Sunday, 23 June 2013

आओ सब मिलकर राहत में हाथ बंटाएं


 Published on 23 June, 2013 
 अनिल नरेन्द्र 
उत्तराखंड के जो हालात अब सामने आ रहे हैं उससे साफ है कि देश राष्ट्रीय आपदा की चपेट में आ गया है। जन-धन हानि के बढ़ते आंकड़े सिहरन पैदा करने वाले हैं। मुश्किल यह है कि पांच-छह दिन होने के बाद भी यह जानना कठिन है कि विनाश और विध्वंस की सीमा क्या है? उत्तराखंड की किसी भी सरकारी एजेंसी को यह नहीं मालूम कि 11759 फुट की उंचाई पर स्थित केदारनाथ के दर्शन के लिए कितने लोग आए, कितने लापता हो गए और कितनों की मौत हो चुकी है। लगता यह है कि दरअसल यहां यात्रियों का सही ब्यौरा रखने की कोई व्यवस्था ही नहीं। तबाही वाली रात केदारनाथ और बद्रीनाथ में करीब 30 हजार लोग थे। अभी तक 10 हजार के करीब बाहर निकाले गए हैं। अकेले केदारनाथ और बद्रीनाथ में 20 हजार से ज्यादा लोगों का पता नहीं चल सका। अगर हम पूरे उत्तराखंड की बात करें तो अनुमान है कि 50422 लोग फंसे हुए हैं। रुद्रप्रयाग में 22429, चमोली में 18162 और उत्तरकाशी में 9831। बचाव कार्य में सेना और आईटीबीपी के 6000 जवान लगे हुए हैं। टीवी और अखबारों में हमने देखा और पढ़ा कि किस तरह सेना के जवानों ने जान की बाजी लगाकर लोगों को बचाया। भारतीय सेना ने हर भारतीय का सिर गर्व से उठा दिया है। सेना अगर इतनी सक्रिय न होती तो पता नहीं कितने और मरते। श्री अश्विनी चौबे पूर्व स्वास्थ्य मंत्री बिहार ने अपनी आंखों देखी कुछ यूं बयान की। मैं चार रातों तक केदारनाथ में फंसा रहा। मेरे परिवार के पांच लोग लापता हैं। मैंने लाशों पर रात बिताई, 1800 से ज्यादा लोग मेरे साथ मंदिर में थे। कई तो मेरी आंखों के सामने मर गए। मंदिर के अन्दर लाशें तैर रही थीं। मैंने जिन्दगी में ऐसी आपदा नहीं देखी थी। 15000 से 20,000 से ज्यादा लोगों की मौत हुई है। दिल्ली निवासी शपुंतला गुसांई ने अपनी आपबीती सुनाई जिससे पता लगता है कि मंजर कितना भयानक रहा होगा। हम 16 जून को केदारनाथ दर्शन के बाद वापस लौट रहे थे। बीच में मौसम खराब हुआ तो रामबाड़ा में हम रुक गए। बारिश तेज हो रही थी। मार्केट में भारी चहल-पहल थी। लोग चाय की चुस्कियां ले रहे थे। करीब पांच बजे अचानक पहाड़ हिलने लगा, हमने देखा नीचे वाला गेस्ट हाउस, जिसमें करीब 500 लोग थे ब्लास्ट के साथ नदी में समा गए। आपदा के वक्त रामबाड़ा में करीब 3000 लोग मौजूद थे। पहाड़ के नक्शे से गायब हो चुके रामबाड़ा से लौटीं शपुंतला गुसांई के दोनों पैर सूजे हैं और कमर पर गहरा जख्म है। उन्होंने बताया कि जब जान बचाने के लिए भागे तो करीब 100 लोग थे लेकिन जब पहाड़ की चोटी पर पहुंचे तो हम पांच महिलाओं के साथ कुल तीन लोग ही बचे थे। तेज बारिश से बचने के लिए उन्होंने पड़ी लाशों की पालिथीन और घोड़ों के कपड़े अपने ऊपर ढंके। चार दिन तक बिना खाए-पीए जैसे-तैसे एक खाली जगह पहुंचे, जहां से सेना के हेलीकाप्टर ने उन्हें ट्रेस किया। जैसे ही हेलीकाप्टर नीचे आया तो किनारे खड़े दो लोग उसकी पंखुड़ी की तेज हवा के झोंके से नदी में जा गिरे। उन्होंने बताया कि भगदड़ के वक्त जो भी