Sunday, 28 February 2021

नीरव मोदी के प्रत्यर्पण का रास्ता साफ

करीब 14 हजार करोड़ रुपए के पंजाब नेशनल बैंक (पीएनबी) घोटाले के मुख्य आरोपी नीरव मोदी के ब्रिटेन से प्रत्यर्पण का रास्ता अंतत साफ हो गया है। बृहस्पतिवार को प्रत्यर्पण के खिलाफ अपना मुकदमा नीरव मोदी हार गया। लंदन की एक अदालत ने कोरोना संक्रमण, खराब स्वास्थ्य, कमजोर साक्ष्य, न्याय नहीं मिलने की आशंका और भारतीय जेलों में खराब स्थिति जैसे नीरव मोदी के तर्कों को खारिज कर उसके प्रत्यर्पण की इजाजत दे दी है। वैसे नीरव के पास अदालत के फैसले को हाई कोर्ट में चुनौती देने का विकल्प खुला है। प्रत्यर्पण के खिलाफ नीरव मोदी की दलीलों को खारिज करते हुए जिला जज सैमुअल गूजी ने कहा कि नीरव मोदी का प्रत्यर्पण पूरी तरह से मानवाधिकार के दायरे में है। भारत में न्याय नहीं मिलने की आशंका की पुष्टि के लिए कोई ठोस सुबूत नहीं हैं। यही नहीं, जज ने फैसले में कहा कि लाइन ऑफ क्रेडिट को भुनाने में बैंक के अधिकारी समेत अन्य आरोपितों की मिलीभगत के पुख्ता सुबूत मौजूद हैं। यहां तक कि खुद नीरव मोदी भी पीएनबी को पत्र लिखकर भारी बकाया होने और उसे जल्दी चुकाने की बात स्वीकार कर चुका है। जज ने नीरव और उसकी कंपनी के जायज बिजनेस के दावों पर भी संदेह जताया है। अदालत ने अपने फैसले में साफ कर दिया कि नीरव को इसके खिलाफ हाई कोर्ट में अपील का अधिकार है। लेकिन उससे पहले ब्रिटेन के सैक्रेटरी ऑफ स्टेट होम अफेयर्स (गृहमंत्री) इस पर विचार करेंगे। मंत्री के फैसले के 14 दिन के भीतर नीरव मोदी हाई कोर्ट में अपील दाखिल कर सकता है। ध्यान देने की बात है कि जनवरी 2018 में पीएनबी के लाइन ऑफ क्रेडिट के माध्यम से 14 हजार करोड़ रुपए के घोटाले के खुलासे के बाद नीरव मोदी परिवार सहित विदेश भाग गया था। सीबीआई और ईडी ने उसके खिलाफ रेड कॉर्नर नोटिस जारी कराया था। दिसम्बर 2018 में नीरव मोदी के हुलिया बदलकर लंदन में छिपे होने की पुष्टि हुई थी। मार्च 2018 में उसे लंदन में गिरफ्तार कर लिया गया। इसी तरह घोटाले का दूसरा आरोपित मेहुल चोकसी एंटीगुआ फरार हो गया था। सरकार उसके प्रत्यर्पण के लिए भी कूटनीतिक प्रयासों में लगी हुई है। नीरव मोदी के प्रत्यर्पण मामले में ब्रिटेन की अदालत ने कहा कि उसकी मानसिक स्थिति लंदन की जेल से मुंबई के आर्थर रोड जेल भेजने के लिए ठीक है। नीरव की कानूनी टीम ने नीरव और उसके परिवार के अवसाद में होने और आत्महत्या की प्रकृत्ति की दलीलें दी थीं। जज ने स्वीकार किया कि लंदन की जेल में रहने से उसकी मानसिक स्थिति पर असर पड़ा है। लेकिन ऐसा नहीं लगता कि प्रत्यर्पण किए जाने से वह आत्महत्या करेगा।

मोटेरा नहीं मोदी स्टेडियम कहिए

मोटेरा क्रिकेट स्टेडियम का नाम बदलकर पीएम नरेंद्र मोदी के नाम पर करने को लेकर सियासी तकरार शुरू हो गई है। कांग्रेस ने कहा कि आज मोदी का दम और अहंकार इतना बढ़ चुका है कि उन्होंने न केवल जीते-जी अपने नाम स्टेडियम पर रखवा लिया बल्कि उन्होंने सरदार पटेल का नाम हटाकर अपना नाम अंकित कर लिया है। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने स्टेडियम का नाम बदलने पर व्यंग्य करते हुए कहाöस्टेडियम का नाम नरेंद्र मोदी। उसके दो एंडöएक अडानी, दूसरा रिलायंस सब जय शाह की देखरेख में है, तो हुआ न हम दो-हमारे दो। कांग्रेस ने कहा कि मोदी ने पहले आजादी के महानायकों में लड़ाने की कोशिश की। अब सरदार पटेल की विरासत को भी हथियाने की कोशिश की है। कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने कहाöट्रंप की तरह किसी दूसरे राष्ट्राध्यक्ष की अगवानी की एडवांस बुकिंग सुनिश्चित की गई है या लेबलिंग के जरिये अपनी विरासत के निर्माण की शुरुआत है। मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कमल नाथ ने लिखाöजो लोग जुमले उछालते हैं, वह अपने जीवित रहते हुए अपने नाम पर धरोहरों का नामकरण करने में लगे रहते हैं।

राज्यपाल और सरकारों के बीच बढ़ता टकराव

राज्यपाल और राज्य सरकारों के बीच अधिकारों को लेकर टकराव की खबरें आए दिन आती रहती हैं। कई गैर-भाजपा शासित राज्यों में फैसलों को लेकर टकराव की स्थिति बन रही है। कुछ मुख्यमंत्रियों का आरोप है कि राज्यपाल सरकार के काम में ज्यादा दखल दे रहे हैं। वहीं राज्यपाल गलत फैसलों को मंजूरी न देने की बात कहते हैं। पुडुचेरी में हाल में पूर्व उपराज्यपाल किरण बेदी व पूर्व मुख्यमंत्री नारायणसामी के बीच चार वर्ष चली तकरार ताजा उदाहरण है। इसी तरह पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र, दिल्ली में भी दोनों पक्षों के अधिकारों को लेकर एक दूसरे पर हमलावर हैं। पश्चिम बंगाल के राज्यपाल जगदीप धनखड़ और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के बीच कई बार खुलकर मतभेद सामने आए हैं। राज्यपाल अकसर राज्य व पुलिस पर ममता बनर्जी सरकार के दबाव में काम करने का आरोप लगाते रहे हैं। कुछ समय पहले नेताओं पर हमले की घटनाओं पर राज्यपाल ने प्रेस कांफ्रेंस कर ममता सरकार को चेतावनी भी दी। कोरोना से निपटने को लेकर भी दोनों में आए दिन जुबानी जंग होती रहती है। महाराष्ट्र में मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे द्वारा राज्यपाल भगत सिंह कोशियारी को सरकारी विमान से प्रदेश के बाहर यात्रा नहीं करने से पता लगता है कि दोनों के बीच खाई कितनी गहरी हो चुकी है। सरकार राजभवन में बनें हेलीपैड को भी बंद करने का फैसला कर चुकी है। इससे पहले विधान परिषद में राज्यपाल कोटे की 12 सीटों पर मनोनयन को लेकर उद्धव ठाकरे सरकार ने नौ महीने पहले नाम भेजे, जिन्हें अब तक राजभवन से मंजूरी नहीं मिली। कंगना रनौत से लेकर तमाम अन्य मुद्दों को लेकर दोनों में आपसी जंग चरम पर पहुंच चुकी है। वहीं अगर हम राजधानी दिल्ली की बात करें तो उपराज्यपाल अनिल बैजल और सीएम अरविन्द केजरीवाल के बीच अधिकारों को लेकर अकसर लड़ाई सामने आती रहती है। दोनों के बीच पूर्व सैनिकों के मुआवजे से टकराव की शुरुआत हुई। दिल्ली सरकार में नौ सलाहकारों को हटाने को लेकर भी विवाद हुआ। मोहल्ला क्लीनिक से जुड़ी फाइल पास करवाने को लेकर आम आदमी पार्टी (आप) के विधायक सात घंटे तक अनिल बैजल के दफ्तर में बैठे रहे। दोनों में टकराव इतना बढ़ गया था कि मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा। सुप्रीम कोर्ट ने बीच का रास्ता निकालकर मामले को रफा-दफा करने की कोशिश की। इससे कुछ समय तक केजरीवाल और बैजल में शांति बनी रही पर यह थोड़ी देर तक ही चली। स्थिति फिर वहीं पहुंच गई। मुख्यमंत्री केजरीवाल का मानना है कि उपराज्यपाल केंद्र की भाजपा सरकार के इशारों पर काम करते हैं और अकसर उनके प्रगतिशील कदमों को रोकने का प्रयास करते हैं। दर्जनों फाइलें बैजल दबाकर बैठे हैं। दिल्ली में अगले साल नगर निगम चुनाव होने हैं। खतरा इस बात का है कि यह टकराव बढ़ सकता है। क्योंकि केंद्र की भाजपा सरकार यह नहीं चाहती कि आम आदमी पार्टी की दिल्ली सरकार जरूरत से ज्यादा लोकप्रियता हासिल करे। राज्यपालों और मुख्यमंत्रियों का टकराव पुराना है और आगे भी चलेगा क्योंकि हमारे संविधान में कई बातें स्पष्ट नहीं हैं, खासकर राज्यपाल, उपराज्यपाल और चुनी हुई सरकार के बीच अधिकारों का स्पष्ट विभाजन नहीं है। -अनिल नरेन्द्र

Saturday, 27 February 2021

अभिषेक बनर्जी बनाम जय शाह

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह और भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा से लेकर पार्टी के तमाम नेता पश्चिम बंगाल में बीते लोकसभा चुनावों के समय से ही नाम लिए बिना बुआ-भतीजे की जोड़ी को निशाना बनाते रहे हैं। मार्च से शुरू होने वाले विधानसभा चुनावों से पहले मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के भतीजे और डायमंड हार्बर सीट से लोकसभा सांसद अभिषेक बनर्जी इन हमलों के केंद्र में हैं। केंद्रीय नेताओं की बात छोड़ भी दें तो हाल में टीएमसी छोड़कर भाजपा में जाने वाले शुभेंदु अधिकारी और राजीव बनर्जी जैसे पूर्व मंत्री भी लगातार अभिषेक पर हमले कर रहे हैं। लेकिन अब खासकर अमित शाह के दो दिवसीय कोलकाता दौरे के समय ममता बनर्जी ने इस मुद्दे पर पलटवार शुरू कर दिया है। राज्य के दो दिन के दौरे पर पहुंचे अमित शाह ने गुरुवार को दक्षिण 23-परगना जिले के नामखाना की एक रैली में भाजपा के सत्ता में आने की स्थिति में सरकारी कर्मचारियों के लिए सातवें वेतनमान लागू करने और सरकारी नौकरियों में महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत आरक्षण समेत ढेरों वादे तो किए ही, एक बार फिर बुआ-भतीजे की जोड़ी पर हमला किया। अमित शाह ने कहाöतृणमूल कांग्रेस का एक ही नारा हैöभतीजे का कल्याण, लेकिन मोदी सरकार का नारा हैöसबका साथ-सबका विकास। उनका आरोप था कि विकास के लिए केंद्र की ओर से अब तक भेजा गया धन यहां सिंडिकेट की जेब में चला गया है। बीते पांच वर्षों में मोदी सरकार की ओर से भेजी गई 3.59 लाख करोड़ की रकम भाइयों यानि भतीजे और टीएमसी के गुंडों की जेब में चली गई है। उनका कहना थाöसत्ता में आने के बाद भाजपा इन सबकी जांच कराएगी और भ्रष्टाचारियों को जेल भेजेगी। इसके बाद शाम को मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने उसी जिले के पैलान में एक रैली को संबोधित किया। उनमें अभिषेक बनर्जी भी मौजूद थे। भतीजे अभिषेक बनर्जी पर हमले के जवाब में ममता ने अमित शाह के बेटे पर निशाना साधा। उन्होंने कहाöअमित शाह बार-बार बुआ-भतीजे की बात करते हैं, अगर उनमें हिम्मत है तो अभिषेक के खिलाफ चुनाव लड़कर दिखाएं। शाह के बेटे भी भ्रष्टाचार के आरोपों से नहीं बच सकते। आखिर उनके पास करोड़ों रुपए कहां से आए? मेरी सज्जनता को कमजोरी समझने की गलती मत करें। ममता का कहना था ]िक उनके खिलाफ वंशवाद के आरोप निराधार हैं। वह चाहतीं तो अभिषेक को राज्यसभा भेज सकती थीं। लेकिन इसके बजाय अभिषेक ने लोकसभा चुनाव लड़ने का फैसला किया। ममता ने कहाöमैंने अब तक अभिषेक को दूसरों के मुकाबले तवज्जो नहीं दी है। उनको उपमुख्यमंत्री या मुख्यमंत्री भी नहीं बनाया है। कुछ साल पहले उसे सड़क हादसे में जान से मारने की साजिश भी हो चुकी है। ममता सवाल करती हैं कि आखिर अमित शाह के बेटे में ऐसी कौन-सी काबिलियत है कि वह भारतीय क्रिकेट की बागडोर संभाल रहे हैं। अमित शाह के बेटे जय शाह इस समय भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड यानि बीसीसीआई के सचिव हैं। ममता का कहना थाöअगर अमित शाह में हिम्मत है तो जो कहना है सीधे अभिषेक का नाम लेकर कहें, मैं उनको अभिषेक के खिलाफ चुनाव लड़ने की चुनौती देती हूं। पहले वह भतीजे से तो निपट लें, फिर दीदी से निपटेंगे। राजनीति में लक्ष्मण रेखा पार मत करें। उन्होंने कहा कि (भाजपा) के नेताओं के पुत्र विदेशों में चले जाते हैं। मेरे पास ऐसे तमाम नेता-पुत्रों की सूची है। लेकिन हमारे घर के लड़के यहीं रहकर आम लोगों के हित में काम करते हैं। अगर अमित शाह में हिम्मत है तो अपने बेटे को भी राजनीति में उतारें। मेरा परिवार ऐसा कोई काम नहीं करेगा, जिससे बंगाल और उसके लोगों को नुकसान पहुंचे।

भीड़ से कानून ही नहीं, हम तो सरकार भी बदल देंगे

भीड़ से कानून नहीं बदलने की बात कहने वाले किसान बता देंगे कि हम भीड़ से कानून ही नहीं, बल्कि सरकार भी बदल देंगे। पहले भी भीड़ से सरकार बदलती रही हैं और इस बात को सरकार में बैठे लोगों को समझ लेना चा]िहए। केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के बयान पर भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत ने निशाना साधते हुए यह बात कही। टिकैत सोमवार को खरखौदा किसान महापंचायत को संबोधित कर रहे थे। टिकैत ने कहा कि आंदोलन ऐसी स्थिति में पहुंच गया है, जहां से किसान पीछे नहीं हट सकते हैं। उन्होंने कहा कि किसानों को कानून की जानकारी नहीं होने की बात भी सरकार में बैठे लोग करते हैं, लेकिन किसानों की जानकारी नहीं होने की बात भी सरकार में बैठे लोग करते हैं, लेकिन किसानों से ज्यादा कानून की जानकारी किसी को नहीं है। किसान अपनी फसल के दाम से बता सकते हैं कि कानून ठीक है या खराब। अगर फसल के अच्छे दाम मिलते हैं तो कानून अच्छा और अगर दाम सही नहीं मिलते तो कानून खराब। टिकैत ने चेतावनी दी कि अभी केवल कानून वापसी की बात हो रही है। सत्ता वापसी का अभियान शुरू करें उससे पहले ही किसानों के 40 संगठनों से बात करना सरकार के लिए ठीक रहेगा। टिकैत ने चेताया कि अगर तीन नए कृषि कानूनों को रद्द नहीं किया गया तो सरकार का सत्ता में रहना मुश्किल हो जाएगा। वह इस महीने हरियाणा में किसान महापंचायत कर रहे हैं। सोनीपत जिले के खरखौदा की अनाज मंडी में किसान महापंचायत में टिकैत ने कहा कि जब तक कृषि कानूनों को वापस नहीं लिया जाता तब तक किसान आंदोलन जारी रहेगा। टिकैत ने महापंचायत में कहाöराजनेता कह रहे हैं कि भीड़ जुटाने से कृषि कानून वापस नहीं होंगे जबकि उन्हें मालूम होना चाहिए कि भीड़ तो सत्ता परिवर्तन की सामर्थ्य रखती है। यह अलग बात है कि किसानों ने अभी सिर्फ कृषि कानून वापस लेने की बात की है, सत्ता वापस लेने की नहीं।

20 साल काटी जेल, अंत में हुए बरी

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने दुष्कर्म के एक मामले में 20 साल से जेल में बंद आरोपी को निर्दोष करार देते हुए रिहा करने का आदेश दिया है। कोर्ट ने इस बात पर हैरानी जताई कि अभियुक्त पिछले 20 सालों से जेल में है, इसके बावजूद सरकार ने उम्रकैद की सजा पाए बंदियों को 14 साल में रिहा कर देने संबंधी कानून का भी पालन नहीं किया। यह आदेश न्यायमूर्ति केजे ठाकुर तथा न्यायमूर्ति गौतम चौधरी की खंडपीठ ने ललितपुर के एक व्यक्ति की जेल अपील को स्वीकार करते हुए दिया है। 16 वर्षीय विष्णु पर 16 दिसम्बर 2000 को अनुसूचित जाति की महिला से दुष्कर्म के आरोप में प्राथमिकी दर्ज कराई थी। सत्र न्यायालय ने दुष्कर्म के आरोप में 10 साल व एससी/एसटी एक्ट के तहत आजीवन कारावास की सजा सुनाई। आरोपी सन 2000 से जेल में है। आरोपी की ओर से जेल से अपील दाखिल कर अनुरोध किया गया कि वह 20 साल से जेल में बंद है इसलिए शीघ्र सुनवाई की जाए। कोर्ट ने पाया कि दुराचार का आरोप साबित ही नहीं हुआ। मेडिकल रिपोर्ट में जबरदस्ती करने का कोई साक्ष्य नहीं था। पीड़िता गर्भवती थी। ऐसे कोई निशान नहीं हैं, जिससे यह कहा जा सके कि जबरदस्ती की गई थी। रिपोर्ट भी पति व ससुर ने घटना के तीन दिन बाद लिखाई। पीड़ित ने इसे अपने बयान में स्वीकार भी किया है। हाई कोर्ट ने उम्रकैद की सजा काट रहे बंदियों की 14 साल की सजा पूरी करने के बाद रिहाई के लिए बने कानून का पालन न करने पर राज्य सरकार पर तीखी टिप्पणी की है। कोर्ट ने कहा है कि यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है कि बिना किसी गंभीर अपराध के कैदी 20 साल से जेल में बंद है और राज्य सरकार रिहाई के लिए बने कानून का पालन नहीं कर रही है। कोर्ट ने विधि सचिव से कहा है कि वह सभी जिलों की जेलों में बंद 10 से 14 साल तक की सजा काट चुके बंदियों की रिहाई की संस्तुति सरकार को भेजें। भले ही उनकी सजा के खिलाफ कोई अपील विचाराधीन हो। सवाल यह है कि 16 वर्षीय विष्णु ने जो 20 साल जेल में बिना वजह काटे उसका जिम्मेदार कौन है? अगर दुष्कर्म मामलों में भी 20-20 साल लग जाते हैं तो बाकी केसों का क्या हाल होगा? क्या सरकार विष्णु को मुआवजा देगी? -अनिल नरेन्द्र

