Friday 7 June 2013

स्पॉट फिक्सर्ज पर मकोका साबित करना आसान नहीं होगा


 Published on 7 June, 2013 
 अनिल नरेन्द्र 
स्पॉट फिक्सिंग के तार सीधे तौर पर अंडरवर्ल्ड से जुड़े हैं। यह आशंका हमने इसी कॉलम में दो दिन पहले ही जाहिर की थी। अभी तक स्पष्ट तौर पर दाउद इब्राहिम और छोटा शकील का नाम लेने से बच रही दिल्ली पुलिस ने पकड़े गए सभी आरोपियों पर मकोका लगाने के बाद अंडरवर्ल्ड सरगना दाउद इब्राहिम और छोटा शकील के स्पॉट फिक्सिंग कनेक्शन से जुड़े होने की बात कही है। क्रिकेटर श्रीसंत, अजीत चंदेला और अंकित चव्हाण पुलिस के अनुसार दाउद और छोटा शकील के इशारों पर काम कर रहे थे। इन खिलाड़ियों पर मकोका लगाने से बहरहाल जरूर कुछ सवाल खड़े हो रहे हैं। पुलिस संगठित रूप से अपराध करने पर मकोका के तहत केस दर्ज करती है। स्पॉट फिक्सिंग और सट्टेबाजी के मामले में भी पुलिस का दावा है कि आरोपी पूरा काम इसी रूप में कर रहे थे। इस मामले में सट्टेबाज, खिलाड़ी और टीम प्रबंधन के लोग भी शामिल हैं। ये सब दाउद इब्राहिम के लिए काम कर रहे थे। दुबई, कराची और पाकिस्तान के अन्य शहरों से इसे चलाया जा रहा था। अंडरवर्ल्ड के लोग खिलाड़ियों को धमकी देते थे। काम नहीं करने पर सबक सिखाने की बात करते थे। धंधे में सभी शामिल लोगों को पैसे बंटते थे। कानून के जानकारों का कहना है कि पुलिस ने केवल अपनी खाल बचाने के लिए मकोका लगाया है, तो कुछ इसे एकदम सही बता रहे हैं। इस मामले में तीन लोगों की पहले ही जमानत हो चुकी है, इससे पुलिस की किरकिरी हो रही है। अब मकोका लगने से जमानत लेना बेहद मुश्किल हो जाएगा। मगर सवाल यह है कि क्या दिल्ली पुलिस इन पर मकोका साबित भी कर पाएगी? दिल्ली पुलिस ने मकोका लगाने के जो तर्प दिए हैं उसे साबित करना टेढ़ी खीर होगा। पुलिस के अनुसार बुकी अश्वनी अग्रवाल दाउद गिरोह के सम्पर्प में था। लेकिन पुलिस ने अदालत में ऐसा नहीं बताया कि अन्य अभियुक्तों को इस तथ्य की जानकारी थी या नहीं कि फिक्सिंग में दाउद लिप्त है। पुलिस को यह साबित करना होगा कि आरोपी इस तथ्य से अवगत थे कि फिक्सिंग में जो पैसा मिल रहा है, वह डी कम्पनी या उसके इशारे पर दिया जा रहा है। अश्वनी अग्रवाल के सम्पर्प पर सभी को दाउद का साथी या फिर गिरोह का सदस्य करार नहीं दिया जा सकता। पुलिस ने पहले सभी के खिलाफ मात्र आपराधिक षड्यंत्र व धोखाधड़ी का मामला दर्ज किया था लेकिन बाद में धारा 409 (अमानत में खयानत) जोड़कर सभी की मुश्किलें बढ़ा दीं। अब मकोका की परेशानी और बढ़ गई है। वैसे भी पुलिस का मकोका मामलों में रिकार्ड कोई उत्साहजनक नहीं रहा। पिछले 11 साल में दिल्ली पुलिस मकोका में एक भी मुलजिम को सजा नहीं दिला सकी। मकोका में अभियुक्त रिहा होते जा रहे हैं। मकोका का इस्तेमाल सजा दिलाने के बजाय मुलजिमों को जेल में बन्द रखने में अब किया जा रहा है। 2002 में दिल्ली में मकोका को दिल्ली में नोटिफाई कराया गया था। आज तक इस स्पेशल एक्ट के तहत 55 केसों में गिरफ्तार 203 मुलजिमों में से 35 तो चार्ज की स्टेज पर ही डिसचार्ज हो गए, जबकि दो बरी हुए। मकोका में आज तक दिल्ली पुलिस एक भी मुलजिम को सजा नहीं दिला सकी। कृष्ण पहलवान, मरहूम अहमद, मुन्ना बजरंगी, कुछ ऐसे कुख्यात मामले हैं जहां पुलिस ने मकोका लगाया और अदालत ने उसे रद्द किया।

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