Wednesday 19 June 2013

कांटों भरे रास्ते पर निकले नीतीश को खुद को साबित करना होगा


 Published on 19 June, 2013 
 अनिल नरेन्द्र 
 अपना-अपना विचार हो सकता है। 17 साल से चले आ रहे रिश्ते को बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने तोड़कर एक बड़ा राजनीतिक जोखिम उठा  लिया है। जहां तक भाजपा का सवाल है मुझे लगता है कि नरेन्द्र मोदी की प्राथमिकता है पार्टी को मजबूत बनाकर अपने दम-खम पर खड़ा करना। उनका लक्ष्य साफ है, भाजपा की अपनी पिछली परफार्मेंस में इजाफा करना। उन्हें लगता है कि अगर भाजपा मजबूत होकर चुनाव में उभरेगी तो एनडीए इत्यादि का सवाल उठेगा। अगर भाजपा 180 के आसपास लोकसभा सीटें नहीं ला सकेगी तो कहां की सत्ता और कहां का एनडीए। नरेन्द्र मोदी-राजनाथ कैम्प का खास टारगेट उत्तर प्रदेश व बिहार जैसे बड़े राज्य हैं। वह नीतीश के साथ सरकार चलाकर जूनियर पार्टनर की हैसियत में आ गई थी। अमूमन यही होता रहा है कि गठबंधन से पहले भाजपा सीनियर पार्टनर होती है और गठबंधन के बाद वह सिकुड़ कर जूनियर पार्टनर बन जाती है। रहा सवाल नीतीश कुमार का तो उनका आगे का रास्ता कांटों और चुनौतियों से भरा है। साढ़े सात वर्षों तक रोज बिहार के विकास की नई कहानी गढ़ने का श्रेय लेने वाले जद (यू)-भाजपा के बीच एक-दूसरे को नीचा दिखाने की होड़ दिखने लगी है। आज तक राजग सरकार की उपलब्धियों को लेकर विकास पुरुष की छवि बना रहे नीतीश के खिलाफ अब सुशील कुमार मोदी आमने-सामने होंगे। नए परिदृश्य में प्रदेश में राजनीतिक अस्थिरता का दौर लौटने और बिहार को विकास की पटरी पर लाने की कोशिशें कमजोर पड़ने की आशंका के बीच नीतीश व लालू की दो मुख्य राजनीतिक धुरी के साथ भाजपा की नई धुरी बन गई है। नीतीश अगर यह समझ रहे हैं कि अल्पसंख्यकों के 18 फीसदी वोट उन्हें मिल जाएंगे तो शायद वह मुगालते में हैं। अल्पसंख्यक वोट लालू प्रसाद यादव और कांग्रेस में बंटेंगे। वहीं अगड़ी जातियों के ज्यादातर वोट अब खुलकर भाजपा के साथ आ जाएंगे। अगड़े, पिछड़े, अति पिछले, दलित महादलित व अल्पसंख्यक कार्ड के राजनीतिक खेल में अब 40 लोकसभा सीटों वाले बिहार में निकट भविष्य में होने वाले चुनाव में जद (यू) को अपनी मौजूदा 20 सीटों पर कब्जा बरकरार रखने की न सिर्प कड़ी चुनौती होगी बल्कि विधानसभा में तीन-चौथाई बहुमत की जगह निर्दलीय विधायकों के बूते साधारण बहुमत के जुगाड़ से बनी सरकार चलाना भी नीतीश के लिए एक कठिन परीक्षा होगी। विधानमंडल के दोनों सदनों में मुख्य विपक्षी दल के रूप में भाजपा की बढ़ी ताकत व सशक्त भूमिका से नीतीश परेशान रहेंगे। नीतीश को अब बिहार में खुद के बूते पर अपनी जमीन मजबूत करनी होगी। वे जानते हैं कि राष्ट्रीय राजनीति में उनकी पूछ तब तक ही है जब तक कि राज्य में उनका दबदबा रहेगा। नीतीश कुमार नरेन्द्र मोदी पर इतने आक्रामक क्यों हैं? जद (यू) के एक सीनियर नेता ने कहा कि राजनीति में दो तरह की मिसालें मिलती हैं। एक गेम चेंज करने वाला और दूसरा गेम बनाने वाला। अब तीसरे तरह का प्रयोग है, गेम बिगाड़ने वाला। नीतीश मोदी का गेम बिगाड़ने में लगे हैं। सवाल यह है कि क्या नीतीश ऐसा कर पाएंगे? बिहार में नीतीश के इस कदम से नए समीकरण बनना तय है। नीतीश कुमार शातिर खिलाड़ी हैं। उन्होंने सब सोच-समझकर किया होगा पर फिर भी यह कहा जाएगा कि नीतीश का आगे का रास्ता कांटों भरा है उन्हें खुद को साबित करने की चुनौती खड़ी हो गई है।

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