Friday, 26 February 2021

गुजरात चुनावों में प्रदर्शन से आप उत्साहित

गुजरात में छह नगर निगम की 576 सीटों में से भाजपा को 483 पर प्रचंड जीत मिली है। भाजपा मान रही है कि पीएम नरेंद्र मोदी के नाम का जादू गुजरात में अब भी बरकरार है। इसीलिए अमित शाह, जेपी नड्डा, सीएम विजय रुपाणी व अनेक राष्ट्रीय नेता इस जीत से गद्गद् हैं। चार निगमों में सबसे चौंकाने वाला परिणाम है आम आदमी पार्टी और असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी का जीत हासिल करना। आप के पक्ष में 27 और ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम को सात सीटें मिली हैं। कांग्रेस को महज 55 सीटों पर कामयाबी मिली। कांग्रेस को पछाड़ते हुए आप मुख्य विपक्षी दल के तौर पर उभरी है। माना जा रहा है कि आप की एंट्री अगले साल प्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनावों में कांग्रेस के लिए मुश्किलें खड़ी कर सकती है। आम आदमी पार्टी ने गुजरत के सूरत में नगर निगम चुनाव में 120 में से 27 सीटों पर सफलता प्राप्त की है। आप की सफलता पर दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल काफी गद्गद् हैं। उन्होंने जीत के बाद अपने वीडियो मैसेज के जरिये गुजरात के लोगों का शुक्रिया अदा किया। सीएम ने वीडियो में कहा कि गुजरात के नगर निगम चुनाव में आम आदमी पार्टी का शानदार प्रदर्शन हुआ है। मैं गुजरात के लोगों का तहेदिल से शुक्रिया अदा करना चाहता हूं। खासकर सूरत के लोगों ने सवा सौ साल पुरानी कांग्रेस पार्टी को हराकर एक नई पार्टी आम आदमी पार्टी को प्रमुख विपक्षी दल के रूप में जिम्मेदारी सौंपी है। मैं आपको विश्वास दिलाना चाहता हूं कि हमारा एक-एक उम्मीदवार अपनी जिम्मेदारी पूरी ईमानदारी के साथ निभाएगा। केजरीवाल ने कहाöगुजरात ने एक नई राजनीति की शुरुआत की है। ईमानदारी की राजनीति का। काम की राजनीति का। अच्छे स्कूलों की राजनीति। अच्छे अस्पतालों की राजनीति। सस्ती और 24 घंटे बिजली की राजनीति। गुजरात के लोगों के साथ मिलकर हम गुजरात को संवारेंगे। मैं 26 तारीख को सूरत में आ रहा हूं आप लोगों से मिलने के लिए। व्यक्तिगत रूप से आपका धन्यवाद करने के लिए। बता दें कि सूरत नगर निगम में भाजपा ने 93 सीटें जीती हैं। यहां कांग्रेस का खाता तक नहीं खुल सका। वहीं ओवैसी की पार्टी ने अहमदाबाद में सात सीटें जीतकर राज्य में दस्तक दे दी है। वह इसे बंगाल और अन्य राज्यों में भाषणों और लोगों के भरोसे को आधार बना सकते हैं। राज्य में अभी गोधरा और माडेसा के स्थानीय चुनावों में मतदान 28 फरवरी को होना है। ओवैसी वहां भी प्रचार कर रहे हैं। देखने की बात यह कि वहां से उनकी उम्मीद कितनी बढ़कर आती है? पिछले साल जुलाई में हार्दिक पटेल को गुजरात कांग्रेस कमेटी का कार्यकारी अध्यक्ष बनाया गया था। पाटीदार आरक्षण आंदोलन से चर्चित हुए हार्दिक ने पूरे गुजरात में निकाय चुनाव के लिए प्रचार अभियान चलाया। लेकिन नतीजों में इसका कोई असर नहीं दिख रहा है। अहमदाबाद में हार्दिक ने पूरी ताकत झोंकी। तमाम वार्डों में रैलियां भी कीं। इसके बावजूद यहां कांग्रेस को करारी शिकस्त मिल रही है। -अनिल नरेन्द्र

असंतोष के विचार आते रहें जो किसी से न दबें

टूलकिट केस में गिरफ्तार पर्यावरण कार्यकर्ता दिशा रवि को दिल्ली की एक अदालत ने जमानत दे दी। अतिरिक्त जिला एवं सेशन जज धर्मेंद्र राणा ने किसान आंदोलन का समर्थन करने वाली दिशा रवि को जमानत देते वक्त सख्त टिप्णियां कीं। जज ने अपने आदेश में कहा कि टूलकिट में देशद्रोह जैसी कहीं कोई बात नहीं है। 26 जनवरी की हिंसा के मामले में गिरफ्तार लोगों की पुष्टि नहीं है। सरकार से असहमति रखना अपराध नहीं है। शांतनु के 26 जनवरी को दिल्ली आने में बुराई नहीं है। विचारों में मतभेद, असहमति, विचारों में भिन्नता और यहां तक कि घोर आपत्ति राज्य की नीतियों में वस्तुनिष्ठता लाने के पहचाने हुए और विधिक उपकरण हैं। जज धर्मेंद्र राणा ने अपने फैसले में कहा कि मुखर जनता मजबूत लोकतंत्र का संकेत है। एक उदासीन और बेहद विनम्र जनता के मुकाबले जागरूक और मुखर जनता एक स्वस्थ और मजबूत लोकतंत्र दर्शाता है। भारत की पांच हजार साल पुरानी सभ्यता कभी भी अलग-अलग विचारों की विरोधी नहीं रही। ऋग्वेद में एक श्लोक में भी लिखा गया है कि हमारे पास चारों ओर से ऐसे कल्याणकारी विचार आते रहें जो किसी से न दबें, उन्हें कहीं से बाधित न किया जा सके एवं अज्ञात विषयों को प्रकट करने वाले हों। सिर्फ मौखिक दावे के अलावा मेरे संज्ञान में ऐसा कोई सुबूत नहीं लाया गया जो इस दावे की तस्दीक करता हो कि आरोपी या उनके सह-साजिशकर्ता की साजिश के बाद किसी भी भारतीय दूतावास में किसी तरह की कोई हिंसा हुई है, जज महोदय ने फैसले में कहा। जज राणा ने कहा कि दिशा रवि का पीजेएफ के खालिस्तानी समर्थक कार्यकर्ताओं से संबंध के भी कोई सुबूत नहीं हैं। इस बात के भी कोई सुबूत नहीं मिले हैं 26 जनवरी को हुई हिंसा का संबंध दिशा रवि या पीजेएफ से हैं। जज धर्मेंद्र राणा ने दिशा को एक लाख के पर्सनल बांड पर जमानत दी। उन्होंने कहाöरिकॉर्ड में कम और अधूरे सुबूतों को ध्यान में रखते हुए मुझे 22 वर्षीय लड़की, जिसका कोई आपराधिक इतिहास नहीं है वो जमानत के नियम तोड़ेगी, इसका भी ठोस कारण नहीं मिल रहा है। जज महोदय ने कहा कि तथाकथित टूलकिट से पता चलता है कि इससे किसी भी तरह की हिंसा भड़काने की कोशिश नहीं की गई। आज के माहौल में जब न्यायाधीशों की भूमिका, आचरण पर भी सवाल उठने लगे हैं, ऐसे में जज धर्मेंद्र राणा ने अपने कर्तव्य का निडरता से पालन कर लोगों में न्याय व्यवस्था के प्रति भरोसा जगाया है। दिशा रवि ने अदालत में कहा कि किसानों के प्रदर्शन को वैश्विक स्तर पर उठाना राजद्रोह है तो मैं जेल में ही ठीक हूं। दिशा के वकील ने कहा कि यह दर्शाने के लिए कोई साक्ष्य नहीं है कि किसानों के प्रदर्शन से जुड़ा टूलकिट 26 जनवरी को हुई हिंसा के लिए जिम्मेदार है। जज ने कहा कि कोर्ट के समक्ष ऐसा कोई साक्ष्य पेश नहीं किया गया जिससे सिद्ध होता हो कि दिशा रवि अलगाववादी विचारधारा की समर्थक हैं और उनके व प्रतिबंधित संगठन सिख फॉर जस्टिस के बीच किसी तरह का कोई संबंध है। जज ने कहाöभारत के संविधान के अनुच्छेद 19 के तहत असंतोष का अधिकार पक्के तौर पर निहित है। मेरे विचार से बोलने और अभिव्यक्ति की आजादी में वैश्विक दर्शकों की तलाश का अधिकार शामिल है। संचार पर कोई भौगोलिक बाधाएं नहीं हैं। नागरिक के मौलिक अधिकार प्रदान करने और संचार हासिल करने में सर्वोत्तम साधनों का उपयोग करने का मौलिक अधिकार है, जब तक कि कानून के चारों कोनों के तहत इसकी इजाजत हो और जैसे कि विदेशों में दर्शकों तक पहुंच हो।

Thursday, 25 February 2021

भागवत-मिथुन मुलाकात से चढ़ा राजनीतिक पारा

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत ने गत दिनों वरिष्ठ सिने अभिनेता मिथुन चक्रवर्ती के घर जाकर उनसे मुलाकात की। वह करीब दो घंटे उनके साथ रहे। वैसे तो मिथुन ने किसी तरह की राजनीतिक महत्वाकांक्षा से इंकार किया है, लेकिन बंगाल विधानसभा चुनाव के मद्देनजर इस मुलाकात से अटकलों का बाजार गरम हो गया है। भागवत ने मिथुन के साथ नाश्ता किया और पूरे परिवार को नागपुर आने का न्यौता भी दिया। बाद में मिथुन ने पत्रकारों के सवालों के जवाब में कहा कि इस मुलाकात का कोई राजनीतिक अर्थ नहीं निकाला जाना चाहिए। यह सिर्फ पारिवारिक मुलाकात थी। बंगाल चुनाव के कारण भाजपा से जुड़ाव के सवाल पर मिथुन ने कहा कि उनकी कोई राजनीतिक महत्वाकांक्षा नहीं है, न ही अब तक उनसे किसी ने सम्पर्क किया है। उनके अनुसार मोहन भागवत से उनके संबंध आध्यात्मिक एवं सामाजिक अधिक रहे हैं। संघ द्वारा विभिन्न क्षेत्रों में किए जा रहे सामाजिक कार्य भी मिथुन दा को लुभाते रहे हैं। मोहन भागवत और मिथुन की यह पहली मुलाकात नहीं थी। इससे पहले तीन अक्तूबर 2019 को उन्होंने नागपुर जाकर संघ मुख्यालय में संघ प्रमुख से मुलाकात की थी। बता दें कि मिथुन पहले भी बंगाल की राजनीति से जुड़े रहे हैं। पढ़ाई के दौरान वह कांग्रेस से प्रभावित थे, बाद में उनका रुझान वामपंथी राजनीति की ओर हो गया। बंगाल में उनकी लोकप्रियता को देखते हुए ममता ने 2014 में उन्हें राज्यसभा का सदस्य बना तृणमूल कांग्रेस में सक्रिय करने की कोशिश की। लेकिन सियासत उन्हें ज्यादा दिन रास नहीं आई। -अनिल नरेन्द्र

दुनिया का एक देश जहां 1.45 रुपए लीटर बिकता है पेट्रोल

पेट्रोल-डीजल की कीमतों में लगातार हो रही बढ़ोत्तरी के चलते राजस्थान के बाद गुरुवार को मध्य प्रदेश में भी पेट्रोल की कीमत 100 रुपए प्रति लीटर के स्तर को पार कर गई है। सार्वजनिक क्षेत्र की तेल विपणन कंपनियों की अधिसूचना के मुताबिक पेट्रोल की कीमत में 34 पैसे प्रति लीटर और डीजल में 32 पैसे की बढ़ोत्तरी की गई थी। पेट्रोल-डीजल की कीमतों पर पूरे देश के लोगों को परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। पहली बार पेट्रोल की कीमत 100 रुपए पार कर गई है। इसका सीधा असर लोगों के पूरे बजट पर पड़ता दिख रहा है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि दुनिया में एक ऐसा देश भी है, जहां पेट्रोल 1.45 रुपए प्रति लीटर बिकता है। दुनिया में सबसे सस्ता पेट्रोल वेनेजुएला में बिकता है। वहां पेट्रोल की कीमत सिर्फ 0.020 डॉलर है। रुपए में बात करें तो यह सिर्फ 1.45 रुपए है। वहीं ईरान में पेट्रोल की कीमत 4.50 रुपए प्रति लीटर है। वहां भी तेल की कीमतें हमेशा इसी के इर्द-गिर्द रहती हैं। अंगोला में पेट्रोल की कीमत 17.80 रुपए लीटर है। वहीं एशिया की बात करें तो भूटान में पेट्रोल की कीमत 49.56 रुपए प्रति लीटर है। पाकिस्तान में 51.14 रुपए लीटर है। श्रीलंका में भी पेट्रोल की कीमत 53 रुपए प्रति लीटर है। ऐसे में देखें तो एशिया में भारत में सबसे महंगा पेट्रोल बिक रहा है। पेट्रोल की बढ़ी कीमत पर विपक्ष के बाद अब केंद्र सरकार को अपने ही नेताओं की आलोचना का सामना करना पड़ रहा है। भाजपा सांसद डॉ. सुब्रह्मण्यम स्वामी ने ट्वीट कर कहा है कि लोगों की आवाज कम ही साफ हो सकती है। पेट्रोल-डीजल को लेकर लोगों की आवाज साथ में आ रही है कि सरकार को टैक्स जरूरी तौर पर वापस लेना चाहिए। बता दें कि कई राज्यों में पेट्रोल की कीमत 100 रुपए के पार हो गई है। पेट्रोल-डीजल की कीमतों में लगातार हो रही वृद्धि से आगामी चुनाव वाले राज्यों में भाजपा की चिन्ता बढ़ गई है। पार्टी के केंद्रीय पदाधिकारियों की रविवार को बैठक में चुनावी राज्यों के नेताओं ने इस मुद्दे पर अपनी स्थिति को हाई कमान के सामने रखा। बेशक सरकार ने व प्रधानमंत्री ने अपनी तरफ से इस मुद्दे पर सफाई पेश की है पर जनता में जा रहे संदेश, विरोधी दलों के मुद्दा बनाने और महंगाई बढ़ने की आशंका बरकरार है। भाजपा को चिन्ता है कि कहीं यह रोष वोटों में न बदल जाए? अप्रैल माह में पांच विधानसभाओं के चुनाव से पहले रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच चुके पेट्रोल-डीजल की कीमतों ने इन राज्यों के भाजपा नेताओं के माथे पर शिकन ला दी है। सूत्रों के अनुसार संभव है कि भाजपा शासित राज्यों में स्थिति को भांपते हुए राज्य सरकारें अपना टैक्स घटा दें जिससे लोगों को कुछ राहत मिले। इससे अन्य राज्यों पर भी दबाव बनेगा और स्थितियां सुधर सकती हैं। हाल ही में राजग की मेघालय सरकार ने अपने यहां कीमतें कम की हैं। कोरोना काल में अर्थव्यवस्था पर पड़े प्रभाव के बाद केंद्र सरकार शायद ही इन कीमतों में अपनी तरफ से कोई राहत दे। हालांकि कुछ राज्यों के जरिये कुछ उपाय कर सकती है। हाल ही में सरकार में उच्च स्तर से आए बयान भी इसी बात का संकेत दे रहे हैं।

चुनाव काम के बल पर जीता जाता है, सिर्फ जुमलों से नहीं

पंजाब स्थानीय निकायों के चुनाव में भाजपा का सूपड़ा साफ हो गया था। अब दिल्ली नगर निगम की पांच सीटों पर उपचुनाव होने जा रहा है। चुनाव 28 फरवरी को होना है। अब इन पांच सीटों पर 63 प्रत्याशियों के बीच जंग है। नगर निगम की इन पांच सीटों पर हो रहे उपचुनाव में प्रत्याशियों के नामों की तीनों प्रमुख पार्टियां भाजपा, कांग्रेस व आप के द्वारा घोषणा और नामांकन किए जाने के बाद से चुनावी माहौल पूरी तरह से गरमा गया है। आम आदमी पार्टी इस कोशिश में है कि किसी भी तरह सभी पांचों सीटों पर जीत का परचम लहरा कर भाजपा और कांग्रेस को निचले पायदान पर ला दिया जाए। जिससे अगले वर्ष होने वाले निगम चुनाव से पहले ही यह दोनों पार्टियां उत्साह की जगह तनाव में आ जाएं। वहीं भारतीय जनता पार्टी को लगता है कि सीलमपुर विधानसभा के चौहान बांगर वार्ड की सीट को छोड़कर वह चार सीटों पर सीधे मुकाबले में है और यदि कांग्रेसी बिल्कुल धराशायी नहीं हुई तो कमल खिलना तय है। पूर्वी दिल्ली में हो रहे तीन निगम सीटों पर उपचुनाव का अपना एक अलग महत्व ही नहीं, रोचकता भी बनी है। जहां कई दिग्गजों की प्रतिष्ठा भी दांव पर है। दिल्ली की तीनों नगर निगमों के लिए अगले वर्ष के शुरू में होने वाले चुनाव से पहले आम आदमी पार्टी की भाजपा में भगदड़ मचाने की पूरी तैयारी है। मार्केट में खबर है कि तीनों निगमों में भाजपा के 40 से ज्यादा पार्षद आप की झाड़ू थाम सकते हैं। वहीं इससे ज्यादा पूर्व पार्षद भी आम आदमी पार्टी में आने का मन बनाए हुए हैं। सिर्फ वह आप की ओर से सिग्नल का इंतजार कर रहे हैं। आम आदमी पार्टी फिलहाल जिस रणनीति पर चल रही है उसमें चुनाव से पहले भाजपा खेमे में हड़बड़ी मचाना है जिससे यह संदेश चला जाए कि भाजपा की निगमों से विदाई हो रही है इसलिए उसके पार्षद व पूर्व पार्षद पार्टी को छोड़कर भाग रहे हैं। आप का मानना है कि निगम उपचुनाव के नतीजों में पांचों सीटों पर जब आप का परचम लहराएगा तो हवा में बात कर रहे भाजपा व कांग्रेस के नेताओं को पता चल जाएगा कि चुनाव काम के बल पर जीता जाता है न कि सिर्फ बातों से जीता जाता है। आम आदमी पार्टी सभी सीटों पर जीत को लेकर आश्वस्त है। भाजपा में चल रहे हालातों की खबर पार्टी के प्रदेश स्तर के कई नेताओं ने भी हाई कमान को दे दी है जिसमें कहा गया है कि संगठन में सिर्फ गणेश परिक्रमा करने वालों को ही महत्व दिया जा रहा है। संगठन विस्तार में कहीं कुछ नया नहीं दिखाई दे रहा है। तीनों प्रदेश महामंत्री यमुनापार से बनाकर पार्टी ने क्या संदेश दिया यह अभी तक उसके नेता बता नहीं पाए हैं। नाराज भाजपा कार्यकर्ताओं का कहना है कि हम 2007 से लगातार निगम में सत्ता में है, हमारे पास उपलब्धि के नाम पर कुछ भी नहीं है और 2022 के चुनाव में हम क्या लेकर उतरेंगे यह हमें भी नहीं पता है। वहीं आम आदमी पार्टी अभी से निगम को लेकर ठोस नीति पर चल रही है और उसके मुद्दे विधानसभा में बिजली, पानी, मोहल्ला क्लीनिक, परिवहन की तरफ जनता को आकर्षित कर रहे हैं वहीं हम लोग अभी भी गलतफहमी में जी रहे हैं। कांग्रेस कहती है कि सबकी गलतफहमी दूर हो जाएगी।

