Published on 8 June,
2013
अनिल नरेन्द्र
पांच राज्यों की चार लोकसभा सीटों और विधानसभा की छह
सीटों पर हुए उपचुनाव के बुधवार को घोषित नतीजे प्रमुख राजनीतिक दलों और उनके नेताओं
के लिए अलग-अलग संकेत लेकर आए। हालांकि कहा जा सकता है कि यह तो उपचुनाव हैं और इनके
परिणामों से इतना फर्प नहीं पड़ता पर हवा का रुख किस ओर बह रहा है इतना तो जरूर पता
चलता है घोषित परिणामों से। उपचुनाव के नतीजों से मसलन जहां गुजरात के मुख्यमंत्री
नरेन्द्र मोदी अपने राज्य में पकड़ बरकरार रखना चाहते हैं वहीं सत्तापक्ष की हार बिहार में नीतीश कुमार
के लिए भारी झटका है। कांग्रेस का तो लगभग सूपड़ा ही साफ हो गया। गुजरात उपचुनाव में
दोनों लोकसभा और चारों विधानसभा सीटें भाजपा ने कांग्रेस से छीन ली हैं तो बिहार की
महाराजगंज लोकसभा सीट पर लालू यादव की राजद ने जद-यू को हराकर बड़ी जीत दर्ज की है।
पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी का जादू अभी फीका नहीं पड़ा है। उत्तर प्रदेश में हंडिया
सीट सपा ने जीत ली है। सबसे पहले बात करते हैं गुजरात की और नरेन्द्र मोदी की। गुजरात
की छह सीटें भाजपा ने बचाई नहीं बल्कि कांग्रेस से छीनी। मोदी की ताकत बढ़ी है। इस
जीत से नरेन्द्र मोदी गोवा में हो रही भाजपा की महत्वपूर्ण बैठक में नई ऊर्जा से जाएंगे
और राष्ट्रीय स्तर पर महत्वपूर्ण भूमिका अदा करने की घोषणा की जा सकती है। उधर नीतीश
के लिए महाराजगंज की सीट पर पार्टी की पराजय कई मोर्चों पर उनकी व्यक्तिगत हार है।
नीतीश के लिए महाराजगंज का चुनाव प्रतिष्ठा का सवाल था। उन्होंने अपना पूरा दांव उस
सीट पर लगाया था। मगर पीके शाही की हार के बाद प्रदेश में उन्हें भाजपा की बैसाखी की
अब शायद पहले से ज्यादा जरूरत महसूस होगी। नीतीश की हार भाजपा की जीत है। भाजपा ने
यह दिखा दिया कि उसके बिना नीतीश कुमार इतने शक्तिशाली नहीं हैं जितना वह पिछले कुछ
समय से दर्शाना चाहते हैं। बिहार में मोदी समर्थक भाजपा नेताओं को नीतीश पर दबाव बढ़ाने
का मौका भी मिल गया है। नीतीश को देखना होगा कि जिस मोदी का वे लगातार विरोध कर रहे
हैं, राज्य में वे उनके बड़े दुश्मन हैं या लालू? निश्चित ही लालू यादव। क्योंकि नीतीश
का मुख्यमंत्री पद लालू छीन सकते हैं, नरेन्द्र मोदी नहीं। इतना तो नीतीश को समझ आ
ही गया होगा कि खुद के बल पर बिहार नहीं जीत सकते। भाजपा को साथ लेना उनकी मजबूरी होगी
और नरेन्द्र मोदी पर नीतीश को नरम पड़ना पड़ेगा। बिहार की महाराजगंज सीट का नतीजा इस
तपती गर्मी में लालू प्रसाद यादव के लिए मानसून पर्व की फुहार जैसा सुखदायी रहा। लालू
ने भी परिणाम का रुख भांपते ही प्रतिक्रिया
व्यक्त करने में देर नहीं की और इस परिणाम को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की हार करार
दिया। लालू ने कहा कि यह नीतीश कुमार के अहंकार की हार है। यह आगामी लोकसभा चुनाव के
परिणाम का संकेत है और यह सिलसिला जारी रहेगा। हारे हुए जद-यू प्रत्याशी पीके शाही
ने परिणाम के बाद टिप्पणी की कि भाजपा ने राजद से मिलकर जद-यू को हराया। अब बात करते
हैं कांग्रेस की। अगले आम चुनाव से सालभर पहले हुए यह उपचुनाव के नतीजों से भावी राजनीति
को लेकर भले ही कांग्रेस बहुत निष्कर्ष न निकाले
पर ये नतीजे कांग्रेस के लिए चिन्ता का विषय होना चाहिए। कांग्रेस की विडम्बना ही कहा
जाएगा कि वह यूपीए के अपने सहयोगी लालू प्रसाद यादव को मिली जीत में भी शामिल नहीं
हो सकती क्योंकि उसने वहां भी अपना उम्मीदवार खड़ा कर रखा था। कांग्रेस को यह समझना
पड़ेगा कि उसकी स्थिति अब पहले जैसी नहीं रही इसलिए उसे आगामी लोकसभा चुनाव में अपने
सहयोगियों को पहले से अधिक सीटें देने के लिए तैयार रहना होगा। कर्नाटक विधानसभा में
मिली जीत का जश्न अभी कांग्रेस ठीक से मना भी नहीं पाई थी कि इन परिणामों ने पार्टी
का मूड बिगाड़ दिया। गुजरात के नतीजों से कांग्रेस को सबसे बड़ा झटका लगा है। नरेन्द्र
मोदी जिसे कांग्रेस अपना दुश्मन नम्बर वन मानती है को दिन-रात कोसने के बाद भी हरा
नहीं सकी। भाजपा ने वो सीटें जीती हैं जो पहले कांग्रेस के हाथ थीं। बनासकाठा और पोरबंदर
दोनों संसदीय सीटों के अलावा चार विधानसभा सीटें भी कांग्रेस के पास थीं। इन सभी सीटों
पर कांग्रेस को हार ही नहीं मिली बल्कि करारी हार मिली है। दूसरे राज्यों से भी कांग्रेस
को अच्छा समाचार नहीं मिला है। ममता से गठबंधन टूटने के बाद कांग्रेस ने हावड़ा संसदीय
सीट पर पहली बार अपना उम्मीदवार खड़ा किया। इस सीट पर जहां तृणमूल उम्मीदवार प्रसून
बनर्जी 4,26,000 से ज्यादा तथा वाम उम्मीदवार को 9 लाख वोट मिले वहीं कांग्रेस उम्मीदवार
सनातन मुखर्जी को मात्र 97,000 वोट ही मिल पाए। कुल मिलाकर यह परिणाम विभिन्न पार्टियों
और नेताओं के लिए अलग-अलग संकेत लेकर आए हैं।
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