Published on 30 June,
2013
अनिल नरेन्द्र
इसे कुछ अत्याधुनिक लोग अंधविश्वास
कह सकते हैं, कुछ कहेंगे कि यह महज एक संयोग है पर उत्तराखंडी खासकर श्रीनगर और आसपास
के लोग उत्तराखंड में आई प्रलय को माता धारी देवी को हटाने का परिणाम कहते हैं। गढ़वालवासियों
का मानना है कि माता धारी देवी के प्रकोप से यह महाविनाश हुआ। मां काली का रूप मानी
जाने वाली धारी देवी की प्रतिमा को 16 जून की शाम को उनके प्राचीन मंदिर से हटाया गया
था। उत्तराखंड के श्रीनगर में हाइड्रो पावर
प्रोजेक्ट के लिए ऐसा किया गया था। लोगों का मानना है कि पिछले 800 सालों से धारी देवी
अलकनंदा के बीच बैठकर नदी की धार को काबू में रखती थीं। धारी देवी देवभूमि, चारों धामों
और श्रद्धालुओं की रक्षक मानी जाती हैं। आश्चर्य की बात यह है कि इतने प्राचीन मंदिर
में जो एक पहाड़ी पर बना हुआ है छत नहीं है। कई बार माता की प्रतिमा पर छत बनाने के
प्रयास किए गए पर ऐसा नहीं हो सका।आज भी प्रतिमा पर कोई छत नहीं। धारी देवी के मंदिर
को वहां से हटाकर ऊपर सुरक्षित रखने की योजना बनाई गई पर स्थानीय निवासियों और भारतीय
जनता पार्टी के कड़े विरोध को देखते हुए इसे ठंडे बस्ते में वर्षों तक डाले रखा। सन
2012 में एलके आडवाणी, सुषमा स्वराज व अरुण जेटली ने प्रधानमंत्री से मुलाकात कर अनुरोध
भी किया था कि धारी देवी के मंदिर से कोई छेड़छाड़ न की जाए। सुश्री उमा भारती ने इसे
लेकर बाकायदा अनशन भी किया और अनशन तब तोड़ा जब उत्तराखंड के तत्कालीन मुख्यमंत्री
निशंक ने आश्वासन दिया कि मंदिर को नहीं हटाया जाएगा। मां काली का रूप मानी जाने वाली
धारी देवी की प्रतिमा को 16 जून शाम लगभग 7.30 बजे पुजारी व कुछ स्थानीय लोगों ने प्रशासन
के दबाव में अलकनंदा हाइड्रो पावर कम्पनी के अनुरोध पर हटाया और मंदिर को शिफ्ट करने की प्रक्रिया आरम्भ
की। जिस समय वह यह कर रहे थे ठीक उसी समय आसमान में बिजली कड़की और फिर शुरू हुई मुसलधार
बारिश और देखते ही देखते अलकनंदा में बाढ़ आ गई। 16 जून शाम से बारिश ने आगे चलकर क्या
तबाही मचाई यह अब सबको मालूम ही है। कम लोगों को मालूम है कि केदारनाथ, बद्रीनाथ, हेमपुंड
साहब में जो तबाही हुई उसकी शुरुआत श्रीनगर में धारी देवी का मंदिर हटाने से हुई। विश्व
हिन्दू परिषद के अशोक सिंघल ने कहा कि लोगों ने हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट के खिलाफ प्रदर्शन
किया था और धारी देवी की प्रतिमा को हटाए जाने का जमकर विरोध किया। लेकिन इसके बावजूद
16 जून को धारी देवी की प्रतिमा को हटाया गया। धारी देवी के गुस्से से ही केदारनाथ
और उत्तराखंड के अन्य इलाकों में तबाही हुई। धारी देवी देश के नास्तिक लोगों को समझाना
चाहती थीं कि हिमालय और यहां की नदियों को न छुआ जाए। इस इलाके में धारी देवी की बहुत
मान्यता है। लोगों की धारणा है कि धारी देवी की प्रतिमा का चेहरा समय के साथ बदला है।