Wednesday, 24 February 2021

लॉकर की सुरक्षा बैंकों का दायित्व

सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक अहम फैसले में कहा है कि बैंकों में लॉकर की सुरक्षा व संचालन में जरूरी सावधानी बरतना बैंकों का दायित्व है। बैंक अपनी जिम्मेदारी से पल्ला नहीं झाड़ सकते। ग्राहक बैंक में लॉकर सुविधा यह सुनिश्चित करने के लिए लेता है कि वहां उसकी सम्पत्ति और चीजें सुरक्षित रखी जाएंगी। इस जिम्मेदारी से बैंकों के हाथ झाड़ने से न सिर्प उपभोक्ता संरक्षण कानून के प्रावधानों का उल्लंघन होगा, बल्कि निवेशक का भरोसा भी टूटेगा। कोर्ट ने रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (आरबीआई) को आदेश दिया है कि वह छह महीने के भीतर लॉकर सुविधा या सुरक्षित धरोहर प्रबंधन के बारे में उचित रेगुलेशन जारी करे। कोर्ट ने साफ किया है कि बैंकों को इस बारे में एकतरफा नियम तय करने की छूट नहीं होनी चाहिए। इसके साथ ही बैंक लॉकर प्रबंधन के बारे में बैंकों के लिए दिशानिर्देश भी जारी किए हैं। आरबीआई का नियम जारी होने तक बैंकों को सुप्रीम कोर्ट के दिशानिर्देशों का पालन करना होगा। यह फैसला शुक्रवार को न्यायमूर्ति एमएम शांतन गौडर और विनीत सरन की पीठ ने यूनाइटेड बैंक ऑफ इंडिया के खिलाफ दाखिल एक ग्राहक अमिताभ दासगुप्ता की याचिका पर सुनाया है। सुप्रीम कोर्ट ने यूनाइटड बैंक ऑफ इंडिया को उपभोक्ता संरक्षण कानून के तहत सेवा में कमी का जिम्मेदार ठहराते हुए याचिकाकर्ता को पांच लाख रुपए हर्जाना और एक लाख रुपए मुकदमे के खर्च अदा करने का आदेश दिया है। अमिताभ दासगुप्ता ने बैंक पर आरोप लगाया था कि लॉकर का किराया देने के बावजूद बैंक ने समय से किराया अदा न करने के आधार पर उसका लॉकर उन्हें बताए बगैर तोड़ दिया। लॉकर तोड़ने की सूचना भी नहीं दी। जब वह करीब सालभर बाद लॉकर संचालित करने बैंक गए, तब उन्हें इसकी जानकारी हुई और बैंक ने लॉकर में रखे उनके सात आभूषण वापस नहीं किए। सिर्प दो ही आभूषण वापस किए। बाद में यह मामला राज्य उपभोक्ता आयोग और राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग तक पहुंचा और दोनों ही जगह से याचिकाकर्ता को दीवानी अदालत जाने के लिए कहा गया था। इसके बाद याचिकाकर्ता शीर्ष अदालत पहुंचा। मामले की सुनवाई करते हुए कोर्ट ने कहाöबिना तर्पसंगत कारण के बैंक ने याचिकाकर्ता का लॉकर उसे बताए बगैर तोड़ दिया। इस तरह बैंक ने ग्राहक के प्रति सेवा प्रदाता के तौर पर अपने दायित्व की अवहेलना की है। -अनिल नरेन्द्र

भाजपा युवा नेता कोकेन के साथ गिरफ्तार

इन दिनों बंगाल की राजनीति चरम पर है। कुछ दिन पहले भाजपा युवा विंग की नेता पामेला गोस्वामी की गूंज खूब सुनाई दे रही थी। दक्षिण कोलकाता के पॉश इलाके न्यू अलीपुर से 10 लाख रुपए कीमत की 100 ग्राम कोकेन के साथ पामेला की गिरफ्तारी के बाद बंगाल भाजपा अब बैकफुट पर आ गई है और विपक्षी पार्टियां भाजपा पर ताबड़तोड़ हमले कर रही हैं। कोकेन के साथ गिरफ्तारी के बाद पामेला को शनिवार को कोलकाता की एक अदालत में पेश किया गया। अदालत ने पामेला गोस्वामी को 25 फरवरी तक पुलिस हिरासत में भेज दिया है। कोलकाता पुलिस के अधिकारियों के मुताबिक पुलिस ने शुक्रवार को पामेला की कार को रोका था और तलाशी के दौरान 100 ग्राम कोकेन उनके हैंडबैग और कार से मिली। अदालत में पेशी के दौरान पामेला ने अपनी पार्टी के एक सहयोगी पर साजिश रचने का आरोप लगाया और कहा कि वह व्यक्ति भाजपा नेता कैलाश विजयवर्गीय का करीबी है। पुलिस अधिकारियों के मुताबिक पामेला गोस्वामी कुछ समय से नशीले पदार्थों की तस्करी में शामिल थीं। पामेला को उनके एक मित्र प्रदीप कुमार और उनके (पामेला के) निजी सुरक्षा गार्ड के साथ कोलकाता के न्यू अलीपुर इलाके से गिरफ्तार किया गया था। पुलिस के मुताबिक पामेला के बैग और कार में लाखों रुपए की कोकेन पाई जाने के बाद उन्हें गिरफ्तार किया गया। कोलकाता की अदालत में पेशी के बाद लॉकअप ले जाने के दौरान पामेला ने वहां मौजूद मीडिया कर्मियों और समाचार चैनलों के रिपोर्टरों से कहाöमैं सीआईडी जांच चाहती हूं। भाजपा के राकेश सिंह, जो कैलाश विजयवर्गीय के सहयोगी हैं, को गिरफ्तार किया जाना चाहिए। यह (मेरे खिलाफ) एक साजिश है। वहीं भाजपा की प्रदेश कमेटी के सदस्य सिंह ने आरोप लगाया कि सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस और कोलकाता पुलिस उनके खिलाफ साजिश रच रही है और पामेला को सिखा-पढ़ा दिया है। उन्होंने कहा कि वह एक साल से अधिक समय से पामेला के सम्पर्प में नहीं थे और किसी भी जांच का सामना करने के लिए तैयार हैं। उन्होंने कहा कि यदि मैं संलिप्त हूं तो वह मुझे या कैलाश विजयवर्गीय या अमित शाह को बुला सकते हैं। मुझे लगता है कि पुलिस ने उसे सिखाया-पढ़ाया है। इस बीच तृणमूल कांग्रेस ने कहा है कि पूरा प्रकरण भाजपा के असली चेहरे को दर्शाता है। पार्टी महासचिव व राज्य में मंत्री पार्थ चटर्जी ने कहा कि इससे पहले उनकी (भाजपा) एक नेता बच्चों की तस्करी के मामले में गिरफ्तार हुई थीं। अब एक अन्य नेता ड्रग्स मामले में गिरफ्तार हुई हैं। इससे सिर्प यही साबित होता है कि भाजपा और उसके नेताओं का असली चेहरा क्या है? पार्टी के युवा कार्यकर्ताओं के बीच पामेला कितनी लोकप्रिय हैं, उसका अंदाजा उनके सोशल मीडिया प्रोफाइल का देखकर लगाया जा सकता है। भाजपा के सभी दिग्गज नेताओं के साथ तस्वीरें पामेला गोस्वामी अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर भाजपा की हर रैली और सभा की तस्वीरें पोस्ट करती रहती हैं। हाल ही में नेताजी सुभाष चंद्र बोस की 125वीं जयंती के मौके पर कोलकाता के विक्टोरिया मैमोरियल में आयोजित पराक्रम दिवस कार्यक्रम में भी पामेला गोस्वामी मौजूद थीं।

दक्षिण में कांग्रेस का इकलौता किला भी गिरा

पुडुचेरी विधानसभा में सोमवार को जो हुआ उस पर कोई हैरानी नहीं हुई। यह तो होना ही था। विधानसभा में मुख्यमंत्री नारायणसामी अपना बहुमत साबित नहीं कर पाए। सोमवार को स्पीकर ने ऐलान किया कि सरकार के पास बहुमत नहीं है। इसके बाद मुख्यमंत्री वी. नारायणसामी की विदाई तय हो गई। गौरतलब है कि विधानसभा में कांग्रेस के पास उसके नौ विधायकों के अलावा दो डीएमके और एक निर्दलीय विधायक का समर्थन है यानि कांग्रेस के पास 11 विधायकों (स्पीकर को लेकर 12) का समर्थन था, जबकि विधानसभा की वर्तमान स्थिति के मुताबिक उसे बहुमत के लिए 14 विधायकों का समर्थन चाहिए था। हालांकि फ्लोर टेस्ट से पहले मुख्यमंत्री नारायणसामी दावा करते रहे कि उनके पास निर्वाचित विधायकों में से बहुमत है। विधानसभा में फ्लोर टेस्ट के दौरान कांग्रेस और डीएमके विधायकों ने वॉकआउट किया। इसके बाद साफ हो गया था कि फ्लोर टेस्ट में नारायणसामी हार गए हैं और स्पीकर ने ऐलान किया कि सरकार सदन में बहुमत साबित कर पाने में विफल रही। कांग्रेस ने पुडुचेरी में अपनी सरकार बेहद आसानी से गंवा दी। दिल्ली से हाई कमान ने विधायकों को एकजुट रखने के लिए कोई प्रयास नहीं किया। तमिलनाडु और पुडुचेरी की राजनीति में दखल रखने वाले पूर्व केंद्रीय मंत्री वीरप्पा मोइली और गुलाम नबी आजाद सरीखे वरिष्ठ नेताओं को लगाया जाता तो शायद दक्षिण में कांग्रेस का यह इकलौता किला गिरने से बच जाता। कांग्रेस ने पुडुचेरी को इतने हल्के में लिया कि प्रभारी दिनेश गुंडु राव ने असंतोष को शांत करने के लिए राज्य में समय ही नहीं दिया। प्रभारी बनने के बाद गुंडु राव ने मुश्किल से तीन बार ही पुडुचेरी का दौरा किया। उनसे पहले प्रभारी रहे मुकुल वासनिक के बारे में तो कहा जाता है कि संभवत दो साल में वह एक बार ही आए होंगे। हाल ही में पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी पुडुचेरी आए थे तो उनको भी कहा गया था कि असंतुष्ट विधायकों और नेताओं से बात करके राजनीतिक संकट को टाला जाए। दरअसल दिसम्बर में असंतुष्टों में शामिल मंत्री ए. नमशिवाय को भाजपा ने तोड़ लिया। कहा जाता है कि नमशिवाय इस बात से खिन्न थे कि उन्हें आखिरी के दो साल के लिए मुख्यमंत्री बनाने का वादा पूरा नहीं किया गया। निवर्तमान मुख्यमंत्री नारायणसामी पद छोड़ने के लिए तैयार नहीं थे, इसलिए नमशिवाय को साढ़े चार साल तक पार्टी का प्रदेशाध्यक्ष और पसंद का मंत्रालय दिया गया था। अभी चर्चा यह है कि भाजपा ने नमशिवाय को मुख्यमंत्री बनाने का आश्वासन दिया है लेकिन यह आसान नहीं रहेगा। क्योंकि उनके मामा और भाजपा की सहयोगी एनआर कांग्रेस के प्रमुख रंगासामी भी मुख्यमंत्री बनना चाहते हैं। हालांकि भाजपा ने नमशिवाय के जरिये ही सत्तापक्ष के आधा दर्जन विधायकों को तोड़कर नारायणसामी की कांग्रेस सरकार को अपदस्थ करने में सफलता प्राप्त की है। आज अगर दक्षिण भारत में कांग्रेस का इकलौता किला धराशायी हुआ है तो उसके लिए खुद कांग्रेस हाई कमान और पुडुचेरी कांग्रेस पदाधिकारी जिम्मेदार हैं। आगामी दिनों में दक्षिण में कई विधानसभा चुनाव होने हैं ऐसे समय में पुडुचेरी में कांग्रेस का सफाया पार्टी के लिए अच्छे संकेत नहीं माने जा सकते हैं।

Tuesday, 23 February 2021

किसानों का मुद्दा उठाना अगर राजद्रोह है तो मैं जेल में सही

टूलकिट मामले में आरोपी जलवायु कार्यकर्ता दिशा रवि की जमानत याचिका पर शनिवार को आयोजन व बचाव पक्ष में जोरदार बहस हुई। दिशा रवि की तरफ से कहा गया कि अगर किसानों के विरोध प्रदर्शन को सोशल मीडिया पर उठाना राजद्रोह है तो उसका जेल में रहना ही सही है। साथ ही यह भी कहा गया कि 26 जनवरी को हुई हिंसा के लिए टूलकिट जिम्मेदार नहीं हैं। वहीं पुलिस की तरफ से कहा गया कि यह पूरा मामला खालिस्तान से जुड़ा है। दोनों पक्षों को सुनने के बाद अदालत ने दिशा रवि की जमानत याचिका पर मंगलवार तक के लिए सुरक्षित रख लिया। पटियाला हाउस स्थित अतिरिक्त न्यायाधीश धर्मेंद्र राणा की अदालत में पुलिस ने आरोपी दिशा रवि की दलीलों का कड़े तरीके से विरोध किया। दिल्ली पुलिस ने अदालत से कहा कि आरोपी दिशा रवि खालिस्तान समर्थकों के साथ टूलकिट तैयार कर रही थी। वह भारत को बदनाम करने के लिए किसान आंदोलन की आड़ में देश में अशांति उत्पन्न करने की वैश्विक साजिश का हिस्सा हैं। पुलिस का कहना था कि यह महज एक टूलकिट नहीं है, असली मंसूबा भारत को बदनाम करने के लिए किसान आंदोलन की आड़ में देश में अशांति पैदा करना था। दिल्ली पुलिस ने आरोप लगाया कि दिशा के वॉट्सएप पर हुई बातचीत, ई-मेल एवं अन्य साक्ष्य मिटा दिए गए। पुलिस का कहना था कि इससे साफ है कि उसे इस बात की जानकारी थी कि उसके खिलाफ कानूनी कार्रवाई हो सकती है। पुलिस ने कहा कि उसके इलैक्ट्रॉनिक सामान को कब्जे में लेकर जांच शुरू कर दी गई है। ताकि उसके सम्पर्प व बातचीत का खुलासा हो सके। पुलिस ने अदालत के समक्ष दलील दी कि यदि दिशा ने कोई गलत काम नहीं किया था, तो उसने अपने ट्रेस (संदेशों को क्यों छिपाया और साक्ष्य मिटा दिए? वहीं दिशा के वकील ने आरोपों को खारिज कर दिया। बचाव पक्ष के वकील ने कहा कि उनके मुवक्किल दिशा का संबंध प्रतिबंधित संगठन सिख फॉर जस्टिस से जोड़ने के लिए कोई साक्ष्य नहीं है और यदि वह किसी से मिली भी थी तो उस व्यक्ति के माथे पर अलगाववादी होने का ठप्पा नहीं लगा हुआ था। दिशा के वकील ने कहा कि दिल्ली पुलिस ने किसानों के मार्च (ट्रैक्टर परेड) की इजाजत दी थी, जिसके बारे में पुलिस का दावा है कि दिशा ने किसानों से इसमें शामिल होने को कहा था, फिर यह राजद्रोह कैसे हो गया? दिशा के वकील ने दावा किया कि 26 जनवरी को लाल किले पर हुई हिंसा के सिलसिले में गिरफ्तार किए गए किसी भी व्यक्ति ने यह नहीं कहा है कि वह इस गतिविधि के लिए टूलकिट से प्रेरित हुआ था। अब मंगलवार को आगे कार्रवाई होगी और उसी दिन अदालत दिशा रवि की जमानत पर भी फैसला करेगी। -अनिल नरेन्द्र

असंतुष्टों को चुप कराने के लिए राजद्रोह कानून नहीं लगा सकते

दिल्ली की एक अदालत ने हाल ही में कहा कि उपद्रवियों के बहाने असंतुष्टों को चुप कराने के लिए राजद्रोह का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने उन दो लोगों को जमानत दे दी जिन पर किसान आंदोलन के दौरान फेसबुक पर फर्जी वीडियो डालने का आरोप था। पुलिस ने उनके खिलाफ राजद्रोह के आरोप में केस दर्ज किया है। अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश धर्मेंद्र राणा ने देवी लाल बुदरक और स्वरूप राम को जमानत देते हुए कहा कि शांति व्यवस्था बनाए रखे के लिए सरकार के हाथ में राजद्रोह कानून एक शक्तिशाली औजार है। हालांकि मुझे संदेह है कि आरोपी के खिलाफ धारा 124(ए) के तहत कार्रवाई की जा सकती है। न्यायाधीश ने 15 फरवरी को दिए गए अपने आदेश में कहाöहालांकि उपद्रवियों का मुंह बंद करने के बहाने असंतुष्टों को खामोश करने के लिए इसे लागू नहीं किया जा सकता। जाहिर तौर पर कानून ऐसे किसी भी कृत्य का निषेद्य करता है जिसमें हिंसा के जरिये सार्वजनिक शांति को बिगाड़ने या गड़बड़ी फैलाने की प्रवृत्ति हो। दरअसल देखने में यह आया है कि सरकार ने पिछले दो वर्षों में औसतन रोजाना नौ लोगों को राष्ट्रद्रोह कहते पाया। लेकिन कोर्ट में उनमें से प्रत्येक 100 में से केवल दो पर ही आरोप तय हो पाया। देशद्रोह की धारा 124ए (आईपीसी) के तहत जिन लोगों पर पुलिस ने मुकदमे किए, उनमें से अधिकांश नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के खिलाफ आंदोलन में शामिल थे। सुप्रीम कोर्ट की कई संविधान पीठों ने स्पष्ट कहा है कि चाहे कितने ही कठोर शब्दों में सरकार की निन्दा क्यों न की जाए, इस कृत्य को देशद्रोह नहीं मान सकते हैं। लेकिन शायद सरकार की परिभाषा कुछ अलग ही है, जिसमें प्रजातंत्र का सबसे बड़ा वरदान अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और उसके तहत सरकार की आलोचना भी सत्ता वर्ग को देशद्रोह लगता है। जहां 19 वर्षीय ग्रेटा थनबर्ग और 23 वर्षीय दिशा रवि उसे देशद्रोही दिखने लगते हैं। किसान आंदोलन का हर समर्थक आंदोलनजीवी या परजीवी लगने लगता है। दरअसल इंटरनेट के इस युग में विचार की सीमा देश से परे भी जाती है और वहां भारत का प्रवर्तन निदेशालय, आयकर विभाग या फिर स्थानीय पुलिस का डंडा काम नहीं करता। सरकार पर आरोप लगाए जा रहे हैं कि वह किसान आंदोलन से लोगों का ध्यान बटाने के लिए टूलकिट षड्यंत्र का एक हौवा खड़ा कर रही है। चूंकि देश में पिछले कुछ वर्षों से एक खास किस्म के राष्ट्रवाद की एक नई बयार चल रही है। लिहाजा सत्तापक्ष यह बताने में लगा है कि हर विरोध के पीछे विदेशी ताकतें हैं। 1970 के दशक के पूर्वार्द्ध में इंदिरा गांधी के हर भाषण में भी यही तकिया कलाम रहता था। आरके लक्ष्मण का एक कार्टून तब चर्चा में रहा, जिसमें दिखाया गया था कि एक महिला नेता कुछ नंगे-भूखे ग्रामीणों के बीच बता रही है कि कैसे विदेशी ताकतें देश की समृद्धि से जल रही हैं। आज भी किसानों का दुख-दर्द सुनने की जगह उनमें खालिस्तानी और विदेशी हाथ तलाशा जा रहा है। विदेशों में अनेक भारतवासियों सहित प्रसिद्ध लोगों ने सरकार के इस रवैये की निन्दा की है। ब्रिटेन के एक अखबार ने दिशा रवि की गिरफ्तारी को अभिव्यक्ति की आजादी पर कुठाराघात बताया है, जबकि कई देशों में वहां के सांसदों ने भारत में किसान आंदोलन को गला दबाने वाला प्रयास माना है। क्या यह सभी टूलकिट षड्यंत्र का हिस्सा हैं? देशभर में सख्त कानूनों का बेजा प्रयोग किसी सरकार को नहीं करना चाहिए।

Friday, 19 February 2021

भारत के सभी राज्यों, नेपाल और श्रीलंका में भी भाजपा सरकार?

