Saturday 1 June 2013

नक्सली हमले का रमन सिंह के भविष्य पर क्या असर पड़ सकता है?


 Published on 1 June, 2013 
 अनिल नरेन्द्र 
छत्तीसगढ़ के सुकमा जिले में कांग्रेस नेताओं पर हुए बर्बर नक्सली हमले को लेकर फुल राजनीति आरम्भ हो गई है। कांग्रेस और भाजपा नेता अब खुलकर एक-दूसरे पर आरोप लगा रहे हैं। वैसे छत्तीसगढ़ सरकार ने कांग्रेस की परिवर्तन रैली की सुरक्षा में चूक की अपनी गलती कबूल कर ली है। हालात की समीक्षा करने के लिए रायपुर पहुंचे केंद्र के आला अफसरों के समक्ष प्रदेश के अधिकारियों ने माना कि कांग्रेस की परिवर्तन रैली के दौरान खतरनाक इलाके में सुरक्षा के लिए पालन किए जाने वाले अति महत्वपूर्ण नियम (एसओपी) का पालन नहीं हुआ। प्रदेश सरकार ने यह भी स्वीकार किया कि खुफिया जानकारी होने के बावजूद सुरक्षा-व्यवस्था में कई खामियां थीं। छत्तीसगढ़ से लौटे गृह मंत्रालय के अफसरों ने बताया कि राज्य सरकार ने अपनी गलती स्वीकार कर दो बड़े पुलिस अधिकारियों का तबादला और एसपी को निलंबित कर दिया है। यह भी पता चला है कि नक्सली हमले में मारे गए कांग्रेस के वरिष्ठ नेता महेन्द्र कर्मा को 16 हथियारबंद गार्डों की जेड प्लस सुरक्षा प्राप्त थी, लेकिन जब नक्सली हमला हुआ तब उनके साथ महज छह ही सुरक्षाकर्मी चल रहे थे। सूत्रों के मुताबिक कर्मा के अलावा नंद कुमार पटेल के पास भी पर्याप्त सुरक्षा नहीं थी। शुरुआती जांच में सामने आ रहा है कि कांग्रेस की रैली के लिए सुकमा में तो पर्याप्त सुरक्षा प्रबंध थे लेकिन जब यह रैली जगदलपुर जिले में पहुंची तो सुरक्षा पर कोई गौर ही नहीं किया गया। बस्तर के एसपी मयंक श्रीवास्तव ने कांग्रेस यात्रा को सुरक्षा मुहैया कराने का कोई निर्देश ही नहीं दिया था। ऐसा बताया जा रहा है। सुरक्षा की इस भारी चूक के चलते ही नक्सली दरभा घाटी में हमले को अंजाम देने में कामयाब रहे। लापरवाही के लिए मयंक श्रीवास्तव को निलंबित कर दिया गया है। कांग्रेस नेतृत्व से स्पष्ट संकेत मिलते ही पार्टी नेताओं ने आक्रामक तेवर अपना लिए हैं। कांग्रेस ने कहा कि भाजपा व माओवादियों के बीच साठगांठ है। कांग्रेस महासचिव जनार्दन द्विवेदी ने कहा कि रमन सरकार को एक पल सत्ता में रहने का हक नहीं है। उन्होंने कहा कि यात्रा के रूट की छानबीन तक नहीं की गई। घटनाक्रम से लगता है कि कहीं नीयत में खोट है, इसलिए जरूरी है कि सारे रहस्य सामने आने चाहिए। पार्टी प्रवक्ता भक्त चरण दास ने कहा कि तथाकथित माओवादी व भाजपा एक-दूसरे की स्वार्थपूर्ति के लिए मिलकर काम कर रहे हैं। उन्होंने आशंका जताई कि कांग्रेस नेताओं पर हमले के बाद भ्रम फैलाकर राजनीतिक लाभ उठाने का प्रयास किया गया है। उन्होंने सवाल उठाया कि इस घटना से लाभ किसको मिलना था? लगभग इसी लाइन पर कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह ने कहा कि यह हमला गहरा राजनीतिक षड्यंत्र की ओर इशारा करता है। उन्होंने अपने ब्लॉग में शहीद कांग्रेस जनों को