Published on 26 June,
2013
अनिल नरेन्द्र
उत्तराखंड में प्रकृति का प्रकोप अभी शांत नहीं हुआ। इस त्रासदी
के आए एक सप्ताह से ज्यादा का समय बीत चुका है पर अभी भी दुर्गम स्थलों में फंसे
15 हजार से अधिक श्रद्धालु प्राण रक्षा की टकटकी लगाए बैठे हैं। मौसम फिर खराब हो गया
है। कई भागों में फिर वर्षा शुरू हो गई है। सेना और सुरक्षा बल के जवानों ने अपनी जान
की बाजी लगाकर हजारों भक्तों को बचाया है। बेशक खराब मौसम की वजह से हवाई रेस्क्यू
रुक गया हो क्योंकि हेलीकाप्टर उड़ान नहीं भर सकते पर जमीनी बचाव अभियान चल रहा है।
केदार घाटी में बचाव कार्य में जुटे 258 में से 150 पुलिसकर्मी भी लापता हैं। इनमें
15 महिला कांस्टेबल भी शामिल हैं। राहत दलों में शामिल कई पुलिसकर्मी बीमार भी हो गए
हैं। उत्तराखंड में अब तक का सबसे बड़ा बचाव अभियान थलसेना (आर्मी) द्वारा `आपरेशन
सूर्य होप' और वायुसेना `आपरेशन राहत' चला रही है। वायुसेना ने कहा है कि फंसे लोगों
को निकालने में कम से कम एक हफ्ता और लग जाएगा। वह भी जब मौसम साथ दे। यह हमारे देश
का दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि इतनी बड़ी आपदा से निपटने के लिए विभिन्न सरकारी एजेंसियों
में आपसी तालमेल की कमी है। देश तो एकजुट हो गया पर यह सरकारी एजेंसियां एकजुट नहीं
हो सकीं। देशभर से मदद के हाथ उठ रहे हैं। लेकिन विडंबना देखिए कि केंद्र और राज्य
सरकार के बीच का तालमेल ही गड़बड़ा रहा है। राज्य सरकार की अदूरदर्शिता और लापरवाही
तो पहले ही सामने आ चुकी है। केंद्रीय गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे स्वीकार कर रहे
हैं कि उत्तराखंड में राहत कार्य कर रहीं सरकारी एजेंसियों में तालमेल की कमी है। उत्तराखंड
में बाढ़ पीड़ितों की मदद के लिए जहां सारा देश कोशिश कर रहा है और उनकी रक्षा की दुआएं
कर रहा है। ऐसे में प्राकृतिक आपदा की मार झेल रहे लोगों के प्रति मानव उदासीनता की
शर्मनाक खबर भी सामने आ रही है। बाढ़ में फंसे लोगों को एक परांठे के लिए 250 रुपए
और चिप्स के एक छोटे पैकेट के लिए 100 रुपए देना पड़ रहा है। टैक्सी चालक पहले जहां
जाने के लिए 1000 रुपए लेते थे अब वहां जाने के लिए 3000 से 4000 रुपए ले रहे हैं।
200 रुपए का परांठा और 200 रुपए की पानी की बोतल। मृत शरीरों से जेवर-नकदी की लूटपाट
तो पकड़ी ही गई है। केदार घाटी में 16-17 जून को बरसे आसमानी कहर में केदारनाथ धाम,
गौरी मंदिर और निकटवर्ती अन्य मंदिरों में पूजा-अर्चना कराने वाले रावल और मनी गांव
ग्राम सभा के 42 पुजारी और 9 अन्य कुल 51 पुरुष काल का ग्रास बन गए। इस ग्राम सभा में
बच्चों को छोड़कर पुरुषों की तादाद 51 बताई गई दोनों स्थान पुरुषविहीन हो गए हैं और
इतनी ही महिलाएं विधवा जीवन जीने और परिवार का भरण-पोषण कैसे करेंगी की दुविधा झेलने
को विवश हो गई हैं। इन परिवारों का भरण-पोषण मंदिरों की सेवा से चलता था। यह सेवा केवल
छह महीने ही कर पाते थे क्योंकि हिमपात के कारण वहां के मंदिर 6 महीने के लिए बन्द
रहते हैं। कुछ साधुओं ने केदारनाथ इलाके से लौटने से इंकार कर दिया था। आईटीबीपी के
डीआईजी ने बताया कि 15-20 साधुओं ने वहां से लौटने से इंकार कर दिया और कहा कि भले
ही हम महादेव की सेवा में मर जाएं पर यहां से हटेंगे नहीं। लेकिन हमने उन्हें बताया
