Published on 9 June,
2013
अनिल नरेन्द्र
दिल्ली पुलिस ने गुरुवार को यह
सनसनीखेज दावा किया कि स्पॉट फिक्सिंग मामले में राजस्थान रायल्स टीम के मालिक भी शामिल
हैं। राज पुंद्रा न केवल सट्टेबाजी में शामिल थे बल्कि अपनी ही टीम पर सट्टा लगाते
थे। ध्यान रहे कि यह दूसरा केस है जब टीम के मालिक खुद सट्टेबाजी में शामिल हैं। पहला
केस चेन्नई सुपर किंग्स के मालिक सरीखे सीईओ गुरुनाथ मयप्पन का है। जब आईपीएल टीमों के संचालक ही सट्टेबाजी में लिप्त
हों तो फिर यह उम्मीद करना बेमानी है कि वे अपनी-अपनी टीमों के क्रिकेटरों पर यह नजर
रख सकें कि कहीं वह सट्टेबाजी के खेल में शामिल तो नहीं। अगर दिल्ली पुलिस की बातों
पर यकीन किया जाए तो दोनों मियाöबीवी यानी राज पुंद्रा और शिल्पा शेट्टी सट्टेबाजी
करते थे। पुलिस ने यह दावा बुधवार को राज पुंद्रा और उनके दोस्त उमेश गोयनका से पूछताछ
के बाद किया। राज कुद्रा और उमेश गोयनका से पूछताछ में यह उभरकर आया कि राज सीधे तौर
से सात सटोरियों से सम्पर्प में था जबकि अन्य छह से वह अपने साथी उमेश के जरिए जुड़ा
था। राज पुंद्रा ने आईपीएल मैचों में तीन साल से सट्टा लगाकर करीब एक करोड़ रुपए गंवाए
हैं। यह बयान उन्होंने खुद पूछताछ के दौरान पुलिस को दिया। उन्होंने यह भी बताया कि
वह अकसर अपनी टीम के पक्ष में ही दांव लगाते थे। सट्टा लगाने की बात स्वीकारने के बाद
अब राज पुंद्रा पर गिरफ्तारी की तलवार लटक रही है। वहीं पुलिस जांच में पता चला है
कि लंदन में जन्मे राज पुंद्रा जो एनआरआई बिजनेसमैन हैं, मूल रूप से उनके पूर्वज पंजाब
से थे, मैचों में सट्टा लगाने का शौक पुराना है। इससे पहले भी वह ब्रिटेन में होने
वाले घरेलू और राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय मैचों में सट्टा लगाते रहे हैं। राज ब्रिटेन
में बैठकर अपने बिजनेस पार्टनर उमेश गोयनका के साथ सट्टेबाजी का खेल खेला करता है।
दिल्ली पुलिस के अनुसार शिल्पा शेट्टी ने भी दिल्ली-कोलकाता के बीच हुए मैच में सट्टा
लगाया था। हालांकि अभी तो पुलिस यह कह रही है कि पुंद्रा की गिरफ्तारी के लिए फिलहाल
ऐसा कोई सबूत नहीं मिला है जिसके आधार पर पुंद्रा को गिरफ्तार किया जा सके। गैमलिंग
एक्ट के तहत गिरफ्तारी के लिए पुलिस के पास रिकवरी वगैरह होनी चाहिए, जो कि पुलिस के
पास नहीं है। हालांकि भविष्य में गिरफ्तारी की बात से पुलिस इंकार नहीं कर रही। राज
पुंद्रा व उसके सहयोगी उमेश गोयनका के नाम का खुलासा पहली बार सिद्धार्थ त्रिवेदी ने
पूछताछ में किया था। स्पॉट फिक्सिंग मामले में सिद्धार्थ को स्पेशल सेल ने सरकारी गवाह
बना लिया है। कटु सत्य तो यह है कि न तो टीम मालिकों ने खिलाड़ियों पर नजर रखी और न
ही बीसीसीआई ने। शायद बीसीसीआई को भी इससे कोई मतलब नहीं रह गया था कि उसके नियम-कानूनों
का पालन हो रहा है या नहीं? क्या आज बीसीसीआई यह दावा कर सकती है कि आईपीएल टीमों के
इन दो संचालकों के अलावा अन्य कोई इस तरह के काम में लिप्त नहीं है? मुश्किल तो यह
है कि बीसीसीआई ने अपनी तरफ से इतना कुछ होने के बाद भी कोई ऐसा कदम नहीं उठाया है
जिससे उसकी समाप्त होती रही विश्वसनीयता पर थोड़ा विराम लगे। अध्यक्ष को हटाने पर जिस
ढंग से लीपापोती की गई उससे उसकी विश्वसनीयता पर और धक्का लगा है। फिलहाल तो यह कहना
मुश्किल लग रहा है कि स्पॉट फिक्सिंग की जड़ें कितनी गहरी हैं लेकिन इतने लोगों को
शामिल होने की बात सामने आने से यह तो तय है कि यह खेल लम्बा है। भले ही सट्टेबाजी
स्पॉट फिक्सिंग की तरह गम्भीर अपराध की कैटेगरी में न आती हो लेकिन यह भी कतई स्वीकार्य
नहीं कि आईपीएल टीमों के संचालक-मालिक सटोरियों के साथ मिलकर सट्टा खेलें और अपनी ही
टीमों पर सट्टा लगाने में संकोच न करें। खेल के इस तरह से कारोबार में तब्दील होने
से खेल क्रिकेट की विश्वसनीयता पर प्रश्नचिन्ह लगने लगा है। बीसीसीआई को न केवल आईपीएल
की बल्कि अपनी और देश की विश्वसनीयता को बहाल करना होगा। दुर्भाग्य से इसके कहीं कोई
आसार अभी तक तो नजर नहीं आए।़
No comments:
Post a Comment