नीचे गिर गया वह नहीं बच पाया। रामबाड़ा में 50 नहीं बल्कि तीन हजार से ज्यादा लोगों की मौत हुई है। शपुंतला ने बताया कि आपदा के समय वहां केवल अपना जीवन नजर आ रहा था। बचाव कर्मी केवल अपनी जान की फिक्र करने की हिदायत दे रहे थे। आपदा के कारण उत्तरकाशी में न बिजली है और न पानी। बीमार लोगों के इलाज के लिए न कोई डाक्टर है और न ही दवाइयां। गुरुवार सुबह यात्रियों ने गंगोत्री चौकी प्रभारी ठकरियाल को घेर लिया। यात्रियों ने सरकार को जमकर कोसा। उनका कहना था कि लगता है कि गंगोत्री धाम में सरकारी तंत्र नाम की कोई चीज ही नहीं है। अगर हम सरकारी अफसरों की बात करें तो देखिए इनका रवैया। अपनो को खो चुके हजारों पस्तहाल, बीमार तीर्थयात्री मदद की गुहार लगा रहे थे। सभी चाहते थे कि उन्हें पहले निकाला जाए। अगर राजस्थान के तीर्थयात्रियों की मानें तो मौके पर मौजूद पुलिस और प्रशासन के अफसरों का व्यवहार शर्मनाक रहा। सबसे पहले वे ही हेलीकाप्टर से निकल भागे। यह दास्तां बताई केदारनाथ से  बचकर हरिद्वार पहुंचे राजस्थान के तीर्थयात्रियों के एक समूह ने। और तो और सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार को फटकार लगाई है। अदालत ने राहत कार्यों में तेजी लाने की सख्त हिदायत दी है। अत्यंत दुख से कहना पड़ता है कि हमारे कुछ भाई लाशों को भी पैसों की खातिर नहीं छोड़ते। केदारनाथ की तबाही ने पूरे देश को हिलाकर रख दिया है लेकिन केदारनाथ धाम में तपस्या के नाम पर रह रहे कुछ कपटी साधुओं ने धर्म के नाम पर ऐसी करतूत की है जिसे सुनकर हर कोई शर्मिंदा हो जाएगा। यह हरकत की है कुछ ऐसे धूर्त साधुओं ने जो भगवान शिव की तपस्या के नाम पर ग्रीष्मकाल के छह महीने केदारनाथ में तपस्या में लीन रहने का ढोंग करते रहे हैं लेकिन आपदा के समय ऐसा काम किया जो कभी सोचा भी नहीं जा सकता था। त्रासदी की रात साधुओं ने तीर्थयात्रियों को इस कदर लूटा कि पुलिस ने जब उनकी तलाशी ली तो लाशों से उतारे जेवर-नकदी बरामद की। उनके पास तीन करोड़ की नकदी निकली। अभी जांच जारी है। सरकार तो अपने स्तर पर काम कर ही रही है पर हम सभी को भी अपनी-अपनी तरह से हाथ बंटाना होगा। मुख्यमंत्री के रवैये से भी लोगों में गुस्सा और हताशा है। काम इतना बड़ा है कि सभी लगेंगे तब जाकर कुछ परिवारों की मदद होगी। हम भी इस जंग में कूद पड़े हैं। हमारे एक संगठन श्री देवोत्थान सेवा  समिति ने फैसला किया है कि हम कम से कम 500 परिवारों को राहत सामग्री पहुंचाएंगे। हर परिवार को एक पैकेट दिया जाएगा जिसमें एक किलो आटा, एक किलो चावल, एक किलो दाल, एक किलो चीनी और मसाले का पैकेट होगा। हमारा प्रयास है कि हमारी टीम स्वयं जाकर प्रभावित परिवारों को यह पैकेट पहुंचाएगी। बहुत छोटा-सा प्रयास है पर कोई तो शुरू करे और अगर सभी भाई ऐसा करना शुरू करें तो कुछ तबाह हुए परिवारों को मदद पहुंचेगी। आप भी हमारा हाथ बंटाएं। दैनिक वीर अर्जुन, दैनिक प्रताप और सांध्य वीर अर्जुन के इस नेक काम में पैसा या रसद देने की कृपा करें। ओम नम शिवाय। हर-हर महादेव।

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