Published on 27 June,
2013
अनिल नरेन्द्र
महेन्द्र सिंह धोनी का सफलताओं से नाता हमेशा ही गहरा
रहा है और अब बर्मिंघम में आईसीसी ट्रॉफी जीतने के बाद उनकी उपलब्धियों में एक और ट्रॉफी
जुड़ गई है। भारत इस सफलता के साथ लगातार वन डे विश्व कप और चैंपियंस ट्रॉफी जीतने
वाला आस्ट्रेलिया के बाद दूसरा देश बन गया है। भारत ने 2011 में विश्व कप पर कब्जा
जमाया था। बर्मिंघम में भारतीय टीम ने जिस तरह के खेल का प्रदर्शन किया और फाइनल में
इंग्लैंड की अनुशासित टीम को हराकर कप पर कब्जा किया उससे देश के क्रिकेट प्रेमियों
का उत्साहित होना स्वाभाविक है। दरअसल आईपीएल के छठे संस्करण में स्पॉट फिक्सिंग से
उठे विवाद के कारण क्रिकेट की विश्वसनीयता को गहरा धक्का लगा है। इस दौरान लोगों में
क्रिकेट के प्रति विरक्ति की भावना पनपने लगी थी। लेकिन इंग्लैंड में इस शानदार जीत
ने वह बुरा सपना बनाकर नया उत्साह पैदा करने में सफलता हासिल की है। ऐसा नहीं कि भारत
पहली बार वर्ल्ड चैंपियन बना। आज से ठीक 30 साल पहले इंग्लैंड में ही विश्व चैंपियन
बना था। कप्तान कपिल देव की अगुवाई में उस समय की धमाकेदार भारतीय टीम ने क्रिकेट के
मक्का कहे जाने वाले लॉर्ड्स मैदान पर सबसे मजबूत प्रतिद्वंद्वी वेस्टइंडीज की टीम को हराकर पहली बार विश्व कप अपने नाम किया था पर
30 साल में भारतीय क्रिकेट में बहुत परिवर्तन हुए हैं। महेन्द्र सिंह धोनी के सभी कायल
हो गए हैं। आलोचकों को ऐसा करारा जवाब दिया है धोनी ने कि उन्हें समझ नहीं आ रहा है
कि अब कहें तो क्या कहें? सिर्प छह साल में आईसीसी के तीन टूर्नामेंट जीतना कोई हंसी-मजाक
नहीं है। धोनी के प्रबंधन कौशल का तो अब बिजनेस स्कूल भी अध्ययन कर रहे हैं। धोनी में
और कई गुण होंगे पर प्रमुख तीन महत्वपूर्ण तत्व हैं। ये हैं सहयोग करना, आत्म विश्वास
जगाना और हर स्थिति में संयमित रहना। जब इंग्लैंड के मॉर्गन और बोपारा पीटने में जुटे
थे तो धोनी बिना विचलित हुए आगे की रणनीति बना रहे थे। जब धोनी ने इशांत शर्मा को गेंद
थमाई तो मैं चौंक गया। मेरे मन में आया कि अब मैच गया हाथ से पर धोनी ने पिट रहे इशांत
से उनका अंतिम ओवर कराया तो मैदान के बाहर भी उन्हें सब कोस रहे थे। मगर इसी ओवर में
दो विकेटें मिलीं और मैच पलट गया। इन दोनों
गेंदों ने इंग्लैंड को हराकर भारत को चैंपियन बना दिया। धोनी अपना संतुलन नहीं बिगड़ने
देते। जीत के बाद धोनी ने कहा कि वह कोई कीर्तिमान बनाने मैदान पर नहीं उतरते, उनके
लिए टीम की जीत का सिलसिला जरूरी है। धोनी की यंग ब्रिगेड ने कमाल कर दिया। पूरे टूर्नामेंट
के दौरान क्या आपको एक बार भी सचिन तेंदुलकर, वीरेन्द्र सहवाग, युवराज, गौतम गम्भीर,
जहीर खान और भज्जी की कमी खली? इंग्लैंड में खेले गए सात में से सात मैच जीत 26 साल
की औसत उम्र वाली युवा ब्रिगेड ने अपना दमखम साबित कर दिया। शिखर धवन भारतीय टीम के
सबसे नए सनसनी बन चुके हैं। मूंछों पर ताव देने वाला उनका धाकड़ अन्दाज युवाओं में
फैशन बन गया है। उन्होंने एक बार भी सहवाग, गम्भीर और युवराज की कमी महसूस नहीं होने
दी। आईपीएल के दौरान धोनी ने मजाक में रविन्द्र जडेजा को सर जडेजा कहा था। जडेजा ने
भी अपने प्रदर्शन से सही मायनों में खुद को `सर' साबित कर दिया। लम्बे समय से चली आ
रही ऑल राउंडर की कमी पूरी कर दी। वह टूर्नामेंट में सबसे ज्यादा 12 विकेट लेकर गोल्डन
बॉल के हकदार भी बने। धोनी की टीम स्पिरिट की दाद देनी पड़ेगी। उन्होंने दोनों अभ्यास
मैचों में शतक बनाने वाले दिनेश कार्तिक को टीम में जगह देने के लिए मुरली विजय को
बाहर बिठाया और मध्यक्रम के बल्लेबाज रोहित शर्मा से ओपनिंग कराने का दांव खेला। फिर
अश्विन से स्लिप में फील्डिंग करवाई। डैथ ओवरों में अश्विन और जडेजा से बालिंग करवाई।
धोनी के धुरंधरों ने उत्तराखंड की आपदा से दुखी देशवासियों को खुश होने का एक मौका
उपलब्ध कराया है। अब इस युवा ब्रिगेड पर ही भारतीय क्रिकेट का भविष्य टिका हुआ है।
उन्हें अभी अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट जगत में ढेरों इम्तिहान देने होंगे पर सफलताएं कई
बार सिर चढ़कर बोलने लगती हैं और जिससे कभी-कभी युवाओं की दिशा भटक जाती है। जैसा आईपीएल-6
में हमने देखा। इसलिए इन युवाओं को अनुशासन में रहते हुए आगे बढ़ते रहना है और देश
के गौरव को नई ऊंचाइयां दिलाना है। महेन्द्र सिंह धोनी और उनकी इस युवा टीम को देशवासियों
का सलाम।
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