श्रद्धांजलि देते हुए कई सवाल उठाए हैं। उन्होंने पूछा कि यह हमला नक्सली विचारधारात्मक लड़ाई का हिस्सा था या फिर कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व की सुनियोजित हत्या? उन्होंने पटेल की हत्या पर सवाल उठाते हुए कहा कि हाल में उन्होंने पुलिस कार्रवाई में आठ निर्दोष आदिवासियों की हत्या को राज्य सरकार के खिलाफ बड़ा मुद्दा बनाया था। वे कभी भी महेन्द्र कर्मा की तरह नक्सलियों के निशाने पर नहीं थे। पटेल द्वारा शुरू की गई परिवर्तन यात्रा को व्यापक जनसमर्थन मिल रहा था। उनके लिए दक्षिणी बस्तर के छोर (नक्सल प्रभावित क्षेत्र) का दौरा तय किया गया। इस क्रम में सुकमा में सफल रैली के बाद जब नेताओं का काफिला आगे बढ़ा तो दरभा में नक्सली हमला हो गया और घटनास्थल से पुलिस थाने की दूरी महज 5 किलोमीटर थी। जवाबी कार्रवाई करते हुए भारतीय जनता पार्टी के मध्य प्रदेश अध्यक्ष नरेन्द्र सिंह तोमर ने ग्वालियर में आयोजित प्रदेश कार्यकारिणी के उद्घाटन सत्र में आरोप लगाया है कि इस हमले के पीछे पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी का हाथ है। उन्होंने कहा कि जिस प्रकार जोगी इस हमले को लेकर आंसू बहा रहे थे, उससे इस कांड में जोगी के षड्यंत्र की बू नजर आ रही है। देखना अब यह है कि इस हमले का आगामी विधानसभा चुनावों पर कोई असर पड़ता है या नहीं? भाजपा के आला नेता दबी जुबान में कुबूल कर रहे हैं कि विधानसभा चुनाव से ठीक पहले हुई इस घटना से कांग्रेस के प्रति उपजी सहानुभूति न केवल छत्तीसगढ़ बल्कि पड़ोसी राज्य मध्य प्रदेश के भी चुनाव परिणाम प्रभावित कर सकती है। पार्टी को नक्सली हमले में आदिवासी नेता महेन्द्र कर्मा की निर्मम हत्या का असर छत्तीसगढ़ की सीमा से लगे मध्य प्रदेश के आदिवासी बहुल इलाकों पर पड़ने की भी आशंका है। पार्टी स्वीकार कर रही है कि इस घटना ने नौ साल जो बीत गए हैं जिसमें बेदाग छवि रखने वाले मुख्यमंत्री रमन सिंह की छवि को एकाएक दागदार बना दिया है। उधर कांग्रेस के लोगों ने सहानुभूति चुनाव तक बरकरार रखने की फुलप्रूफ रणनीति तैयार करने की कवायद शुरू कर दी है। भाजपा की योजना इस बार भी राज्य में जनवितरण प्रणाली के माध्यम से सस्ता चावल उपलब्ध कराकर `चाउर वाले बाबा' बने रमन की छवि को भुनाने की थी। 10 साल के कार्यकाल में मुख्यमंत्री के खिलाफ कोई बड़ा मुद्दा न होने के कारण जहां विपक्ष परेशान था, वहीं भाजपा राज्य में हैट्रिक लगाने के प्रति आश्वस्त थी। मगर इस हमले ने पार्टी का समीकरण बिगाड़ कर रख दिया है। अब पार्टी रक्षात्मक मुद्रा में आ गई है। रमन सिंह को अब दिन-रात एक करके यह निर्णायक रूप से साबित करना चाहिए कि हमले के पीछे कौन था और उसका क्या उद्देश्य था। सुरक्षा प्रबंधों में कमी तो खुद उन्होंने स्वीकार कर ली है अब तो बस यही रास्ता बचा है कि वह पूरे षड्यंत्र का पर्दाफाश करें।
-अनिल नरेन्द्र

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