त्रिपुरा के मुख्यमंत्री विप्लव कुमार देव की टिप्पणी से नेपाल व श्रीलंका में हलचल होना स्वाभाविक ही था। रविवार को अगरतला में विप्लव कुमार देव ने पार्टी के एक कार्यक्रम में गृहमंत्री अमित शाह का हवाला देते हुए कहा था कि भाजपा न केवल भारत के सभी राज्यों में बल्कि नेपाल और श्रीलंका में भी सरकार बनाना चाहती है। उन्होंने कहा थाöगृहमंत्री जी जब राष्ट्रीय अध्यक्ष थे, मैंने एक बैठक में कहा कि अध्यक्ष जी बहुत स्टेट हम लोगों के पास हो गया है। अब तो अच्छा हो गया है। इस पर अध्यक्ष जी ने कहाöअरे काहे अच्छा हो गया है। अभी तो श्रीलंका बाकी है, नेपाल बाकी है। मतलब उस आदमी को... बोलता है कि देश का तो कर ही लेंगे... श्रीलंका है... नेपाल है... वहां भी तो पार्टी को लेकर जाना है। वहां भी जीतना है। विप्लव देव की इस टिप्पणी पर नेपाल के विदेश मंत्री प्रदीप ज्ञवाली ने कहा है कि इस मामले में नेपाल में भारत सरकार के समक्ष औपचारिक आपत्ति दर्ज करा दी है। नेपाली मीडिया के अनुसार भारत में नेपाल के राजदूत नीलांबर आचार्य ने सरकार के समक्ष औपचारिक आपत्ति दर्ज कराई है। भारत-नेपाल के रिश्तों पर नेपाली पार्टियों ने भी कड़ा विरोध किया है। नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी (प्रचंड ग्रुप) के केंद्रीय और नेपाली प्रवासी समन्वय समिति के अध्यक्ष युवराज चौलगाई ने बीबीसी से कहा कि विप्लव देव की यह टिप्पणी नेपाल की संप्रभुता का अपमान है। युवराज कहते हैं कि भारतीय जनता पार्टी के मुख्यमंत्री की इस टिप्पणी से पता चलता है कि भारत का शासक वर्ग नेपाल को लेकर क्या सोचता है। आप यह कैसे कह सकते हैं? नेपाल एक संप्रभु देश है और उसके बारे में उसी सम्मान के साथ कोई टिप्पणी होनी चाहिए। युवराज कहते हैंöनेपाल को लेकर भाजपा में इतना आत्मविश्वास कहां से आता है? यह सोचने की बात है। इन्हें लगता है कि नेपाल में हिन्दू आबादी बहुसंख्यक है, तो कुछ भी बोल दो? हमारी आबादी में भले बहुसंख्यक हिन्दू हैं, लेकिन इससे हमारी संप्रभुता का सम्मान कम नहीं हो जाता है। दुनिया में कई मुस्लिम बहुल देश हैं, लेकिन वहां तो कोई बड़ा मुस्लिम बहुल देश छोटे मुस्लिम बहुल देश की संप्रभुता का अपमान इस तरह नहीं करता। विप्लव देव का यह बयान नेपाली मीडिया में भी छाया रहा। नेपाली अखबार नया पत्रिका ने 15 फरवरी को अपनी रिपोर्ट में लिखाöक्या भाजपा की यह गोपनीय योजना बाहर आ गई है? नेपाल में आरएसएस अपना विस्तार पहले से ही कर रहा है। ऐसे में भाजपा के मुख्यमंत्री की यह टिप्पणी सुनिश्चित है या संयोग? वीरगंज में आरएसएस का एक सम्मेलन हुआ था। इस सम्मेलन का उद्घाटन आरएसएस के राष्ट्रीय सह-संचालक कल्याण निदिल्सिनाले ने किया था। इसमें धर्मांतरण को लेकर चिंता जताई गई थी और वीरगंज बाजार से आरएसएस के स्वयंसेवकों ने एक मार्च भी निकाला था। विप्लव देव की इस टिप्पणी को मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस ने बकवास बताया है। कांग्रेस ने ट्वीट करके कहाöइन जैसे लोगों के बेवकूफी भरे बयानों की वजह से आज भारत के पड़ोसी देशों के साथ रिश्ते सबसे खराब दौर में पहुंच चुके हैं। आप इन बेवकूफी भरे बयानों से लोगों को सिर्फ मूर्ख बना सकते हैं। बाबूराम भट्टराई की जनता समाजवादी पार्टी के नेता राज किशोर यादव कहते हैं कि विप्लव देव को टिप्पणी से कोई भी नेपाली खुश नहीं हुआ। इस तरह की टिप्पणी से भारत-नेपाल संबंध खराब ही होंगे।

लोगों की निजता का मूल्य पैसों से ज्यादा है

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को वॉट्सएप से कहा कि आपकी नई प्राइवेसी के बाद भारतीय लोगों में निजता को लेकर काफी आशंकाएं हैं। चीफ जस्टिस एसए बोबड़े ने कहा कि आप भले ही खरबों डॉलर की कंपनी होंगे, लेकिन लोगों के लिए निजता का मूल्य पैसों से ज्यादा है। चीफ जस्टिस ने इस प्राइवेसी पॉलिसी को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर वॉट्सएप, फेसबुक और केंद्र से जवाब मांगा है। वॉट्सएप की निजता संबंधी नीति पर उसे और उसके स्वामित्व वाली कंपनी फेसबुक को नोटिस जारी कर सुप्रीम कोर्ट ने यही संकेत दिया है कि यह कंपनियां निजता की रक्षा को लेकर सतर्क नहीं। अदालत ने वरिष्ठ वकील श्याम दीवान की उस दलील का भी समर्थन किया जिसमें कहा था कि भारत में डेटा प्रोटेक्शन को लेकर कोई कानून नहीं है। चीफ जस्टिस बोबड़े, जस्टिस एएस बोपन्ना और जस्टिस वी. रामा सुब्रह्मण्यम की बेंच ने एक सुर में कहा कि मिस्टर दीवान की दलील से हम प्रभावित हैं। ऐसे कानून प्रभाव में लाना चाहिए वॉट्सएप अपनी नई प्राइवेसी के तहत भारतीयों का डेटा शेयर करेगा। इस डेटा शेयरिंग को लेकर भारतीयों को आशंकाएं हैं। सुप्रीम कोर्ट ने यूरोप की तुलना में भारत में प्राइवेसी स्टैंडर्ड गिराए जाने के आरोपों पर वॉट्सएप से जवाब मांगा है। वॉट्सएप ने इस पर कहा कि यूरोप में प्राइवेसी को लेकर खास कानून है। अगर भारत में भी वैसा ही कानून हो तो हम भी पालन करेंगे। हाल ही में सरकार ने सोशल मीडिया पर किसान आंदोलन के बारे में फेक न्यूज, आपत्तिजनक और हिंसा भड़काने वाले कंटेंट को लेकर नाराजगी जताई थी। राज्यसभा में आईटी मिनिस्टर रविशंकर प्रसाद ने कहा थाöहम सोशल मीडिया का सम्मान करते हैं। इसने आम लोगों को ताकत दी है। डिजिटल इंडिया प्रोग्राम में भी सोशल मीडिया की भूमिका काफी अहम है। लेकिन अगर इससे फेक न्यूज और हिंसा को बढ़ावा मिलता है तो हम कार्रवाई करेंगे। फिर वो ट्विटर हो या कोई प्लेटफार्म।

बंगाल का चुनावी सर्वे

पश्चिम बंगाल को लेकर चुनावी सर्वे में अलग-अलग अनुमान व्यक्त किया जा रहा है। सीएनएक्स के सर्वे में पश्चिम बंगाल में एक बार फिर ममता बनर्जी की वापसी हो रही है। वहीं सी-वोटर के सर्वे के अनुसार राज्य में भाजपा की सरकार बनने का अनुमान है। सीएनएक्स के सर्वे में ममता बनर्जी की पार्टी को 294 में से 151 सीटें मिलने का अनुमान व्यक्त किया गया है। वहीं सर्वे के अनुसार भाजपा के खाते में 117 सीटें आती दिख रही हैं। लेफ्ट और कांग्रेस के खाते में 24 सीटें मिलने की संभावना है। सीएनएक्स के सर्वे के अनुसार दक्षिण बंगाल में अभी भी टीएमसी का दबदबा बना हुआ है। सर्वे में पार्टी को यहां 84 में से 53 सीटें मिलती दिख रही हैं। वहीं भाजपा को 16 सीटें मिलने का अनुमान व्यक्त किया गया है। एक न्यूज चैनल के लिए यह ओपिनियन पोल दिल्ली की एक रिसर्च और सर्वे एजेंसी सीएनएक्स ने किया है। सर्वे में पश्चिम बंगाल की 294 सीटों पर हुए इस सर्वे में 8960 लोगों से बात की गई है। यह सर्वे 23 जनवरी से सात फरवरी के बीच किया गया है। सी-वोटर सर्वे के अनुसार राज्य में भाजपा की सरकार बनती दिख रही है। सर्वे में 43 प्रतिशत लोगों का मानना है कि राज्य में भाजपा की सरकार बन सकती है। वहीं 35 प्रतिशत लोगों का मानना है कि ममता बनर्जी की टीएमसी राज्य में एक बार फिर सरकार बना सकती है। 14 प्रतिशत लोग ऐसे हैं जिनका मानना है कि राज्य में लेफ्ट और कांग्रेस सरकार बना सकते हैं। वहीं दो प्रतिशत लोगों ने राज्य में त्रिशंकु विधानसभा की उम्मीद जताई है। सी-वोटर के सर्वे में भले ही लोग भाजपा की सरकार बनने की बात कर रहे हैं, लेकिन मुख्यमंत्री के रूप में ममता बनर्जी लोगों की पहली पसंद हैं। राज्य में 52 प्रतिशत लोगों का मानना है कि ममता बनर्जी सीएम पद के लिए सबसे बेहतरीन उम्मीदवार हैं। वहीं भाजपा के दिलीप घोष 25 प्रतिशत लोगों की पसंद के साथ दूसरे स्थान पर है। अधीर रंजन चौधरी को दो प्रतिशत लोगों ने सीएम पद के लिए बेहतर उम्मीदवार बनाया है। चौंकाने वाली बात है कि सर्वे में बंगाल टाइगर सौरभ गांगुली बेहतर सीएम उम्मीदवार के रूप में चार प्रतिशत लोगों की पसंद हैं। अभी चुनाव में काफी समय है और स्थिति रोज बदल रही है। इस सर्वे से सिर्फ सर्वे के समय का जनता का रुख दर्शाता है। इसमें बहुत परिवर्तन होगा। अभी तो गठबंधन भी नहीं बने। बस यह पश्चिम बंगाल में वोटरों की पसंद का थोड़ा संकेत जरूर देता है। अभी तो कई सर्वे और भी आएंगे। इन सर्वे पर जनता को ज्यादा विश्वास भी अब नहीं रहा है। -अनिल नरेन्द्र

Thursday, 18 February 2021

दिशा रवि कौन है, जिनकी गिरफ्तारी से डरे हुए हैं पर्यावरण कार्यकर्ता

केन्द्राrय कृषि कानूनों के खिलाफ प्रदर्शन भड़काने के आरोप में एक्टिविस्ट दिशा रवि (21) को गिरफ्तार कर लिया गया है। उन्हें दिल्ली पुलिस की साइबर सेल के दल ने शनिवार को बेंगलुरू से गिरफ्तार किया। उसके बाद दिल्ली की पटियाला हाउस कोर्ट ने उन्हें पांच दिन की पुलिस रिमांड पर भेज दिया। कोर्ट में पुलिस ने दलील दी कि यह (प्रदर्शनों को हवा देना) भारत सरकार के खिलाफ बड़ी साजिश का हिस्सा है। वहीं दिशा दूसरी तरफ कोर्ट में रो पड़ीं। उनका कहना था कि उन्होंने टूलकिट तैयार नहीं की। केवल तीन फरवरी को इसमें उसने दो लाइन एडिट किए थे। पुलिस ने टूलकिट मामले में चार फरवरी को अज्ञात लोगों पर साजिश, राजद्रोह व अन्य आरोप में आईपीसी की धाराआंs के तहत केस दर्ज किया है। पुलिस सूत्रों के मुताबिक दिशा रवि ने अपने कुछ साथियों के साथ मिलकर इसे एडिट किया व डाक्यूमेंट (टूलकिट) को वायरल करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। टूलकिट में 26 जनवरी हिंसा को लेकर साइबर स्ट्राइक की भी बात की गई थी। इस टूलकिट केस की दिशा रवि एक कड़ी है। बता दें कि टूलकिट क्या है? टूलकिट ऐसा डॉक्यूमेंट होता है जिसमें यह बताया जाता है कि अगर कोई आंदोलन करना हो तो उस दौरान सोशल मीडिया पर समर्थन कैसे जुटाया जाए। कौन-कौन से हैशटैग का इस्तेमाल किया जाए, ताकि वह ट्रेंड करने लगे। अगर प्रदर्शन के दौरान कोई मुश्किल आती है तो उसमें और कहां संपर्क करना है। इस दौरान क्या करें और क्या न करें, किन बातों का ध्यान रखते हुए एहतियात बरतें। दुनियाभर में पहचान बना चुकी स्वीडन की पर्यावरण कार्यकर्ता ग्रेटा थनबर्ग ने 4 फरवरी को यह टूलकिट ट्विटर पर साझा की थी यानी दिशा के मुताबिक जब उन्होंने टूलकिट को संपादित किया, उसके बाद इसमें किसान आंदोलन को देश-विदेश के हर कोने में समर्थन देने के सुझाव हैं। इसमें दावा किया गया कि भारत में किसानों की स्थिति बहुत खराब है। लिहाजा जो जैसे मदद कर सकता है करे। रैली, प्रदर्शन, धरना, पोस्टर, तन-मन-धन जैसे भी हो। पुलिस का दावा है कि टूलकिट में दर्ज दिशा-निर्देशों के मुताबिक गणतंत्र दिवस पर हिंसा हुई। ट्रैक्टर रैली में भीड़ को गुमराह किया गया। टूलकिट में एक जगह पर लिखा है कि 23 जनवरी के बाद ट्वीट के जरिए तूफान खड़ा करना है। हैशटैग के जरिए डिजिटल हमला करना है। फिर 26 जनवरी को आमने-सामने की कार्रवाई। दिशा-रवि बेंगलुरु के प्रतिष्ठित माउंट कार्मेल की छात्रा हैं। दिशा ने साल 2018 में ग्लोबल क्लाइमेट स्ट्राइक मूवमेंट शुरू करने वाली संस्था एफएफएफ की सह-संस्थापक हैं। fिदशा रवि की ईमानदारी और उनकी प्रतिबद्धता का लेकर उनके साथ काम करने वाले हमेशा उनके बारे में बताते हैं कि वह शांतिपूर्ण तरीके से काम करती हैं। दिशा ने कभी कोई कानून नहीं तोड़ा। हमारे पेड़ बचाओ आंदोलन में उन्होंने भाग लिया। दिशा ने हमेशा पूरी वफादारी से कानूनी ढांचे के भीतर रहकर काम किया है। एक ओर पर्यावरण कार्यकर्ता ने नाम नहीं बताने की शर्त पर कहा कि लोग डरे हुए हैं। इसलिए शांत हो गए हैं। हम एक ऐसे देश में रह रहे हैं, जहां असहमति की आवाज को दबाया जा रहा है। ये काफी निराशाजनक है। ये सभी बच्चे हैं जो पेड़ और पर्यावरण को बचाना चाहते हैं। उन्हें राष्ट्रद्रोही कहना कहां का इंसाफ है? सुप्रीम कोर्ट के प्रतिष्ठित वकील रेबेका जॉन एक सोशल मीfिडया पोस्ट में लिखती हैं। पटियाला कोर्ट में ड्यूटी मजिस्ट्रेट के रिमांड देने के फैसले से बहुत दुखी हूं कि उन्हेंने एक युवा महिला को बिना यह सुनिश्चित किए कि उनका वकील उपलब्ध है कि नहीं, पांच दिन की रिमांड पर पुलिस हिरासत में भेज दिया। अगर सरकार ये मानती है कि कुछ गलत हुआ है तो पहले पुलिस स्टेशन में उससे पूछताछ करती। क्या उन्हें कोर्ट में पेश करने के लिए सीधे दिल्ली ले जाना चाहिए था? टूलकिट और कुछ नहीं बल्कि एक दस्तावेज है। इसका सभी इस्तेमाल करते हैं। इसका इस्तेमाल कोई भी कर सकता है।

