Thursday 27 June 2013

कहीं कांग्रेस को ही न बहा ले जाए उत्तराखंड का सैलाब


 Published on 27 June, 2013 
 अनिल नरेन्द्र 
 उत्तराखंड में कुदरत के कहर के बाद शुरू हुए राहत कार्यों में अब सियासत आगे आ गई है। शुरुआती कुप्रबंधन के आरोपों से जूझ रही केंद्र और उत्तराखंड सरकार ने अब दूसरे राज्यों से सीधी राहत व बचाव में लगने पर रोक लगा दी है। सरकार ने यह स्पष्ट कर दिया है कि कोई भी राहत व बचाव कार्य अब उत्तराखंड सरकार की देखरेख में ही होगा। केंद्र व उत्तराखंड सरकार नरेन्द्र मोदी द्वारा उत्तराखंड में फंसे गुजरातियों को वापस लाने के लिए राज्य की ओर से हेलीकाप्टर व विमान की व्यवस्था का श्रेय लूटने की कोशिश के रूप में देख रही है। जाहिर है कि राहत व बचाव कार्य के कुप्रबंधन का आरोप झेल रही कांग्रेस की केंद्र व राज्य सरकार को यह कतई पसंद नहीं आया। यही नहीं नरेन्द्र मोदी के उत्तराखंड दौरे से, कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी के गैर हाजिर होने पर भी कांग्रेस में बेचैनी बढ़ गई थी। राहुल गांधी उत्तराखंड में हुई तबाही के नौ दिन बाद दिखाई पड़े। वह जब गोचर दौरे पर गए तो शाम देर होने के कारण वहीं रुकना पड़ा। उत्तराखंड आपदा के दौरान विदेश प्रवास के आरोपों में घिरे राहुल गांधी ने राज्य के दौरों का कार्यक्रम बनाकर विपक्ष के सवालों को थामने की कोशिश की है। विदेश से लौटते ही राहुल ने न केवल उत्तराखंड जाने का कार्यक्रम बनाया बल्कि कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के साथ राज्य के आपदा पीड़ितों के लिए राहत सामग्री से लदे वाहनों को हरी झंडी दिखाकर रवाना किया। इस मामले में डैमेज कंट्रोल के लिए पार्टी ने राज्य में चलाए जा रहे राहत कार्यों की निगरानी का जिम्मा भी राहुल को सौंप दिया है। नरेन्द्र मोदी की देखा-देखी उत्तराखंड की तबाही का मुआयना करने निकले राहुल गांधी का यह दांव भी उलटा पड़ता दिख रहा है। उनकी इस बात के लिए कड़ी आलोचना की जा रही है कि नौ दिन तक विदेश में रहने के बाद अब उन्हें उस समय उत्तराखंड में फंसे लोगों का दर्द क्यों याद आया जब प्रशासन किसी भी वीआईपी के दौरे के लिए सख्ती से मना कर चुका है। कांग्रेस नरेन्द्र मोदी पर इसी तर्प को आधार बनाकर हमला बोल रही थी कि वो राहत और लाशों पर राजनीति कर रहे हैं। लेकिन अब त्रासदी के नौ दिन बाद स्वयं उसी के उपाध्यक्ष ने भी मोदी के पद चिन्हों पर चलकर बैकफुट कर दिया। उत्तराखंड का बड़ा हिस्सा तो प्रकृति की विनाश लीला ने उजाड़ दिया। वह कुछ समय बाद भले ही फिर से बस जाए। लेकिन इस दौरान राज्य सरकार के कुप्रबंधन का खामियाजा कांग्रेस को पूरे देश में भुगतना पड़ सकता है। पूरे देश से आए सैलानियों और श्रद्धालुओं के कटु अनुभव सिर्प उत्तराखंड की सीमा तक ही नहीं रुकने वाले। उत्तराखंड में कुदरत के कहर से बच निकलने वाला हर शख्स सिर्प सेना या आईटीबीपी या एयर फोर्स के जांबाजों के गुणगान कर रहा है। राज्य सरकार या स्थानीय प्रशासन की ओर से कोई मदद किसी मुसीबत के मारे को महसूस नहीं हुई। राज्य प्रशासन की अक्षमता और लचरता पर सैलानियों से लेकर स्थानीय लोगों का आक्रोश भी बार-बार फूट रहा है। यह संदेश जा रहा है कि राहत कार्यों में शुरुआती दौर में तमाम जानें चली गईं। उत्तराखंड आने वालों में दक्षिण भारत से लेकर पूरब-पश्चिम और उत्तर सभी क्षेत्रों के लोग हैं। सभी राज्यों में उत्तराखंड शासन-प्रशासन की लचरता का संदेश जा रहा है। देवभूमि पर ससम्मान अंतिम संस्कार न हो पाने का हिन्दू समाज में दर्द सिर्प परिवार तक ही सीमित नहीं रहेगा। कारण है कि पहले जीवित बचे हुए लोगों को आपदाग्रस्त क्षेत्रों से हटाया जा रहा है। ऐसे में शवों की दुर्दशा का भावनात्मक मुद्दा पूरे देश में लोगों को उद्वेलित कर सकता है। जैसा मैंने कहा कि कहीं कांग्रेस को ही न बहा ले जाए उत्तराखंड का सैलाब?

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