Published on 2 June,
2013
अनिल नरेन्द्र
एक जमाना था जब यह कहा जाता था
कि भारत का प्रधानमंत्री लोकसभा से चुना हुआ होना चाहिए। कायदेनुसार लीडर ऑफ लोकसभा
ही पीएम होता है पर हमारे वर्तमान प्रधानमंत्री ने तो सारी परम्पराएं तोड़कर रख दी
हैं। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह 5वीं बार राज्यसभा से चुने गए हैं। यानी कि पिछले
30 सालों से वह राज्यसभा में हैं। अगर वे लोकसभा का चुनाव लड़ते तो जनता की नब्ज का
थोड़ा अनुमान होता इसीलिए एक टिपिकल नौकरशाह की तरह व्यवहार करते हैं। पिछले दिनों
खबर आई थी कि कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और मनमोहन सिंह में मतभेद हैं। इस खबर
का खंडन किया गया और यह बताने की कोशिश की गई कि अन्दर खाते दोनों में कोई मतभेद नहीं
और सोनिया गांधी ने सार्वजनिक रूप से मनमोहन सिंह की पीठ थपथपाई थी पर जब सोनिया के
खासमखास यह कहें कि मनमोहन सिंह तो सोनिया की भी नहीं सुनते तो उसको तो गम्भीरता से
लेना पड़ेगा। यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी की अध्यक्षता वाली राष्ट्रीय सलाहकार परिषद
(एनएसी) से किनारा करते ही सामाजिक कार्यकर्ता अरुणा राय ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह
पर सीधा हमला बोल दिया है। प्रधानमंत्री पर सोनिया गांधी की भी नहीं सुनने का आरोप
लगाते हुए उन्होंने कहा कि मनरेगा में न्यूनतम मजदूरी पर मनमोहन ने कांग्रेस अध्यक्ष
की सलाह भी अनसुनी कर दी। हालांकि कांग्रेस ने अरुणा के आरोपों का खंडन करते हुए प्रधानमंत्री
और सोनिया के बीच मतभेद की बात खारिज कर दी है। मगर अरुणा के इस हमले ने बीते कई दिनों
से सरकार और पार्टी के बीच मतभेद संबंधी अटकलों को फिर से हवा दे दी है। आम जनता को
सूचना का अधिकार दिलाने के लिए जोरदार संघर्ष करने वाली अरुणा राय ने 60 फीसदी गरीबों
की चिन्ता को अहमियत देते हुए राष्ट्रीय सलाहकार परिषद को छोड़ा है। अरुणा का कहना
है कि सरकार ने मनरेगा के मजदूरों की न्यूनतम मजदूरी बढ़ाने के मामले में ही न केवल
अनदेखी की बल्कि खाद्य सुरक्षा को लेकर भी रवैया ढुलमुल रहा, इसलिए उन्होंने व्यवस्था
से तंग आकर सोनिया गांधी की अध्यक्षता वाली राष्ट्रीय सलाहकार परिषद को छोड़ने का फैसला
किया। अरुणा राय का इस्तीफा इस धारणा को कमजोर करता है कि मनमोहन सरकार और सोनिया गांधी
के बीच सब कुछ ठीक-ठाक है। अरुणा राय की मानें तो दोनों के बीच सरकारी नीतियों को लेकर
सोच में मौलिक अन्तर है और यही अन्तर सरकार और सोनिया के बीच मतभेदों का असल कारण है।
सोनिया गांधी चाहती हैं कि सरकार सामाजिक नीतियों को प्राथमिकता दे जबकि मनमोहन सिंह
की प्राथमिकता में वे नहीं हैं। मनरेगा में
न्यूनतम मजदूरी देने की परिषद की सिफारिशों को सरकार की मंजूरी नहीं मिलने पर सोनिया
गांधी नाराज बताई जाती हैं। राय का इस्तीफा भी इसी नाराजगी का हिस्सा हो सकता है। मनमोहन
सिंह सरकार की विडम्बना यह है कि वह न तो आम जनता से जुड़ी नीतियों को लागू कर पा रही
है और न ही देश में अच्छा कारोबारी माहौल बनाने
में सफल हो पा रही है जबकि वह तकनीकी आर्थिक विकास के नाम पर सामाजिक एजेंडे की उपेक्षा
कर रही है। सोनिया इसे गेमचेंजर मानती हैं।
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