सैनिकों की वापसी नहीं ये सरेंडर है

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता एवं पूर्व रक्षामंत्री एके एंटनी ने रविवार को आरोप लगाया कि गलवान घाटी एवं पैंगोंग झील इलाके से सैनिकों को पीछे ले जाना एवं बफर जोन बनाना भारत के अधिकारों का आत्मसमर्पण है। एंटनी ने संवाददाता सम्मेलन में यह भी कहा कि जब भारत सीमा पर कई चुनौतियों का सामना कर रहा है और दो मोर्चों पर युद्ध जैसी स्थिति बनी हुई है, ऐसे में रक्षा बजट में मामूली एवं अपर्याप्त वृद्धि देश के साथ विश्वासघात है। सरकार ने शुक्रवार को जोर देकर कहा था कि चीन के साथ सैनिकों को पूर्वी लद्दाख के पैंगोंग झील इलाके से पीछे हटने को लेकर इस समझौते में भारत किसी इलाके को लेकर कहीं भी झुका नहीं है। एंटनी ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सरकार राष्ट्रीय सुरक्षा को ऐसे समय में उचित प्राथमिकता नहीं दे रही है जब की चीन आक्रामक हो रहा है और पाकिस्तान की ओर से आतंकवाद को प्रोत्साहन जारी है। उन्होंने कहा कि सैनिकों को पीछे हटना अच्छा है क्योंकि इससे तनाव कम होगा लेकिन इसे राष्ट्रीय सुरक्षा की कीमत पर नहीं किया जाना चाहिए। एंटनी ने आरोप लगाया कि गलवान घाटी एवं पैंगोंग झील से पीछे हटना आत्मसमर्पण है। उन्होंने कहा कि यह आत्मसमर्पण करने जैसा है क्योंकि पारंपरिक रूप से इन इलाकें को भारत नियंत्रित करता रहा है। एंटनी ने आरोप लगाया, देश अपने अधिकारें का समर्पण कर रहा है। उन्होंने रेखांकित किया कि वर्ष 1962 में भी गलवान घाटी के भारतीय क्षेत्र होने पर विवाद था। पूर्व रक्षामंत्री ने कहा, सैनिकों को पीछे लाना और बफर जोन बनाना अपनी जमीन का आत्मसमर्पण करना है। उन्होंने चेतावनी देते हुए कहा कि सरकार सैनिकों की इस वापसी और बफर जोन बनाने के महत्व को भी समझ रही है। उन्होंने बताया कि चीन किसी भी समय पाकिस्तान की सियाचिन में मदद करने के लिए खुराफात कर सकता है। उन्हेंने कहा कि हम इस सरकार से जानना चाहते हैं कि पूरे भारत-चीन सीमा पर वर्ष 2020 के मध्य अप्रैल की जैसी पूर्व की स्थिति आएगी एवं इस संबंध में सरकार की क्या योजना है? उन्होंने कहा कि सरकार को सीमा पर यथास्थिति बहाल करने में देश और जनता को भरोसे में लेना चाहिए। उन्होंने कहा कि सरकार को ऐसा फैसला लेने से पहले सभी राजनीतिक पार्टियों के नेताओं से परामर्श करना चाहिए एवं राष्ट्रीय सुरक्षा को ध्यान में रखना चाहिए। एके एंटनी न केवल पूर्व रक्षामंत्री ही रह चुके हैं पर उन लीडरों में शामिल हैं जिन्हें आज भी इज्जत से देखा जाता है। जिनकी बात को गंभीरता से लिया जाता है।

चीन ने बीबीसी का प्रसारण रोका

चीन ने रिपोर्टिंग के दिशा-निर्देशें का उल्लंघन करने के लिए देश में बीबीसी वर्ल्ड न्यूज के प्रसारण पर पाबंदी लगा दी है। चीन के टेलीविजन और रेडियो नियामक ने इस बारे में घोषणा की है। इससे एक सप्ताह पहले ब्रिटेन ने चीन सरकार के नियंत्रण वाले प्रसारक चाइना ग्लोबल टेलीविजन नेटवर्क (सीजीटीएन) के लाइसेंस को रद्द कर दिया था। चीन ने अल्पसंख्यक उईगर के दमन और कोरोना वायरस महामारी पर रिपोर्टिंग के लिए बीबीसी की आलोचना की थी और ब्रिटिश प्रसारक के समक्ष आपत्ति दर्ज कराई थी। बीबीसी ने कहा कि वह चीन सरकार द्वारा उसके प्रसारण पर रोक लगाए जाने से निराश है। चीन के नियामक नेशनल रेडियो एंड टेलीविजन एडमिनिस्ट्रेशन (एनआरटीए) ने विषय वस्तु के नियमों का उल्लंघन करने के कारण बृहस्पतिवार रात को बीबीसी वर्ल्ड न्यूज के प्रसारण पर रोक लगाने की घोषणा की। एनआरटीए ने कहा कि बीबीसी ने चीन से संबंधित अपनी खबरों से रेडियो और टेलीविजन तथा विदेशी उपग्रह चैनल से जुड़े नियंत्रण का सरासर उल्लंघन किया। शिन्हुआ समाचार एजेंसी के मुताबिक एनआरटीए ने एक बयान में कहा कि बीबीसी का कवरेज सच्चाई और निष्पक्षता वाला होना चाहिए था और उसने चीन की राष्ट्रीय सुरक्षा और एकजुटता को नुकसान पहुंचाने का प्रयास किया। -अनिल नरेन्द्र

Wednesday, 17 February 2021

भाजपा का पंजाब में क्या होगा?

किसान आंदोलन के कारण भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का विरोध बहुत से राज्यों में खुलकर हो रहा है। खासकर पंजाब में तो भाजपा नेताओं का बाहर निकलना मुश्किल हो गया है। बीते नौ फरवरी को भाजपा के पंजाब अध्यक्ष अश्विन शर्मा स्थानीय कार्यकर्ताओं से मिलने फिरोजपुर पहुंचे। वहां कोई अप्रिय स्थिति नहीं बने इसके लिए स्थानीय पुलिस को तैनात किया गया था। इसके बावजूद प्रदर्शन करने वालों ने अश्विन शर्मा के खिलाफ जमकर नारे लगाए। शर्मा अपनी कार में बैठकर जब जाने लगे थे कि अज्ञात प्रदर्शनकारियों ने उनकी कार पर हमला बोल दिया। शर्मा वहां से सुरक्षित निकलने में कामयाब जरूर हुए लेकिन उनकी कार को नुकसान हुआ। शर्मा को फाजिल्का जिले के अबोहर शहर में भी ऐसे ही विरोध का सामना करना पड़ा। इससे पहले आठ फरवरी को पूर्व केंद्रीय मंत्री और भाजपा के वरिष्ठ नेता विजय सांपला अपनी पार्टी उम्मीदवारों का प्रचार करने के अभियान पर निकले थे। प्रदर्शनकारियों के एक समूह ने उनकी कार रोककर नारेबाजी शुरू कर दी। पुलिस ने बीच-बचाव करके उन्हें शहर से बाहर निकाला। इससे उनका प्रचार अभियान बाधित हुआ। नवां शहर में भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष अश्विन शर्मा की एक सभा होनी थी। लेकिन सभा शुरू होने से पहले वहां विरोध करने वाले लोग जमा हो गए। पुलिस ने उन्हें रोकने की कोशिश की लेकिन विरोध प्रदर्शन करने वालों ने सभा स्थल तक जाने की सड़क को बंद कर दिया। आखिर में शर्मा को अपनी सभा ही स्थगित करनी पड़ी। भटिंडा में भाजपा उम्मीदवार जतिन कुमार साहिल और मोहन वर्मा के पोस्टर, बैनर इत्यादि को लोगों ने काले रंग से पोत दिया था। दोनों इसके खिलाफ पुलिस के पास अपनी शिकायत लेकर भी गए। पंजाब में स्थानीय निकाय चुनावों के रिजल्ट 17 फरवरी को आ रहे हैं। वहीं दूसरी ओर भाजपा नेताओं को राज्यभर में विरोध प्रदर्शन का सामना करना पड़ा। पार्टी नेता या तो अपने घरों के अंदर रहने को विवश थे या फिर वह अपने अभियान को गुपचुप ढंग से चलाने की कोशिश कर रहे थे क्योंकि उनका विरोध प्रदर्शन करने वाले लोग हर जगह पहुंच रहे थे। दरअसल केंद्र सरकार पिछले साल जून में तीन कृषि कानून का प्रस्ताव अध्यादेश के तौर पर लाई और तब से पंजाब में भाजपा नेताओं को ऐसे ही विरोध प्रदर्शन का सामना करना पड़ रहा है। सरकार ने इन अध्यादेशों को सितम्बर में कानून के तौर पर पारित करा लिया और इसके बाद दिल्ली में किसानों का विरोध प्रदर्शन शुरू हो गया। वहीं दूसरी ओर पंजाब में भाजपा नेताओं के खिलाफ विरोध प्रदर्शन शुरू हो गया। राज्य में 14 फरवरी को स्थानीय निकाय के चुनाव थे। ऐसे में आखिरी दौर के प्रचार में भी वह चाहकर पूरी ताकत नहीं झोंक पाई। इन चुनावों में आठ नगर निगमों और 109 नगर पालिका और नगर पंचायतों के चुनाव और उपचुनाव हुए। पंजाब में किसानों के विरोध प्रदर्शन के बाद में किसी भी स्तर के चुनाव का यह पहला मौका है और इसे राज्य में सक्रिय सभी राजनीतिक दलों के लिए बेहद महत्वपूर्ण माना जा रहा है। इन चुनावों के बाद अगले साल की शुरुआत में ही राज्य विधानसभा के चुनाव होने हैं। मौजूदा समय में कैप्टन अमरिन्दर सिंह के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार है। विपक्षी पार्टी के आरोपों को बहुत ज्यादा महत्व नहीं देते हुए मुख्यमंत्री अमरिन्दर सिंह ने कहाöतथाकथित शहरी पार्टी निकाय चुनावों में आधे से ज्यादा सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़े नहीं कर पाई। कल्पना कीजिए कि ग्रामीण पंजाब में इनकी क्या स्थिति होगी? जिसे यह लोग कांग्रेसी कह रहे हैं यह आम किसानों का गुस्सा है। यह किसान विरोधी अहंकारी रवैये के खिलाफ है।

रावण के देश में पेट्रोल सस्ता तो राम के देश में महंगा क्यों?

भारत सरकार के पेट्रोलियम मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने राज्यसभा में तेल की बढ़ती कीमतों पर सवालों के जवाब दिए, धर्मेंद्र प्रधान ने तेल की कीमतों की पड़ोसी देशों से तुलना पर कहा कि ऐसा कहना सही नहीं होगा कि तेल की कीमतें अभी सबसे ज्यादा हैं। समाजवादी पार्टी के सांसद विशम्भर प्रसाद निषाद ने मंत्री से राज्यसभा में सवाल पूछा था कि सीता माता की धरती नेपाल में पेट्रोलियम पदार्थ भारत से सस्ते हैं? रावण के देश श्रीलंका में भी पेट्रोल-डीजल की भारत से कम कीमत है, तो फिर राम के देश में सरकार पेट्रोल-डीजल के दाम कब कम करेगी? मंत्री जी ने कहाöऐसा कहना ठीक नहीं है कि ईंधन तेल की कीमतें अभी सबसे ज्यादा हैं। उन्होंने कहा कि देश में पेट्रोल और डीजल की कीमतें एक अंतर्राष्ट्रीय मूल्य प्रणाली के तहत नियंत्रित होती हैं और यह मिथ्या अभियान चलाने का प्रयास किया जा रहा है कि ईंधन की कीमतें अब तक के उच्च स्तर पर हैं, पेट्रोल-डीजल के रोज बढ़ रहे दामों ने आम आदमी की जेब और दिल में तो आग लगाई ही है, विपक्षी दलों को भी भाजपा पर वार करने का मौका दे दिया है। आज दिल्ली में पेट्रोल 89.29 रुपए प्रति लीटर तो डीजल 79.70 रुपए प्रति लीटर पहुंच गया है। लगभग हर शहर में दोनों के दाम ऑल टाइम ऊंचाई पर हैं। घरेलू बाजार में लगातार चौथे दिन ईंधनों में आग लगी हुई है। नया साल पेट्रोलियम पदार्थों व ईंधनों के लिए अच्छा नहीं रहा है। जनवरी और फरवरी में महज 16 दिन पेट्रोल महंगा हुआ। लेकिन इतने दिनों में यह 04.33 रुपए महंगा हो गया। मुंबई में पेट्रोल 94 रुपए पार चला गया है जो मेट्रो शहरों में सबसे ज्यादा है। बीते साल की दूसरी छमाही में भी पेट्रोल के दाम खूब बढ़े थे। 10 महीने में इसके दाम में करीब 10 रुपए प्रति लीटर की बढ़ोत्तरी हो चुकी है। आम आदमी पार्टी (आप) और कांग्रेस नेताओं का आरोप है कि आम लोगों की बजाय मोदी सरकार सिर्फ पूंजीपतियों के लिए काम कर रही है। पेट्रोलियम पदार्थों के दाम बढ़ने का असर ट्रांसपोर्ट से लेकर उद्योगों तक पड़ता है। इससे बाजार में हर वस्तु की कीमत बढ़ती है। दूसरी तरफ भाजपा नेताओं का कहना है कि अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के रेट बढ़ने का असर है। फिर भी पिछली सरकारों के मुकाबले पेट्रोल-डीजल के दामों में कम इजाफा हुआ है। लगातार बढ़ रहे डीजल के दामों में ट्रांसपोर्ट बिजनेस घाटे में चला गया है। ट्रांसपोर्टर का 60 प्रतिशत खर्च डीजल का है। मार्जन काफी कम है और कॉम्पीटीशन में काम कर रहे हैं। भाड़ा भी नहीं बढ़ा है। सरकार नहीं चेती तो गाड़ियां खड़ी करने पर मजबूर होंगे ट्रांसपोर्टर और अपने कागजों को सरेंडर कर देंगे। गाड़ियों का लोन होता है, किस्त तक नहीं चुका पा रहे हैं। कोविड-19 की वजह से धंधा वैसे ही चौपट हो गया है और अब डीजल प्राइस की मार झेलनी पड़ रही है। जब रोजमर्रा की वस्तुएं महंगी हो जाएंगी तो कमजोर तबके की पहले से टूटी कमर और भी झुक जाएगी।

एक्ट्रेस ने 85 से ज्यादा पॉर्न फिल्में बेचीं

पॉर्न फिल्में बनाने के आरोप में मुंबई क्राइम ब्रांच ने गत सप्ताह को मॉडल, अभिनेत्री गहना वरिष्ठ को गिरफ्तार किया। उससे पूछताछ में कुछ सनसनीखेज जानकारी सामने आई है। क्राइम ब्रांच के एक अधिकारी ने कहा कि गहना वरिष्ठ साउथ की फिल्मों में एक नामी अभिनेता की गर्लफ्रेंड भी रही हैं। उस पर 85 से अधिक पॉर्न फिल्मों को पॉर्न वेबसाइट्स पर अपलोड करने का आरोप है। इनमें कुछ नामी मॉडल्स को भी शूट किया गया था। शूटिंग मुंबई में होती थी पर अत्याधुनिक तकनीक से विदेश आईपी एड्रेस और सर्वर का इस्तेमाल होता था। शूटिंग के लिए 20 और 25 साल के बीच की उम्र की लड़कियों का ही चुनाव किया जाता था। कुछ बड़ी मॉडल्स को शॉर्ट फिल्मों की शूटिंग के लिए बुलाया गया था, उनसे एग्रीमेंट भी कराया गया, लेकिन कुछ मिनट की शूटिंग के बाद उनसे पॉर्न सीन करवाए गए। न करने पर उन्हें कानूनन नोटिस भेजने की धमकी दी जाती थी। ऐसा पता चला है कि इन पॉर्न फिल्मों के लिए गहना ने खुद का प्रॉडक्शन हाउस भी बनाया हुआ था। पॉर्न फिल्मों की शूटिंग व कलाकारों की फीस व अन्य खर्चों पर करीब तीन लाख रुपए खर्च आता था। इसमें लड़कियों को करीब 30 हजार रुपए दिए जाते थे। कोरोना काल में ऐसी फिल्मों की मांग बढ़ गई थी। -अनिल नरेन्द्र

Sunday, 14 February 2021

कांग्रेस की निगाहें चार राज्यों के जाटलैंड पर

किसान आंदोलन से उपजे आक्रोश की लहर पर सवार होकर कांग्रेस ने उत्तरी भारत के चार प्रमुख राज्यों के जाट समुदाय को अपने पक्ष में करने का अभियान छेड़ दिया है। कांग्रेस की राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गांधी बुधवार को उत्तर प्रदेश में सहारनपुर के चिकलाना में आयोजित किसानों की महापंचायत में शामिल हुईं। यह वही क्षेत्र है जहां कांग्रेस ने अपना जनाधार खो दिया था। वहीं दूसरी तरफ राहुल गांधी भी राजस्थान के जाट बहुल इलाकों में रैलियों की शुरुआत कर रहे हैं। श्रीगंगानगर और हनुमानगढ़ में उनकी दो रैलियां 12 और 13 फरवरी को आयोजित हुईं। हरियाणा में कांग्रेस अपने परंपरागत जाट वोट को एकजुट रखने के लिए पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा को मैदान में उतारे हुए हैं। पंजाब में भी पार्टी की यही रणनीति है। जाट नेता राकेश टिकैत के पुलिस कार्रवाई के दौरान रोने की घटना से पूरा जाट समुदाय आक्रोश में है। ऐसे में अजीत सिंह और उनके बेटे जयंत चौधरी के राष्ट्रीय लोकदल और कांग्रेस ने उन पर सियासी दांव लगाया है। जयंत चौधरी ने भी बुधवार को बुलंदशहर में किसानों की महापंचायत में भाग लिया। कांग्रेस की नजर पश्चिमी उत्तर प्रदेश की जाट बहुल सीटों पर है। यहां 12 प्रतिशत जाट हैं। इस क्षेत्र की 44 विधानसभा सीटों में मजबूत मौजूदगी है। भाजपा ने 2017 में चुनाव में इनमें से 37 सीटें जीती थीं। अगर यह वोट शेयर शिफ्ट होता है और कांग्रेस-रालोद गठबंधन के साथ जाता है तो अल्पसंख्यक वोट के साथ यह अपराजेय समीकरण बन सकता है। दूसरी ओर जाट वोटों के खिसकने से भाजपा को भारी नुकसान हो सकता है। पश्चिमी यूपी में उसे 43.6 प्रतिशत वोट मिले थे। प्रदेश के कुल 41 प्रतिशत वोट से यह दो प्रतिशत ज्यादा था। एक चुनाव सर्वे के मुताबिक पिछले आम चुनाव में 70-85 प्रतिशत जाटों का वोट भाजपा को मिला था। वहीं 2014 लोकसभा चुनाव से पहले 20 प्रतिशत से भी कम वोट जाटों ने भाजपा को दिया था। राजस्थान में भी नौ प्रतिशत वोटों के साथ जाट समुदाय सबसे बड़ा जातीय गुट है। राज्य में 200 सदस्यों की विधानसभा में कम से कम 37 सीटें जाट बहुल हैं। मारवाड़ और शेखावटी क्षेत्र की 31 सीटों पर 25 जाट नेता ही जीतकर आए। पार्टी विधानसभा के साथ लोकसभा में भी जाट वोट जोड़ना चाहती है।

