Published on 22 June,
2013
अनिल नरेन्द्र
बुधवार को मिली खबरों और तस्वीरों से लगता है कि केदारनाथ
मंदिर तो सुरक्षित है पर मंदिर के आसपास भारी तबाही का मंजर देखा जा सकता है। उत्तराखंड
के मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा ने बाढ़ की आपदा को अभूतपूर्व और हिमालयी सुनामी की संज्ञा
दी है और कहा कि बहुत बड़ी संख्या में लोगों के हताहत होने की आशंका है और मैं बिना
उचित सर्वेक्षण के सही संख्या नहीं बता सकता। बहुगुणा ने कहा कि केदारनाथ तक सड़क मार्ग
को सामान्य करने में एक साल लग जाएगा। पहली प्राथमिकता फंसे हुए लोगों को खासकर देश
के अनेक भागों से आए तीर्थयात्रियों को बचाने की, उन्हें दवाइयां पहुंचाने की और प्रभावितों
को मुआवजा देने की होगी। देवभूमि उत्तराखंड में मंगलवार को मौसम खुला तो बर्बादी के
गहरे जख्म दिखने लगे। रविवार को बादल फटने के बाद मंदाकिनी ने भयानक तबाही मचाई। मीडिया
में छपी खबरों के अनुसार केदारनाथ मंदिर से ढाई किलोमीटर ऊपर स्थित मारबाड़ी झील ने
पूरी घाटी तबाह कर दी। रविवार को भारी बारिश के कारण मारबाड़ी झील में काफी पानी भर
गया। झील ओवरफ्लो होने लगी। इसके बाद यहां एक ग्लेशियर टूट गया। इसके बाद झील टूट गई और पूरी केदार घाटी तबाह हो गई।
मंदिर के एक ओर पहले से ही मंदाकिनी नदी बहती थी। ग्लेशियर टूटने से केदार माउंट का
मलबा भी नीचे आने लगा। केदारनाथ मंदिर के महंत रवि भट्ट ने बताया कि जब जलजला आया तब
हमने मौत को करीब से देखा। केदारनाथ शमशान घाट में बदल गया। जहां-तहां मलबे में लाशें
दबी हैं। मंगलवार को मौसम साफ होने से प्रशासन ने सेना के हेलीकाप्टरों की मदद से केदारनाथ
में फंसे लगभग 400 तीर्थयात्रियों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचा दिया, जबकि एक हजार
से अधिक लोग अभी भी मंदिर में मदद के इंतजार में हैं। आपदा में जैसे-तैसे जान बचाने
के बाद तीन दिनों से पेदारनाथ मंदिर के अन्दर फंसे बद्री केदार मंदिर समिति के सहायक
वेदपाठी सुशील बेंजवाल और अजय रविन्द्र जब हेलीकाप्टर से गुलाब राय मैदान में पहुंचे
तो मानो उन्हें नया जीवन मिल गया है। दैनिक हिन्दुस्तान की वहां पहुंची टीम से जब उन्होंने
आप बीती सुनाई तो रौंगटे खड़े हो गए। उन्होंने बताया कि केदारनाथ का अधिकांश क्षेत्र तबाह हो गया है। मंदिर
के अन्दर भी 10 लोग मृत पड़े हैं। जबकि केदारनाथ नगर क्षेत्र में भी बड़ी संख्या में
लोगों को जान गंवानी पड़ी है। बेंजवाल के मुताबिक शनिवार को सुबह 8.15 बजे केदारनाथ
के चारों ओर से सैलाब आया और वह मंदाकिनी नदी में कूद गए। उस वक्त मंदाकिनी में पानी
कम था और वे किनारे लग गए। बाद में यहां नजारा बदल गया। चारों ओर हाहाकार मचा हुआ था।
देखते ही देखते मंदिर में बड़ी संख्या में यात्री, कर्मचारी जमा हो गए। दहशत के बीच
जैसे-तैसे रात काटी तो सुबह 6.15 पर फिर यहां पानी भर आया। तीन दिनों तक मंदिर में
भूखे, प्यासे रहे। उन्होंने बताया कि केदारनाथ में पानी, बिजली, संचार सेवाएं सब खत्म
हो गईं। केदारनाथ में पंडा पंडित रोशन त्रिवेदी का कहना है कि उन्होंने तबाही का ऐसा
खौफनाक मंजर पहले न कभी देखा और सुना। उन्होंने बताया कि 16 जून सुबह 8.30 बजे अचानक
केदारनाथ मंदिर से चार किलोमीटर दूर गांधी सरोवर तेज आवाज के साथ फटा और पूरे केदारनाथ
क्षेत्र में बाढ़ आ गई। उन्होंने किसी तरह भागकर पहाड़ी पर स्थित भैरो बाबा के मंदिर
में शरण ली, जहां पहले से कुछ अन्य यात्री पहुंचे हुए थे। दो दिनों तक वहां फंसे रहने
के बाद मंगलवार सुबह सरकारी हेलीकाप्टर ने उन्हें सुरक्षित स्थान पर पहुंचाया। त्रिवेदी
ने कहा कि केदारनाथ पूरी तरह से तहस-नहस हो गया। कई होटल, धर्मशालाएं, रेस्त्रा और
दुकानों के साथ ही स्टेट बैंक भी नष्ट हो गए हैं। पुलिस महानिदेशक सत्यव्रत ने बताया
कि रामबाड़ा, अस्थायी चौकी और आईआरबी के एक सेक्शन में शामिल पुलिस कर्मियों का भी
ऊंची तक पता नहीं चल सका है। इनकी संख्या 15 है। सोमवार को केदारनाथ का दर्शन कर लौट
रहे लखनऊ के आकाश उपाध्याय ने बताया कि गौरीपुंड से तीन किलोमीटर ऊपर की तरफ से जैसे
ही नीचे आ रहे थे तभी रास्ते में एक झरना फूट पड़ा। आगे चल रही एक लड़की ने झरना पार
करने की कोशिश की। वह उसकी जद में आ गई और गहरी खाई में गिरी। आकाश ने बताया कि इसी
बीच एक आंटी भी उसमें फंस गई। सभी साथियों ने किसी तरह उसे खींचकर बचा लिया। इसके बाद
किसी तरह से जान जोखिम में डालकर बचते-बचाते सोनप्रयाग से छह-सात किलोमीटर दूर एक हैलीपैड
पहुंचे।
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