Published on 14 June,
2013
अनिल नरेन्द्र
बड़ी धूमधाम के साथ यूपीए सरकार ने देश में बड़े आतंकी
हमलों की जांच के लिए अमेरिका की एफबीआई की तर्ज पर राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए)
का गठन किया था। एजेंसी की पांच शाखाएं हैंöमुंबई, हैदराबाद, लखनऊ, कोच्चि एवं गुवाहाटी।
इनमें से तीन की स्थापना 2012 में हुई थी। चार सालों में इस एजेंसी को कोई बड़े आतंकी हमलों की जांच में कोई
खास सफलता नहीं मिली है। यह एजेंसी अब सत्तारूढ़ सरकार के अपने राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों
को प्रताड़ित करके अपने आकाओं के राजनीतिक उद्देश्यों की पूर्ति करने का एक औजार बन
गई है। गत दिनों हमें इसके कामकाज करने के तौर-तरीकों की रौंगटे खड़े करने वाली जानकारी
मिली। पाठकों को याद होगा कि मालेगांव बम ब्लास्ट में प्रज्ञा सिंह ठाकुर सहित कई लोग
गिरफ्तार किए गए थे। प्रज्ञा ठाकुर के रिश्तेदार ने गत दिनों दिल्ली के प्रेस क्लब
में इस एजेंसी के तौर-तरीकों की जानकारी दी। केंद्र के हिन्दू आतंकवाद के नए सिद्धांत
के प्रतिपादन के बाद मालेगांव बम विस्फोट के
आरोपियों की कहानी सुनते-सुनते प्रेस क्लब में मौजूद पत्रकारों की आंखों से भी आंसू
निकल पड़े। एनआईए ने प्रज्ञा सिंह ठाकुर के साथ हिरासत में जहां सारी हदें पार कर दीं
वहीं उनके महिला होने, साध्वी होने तक का भी सम्मान नहीं किया। ठाकुर के परिवार वालों
के अनुसार हिरासत में पूछताछ के दौरान सभी अधिकारी पुरुष हुआ करते हैं वहीं साध्वी
के ऊपर थर्ड डिग्री का इस्तेमाल किया जाता रहा। पुलिस की पिटाई से प्रज्ञा ठाकुर मृत्यु
के कगार पर पहुंच चुकी हैं। बार-बार नार्को टेस्ट (4 बार) करने के बाद भी पुलिस कुछ
भी हासिल नहीं कर पाई। दो वर्ष से अधिक का समय बीत जाने के बाद भी एनआईए अब तक प्रज्ञा
के खिलाफ आरोप तय नहीं कर सकी। प्रज्ञा के रिश्तेदारों ने उनके बिगड़ते स्वास्थ्य को
देखते हुए सही उपचार का बार-बार आग्रह करने को ठुकरा दिया गया। अधिकारी बार-बार अस्पताल
से उनके स्वस्थ होने के प्रमाण अदालत को सौंप देते हैं। 12.3.2012 को एक अन्य मामले
में भोपाल लाए जाने पर मेडिकल परीक्षण के दौरान पता चला कि प्रज्ञा ठाकुर कैंसर की
बीमारी से गम्भीर रूप से पीड़ित हैं। अब हालत यह है कि उनके बचने की सम्भावना काफी
कम हो गई है। हिन्दू आतंकवाद की नई थ्योरी में सबसे बड़े भुक्तभोगी बने हैं इंदौर के
निवासी दिलीप पाटीदार। पाटीदार की पत्नी के अनुसार मुंबई की एटीएस ने इंदौर जिले के
खजराना थाने से पाटीदार को 10-11 नवम्बर की रात को गिरफ्तार किया। लेकिन आज पांच साल
बीत जाने के बाद भी पाटीदार का कहीं अता-पता नहीं। पुलिस कहती है कि पूछताछ के बाद
हमने उसे छोड़ दिया। वहीं मध्य प्रदेश पुलिस ने बताया कि मुंबई एटीएस उसके पति को गिरफ्तार
कर मुंबई ले गई थी। पुलिस के इस अमानवीय रवैए से त्रस्त दिलीप पाटीदार के भाई रामस्वरूप
ने मध्य प्रदेश हाई कोर्ट में एक बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दाखिल की। रामस्वरूप की
याचिका पर संज्ञान लेते हुए अदालत ने लापता दिलीप का पता लगाने का जिम्मा सीबीआई को
सौंप दिया। लेकिन सीबीआई ने गैर-जिम्मेदाराना रवैए के साथ-साथ न्यायालय को भी एक बड़ा
अमानवीय चेहरा दिखाते हुए रिपोर्ट दाखिल की कि वह दिलीप को खोजने में विफल है। असीमानन्द,
प्रज्ञा ठाकुर एवं कुछ अन्य हिन्दुओं को गिरफ्तार करने के बाद यूपीए सरकार के कुछ मंत्रियों
ने देश में भगवा आतंकवाद का मुद्दा खूब उछाला। भाजपा ने भगवा आतंकवाद का प्रचार इसलिए
किया कि इससे राजनीतिक लाभ उठाया जा सके। सवाल यह उठता है कि एनआईए क्या इसी उद्देश्य
के लिए स्थापित हुई कि सत्तारूढ़ दल के राजनीतिक एजेंडे को आगे बढ़ाए। प्रज्ञा ठाकुर
इत्यादि की दास्तान सुनने के बाद मुझे उन बेगुनाह मुसलमान युवकों के प्रति भी हमदर्दी
हो रही है जिन्हें इसी तरह गिरफ्तार करके प्रताड़ित किया जा रहा है। जब वह एक वर्ग
से यह सब कर सकते हैं तो दूसरे से क्यों नहीं?
सवाल देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था पर भी उठता है। हमारी अदालतें भी निर्दोषों को बचाने
में विफल साबित हो रही हैं। वर्षों बाद भी आज तक आरोप पत्र दाखिल नहीं किया जा सका
और अदालतें प्रज्ञा ठाकुर व अन्य ऐसे केसों में जमानत क्यों नहीं देतीं? क्या अदालतें
पुलिस के हथकंडों व चालबाजियों को नहीं समझतीं? प्रज्ञा ठाकुर की दास्तान सुनकर बहुत
दुख हुआ। न जाने मानवाधिकार वालों को क्या
हुआ है, यह भी इसलिए मामले को नहीं उठा रहे क्योंकि यह एक विशेष धर्म से संबंधित है?
अगर प्रज्ञा ठाकुर की मौत होती है तो इसका जिम्मेदार कौन होगा?
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