ट्विटर और मोदी सरकार में टकराव

केंद्रीय इलेक्ट्रॉनिक्स, सूचना प्रौद्योगिक और कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद के अनुसार भारत में सोशल मीडिया कंपनियों ने दोहरे मापदंड अपना रखे हैं। उनका कहना है कि जब अमेरिका के कैपिटल हिल पर हिंसा होती है तो सोशल मीडिया वहां के राष्ट्रपति तक के अकाउंट पर प्रतिबंध लगा देती है। गुरुवार को राज्यसभा में रविशंकर प्रसाद ने कहाöकैपिटल हिल की घटना के बाद ट्विटर की ओर से की गई कार्रवाई का समर्थन करते हैं। आश्चर्य है कि लाल किले की हिंसा पर ट्विटर का स्टैंड अलग है। राज्यसभा में प्रश्नकाल के दौरान रविशंकर प्रसाद ने कहा कि अगर सोशल मीडिया को गलत जानकारी और झूठी खबरें फैलाने के लिए इस्तेमाल किया जाएगा तो सरकार कानूनी कार्रवाई जरूर करेगी। गणतंत्र दिवस के दिन दिल्ली की सीमाओं पर आंदोलन कर रहे किसानों ने ट्रैक्टर परेड का आयोजन किया था, जिसके दौरान राजधानी के अलग-अलग हिस्सों में हिंसक वारदातें देखने को मिलीं। लेकिन सबसे ज्यादा चर्चा लाल किले पर हुई हिंसा की हो रही है जिसके बाद सरकार ने ट्विटर को लगभग 1100 अकाउंट को ब्लॉक करने का निर्देश दिया था। सरकार का दावा है कि इनमें से ज्यादातर अकाउंट खालिस्तानी समर्थकों के हैं या फिर कुछ ऐसे लोगों के भी हैं जो कई महीनों से चल रहे किसान आंदोलन या फिर 26 जनवरी को हुई हिंसा को लेकर दुप्रचार कर रहे हैं और गलत खबरें और सूचनाएं प्रसारित कर रहे हैं। सरकार के निर्देश के बाद ट्विटर ने कुछ अकाउंट ब्लॉक तो कर दिए, मगर बाद में कुछ अकाउंट फिर से बहाल कर दिए। इस बारे में ट्विटर की ओर से बयान जारी कर कहा गया है कि उसने मीडिया से जुड़े लोग, पत्रकार, सामाजिक कार्यकर्ताओं और राजनेताओं के अकाउंट्स पर कोई कार्रवाई नहीं की है। बयान के मुताबिक हम अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की वकालत करते रहेंगे और हम भारतीय कानून के अनुसार इसका रास्ता भी निकाल रहे हैं। लेकिन सूचना मंत्री रविशंकर प्रसाद का कहना हैöआप जब एक प्लेटफार्म बनाते हैं तो आप स्वयं एक कानून बनाते हैं जिसमें यह तय किया जा सके कि क्या सही है और क्या गलत। अगर इसमें भारत के संविधान और कानून की कोई जगह नहीं होगी तो यह नहीं चलेगा और कार्रवाई होगी। कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने हाल ही में एक लेख में कहा है कि आजकल विदेशों के समाचार पत्र भारत में आंदोलन कर रहे किसानों पर ज्यादती, इंटरनेट पर पाबंदी और पत्रकारों के खिलाफ राजद्रोह के मामलों से भरे पड़े हैं। उनका कहना है कि इससे भी तो देश की छवि खराब हो रही है। ट्विटर के बयान पर प्रतिक्रिया देते हुए बेंगलुरु से भाजपा सांसद तेजस्वी सूर्या कहते हैं कि ट्विटर अपनी सुविधा अनुसार चुन रहा है कि कौन-सा कानून वो मानेगा और कौन-सा नहीं। इस ताजा विवाद को लेकर सोशल मीडिया पर भी काफी प्रतिक्रिया देखने को मिल रही है। लोग इस बात को लेकर सरकार के पक्ष में और विरोध में पोस्ट कर रहे हैं। साइबर कानून विशेषज्ञ कहते हैं कि ट्विटर के पास कोई चारा नहीं है। उसे भारत के कानून के हिसाब से ही चलना पड़ेगा। वो कहते हैं कि अमेरिका में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के खिलाफ ट्विटर ने खुद ही कार्रवाई की जबकि भारत में सरकार को आदेश जारी करना पड़ा। लेकिन ट्विटर ने क्या कियाöपहले अकाउंट सस्पैंड किए फिर उनकी बहाली कर दी। वहीं कांग्रेस के नेता और पूर्व क्रिकेटर नवजोत सिंह सिद्धू ने विवाद पर ट्विटर सेंसरशिप के हैशटैक के साथ लिखाöक्या लिखूं, कलम जकड़ में है, कैसे लिखूं, हाथ तानाशाह की पकड़ में है। विपक्ष का आरोप है कि सरकार जो कर रही है वह सिर्फ अपनी आलोचना को रोकने के लिए कर रही है, आलोचकों को टारगेट किया जा रहा है ताकि सरकार के खिलाफ कुछ न बोल सकें।

1.70 करोड़ रुपए का लहंगा

दिल्ली के फोरेन पोस्ट ऑफिस (एफपीओ) से ड्रग्स का धंधा करने वाले कुछ माफिया ड्रग्स की आवाजाही को अंजाम देने की कोशिश कर रहे हैं। इसी सिलसिले में आईटीओ इलाके (हमारे कार्यालय के सामने) में स्थित ऑस्ट्रेलिया के लिए बुक किए लहंगों के एक पार्सल को पकड़ा गया है। जांच करने पर इन लहगों में गोटे और लेस के नीचे एक करोड़ 70 लाख रुपए की पार्टी ड्रग्स भरी हुई थी। एयर कार्गो कस्टम एक्सपोर्ट कमिश्नरेट की कमिश्नर काजल सिंह ने बताया कि यह सात लहंगे थे। यह नोएडा पोस्ट ऑफिस से दिल्ली एफपीओ भेजे गए थे। बुक करने वाले के बारे में जानकारी ली जा रही है। मामले में बड़े सिंडिकेट का खुलासा हो सकता है। इसके तार राजस्थान से जुड़े लग रहे हैं। पार्सल राजस्थान से नोएडा एड्रेस पर ऑस्ट्रेलिया भेजे जाने के लिए बुक कराया गया था। अब शक है कि कुछ स्मगलर बड़े स्तर फोरेन पोस्ट ऑफिस के माध्यम से भी समगलिंग कर रहे हैं। ड्रग्स के एक और मामले में भी चेन्नई से कतर भेजी जा रही पांच करोड़ रुपए से अधिक की हशीश जब्त की गई है। इस सिंडिकेट में एक्सपोर्टर और कस्टम हाउस एजेंट (सीएचए) की मिलीभगत की बात भी सामने आ रही है। स्मगलर नए-नए तरीके निकालने में लगे हैं। अधिकारियों को और चौकस होने की जरूरत है। -अनिल नरेन्द्र

Saturday, 13 February 2021

एलएसी पर टेंशन कम करने की शुरुआत

पूर्वी लद्दाख में एलएसी पर तनाव घटाने की दिशा में भारत और चीन ने अहम कदम उठाया। सेना के सूत्रों ने बताया कि दोनों देशों की ओर से तैनात किए गए टैंकों में कुछ कमी की गई है। इससे एलएसी (वास्तविक नियंत्रण रेखा) पर जारी टेंशन में कमी आएगी, क्योंकि दोनों देशों के सैनिक एक-दूसरे के टैंकों की रेंज में थे। इससे पहले चीन ने कहा कि पैंगोंग झील के दक्षिणी और उत्तरी किनारे में चीन और भारत के फ्रंटलाइन पर तैनात सैनिकों को पीछे करने की प्रक्रिया शुरू हो गई है। चीन के अखबार ग्लोबल टाइम्स ने दावा किया है कि पैंगोंग झील के दक्षिणी और उत्तरी किनारे से भारतीय और चीनी सैनिक पीछे हट रहे हैं? बेशक पूर्वी लद्दाख में लाइन ऑफ एक्चुयल कंट्रोल (एलएसी) पर भारत और चीनी सैनिकों के बीच पीछे हटने की प्रक्रिया शुरू हो गई है लेकिन यह अभी बस शुरुआत है और गतिरोध पूरी तरह खत्म होने में लंबा वक्त लगेगा। फ्रंटलाइन पर अभी भी सैनिक तैनात हैं और पैंगोंग झील के दक्षिणी किनारे अहम चोटियों पर भारतीय सैनिक अभी भी मौजूद हैं। बता दें कि चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता का कहना है कि बुधवार को चीन और भारत के फ्रंटलाइन पर तैनात सैनिकों के बीच पैंगोंग झील के दक्षिण और उत्तरी किनारे में डिसगेंजमेंट प्रक्रिया शुरू हो गई है। हालांकि भारतीय सूत्रों के मुताबिक दोनों तरफ तैनात किए गए टैंकों में ही कमी की गई है लेकिन फ्रंटलाइन पर सैनिक अभी भी तैनात हैं। सूत्रों के मुताबिक भारत-चीन के बीच कोर कमांडरों की मीटिंग में इस पर काफी हद तक सहमति बन गई थी कि पैंगोंग झील के उत्तरी किनारे यानि फिंगर एरिया में चीनी सैनिक फिंगर-8 से पीछे चले जाएंगे और भारतीय सैनिकों को फिंगर-3 से पीछे जाना होगा। करीब 8-10 महीने तक फिंगर-4 से फिंगर-8 का एरिया नो पेट्रोलिंग जोन रहेगा। सूत्रों के मुताबिक चीन की तरफ से कहा गया कि चीनी सैनिक भले ही फिंगर-8 के पीछे चले जाएंगे लेकिन वह फिंगर-4 तक पेट्रोलिंग करते रहेंगे और पेट्रोलिंग का अधिकार नहीं छोड़ेंगे। पेट्रोलिंग को लेकर क्या तय हुआ है, इस पर अभी कोई खुलकर बात नहीं कर रहा है। सूत्रों के मुताबिक अभी पीछे हटने की प्रक्रिया शुरू हुई है और जैसे-जैसे यह आगे बढ़ेगी तब कई चीजें साफ होंगी। हमें इन चीनियों पर कोई यकीन नहीं है पर अगर यह वास्तव में ही पीछे हटने पर सहमत हो गए हैं तो यह भारत की बहुत बड़ी उपलब्धि होगी। महीनों से चला आ रहा गतिरोध धीरे-धीरे संयम में टूट रहा है। यह अच्छी बात है। उम्मीद है कि यह प्रक्रिया ईमानदारी से आगे बढ़ाएगा चीन।

महुआ मोईना के खिलाफ विशेषाधिकार नोटिस?

लोकसभा में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव पर चर्चा के दौरान तृणमूल कांग्रेस की फायर ब्रांड सांसद महुआ मोईना द्वारा जबरदस्त भाषण में उन्होंने मोदी सरकार को धो कर रख दिया। यह भाषण इतना तीखा था कि लोकसभा में मौजूद सत्तारूढ़ पार्टी के सांसद तिलमिला उठे। अपने भाषण के दौरान महुआ मोईना ने सुप्रीम कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश को लेकर भी टिप्पणी की थी। इसका भाजपा सदस्यों और सरकार की ओर से विरोध किया गया। संसदीय कार्यमंत्री (राज्य) अर्जुन मेघवाल ने उनकी टिप्पणी पर आपत्ति जताई और कहा कि इस प्रकार का उल्लेख नहीं किया जा सकता। इस पर पीठासीन, सभापति एनके प्रेमचंद्रन ने कहा कि अगर महुआ मोईना की बात में कुछ आपत्तिजनक पाया जाता है तो उसे रिकॉर्ड में नहीं रखा जाएगा। पर बात यहीं खत्म नहीं हुई। संसदीय मामलों के मंत्री प्रह्लाद जोशी ने कहा कि टिप्पणी को लेकर महुआ के खिलाफ विशेषाधिकार प्रस्ताव लाया जा सकता है। लोकसभा में सोमवार को राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव पर चर्चा के दौरान तृणमूल कांग्रेस की सांसद महुआ मोईना ने परोक्ष रूप से बाकी बातों के साथ-साथ पूर्व मुख्य न्यायाधीश को लेकर टिप्पणी की थी, जिस पर सदन में काफी हंगामा हुआ था। सरकार के मंत्रियों व भाजपा सांसदों ने उनके खिलाफ कार्रवाई करने की मांग भी की थी। बाद में सरकार के संकेत भी कार्रवाई के थे। लेकिन मंगलवार को यह मामला ठंडा दिखा। सरकार की तरफ से फिलहाल किसी तरह की कार्रवाई के संकेत नहीं मिले हैं। सूत्रों का कहना है कि सरकार संसदीय कानूनों के अनुसार ही आगे बढ़ेगी। पश्चिम बंगाल के आगामी विधानसभा चुनाव में नफा-नुकसान का भी आकलन किया जा रहा है। भाजपा नहीं चाहती कि किसी तरह की कार्रवाई से तृणमूल कांग्रेस को ऐसे नाजुक समय में कोई सियासी फायदा हो। महुआ मोईना का भाषण यूट्यूब पर मौजूद है।

पाक शह पर चली न्यूयॉर्क असेंबली

न्यूयॉर्क असेंबली में हर साल पांच फरवरी को कश्मीर-अमेरिका दिवस मनाने का प्रस्ताव पास किया गया है। न्यूयॉर्क स्टेट गवर्नर एंड्रयू क्योमो ने स्टेट असेंबली में हर पांच फरवरी को जम्मू-अमेरिका दिवस मनाने का प्रस्ताव रखा था, जिसे पास कर दिया गया है। बता दें कि पांच फरवरी को पाकिस्तान भी कश्मीर दिवस मनाता है और जैसे ही न्यूयॉर्क स्टेट असेंबली में कश्मीर-अमेरिका दिवस मनाने का प्रस्ताव पास किया गया ठीक वैसे ही न्यूयॉर्क स्थित पाकिस्तानी राजदूत ने ट्वीट करते हुए कहा है कि प्रस्ताव पास होने के पीछे पाकिस्तान का हाथ है। इस प्रस्ताव को असेंबली के सदस्य नादर सायेघ और 12 अन्य सदस्यों ने प्रायोजित किया है। प्रस्ताव में कहा गया है कि कश्मीरी समुदाय ने हर कठिनाई को पार किया है, दृढ़ता का परिचय दिया है और अपने आपको न्यूयॉर्क प्रवासी समुदायों के एक स्तम्भ के तौर पर स्थापित किया है। इसमें कहा गया है कि न्यूयॉर्क राज्य विविध सांस्कृतिक, जातीय एवं धार्मिक पहचानों को मान्यता देकर सभी कश्मीरी लोगों की धार्मिक, आवागमन एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता समेत मानवाधिकारों का समर्थन करने के लिए प्रयासरत है। वाशिंगटन स्थित भारतीय दूतावास के एक प्रवक्ता ने इस प्रस्ताव पर टिप्पणी की कि हमने कश्मीर अमेरिका दिवस संबंधी न्यूयॉर्क असेंबली का प्रस्ताव देखा है। अमेरिका की तरह भारत भी एक जीवंत लोकतांत्रिक देश है और 1.35 अरब लोगों का बहुलवादी लोकाचार गर्व की बात है। उन्होंने कहा कि भारत जम्मू-कश्मीर समेत अपने समृद्ध एवं सांस्कृतिक ताने-बाने और अपनी विविधता का उत्सव मनाता है। जम्मू-कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है, जिसे अलग नहीं किया जा सकता। हम लोगों को विभाजित करने के लिए जम्मू-कश्मीर के समृद्ध एवं सामाजिक ताने-बाने को गलत तरीके से दिखाने की निहित स्वार्थों की कोशिश को लेकर चिंता व्यक्त करते हैं। प्रवक्ता ने प्रस्ताव संबंधी प्रश्न का उत्तर देते हुए कहा कि हम भारत-अमेरिका साझेदारी और विविधता भरे भारतीय समुदाय से जुड़े सभी मामलों पर न्यूयॉर्क स्टेट में निर्वाचित प्रतिनिधियों से संवाद करेंगे। यह प्रस्ताव तीन फरवरी को न्यूयॉर्क असेंबली में पारित किया गया था, जिसमें वुयोमो से पांच फरवरी, 2021 को न्यूयॉर्क राज्य में कश्मीर अमेरिका दिवस घोषित करने का अनुरोध किया गया है। न्यूयॉर्क में पाकिस्तान के महावाणिज्य दूतावास ने इस प्रस्ताव को पारित कराने के लिए सायेघ और द अमेरिकन पाकिस्तानी एडवोकेसी ग्रुप की सराहना की। -अनिल नरेन्द्र

