Published on 28 June,
2013
अनिल नरेन्द्र
यह अत्यंत दुर्भाग्य और मायूसी का विषय है कि आपदा
के बाद केदारनाथ मंदिर की मर्यादा और यहां की वर्षों पुरानी परम्पराओं और मान्यताओं
को तार-तार किया जा रहा है। कई नेताओं की शह पर टेलीविजन पर इन दिनों पूरे देश व विश्व
में गर्भगृह की ताजा तस्वीरें दिखाई जा रही हैं। पिछले साल अगस्त में जब मैं और मेरे
साथी केदारनाथ दर्शन के लिए गए थे तो हमने गर्भगृह की तस्वीरें नहीं खींची थीं, केवल बाहर से ही तस्वीरें ली थीं। सभी यात्री व श्रद्धालु
हजारों वर्षों से इसी परम्परा का पालन करते आए हैं। आज तक किसी ने गर्भगृह की तस्वीरें
नहीं देखी थीं पर पिछले कुछ दिनों से हर टीवी चैनल पर यह ब्रेकिंग न्यूज बनी हुई है।
सवाल यह उठता है कि इसके लिए जिम्मेदार कौन है? कौन है वहां इन टीवी वालों को रोकने
वाला? मंदिर के पुजारी, वहां की मंदिर समिति के लोग, सेवादार सभी तो अपनी जान बचाने
के लिए भगवान को छोड़कर भाग गए हैं। अपनी-अपनी राय हो सकती है। मेरी राय में मंदिर
के मुख्य पुजारी व अन्य पुजारियों को मंदिर छोड़कर भागना नहीं चाहिए था। हमारे पुराण
भी यही कहते हैं। आखिर वह तो केदारनाथ बाबा की सेवा, पूजा-अर्चना के लिए ही तो वहां
मौजूद थे। उनका और उनके परिवार का पालन-पोषण केदारनाथ मंदिर से ही होता है। जब पानी
आया तो सब अपनी जान बचाने में लग गए। भगवान की फिक्र किसी को नहीं हुई और पहला अवसर
पाते ही हेलीकाप्टर पर चढ़ गए। उन्हें वहीं रहना चाहिए था चाहे इसमें उनकी जान क्यों
न चली जाती। उन्हें अपने उस ईष्ट देव पर भरोसा करना चाहिए था। आखिर उसने सैकड़ों लोगों
को बचाया भी। दूर की बात क्या करें टिहरी निवासी विजेन्द्र सिंह नेगी उत्तराखंड में
भीषण बाढ़ के उस भयानक मंजर को शायद इस जिन्दगी में तो न भूलें, जब उन्होंने केदारनाथ
मंदिर की घंटी से नौ घंटे तक लटके रहकर और गर्दन तक गहरे पानी में तैरते शवों पर खड़े
होकर जैसे-तैसे अपनी जान बचाई। 36 वर्षीय नेगी के रिश्तेदार और दिल्ली के पर्यटन ऑपरेटर
गंगा सिंह भंडारी ने कहा कि बाढ़ के दौरान वह सुबह सात बजे से शाम चार बजे तक मंदिर
के घंटे से लटके रहे। नेगी मंदिर के पास बने तीन मंजिला होटल की छत से पानी में कूदे और उसके बाद मंदिर में शरण ली। एक अखबार में मंदिर
के मुख्य पुजारी वागेश लिंग की आपबीती छपी है। कभी शिव की जटाओं में समा जाने वाली
गंगा जब अपने रौद्र रूप में आई तो लगा कि वह एक बार शिव सहित समूची सृष्टि को निगलने
को मचल रही हो लेकिन उसके इस तूफानी वेग के बाद भी (शिव) केदार बाबा की महिमा में नई
कड़ियां जुड़ गई हैं। भारी प्रलय के बीच केदारनाथ मंदिर आश्चर्यजनक रूप से बच जाने
की बात हो या फिर हाहाकार की स्थिति में उनकी पूजा की निरंतरता की। मंदिर के मुख्य
रावल जिन्हें हिमवत केदार भी कहा जाता है ने इस आफत की घड़ी में पूजा की निरंतरता का
जो खुलासा किया है, उससे शिव के प्रति भक्ति का भाव और भी बढ़ जाता है। आफत की इस घड़ी
में शिवभक्तों के मन में उठ रहे सवालों का जवाब यही है कि 11वें ज्योतिर्लिंग केदारनाथ
में भारी प्रलय के बाद भी पूजा की निरंतरता नहीं टूटी। आपदा के दिन जब 16 जून को बाढ़
का पानी मंदिर में घुसा तो उससे पहले ही मुख्य पुजारी वागेश लिंग पूजा कर चुके थे।
वहां आपदा पहली बार 16 जून की शाम को आठ बजे आई, उस समय तक पूजा हो चुकी थी। रात को
सब सामान्य-सा हो गया था। इसके बाद 17 जून को सुबह चार बजे पूजा हो चुकी थी। करीब
7.45 बजे जब बाढ़ का पानी मंदिर में घुसा तो पुजारी वागेश लिंग गर्भगृह में ही पानी
में फंस गए। इसके बाद पानी चढ़ते-चढ़ते उनके गले तक आ गया तो उन्होंने विग्रह मूर्ति
को दाहिने हाथ पर उठा लिया। इसके बाद वह डूब
जाते, इससे पहले ही गर्भगृह का पश्चिमी द्वार टूट गया और पानी बाहर की ओर से निकल गया।
इसके बाद मुख्य पुजारी को लगा कि दक्षिण द्वार की दीवार टूट सकती है और वह वहां दब
सकते हैं, वह वहां से हटकर गर्भगृह के पिलर पर चढ़ गए। उनके हाथ में विग्रह मूर्ति
थी। इसी स्थिति में वह करीब पांच घंटे तक रहे। इस दौरान उन्होंने मूर्ति नहीं छोड़ी।
उसके बाद वहां बचे कुछ लोगों ने मंदिर के गर्भगृह में विग्रह मूर्ति को सम्भाले हुए
मुख्य पुजारी को गरुढ़ चट्टी पहुंचाया। गरुढ़ चट्टी में ही 18 जून को पूजा की गई। उसके
बाद अगले दिन विग्रह मूर्ति को गुप्तकाशी के विश्वनाथ मंदिर में लाया गया, जहां 23
जून तक नियमित पूजा-अर्चना हुई। 24 जून के बाद उखी मठ के ओंकारेश्वर मंदिर में बाबा
केदार की नियमित पूजा शुरू हो गई है जो तब तक चलेगी जब तक बाबा केदारनाथ का शुद्धिकरण
नहीं हो जाता। इस बात का खुलासा दुखी मन से केदारनाथ मंदिर के मुख्य रावल श्री वैराग्य
सिंह, सनाधीश्वर भीमा शंकर लिंग शिवाचार्य महास्वामी जी (हिमवत केदार) ने किया है।
ओम नम शिवाय।
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