कि शवों के बीच रहना ठीक नहीं होगा क्योंकि इससे बीमारी फैलने की आशंका है। बड़ी मुश्किल
से वह माने। अब पता चल रहा है कि केदारनाथ मंदिर में कितनी तबाही हुई है। मंदिर में
गर्भगृह और स्वयंभू शिवलिंग तक मलबा जमा हो गया। केदारनाथ मंदिर के मुख्य तीर्थ पुरोहित
दिनेश बगवाड़ी ने बताया कि परिसर में मलबा काफी मात्रा में भरा है। गर्भगृह तक मलबे
का अम्बार लगा है। भगवान शिव के स्वयंभू ज्योतिर्लिंग का सिर्प कुछ भाग ही दिखाई दे
रहा है। उन्होंने कहा कि मंदिर परिसर में छह फुट से ज्यादा पड़े मलबे के नीचे काफी
संख्या में लोगों के शव हैं। यह पूछे जाने पर कि क्या अस्थायी तौर पर पूजा का स्थान
बदलने पर विचार किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि सरकार द्वारा नियुक्त मुख्य पुजारी
के हवाले से इस पर विचार करने के बाद कोई फैसला लिया जाएगा। इस बारे में अभी स्पष्ट
रूप से कोई जानकारी नहीं है। पहला काम मंदिर परिसर तक पहुंचना और उसे बहाल करना चुनौती
भरा काम है। उधर केदारनाथ त्रासदी के बाद मंदिर के रावल (मुख्य पुजारी) भीमराव लिंगम
उखीमठ पहुंच गए हैं। उन्होंने केदारनाथ मंदिर का हवाई सर्वे कर नुकसान का जायजा लिया।
उन्होंने बताया कि वर्तमान में पूजा गुप्तकाशी के विश्वनाथ मंदिर में हो रही है। उखीमठ
ओंकारेश्वर मंदिर पंच केदारों का गद्दी स्थल
है, इसलिए पूजा उखीमठ में होने पर विचार किया जा रहा है। केदारनाथ मंदिर में शुद्धिकरण
के बाद ही पूजा की जाएगी। प्रकृति के कहर के बाद अब दूसरा खतरा हादसे वाले इलाकों में
महामारी के रूप में मंडराने लगा है। लाशें सड़ने लगी हैं और असहनीय दुर्गंध से भी अधिक
इनसे जानलेवा संक्रमण फैलने का खतरा पैदा होने लगा है। राहत या बचाव के लिए भारतीय
सेना के जांबाज देवदूत बनकर आए हैं। अंत में पाठकों को केदारनाथ धाम का महत्व दोहरा
दें। मंदिर कैसे अस्तित्व में आया? मंदिर का निर्माण पांडवों या उनके वंशज जन्मेजय
ने कराया था। मंदिर का जीर्णोद्धार आदिगुरु शंकराचार्य ने कराया। महाभारत के युद्ध
में विजयी होने पर पांडव भ्रातृ हत्या के पाप से मुक्त होना चाहते थे, इसके लिए वे
शिवजी का आशीर्वाद प्राप्त करना चाहते थे। शिवजी के दर्शन के लिए वे उनका पीछा करते-करते
केदार पर्वत पर पहुंच गए, लेकिन जब तक शिवजी ने बैल का रूप धारण कर लिया और वहां पर विचरण कर रहे अन्य पशुओं के साथ घुलमिल
गए, लेकिन पांडवों को संदेह हुआ और भीम ने अपना विशाल रूप धारण कर दोनों पहाड़ों पर
अपने पैर फैला दिए, बाकी पशु तो निकल गए लेकिन शिवजी भला कैसे निकल पाते। भीम भी समझ
गए और शिवजी भी। पांडवों की भक्ति और दृढ़ संकल्प को देखकर शिवजी ने उन्हें दर्शन देकर
पाप से मुक्त कर दिया। तब से लेकर आज तक बैल की पीठ की आकृति पिंड के रूप में केदारनाथ
मंदिर के गर्भगृह में पूजी जाती हैं। ऐसा माना जाता है जब भगवान शंकर बैल के रूप में
अंतर्ध्यान हुए तो उनके धड़ के ऊपर का भाग काठमांडू में प्रकट हुआ। वहां शिवजी पशुपतिनाथ
के रूप में पूजे जाते हैं। उनकी भुजाएं तेंगनाथ में मुख्य रुद्रनाथ में, नाभि महादेश्वर
में, जंघा कल्पेश्वर में प्रकट हुईं। इसीलिए इन धामों सहित केदारनाथ को पंचकेदार कहा
जाता है। हर-हर महादेव।
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