Thursday, 11 February 2021

यह किसानों की पूंजीपतियों से आजादी की लड़ाई है

केन्द्र सरकार के तीन कृषि कानूनों के खिलाफ बहादुरगढ़, दिल्ली बार्डर पर स्थित टिकरी में धरने में बैठे एक और किसान ने रविवार को फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली। पुलिस ने बताया कि किसान ने एक सुसाइड नोट छोड़ा है, जिसमें केन्द्र सरकार के खराब रवैये से परेशान होने की बात लिखी गई है। उन्होंने बताया कि मृतक की पहचान हरियाणा के जींद जिले के सिंगवाल के निवासी 52 वर्षीय कर्मवीर सिंगवाल के रूप में की गई है। उन्होंने बताया कि बीती रात ही वह अपने गांव से टिकरी बार्डर पहुंचा था। पुलिस ने बताया कि कर्मवीर ने रविवार को बहादुरगढ़ के बाईपास स्थित नए बस स्टैंड के पास एक पेड़ पर प्लास्टिक की रस्सी का फंदा लगाकर जान दे दी। बीकेयू नेता राकेश fिटकैत रविवार को भिवानी के कितलाना में संयुक्त मोर्चा की ओर से आयोजित किसान रैली में पहुंचे। इस मौके पर टिकैत ने कहा कि कृषि कानूनों को रद्द न होने पर अनाज को रुपए की तरह से संभाल कर तिजोरी में रखना पड़ेगा। उन्होंने कहा कि जब तक तीनें कृषि कानून वापस नहीं हो जाते तब तक हमारी घर वापसी नहीं होगी। यह किसानों की पूंजीपूतियों से आजादी की लड़ाई है। टिकैत ने कहा कि कुछ नेताओं ने किसानों को सिख और गैर-सिख में बांटने की कोशिश की। लेकिन वे अपने मंसूबों में कामयाब नहीं हो पाए। अब हरियाणा और पंजाब के लोग संगठित हो गए है। खास सिस्टम मजबूत है और आज इसकी जरूरत भी है। टिकैत ने कहा कि तीनों कानून वापस लिए जाएं और एमएसपी पर कानून बनाया जाए और गिरफ्तार किसानों को रिहा किया जाए। जब तक सरकार इन तीनों कानूनों को वापस नहीं लेती तब तक ये आंदोलन जारी रहेगा। उन्होंने कहा यह जन आंदोलन है। यह फेल (नाकाम)। नहीं होगा। टिकैत ने दावा किया कि नए कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलन मजबूत होता जा रहा है। कई खाप नेता महापंचायत में मौजूद थे। दादरी से निर्दलीय विधायक और सांगवान खाप के प्रमुख सोमवीर सांगवान भी कार्यक्रम में मौजूद थे। उन्होंने पिछले साल दिसंबर में राज्य सरकार से समर्थन वापस ले लिया था। उन्होंने राज्य सरकार को किसान विरोधी करार दिया था। किसान संगठनों के बीच एकजुटता दिखाते हुए टिकैत ने कहा, मंच और पंच नहीं बदलेंगे। टिकैत ने एक बार फिर से पंजाब बीकेयू नेता बलबीर सिंह राजेवाल की सराहना की। उन्हेंने कहा कि राजेवाल हमारे बड़े नेता हैं। हम यह लड़ाई मजबूती से लड़ेंगे। किसान संगठनों के इरादे पक्के लगते हैं। वह आरपार की लड़ाई लड़ने के मूड़ में हैं। हम फिर दोहराते हैं कि सरकार को इन तीनों कानूनों को स्थगित कर देना चाहिए और इन किसानों की मांगों को (जो उन्हें सही लगती हैं) नए कानून में शामिल करके पारित करें। किसान मानने वाले नहीं हैं। यह बहुत लंबी लड़ाई लड़ने के मूड़ में हैं। सरकार को अविलंब कोई हल निकालना होगा। यह सरकार के हित में भी है, देश हित में भी और किसानों के हित में भी है।

हस्तियों के ट्वीट की जांच करेगी महाराष्ट्र सरकार

महाराष्ट्र के गृह मंत्री अनिल देशमुख ने भारत रत्न लता मंगेशकर, सचिन तेंदुलकर के साथ ही अक्षय कुमार समेत मशहूर हस्तियों की ओर से किसानों के विरोध प्रदर्शन के संबंध में किए गए ट्वीट की जांच के आदेश दिए हैं। देशमुख ने इसे गंभीर बताते हुए खुफिया विभाग को ट्वीट की पृष्ठभूमि की जांच करने का आदेश दिया। बताया गया कि इन ट्वीट के कटेंट एक जैसे हैं और एक ही समय पोस्ट किए गए हैं जिसे लेकर शक जाहिर किया गया है और इसकी जांच कराने को कहा गया है। महाराष्ट्र कांग्रेस के प्रवक्ता सचिन सावंत और अन्य कांग्रेस नेता ने किसान आंदोलन पर पॉप सिंगर रिहाना के ट्वीट के जवाब में कई हस्तियों के ट्वीट की शिकायत महाराष्ट्र की उद्धव ठाकरे सरकार से की थी। उन्होंने आरोप लगाया है कि इसमें कुछ शब्द ऐसे हैं जो शक पैदा करते हैं। सरकार अब इन हस्तियों के ट्वीट की जांच करके इन निष्कर्ष पर पहुंचने की कोशिश करेगी कि क्या इन सितारों ने किसी दबाव में आकर ये ट्वीट किए थे या नहीं? कांग्रेस नेताओं ने शंका जाहिर करते हुए शिकायत की है कि हस्तियों की ओर से केन्द्र की भाजपा की अगुवाई वाली सरकार के समर्थन में दबाव में आकर ट्वीट किए गए हो सकते हैं। कांग्रेस नेता सचिन सावंत ने कहा कि इन हस्तियों द्वारा किए गए ट्वीटस के बीच एक समान पैटर्न देखा जा सकता है। अधिकांश ने लगभग एक ही जैसे शब्दें और हैशटैग का इस्तेमाल किया है। सावंत ने तर्क दिया कि इससे संदेह पैदा हुआ कि क्या वे किसी बाहरी दबाव में तो नहीं थे? उन्होंने कहा कि मशहूर हस्तियें को अगर किसी का डर है तो उन्हें सुरक्षा दी जानी चाहिए। -अनिल नरेन्द्र

Wednesday, 10 February 2021

चमोली में जल प्रलय ने केदारनाथ हादसे की याद ताजा कर दी

उत्तराखंड के चमोली जिले में रविवार को कुदरत ने एक बार फिर भारी तबाही मचाई। नीती घाटी में रैणी गांव के शीर्ष भाग में ऋषिगंगा के मुहाने पर सुबह करीब 9ः15 बजे ग्लेशियर का एक हिस्सा टूटकर नदी में गिर गया जिससे भीषण बाढ़ आ गई। अचानक आई जल प्रलय से नदी पर निर्मित एनटीपीसी की ऋषिगंगा जल विद्युत परियोजना पूरी तरह से तबाह हो गई। धौलीगंगा नदी पर निर्माणाधीन तपोवन-विष्णुगाड जल विद्युत परियोजना को भी भारी नुकसान पहुंचा। स्थानीय प्रशासन के अनुसार इन दोनों जगहों पर 155 लोगों के हताहत होने की आशंका है। तपोवन बांध स्थित एक सुरंग से मलबा हटाकर 16 लोगों समेत 25 लोगों को बचाया गया। इनका पता इनके पास मौजूद मोबाइल के सिग्नल से चल सका। हादसे की सूचना मिलते ही मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत चमोली पहुंचे। वहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बचाव अभियान पर नजर रखे हुए हैं। करीब साढ़े चार घंटे के बाद श्रीनगर बांध की झील में पानी का तेज बहाव आया, मगर तब तक स्थिति नियंत्रण में आ गई, नहीं तो बाढ़ का असर ऋषिकेश व हरिद्वार तक हो सकता था। तपोवन-विष्णुगाड में 2978 करोड़ रुपए व ऋषिगंगा परियोजना में 40 करोड़ रुपए के नुकसान का अनुमान है। इसके अलावा 1000 करोड़ रुपए से ज्यादा के अन्य नुकसान की आशंका जताई जा रही है। अब तक राहत और बचाव कार्य के दौरान चमोली जिला पुलिस ने 15 शव मिलने की पुष्टि की है। बताया जा रहा है कि अभी भी 150 से अधिक लोग लापता हैं। रात में जलस्तर बढ़ने के कारण कुछ देर रेस्क्यू ऑपरेशन रोकना पड़ा था, लेकिन तड़के चार बजे से एक बार फिर बचाव कार्य शुरू हो गया। जेसीबी की मदद से मलबा हटाया जा रहा है। इसमें फंसे लोगों को बचाने की कोशिश हो रही है। आईटीबीपी देहरादून में सैक्टर हेडक्वार्टर की डीआईजी अपर्णा कुमार ने बताया कि तपोवन की बड़ी टनल को 70-80 मीटर खोला गया है और मलबा निकाला जा रहा है। यह हादसा जिस दूरस्थ इलाके में हुआ है उसका मतलब यह है कि अभी तक किसी के पास इस सवाल का स्पष्ट जवाब नहीं होगा कि यह क्यों हुआ है? ग्लेशियरों पर शोध करने वाले विशेषज्ञों के मुताबिक हिमालय के इस हिस्से में ही एक हजार से ज्यादा ग्लेशियर हैं। सबसे प्रबल संभावना यह है कि तापमान बढ़ने की वजह से विशाल हिमखंड टूट गए हैं जिसकी वजह से उनसे भारी मात्रा में पानी निकला और इसी वजह से हिमस्खलन हुआ होगा और चट्टानें और मिट्टी टूटकर नीचे आई होगी। भारत सरकार के वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ जियोलॉजी से हाल में ही रिटायर हुए डीपी डोभाल कहते हैं कि हम उन्हें मृत बर्फ कहते हैं क्योंकि यह ग्लेशियरों के पीछे हटने के दौरान अलग हो जाते हैं और इसमें आमतौर पर चट्टानों और कंकड़ों का मलबा होता है। इसकी संभावना बहुत ज्यादा है क्योंकि नीचे की तरफ भारी मात्रा में मलबा बहकर आया है। कुछ विशेषज्ञों का यह भी मानना है कि हो सकता है कि ग्लेशियर की किसी झील में हिमस्खलन हुआ है जिसकी वजह से भारी मात्रा में पानी नीचे आया हो और बाढ़ आ गई हो। ग्लेशियर बर्फ का बहुत बड़ा हिस्सा होता है जिसे हिमखंड भी कहते हैं। यह अकसर नदी की तरह दिखते हैं और बहुत धीमी गति से बहते हैं। ग्लेशियर बनने में कई साल लगते हैं। यह ऐसी जगहों पर बनते हैं जहां बर्फ गिरती है। मगर गल नहीं पाती। यह बर्फ धीरे-धीरे ठोस होती जाती है। भार की वजह से यह आगे जाकर पहाड़ों से खिसकती है। हिन्दु कुश हिमालय क्षेत्र में ग्लोबल वार्मिंग की वजह से बढ़ रहे तापमान के कारण ग्लेशियर पिघल रहे हैं। इसकी वजह से ग्लेशियर झीलें खतरनाक विस्तार ले रही हैं और कई नई झीलें बन रही हैं पर जब उनका जल स्तर खतरनाक बिन्दु पर पहुंच जाता है, वह अपनी सरहदों को लांघ देती हैं और जो भी रास्ते में आता है उसे बहा ले जाती हैं। साल 2013 में जब केदारनाथ और कई अन्य इलाकों में प्रलयकारी बाढ़ आई थी तब भी कई चेतावनियां दी गई थीं पर विशेषज्ञों का कहना है कि सरकार ने केदारनाथ हादसे से कोई सबक नहीं लिया। खैर! पोस्टमार्टम तो होता रहेगा जरूरत फंसे लोगों को जिन्दा निकालने की है, हम इस हादसे में जो मारे गए हैं उन्हें श्रद्धांजलि देते हैं।

एक बार फिर परिवर्तन यात्रा का दांव चला भाजपा ने

पश्चिम बंगाल के नादिया जिले से शनिवार को भाजपा की परिवर्तन यात्रा की शुरुआत पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने की। इस परिवर्तन यात्रा में नड्डा ने ममता बनर्जी सरकार पर किसानों की उपेक्षा का आरोप लगाते हुए कहा कि ममता ने राज्य को प्रधानमंत्री किसान योजना से दूर रखा। विधानसभा चुनाव के बाद बंगाल की जनता ममता बनर्जी और टीएमसी को अलविदा कह देगीं। वहीं मालदा की सभा में नड्डा ने पूछा कि बंगाल में जय श्रीराम के नारों पर ममता को गुस्सा क्यों आता है? इस दौरान भाजपा अध्यक्ष ने किसानों के साथ खिचड़ी और सब्जी भी खाई। अपनी राजनीतिक जमीन मजबूत करने व जनता तक पहुंचने के लिए भाजपा का यात्राओं का पुराना फॉर्मूला है, जो उसे सियासी लाभ देता रहा है, लेकिन ऐसी यात्राओं को लेकर विवाद भी खड़े होते हैं और राजनीतिक टकराव भी हुए हैं। पश्चिम बंगाल में भी वही स्थिति बनी हुई है। भाजपा ने सबसे पहले 1990 में रामरथ यात्रा से राजनीतिक उड़ान शुरू की थी। तब के अध्यक्ष लाल कृष्ण आडवाणी की उस पहली रथ यात्रा में मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी अहम भूमिका में थे। इसके बाद आडवाणी व अन्य नेताओं ने विभिन्न नामों से आधा दर्जन से ज्यादा यात्राएं निकालीं और भाजपा के जनाधार व पहुंच को देश के कोने-कोने तक पहुंचाया। हालांकि यह यात्राएं राजनीतिक विवाद व टकराव का भी सबब रहीं। आडवाणी की पहली सोमनाथ रामरथ यात्रा को बीच में ही रोक लिया गया था और बिहार में तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव की सरकार ने आडवाणी को गिरफ्तार किया था। इस रथ यात्रा को तत्कालीन प्रधानमंत्री वीपी सिंह के मंडल आयोग की सिफारिशों को लागू करने का राजनीतिक जवाब माना गया था। इसके बाद 1991-92 में तत्कालीन अध्यक्ष डॉ. मुरली मनोहर जोशी की एकता यात्रा भी जम्मू-कश्मीर में श्रीनगर में लाल चौक पर तिरंगा झंडा फहराने को लेकर चर्चित रही थी। रथ यात्राओं के जरिये भाजपा ने अपने मुद्दों को देशभर में पहुंचाया और उसे इसका सीधा लाभ भी मिला। चुनावी सफलताएं कम-ज्यादा रही हों, पर 1990 के बाद भाजपा का जनाधार बढ़ता ही रहा है और अब उसकी पहुंच देश के सभी राज्यों तक हो गई है। अब जबकि पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, असम, केरल व पुडुचेरी की पांच विधानसभाओं के चुनाव होने हैं, भाजपा एक बार फिर जनाधार बढ़ाने के लिए इसी तरह की रथ यात्राओं को कर रही है। नवम्बर में तमिलनाडु में बेनीवाल रथ यात्रा का आयोजन किया था, जिसे लेकर उसके व सत्तारूढ़ अन्नाद्रमुक के बीच टकराव हुआ था। अब पश्चिम बंगाल में भी यही स्थिति बनी हुई है। भाजपा ने पश्चिम बंगाल के चुनाव को मथने के लिए परिवर्तन यात्रा का फिर सहारा लिया है। वह राज्य में पांच स्थानों से यात्राएं निकालेगी, जो राज्य के सभी 294 विधानसभा क्षेत्रों से गुजरेगी। पहली यात्रा पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने शुरू कर दी है। रथ यात्रा की दूसरी कड़ी को अमित शाह 11 फरवरी को कूच बिहार से हरी झंडी दिखाने वाले हैं। देखें कि ममता के कड़े विरोध के कारण भाजपा की रथ यात्रा कितनी सफल रहती है?

हर सैकेंड 1.81 लाख रुपए कमाते हैं बेजोस

दुनिया के सबसे धनी शख्स, 57 साल के जेफ बेजोस अमेजन में अपनी भूमिका बदल रहे हैं। पिछले सप्ताह उन्होंने घोषणा की कि वह अमेजन के सीईओ का पद छोड़कर कार्यकारी अध्यक्ष का जिम्मा संभालेंगे। 25 सालों से सीईओ बेजोस अंतरिक्ष कार्यक्रमों से जुड़ी अपनी कंपनी ब्लू ओरिजिन, अर्थ फंड और द वाशिंगटन पोस्ट अखबार पर ध्यान देना चाहते हैं। बिजनेस इनसाइडर के मुताबिक बेजोस ने 2020 में हर सैकेंड 1.81 लाख रुपए कमाए। बेजोस को जानने वाले मानते हैं कि वह हमेशा समय से आगे रहते हैं। 1982 में हाई स्कूल में बेजोस ने कहा थाöपृथ्वी सीमित है, अगर दुनिया की आबादी और अर्थव्यवस्था लगातार बढ़ती रही तो अंतरिक्ष पर जाना ही एकमात्र रास्ता बचेगा। साल 2000 में बेजोस ने ब्लू ओरिजिन की स्थापना की थी। इसके दो साल बाद एलन मस्क ने स्पेस एक्स की स्थापना की, लेकिन इन सालों में ब्लू ओरिजिन कुछ खास नहीं कर पाई। माना जा रहा है कि अंतरिक्ष में संभावनाओं को देखते हुए बेजोस इस ओर ध्यान दे रहे हैं। ब्लू ओरिजन इस साल अप्रैल से पर्यटकों को अंतरिक्ष में भेजने की शुरुआत कर रही है। बेजोस चांद पर कॉलोनी बसाना चाहते हैं। अमेजन को बेजोस एक लैब कहते हैं, जहां ग्राहकों के व्यवहार से जुड़े प्रयोग होते हैं। हर ग्राहक का व्यवहार रिकॉर्ड और ट्रैक किया जाता था। व्यवहार का अध्ययन करने के लिए चीफ साइंटिस्ट एंड्रियास वैगंड को हायर किया। अमेजन जब बाजार में सूचीबद्ध हुई तो निवेशकों को लिखा कि लंबे समय में मुनाफा देखें। बेजोस ने प्रतिस्पर्धियों को खत्म करने में अधिकांश पैसा खर्च किया। इसमें कंपनी लंबे समय तक घाटे में रही। अमेजन ने 20 साल पहले फायर नाम से फोन लांच किया था। वॉयस असिस्टेंट और चार कैमरों के साथ फोन फेल हो गया था, लेकिन उसी वॉयस असिस्टेंट तकनीक का इस्तेमाल करके तैयार एलेक्सा आज अमेजन के सबसे सफल उत्पादों में एक है। उल्लेखनीय है कि 1995 में अमेजन की स्थापना करने वाले बेजोस कंपनी को एक साधारण ऑनलाइन बुकसेलर से वर्तमान में 1.7 लाख करोड़ डॉलर यानि लगभग 122 लाख करोड़ रुपए मूल्य की विशाल बहुराष्ट्रीय कंपनी में तब्दील कर चुके हैं। इस यात्रा में उन्होंने दुनिया का सबसे अमीर व्यक्ति कहलाने का गौरव भी हासिल किया। पुस्तक बिक्रेता से लेकर आज रिटेल व लॉजिस्टिकस के ग्लोबल बिजनेस में परचम लहराने वाली अमेजन की विकास की गाथा बेजोस ने ही लिखी है। ताजा आंकड़ों के मुताबिक वर्ष 2020 में कंपनी का कारोबार 38 प्रतिशत की ग्रोथ के साथ 386 अरब डॉलर का हो चुका है। सालभर पहले की तुलना में 2020 में कंपनी का मुनाफा बढ़कर 21.3 अरब डॉलर का हो गया है। -अनिल नरेन्द्र

