Published on 9 June,
2013
अनिल नरेन्द्र
वैसे देखा जाए तो पाकिस्तान के
समूचे इतिहास में लोकतांत्रिक ढंग से सत्ता परिवर्तन एक बहुत बड़ी उपलब्धि है। जिस
देश में सेना हमेशा सत्ता पर हावी रही हो वहां चुनाव में जीत कर आना मियां नवाज शरीफ
की ही नहीं पाकिस्तानी अवाम की जीत है, लोकतंत्र की जीत है। नवाज तीसरी बार पाकिस्तान
के प्रधानमंत्री बने हैं जो अपने आप में एक रिकार्ड है। पहले भी दो बार प्रधानमंत्री
की शपथ ले चुके हैं पर दोनों ही बार किसी निर्वाचित सरकार को अलोकतांत्रिक तरीके से
गिरा दिया गया। मौजूदा सियासी माहौल बनाने में पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के पूर्व अध्यक्ष
आसिफ अली जरदारी की भी भूमिका को नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए। तमाम विरोधाभास, सियासी
चालबाजियों के बीच उन्होंने पूरे पांच साल लोकतांत्रिक सरकार चलाकर पाकिस्तान में लोकतंत्र
की नींव मजबूत की और अब तक पाक सेना का सत्ता में बढ़ते प्रभाव को भी कम किया। इस बीच
पाकिस्तानी फौज और अकसर उसकी शह पर काम करने वाली वहां की अदालतों ने पीपीपी हुकूमत
के रास्ते में तमाम रोड़े अटकाने की कोशिश की। उसके दो प्रधानमंत्री न्यायपालिका के
आदेश पर हटा दिए गए, फिर भी सरकार चलती रही। पाकिस्तानी समाज के लिए यह बहुत बड़ी उपलब्धि
है और इससे निकले मौके का इस्तेमाल नवाज शरीफ को अपनी जम्हूरियत की नींव और भी ज्यादा
मजबूत बनाने में करना चाहिए। इसके लिए उनके पास अच्छा खासा बहुमत भी है। सबसे बड़ी
बात यह है कि पाकिस्तानी संसद में सत्तापक्ष और विपक्ष के बीच अभी वैसी कोई आत्मघाती
कटुता नहीं है जिसका इस्तेमाल वहां की लोकतंत्र विरोधी शक्तियां बड़ी आसानी से कर ले
जाती थीं। नवाज शरीफ ने अपने भाषण में चार प्राथमिकताएं रेखांकित की हैं। इनमें बिजली
संकट हल करना, अर्थव्यवस्था का ढांचा दुरुस्त करना सबसे ऊपर है। भ्रष्टाचार मिटाने
और आंतरिक सुरक्षा की स्थिति सुधारने की बात भी उन्होंने की है। भारत के लिए पाकिस्तान
में लोकतंत्र की जड़ें मजबूत होना, वहां की सियासत में ठहराव आना अच्छी खबर है। पर
चाहते हुए भी मियां नवाज शरीफ भारत के प्रति पाकिस्तान नीति में ज्यादा परिवर्तन शायद
न कर पाएं। नवाज के शपथ लेने के बाद अपने भाषण में विदेशी मोर्चे पर केवल चीन के साथ
रिश्तों का जिक्र करना, इसका स्पष्ट संकेत है। अमेरिकी ड्रोन हमलों का तो जिक्र किया,
स्पीच के दौरान उन्होंने भारत से रिश्तों का मामूली-सा भी जिक्र नहीं किया। नवाज ने
पाक कश्मीर इलाके से होकर पाकिस्तानी बंदरगाह ग्वादर और चीन के शिनच्यांग इलाके को
जेड़ने वाली सड़क और रेल लाइन का विशेष जिक्र
करना यह संकेत देता है कि पाकिस्तान का आज सबसे बड़ा दोस्त चीन ही है। राजनयिक
पर्यवेक्षकों के मुताबिक भारत से रिश्तों को लेकर पाक सेना और जेहादी संगठनों का जो
कड़ा रुख है, उसके मद्देनजर ही नवाज अपनी स्पीच में भारत के साथ रिश्तों का कोई जिक्र
करने से बचे। नवाज ने विदेश और रक्षा मंत्रालयों को अपने पास रखकर यह संकेत देने की
कोशिश की है कि वह विदेश और रक्षा नीति अपने हिसाब से चलाएंगे पर हमें संदेह है कि
इन दोनों मसलों पर पाक सेना का निर्णय अंतिम हो सकता है। हम नवाज शरीफ को प्रधानमंत्री
बनने पर बधाई देते हैं।
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