एक लड़की से एक महिला और फिर एक वृद्ध महिला का चेहरा बना। पौराणिक धारणा है कि एक
बार भयंकर बाढ़ में पूरा मंदिर बह गया था लेकिन धारी देवी की प्रतिमा एक चट्टान से
सटी धारी गांव में बची रही थी। गांव वालों को धारी देवी की ईश्वरीय आवाज सुनाई दी थी
कि उनकी प्रतिमा को वहीं स्थापित किया जाए। यही कारण है कि धारी देवी की प्रतिमा को मंदिर से हटाए जाने का विरोध किया जा रहा था। यह
मंदिर श्रीनगर (गढ़वाल) से 10 किलोमीटर दूर पौड़ी गांव में है। 330 मेगावाट वाले अलकनंदा
हाइड्रो प्रोजेक्ट का काम अभी जारी है। लोगों के विरोध के चलते ही यह प्रोजेक्ट जो
2011 तक पूरा हो जाना था, अभी तक इस पर काम चल रहा है। जैसे ही धारी देवी की प्रतिमा
को स्थानांतरित करने की बात शुरू हुई प्रोजेक्ट को लेकर लोगों का नए स्तर पर विरोध
नए सिरे से शुरू हो गया। बीच का रास्ता निकालते हुए प्रोजेक्ट अधिकारियों ने फैसला
किया कि पावर प्रोजेक्ट से दूर धारी देवी के मंदिर को स्थानांतरित किया जाएगा। धारी
देवी की प्रतिमा को स्थानांतरित करने के लिए प्लेटफार्म बन चुका था लेकिन पावर प्रोजेक्ट
कम्पनी और मंदिर कमेटी के लिए उनकी मूर्ति को विस्थापित करना मुश्किल होता जा रहा था।
16 जून को जब मंदाकिनी नदी में बाढ़ आना शुरू हुई तो मंदिर कमेटी ने धारी देवी की प्रतिमा
बचाने के लिए तुरन्त एक्शन लिया। धारी देवी कमेटी के पूर्व सचिव देवी प्रसाद पांडे
के मुताबिक शाम तक मंदिर में घुटने तक पानी
भर गया था। ऐसी खबरें थीं कि रात तक बहुत तेज बारिश होने वाली है तो धारी देवी की प्रतिमा
को हटाने के अलावा कोई और रास्ता नहीं था। हमने शाम को 6.30 बजे प्रतिमा को स्थानांतरित
किया। उत्तराखंड के लोगों और चारों धाम की यात्रा पर जाने वाले श्रद्धालुओं की रक्षक
मानी जाने वाली धारी देवी की प्राचीन प्रतिमा को 16 जून को शाम छह बजे हटाया गया और
रात्रि आठ बजे अचानक बजने लगा तबाही का ठंका। उत्तराखंड में आए इस सैलाब ने मौत का
तांडव रचा और सब कुछ तबाह कर दिया जबकि दो घंटे पूर्व मौसम सामान्य था। कयास लगाए जा
रहे हैं कि उत्तराखंड में आई दैवीय आपदा का कारण धारी देवी को इसलिए माना जाता है कि
धारी शब्द का मतलब `रखना' होता है जबकि वहां
से धारी देवी को हटा दिया गया। बस फिर क्या था, इस चर्चा के बाद तमाम मीडिया, सोशल
साइट्स सक्रिय हो गईं और इस मुद्दे के तर्प-वितर्प सामने आने लगे। अब इन बातों में
कितनी सच्चाई है यह तो बता पाना मुश्किल है क्योंकि यह विश्वास का विषय है साइंस का
नहीं लेकिन कुछ सवाल आज भी उत्तराखंड की पहाड़ियों में गूंज रहे हैं जिसका जवाब किसी
के पास नहीं है। वह क्या वजह थी कि अचानक एक ग्लेशियर फटा और उसी दौरान गौरीपुंड और
रामबाड़ा के बीच एक बादल भी फट गया। केदारनाथ के आसपास सब कुछ तबाह हो गया सिर्प बचा
बाबा केदारनाथ का मंदिर। आखिर ऐसा क्यों हुआ? जय धारी देवी, हर-हर महादेव।