Published on 5 June,
2013
अनिल नरेन्द्र
हमारे देश की सबसे बड़ी चुनौती कानून व्यवस्था के क्षेत्र
में आतंकवाद से निपटना है। यह इतना गम्भीर रूप धारण करता जा रहा है जिसका सरकारें ढंग
से न तो सही आंकलन कर रही हैं और न ही इस गम्भीर चुनौती से निपटने के लिए भावी रणनीति
तय कर पा रही हैं और जब तक यह नहीं होगा यूं ही हमारे सुरक्षा जवान और राजनेता मरते
रहेंगे। नक्सलवाद और माओवाद में फर्प है। अब जो हो रहा है वह माओवाद है। नक्सलवाद गरीब
किसानों को जमीनदारों के अत्याचार, सरकार की लाचारी के खिलाफ कृषि से जुड़ा आंदोलन
था। अब जो हो रहा है वह तो खुद सत्ता पाने के लिए बन्दूक की रणनीति पर अमल में लाया
जा रहा है। इन माओवादियों का मकसद सत्ता हथियाना है और इस काम में वह किसी की भी मदद
लेने से नहीं कतराते। माओवाद विरोधी अभियान में लगीं सुरक्षा एजेंसियों को सनसनीखेज ताजा जानकारी हाथ
लगी है जो मेरी बात की पुष्टि करती है। एजेंसियों को मिली जानकारी के मुताबिक नक्सलियों,
माओवादियों को जर्मनी, तुर्की और फिलीपीन सहित 27 देशों के माओवादी संगठनों का समर्थन
हासिल है। इन सभी माओवादी संगठनों को वहां की सरकार ने आतंकवादी संगठन घोषित कर रखा
है। इनमें से कई संगठनों ने माओवादियों को शहरी मध्य वर्ग का विश्वास जीतने की रणनीति
पर काम करने की सलाह दी गई है। सुरक्षा एजेंसियों के विश्वस्त सूत्रों के अनुसार भारत
में सीपीआई (माओवादी) के पोलित ब्यूरो के नम्बर दो माने जाने वाले कटकम सुदर्शन ने
अपने कैडर को लिखी चिट्ठी में विदेशी समर्थन का जिक्र किया है। सुरक्षा बलों को यह
चिट्ठी करीब दो महीने पहले छत्तीसगढ़ के गोलपुंडा में की गई छापेमारी के दौरान हाथ
लगी थी। सुरक्षा अधिकारियों के मुताबिक 25 मई को छत्तीसगढ़ के सुकमा में कांग्रेसी
नेताओं पर किया गया बर्बर हमला सुदर्शन की देखरेख में ही हुआ। उत्तर-पूर्व में सक्रिय
आतंकी संगठन पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) के गिरफ्तार नक्सली आतंकियों ने बताया कि
नक्सलियों को अति संवेदनशील सूचना तकनीक के उपकरण व हथियार चीन में मौजूद पुराने माओवादी
संगठनों की ओर से सप्लाई किए जाते हैं। चीन में अभी भी माओत्से तुंग की पीपुल्स वार
के दर्शन पर काम करने वाले लोगों का बड़ा तबका मौजूद है। इसी तरह माओइस्ट कम्युनिस्ट
पार्टी (तुर्की) फिलीपीन, जर्मनी, फ्रांस, क्यूबा और दक्षिण अमेरिका के कई सक्रिय आतंकी
संगठन आपस में जुड़े हैं। भारत जैसे विशाल देश में अपनी गतिविधियां चलाने के लिए धन
होना अति आवश्यक है। इस फ्रंट पर भी माओवादी बहुत मजबूत हैं। विदेशों से इन्हें कहां-कहां
से कितना धन मिलता है इसका सही अनुमान लगाना मुश्किल है पर भारत के खुफिया अधिकारियों
के अनुसार एक मोटा अनुमान है कि यह माओवादी देश में हर साल लगभग एक हजार करोड़ की लेवी
वसूलते हैं। इसमें से 30 फीसदी हिस्सा अकेले छत्तीसगढ़ से जाता है। बस्तर में जो वसूली
होती है उसमें से 50 फीसदी राशि माओवादियों के सेंट्रल कमांड को भेजी जाती है। बाकी
50 फीसदी से खाने-पीने, वर्दी, सूचना, पोस्टर, बैनर व गोला-बारूद और अत्याधुनिक हथियार
खरीदे जाते हैं। खुफिया सूचनाओं के लिए मजबूत मुखबिर व्यवस्था है, इन मुखबिरों को पैसा
दिया जाता है। इन माओवादियों उर्प नक्सलियों की आय का सबसे बड़ा साधन निर्माण कार्य,
तेंदुपत्ता और पंचायती व्यवस्था है। माओवादी प्रभाव वाले इलाकों में जो इमारतें (सरकारी)
बनाई जाती हैं, उसके एवज में इन्हें कमीशन मिलता है। पंचायतों में जितने काम होते हैं,
उसमें नक्सलियों का हिस्सा बंधा होता है। 2005 में जब 500 से अधिक ग्राम पंचायत प्रमुखों
से इस्तीफा दिलवाया गया था जिससे उनकी आय कम हो गई थी। इसके बाद नक्सलियों ने कभी ग्राम
पंचायतों को नहीं छोड़ा। हर नक्सली अपनी महीने की तनख्वाह से एक दिन का वेतन दान में
देता है। बस्तर में तेंदुपत्ता का करोड़ों का ठेका होता है। नक्सलियों को बिना पैसे
दिए तेंदुपत्ता की तुड़ाई नहीं होती। इलाके के छोटे-मोटे कारोबार करने वालों से माओवादी
सरकार की तरह टैक्स वसूलते हैं। माओवादी अपने आपको राजनीतिक दल बताकर बाकायदा यहां
वसूली करते हैं। संगठन से जुड़े लोगों को मासिक
वेतन दिया जाता है। कुल मिलाकर यह कहना गलत नहीं होगा कि जेहादी आतंकवाद से कहीं ज्यादा
खतरनाक माओवादी आतंकवाद है।
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