इसे एडल्ट क्राइम करने की ही सजा मिलनी चाहिए। यह मेरी
निजी राय है पता नहीं आप इससे सहमत हों या नहीं? बहरहाल सोनिया गांधी और यूपीए सरकार
इस बात की बधाई के पात्र हैं कि उन्होंने जनता की आवाज व मांग पर अमल करने का प्रयास
किया।
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