Tuesday, 9 February 2021

केंद्र के प्रस्ताव से दिल्ली सरकार से टकराव बढ़ेगा

जब से दिल्ली में आम आदमी पार्टी (आप) की सरकार बनी है अधिकारों को लेकर आए दिन टकराव की स्थिति बनी रहती है। उपराज्यपाल के बहाने केंद्र और राज्य सरकार के अधिकारों का मामला जब बहुत बढ़ गया तो सुप्रीम कोर्ट को हस्तक्षेप करना पड़ा और कुछ समय तक फिर शांति हो गई। लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ जिससे अधिकारों का स्पष्ट बंटवारा हो। यही वजह है कि कुछ अंतराल के बाद कोई ऐसा मुद्दा या बिन्दु सामने आ जाता है, जिस पर दिल्ली और केंद्र सरकार के बीच खींचतान के तेवर तीखे दिखने लगते हैं। गत बुधवार को केंद्र सरकार ने जिस तरह उपराज्यपाल को ज्यादा शक्तियां देने के एक प्रस्ताव को कैबिनेट ने मंजूरी दी है, उससे साफ है कि दिल्ली सरकार के बीच अधिकारों को लेकर चल रही जंग के बीच अब केंद्रीय कैबिनेट ने एक प्रस्ताव को मंजूरी दी है, जिससे एलजी का अधिकार क्षेत्र और बढ़ेगा। प्रस्तावित विधेयक में एलजी को दिल्ली सरकार को तय सीमा में विधायी व प्रशासनिक प्रस्ताव 15 दिन पहले भेजना होगा। ऐसे मुद्दे जिस पर एलजी और दिल्ली सरकार के विचार एक जैसे नहीं होंगे, उसे आखिरी मंजूरी के लिए राष्ट्रपति के पास भेजने का प्रावधान तो है ही, नए प्रस्ताव में यह कहा गया है कि जब तक राष्ट्रपति फैसला नहीं लेते हैं, एलजी को फैसला लेने का अधिकार होगा। बशर्ते वह मामला ऐसा हो, जिस पर तत्काल फैसला करना जरूरी हो। सामान्य मामलों में एलजी को यह अधिकार नहीं होगा। यह प्रावधान इसलिए अहम होगा, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले में कहा गया था कि दिल्ली सरकार को हर मामले में एलजी से संस्तुति लेना जरूरी नहीं है, बल्कि उन्हें जानकारी दी जा सकती है। इस फैसले के बाद से एलजी की ताकत कुछ हद तक कमजोर हुई थी। एलजी की शक्तियां बढ़ाने को लेकर केंद्र सरकार की ओर से औपचारिक घोषणा नहीं की गई है, लेकिन संसद के इसी सत्र में यह बिल पेश हो सकता है, जिस पर सत्तापक्ष व विपक्ष में रार बढ़ सकती है। हालांकि सूत्रों का कहना है कि इन संशोधनों से गवर्नेंस में सुधार हो सकता है। अधिकारों के स्पष्ट विवरण को लेकर सुप्रीम कोर्ट के जनवरी 2019 में आए फैसले के बाद स्थितियों को साफ करने की जरूरत पड़ी है। जाहिर है कि इस ताजा प्रस्ताव से दिल्ली सरकार की ओर से सवाल उठना एक स्वाभाविक प्रतिक्रिया है। दिल्ली के उपमुख्यमंत्री ने आरोप लगाया है कि इस संशोधन के जरिये दिल्ली में जनता द्वारा चुनी हुई सरकार के अधिकार छीनकर उपराज्यपाल को देने का काम किया गया है और अब दिल्ली सरकार के पास फैसले लेने की शक्ति नहीं रहेगी। सवाल है कि अगर दिल्ली सरकार का यह आरोप सही है कि केंद्र का यह फैसला लोकतंत्र और संविधान के खिलाफ किया गया है तो यह चिन्ता की बात है। क्या केंद्रीय मंत्रिमंडल इस संशोधन के जरिये सचमुच दिल्ली सरकार के अधिकारों को सीमित करना चाहती है? निश्चित तौर पर दिल्ली में लोकतांत्रिक तरीके से चुनी हुई सरकार है और अपनी सीमा में सरकार को काम करने का अधिकार होना चाहिए। लेकिन इसके साथ ही यह भी तथ्य हैं कि दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी भी है और इस नाते केंद्र को संभवत नीतिगत स्तर पर कई मामलों का ध्यान रखने की जरूरत महसूस होती होगी। कहा जा रहा है कि ताजा संशोधन प्रशासन को बेहतर करने के साथ-साथ दिल्ली सरकार और एलजी के बीच टकराव के हालात कम करने के लिए किए जा रहे हैं। लेकिन विधायी और प्रशासनिक प्रस्ताव पर आगे कदम बढ़ाने के लिए एलजी के पास भेजने की जो शर्त रखी गई है, क्या उससे आने वाले दिनों में केंद्र और दिल्ली सरकार के बीच खींचतान और टकराव की स्थितियां और नहीं बढ़ेंगी? विधायी और प्रशासनिक कार्यों में अगर कोई टकराव या गतिरोध पैदा होता है तो इससे किसी का हित नहीं होगा बल्कि टकराव जरूर होगा।

जो सच बोलता है उसे देशद्रोही और गद्दार कहा जाता है

शिवसेना सांसद संजय राउत ने शुक्रवार को रिपब्लिक टीवी प्रमुख अर्नब गोस्वामी का मामला संसद में उठाया। संजय राउत ने राज्यसभा में राष्ट्रपति के अभिभाषण के बाद धन्यवाद प्रस्ताव पर बोलते हुए मामला उठाया। राउत ने राज्यसभा में केंद्र सरकार पर सीधा हमला बोल दिया। राउत ने कहा कि धर्मेंद्र प्रधान कह रहे हैं कि सच सुना करो उससे मोक्ष प्राप्ति होती है। हम तो छह साल से सच सुन रहे हैं और झूठ को भी सच मान रहे हैं। लेकिन आज जो देश में माहौल है उसमें जो सच बोलता है उसे गद्दार और देशद्रोही कहा जाता है। जो सरकार से सवाल पूछता है उस पर देशद्रोह का मुकदमा लगा दिया जाता है। हमारे सदन के साथी संजय सिंह पर देशद्रोह का मुकदमा है। जाने-माने पत्रकार राजदीप सरदेसाई, जिसे सरकार ने पद्मश्री दिया है उस पर भी देशद्रोह का मुकदमा लगा दिया है। शशि थरूर, जिन्होंने यूएन में भारत के लिए काम किया, उन पर भी देशद्रोह का मुकदमा लगा दिया गया है। सिंघु बॉर्डर पर रिपोर्टिंग करने वाले पत्रकारों के साथ भी ऐसा ही किया गया है। संजय राउत ने कहाöहमारे कानून की किताब में आईपीसी की सारी धाराएं खत्म कर दी गई हैं और केवल देशद्रोह का कानून रखा गया है। मोदी को प्रचंड बहुमत मिला है। हम इस बात को मानते हैं। लेकिन बहुमत अहंकार से नहीं चलता है, बहुमत बड़ा चंचल होता है। हमारे मराठी के संत तुकाराम ने कहा है कि आपका जो निंदक है उसे आसपास रखना चाहिए। लेकिन आज के वक्त में जो भी सरकार की आलोचना करता है उसे बदनाम कर दिया जाता है। 26 जनवरी को हमारे तिरंगे का अपमान हुआ और हमारे प्रधानमंत्री दुखी हुए। पूरा देश दुखी हो गया। लेकिन लाल किले पर तिरंगे का अपमान करने वाला किसका आदमी है? इस बात पर यह चुप रहते हैं। दीप सिद्धू अभी तक क्यों पकड़ा नहीं गया? 200 से ज्यादा किसानों को जेल में बंद कर दिया गया है। हमारे देश में अभी देशप्रेमी केवल अर्नब गोस्वामी हैं, जिसकी वजह से एक निर्दोष आदमी को महाराष्ट्र में आत्महत्या करनी पड़ी। कंगना रानौत देशप्रेमी हैं। अर्नब गोस्वामी ने बालाकोट की जानकारी सबको पहले ही बता दी और उसे सरकार की सुरक्षा मिली हुई है। यही अर्नब गोस्वामी ने हमारे मंत्री प्रकाश जावड़ेकर के बारे में क्या नहीं लिखा है? प्रकाश के बारे में उसने जिस भाषा का इस्तेमाल किया है उस पर हम सबको शर्म आनी चाहिए। राउत ने कहा कि जब सिखों ने मुगलों से लड़ाई की तो उन्हें देशभक्त कहा गया, अंग्रेजों से लड़ा तो देशभक्त कहा गया और अब अपने हकों के लिए लड़ रहे हैं तो उन्हें खालिस्तानी कहा जा रहा है। किसान आंदोलन के समर्थन में 75 पूर्व नौकरशाहों की चिट्ठी। पूर्व नौकरशाहों के एक समूह ने शुक्रवार को एक खुले पत्र में कहा कि नए कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों के प्रदर्शन के प्रति केंद्र सरकार का रवैया शुरुआत से ही प्रतिकूल और टकराव भरा है। जनसत्ता अखबार के मुताबिक दिल्ली के पूर्व एलजी नजीब जंग समेत 75 नौकरशाहों की ओर से हस्ताक्षरित पत्र में कहा गया है कि गैर-राजनीतिक किसानों को ऐसे गैर-जिम्मेदार प्रतिद्वंद्वी के रूप में देखा जा रहा है जिनका उपहास किया जाना चाहिए। जिनकी छवि खराब की जानी चाहिए और इन्हें हटाया जाना चाहिए। यह सभी लोग कांस्टीट्यूशनल कंडक्ट ग्रुप के हिस्सा हैं। पत्र में कहा गया है कि ऐसे रवैये से कभी कोई समाधान नहीं निकलेगा। उन्होंने कहा कि अगर भारत सरकार वाकई मैत्रीपूर्ण समाधान चाहती है तो उसे आधे मन से कदम उठाने के बजाय कानूनों को वापस ले लेना चाहिए।

अस्थिर व्यवहार के कारण खुफिया जानकारियां नहीं देंगे

पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के खिलाफ महाभियोग की प्रक्रिया शुरू होने से पहले बिडेन प्रशासन उनसे एक बड़ा अधिकार छीनने की तैयारी में है। अमेरिका के राष्ट्रपतियों को कार्यकाल खत्म होने के बाद भी अकसर खुफिया सूचनाएं और गोपनीय जानकारियां दी जाती हैं। हालांकि अमेरिका के राष्ट्रपति जो बिडेन ने एक इंटरव्यू में बताया कि पूर्व राष्ट्रपति ट्रंप को उनके अस्थिर व्यवहार के कारण गोपनीय खुफिया जानकारियां नहीं दी जानी चाहिए। बिडेन ने सीबीसी न्यूज को दिए इंंटरव्यू में कहाöमैं कयास नहीं लगाना चाहता। मुझे बस यही लगता है कि उन्हें खुफिया जानकारियां दिए जाने की जरूरत नहीं। उन्हें खुफिया जानकारियां देने का क्या महत्व है? वह क्या प्रभाव डाल सकते हैं? इसके बजाय तथ्य तो यह हैं कि कभी भी उनकी जुबान फिसल सकती है और वह कुछ भी कह सकते हैं। यह इंटरव्यू रविवार को प्रसारित किया गया। शुक्रवार को इसके कुछ अंश जारी किए गए थे। इसमें बिडेन कहते दिखे कि ट्रंप को उनके अस्थिर व्यवहार के कारण ऐसी जानकारियां नहीं दी जानी चाहिए। इससे पहले इस सप्ताह की शुरुआत में व्हाइट हाउस की प्रवक्ता जेन साकी ने कहा था कि ट्रंप को खुफिया जानकारियां देने के बारे में समीक्षा की जा रही है। डेमोक्रेटिक पार्टी के कुछ सांसदों और यहां तक कि ट्रंप प्रशासन के अधिकारियों ने भी उन्हें जानकारी देते रहने के बारे में सवाल उठाए थे। पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के खिलाफ अमेरिकी संसद के ऊपरी सदन सीनेट में मंगलवार से महाभियोग की प्रक्रिया शुरू होनी है। उन पर छह जनवरी को संसद पर हुई हिंसा के लिए यह कार्रवाई हो रही है। हालांकि उनके बच निकलने के चांस ज्यादा हैं मगर उससे पहले सदन में पूरे विस्तार से उन पर लगे आरोपों की चर्चा होगी। -अनिल नरेन्द्र

Sunday, 7 February 2021

पाक पर ईरानी सर्जिकल स्ट्राइक

पाकिस्तानी आतंकियों के लगातार हमले से भड़की ईरान की सेना ने अमेरिका और भारत की राह पर चलते हुए कथित रूप से पाकिस्तानी सीमा में घुसकर सर्जिकल स्ट्राइक की और अपने दो सैनिकों को छुड़ा लिया। बताया जा रहा है कि ईरान के अत्यंत प्रशिक्षित रिवॉल्यूशनरी गार्ड्स ने पाकिस्तानी आतंकी संगठन जैश-अल-अदल के ठिकाने पर हमला करके करीब ढाई साल से बंदी अपने जवानों को छुड़ा लिया। ईरान की फार्स न्यूज एजेंसी के मुताबिक जैश-अल-अदल एक कट्टरपंथी वहाबी आतंकवादी गुट है जो दक्षिणी-पश्चिमी पाकिस्तान में ईरान सीमा पर सक्रिय है। फार्स न्यूज एजेंसी ने बताया कि जैश-अल-अदल ने ही फरवरी 2019 में ईरान सेना पर हमले की जिम्मेदारी ली थी जिसमें कई जवान मारे गए थे। ईरानी सेना ने गुप्त सूचना के आधार पर मंगलवार की रात को इस सर्जिकल स्ट्राइक को अंजाम दिया। ईरानी सेना ने एक बयान जारी करके कहाöमंगलवार की रात को एक सफल ऑपरेशन को अंजाम दिया गया है और पिछले ढाई साल से जैश-अल-अदल के कब्जे में बंदी दो सैनिकों को छुड़ा लिया गया। बयान में कहा गया है कि ईरानी सैनिक सफलतापूर्वक देश वापस लौट आए हैं। एनाडोलु एजेंसी के मुताबिक 16 अक्तूबर 2018 को जैश-अल-अदल ने ईरानी सेना के 12 बॉर्डर गार्ड्स का अपहरण कर लिया था। इस घटना को पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत के मर्कवा शहर में अंजाम दिया गया था। यह इलाका पाक-ईरान सीमा के नजदीक है। इसके बाद दोनों देशों की सेना ने जवानों को छुड़ाने के लिए एक ज्वाइंट कमेटी भी बनाई थी। जैश-अल-अदल को आतंकी संगठन घोषित किया हुआ है। यह संगठन ईरान के खिलाफ सशस्त्र अभियान चलाए हुए है। इसमें बलोच सुन्नी मुसलमान शामिल हैं जो ईरान सुन्नियों के अधिकारों की रक्षा का दावा करते हैं। बता दें कि दो मई 2011 को अमेरिकी सैनिक एक स्पेशल ऑपरेशन के तहत पाकिस्तान के एबटाबाद शहर में दाखिल हुए और अलकायदा के सरगना ओसामा बिन लादेन को मारकर साथ ले गए। इसी तरह 28-29 सितम्बर 2016 की वह रात को शायद पाकिस्तान कभी भूल नहीं पाएगा। जब भारत ने पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (पीओके) में घुसकर आतंकी शिविरों पर सर्जिकल स्ट्राइक कर कई आतंकी मार गिराए थे। ईरान की कार्रवाई पाकिस्तान की भूमि पर हुई। इस सर्जिकल स्ट्राइक के बारे में पाकिस्तान सरकार या सेना को ईरान द्वारा कोई जानकारी नहीं दी गई, न उन्हें जानकारी थी। सूत्रों के अनुसार इसी वजह से आतंकियों पर आईआरजीसी के हमले के बाद पाकिस्तानी सैनिक भी बचाव में कूद पड़े लेकिन कई गार्ड्स के विशेष प्रशिक्षित ईरानी सैनिकों के हाथों मारे गए। जैश-अल-अदल एक वहाबी व बलूच सुन्नी मुसलमानों का बनाया आतंकी संगठन है। यहां के रसूखदारों से उसे फंडिंग मिलती है और बदले में वह दक्षिण-पूर्वी ईरान में नागरिकों व सैनिकों पर आतंकी हमले करता रहता है। वहीं ईरान ने कई बार पाकिस्तान को आतंकी गतिविधियां रोकने के लिए चेताया है। लेकिन हमले जारी रहे। अदल को कई देशों ने प्रतिबंधित किया हुआ है। इस घटना से एक बार फिर साबित होता है कि पाकिस्तान अपनी सर जमीन से इन आतंकी गुटों को न केवल ऑपरेट करने देता है बल्कि उनकी पूरी मदद करता है। इससे साबित होता है और इस बात की पुष्टि होती है कि जो भारत सालों से कह रहा है। एक बार फिर पाकिस्तान बेनकाब हुआ है।

कोरोना की चपेट में आ चुके हैं 30 करोड़ भारतवासी

भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) के ताजा सर्वेक्षण (सीरो में पाया गया है कि 10 वर्ष एवं इससे अधिक उम्र की 21 प्रतिशत से अधिक आबादी के पूर्व में कोरोना वायरस संक्रमण की चपेट में आने के साक्ष्य मिले हैं। इस सर्वेक्षण में बताया गया है कि भारत में वास्तविक कोरोना संक्रमितों की संख्या सरकारी आंकड़ों से कहीं अधिक है। पिछले सप्ताह सामने आए सीरोलॉजिकल सर्वे के आंकड़ों के अनुसार देश में अब तक 30 करोड़ यानि हर चौथा व्यक्ति कोरोना वायरस से संक्रमित हो चुका है। सरकार ने बृहस्पतिवार को बताया कि आईसीएमआर का तीसरा राष्ट्रीय सीरो सर्वेक्षण गत सात दिसम्बर से आठ जनवरी के बीच किया गया था। सर्वेक्षणों को पेश करते हुए आईसीएमआर के महानिदेशक डॉ. बलराम भार्गव ने कहा कि इस अवधि में 18 वर्ष एवं इससे अधिक आयु वर्ग के 27,589 लोगों का सर्वेक्षण किया गया, जिसमें 21.4 प्रतिशत लोगों में पूर्व में कोरोना वायरस संक्रमण की चपेट में आने का पता चला है जबकि 10 वर्ष से 18 वर्ष आयु वर्ग के 25.3 प्रतिशत बच्चों में भी यह पुष्टि हुई। भार्गव ने कहा कि ग्रामीण क्षेत्रों में 19.1 प्रतिशत आबादी में सार्स सीओवी-2 की उपस्थित के साक्ष्य मिले जबकि शहरी झुग्गी-बस्तियों में यह आंकड़ा 31.7 प्रतिशत पाया गया। उन्होंने कहा कि सर्वेक्षण के दौरान 60 वर्ष आयु वर्ग से अधिक आयु के 23.4 प्रतिशत बुजुर्गों के भी कभी न कभी संक्रमण की चपेट में आने का पता चला है। भार्गव ने कहा कि सर्वेक्षण की अवधि में 7171 स्वास्थ्य कर्मियों के भी खून के नमूने लिए गए और इनमें से 25.7 प्रतिशत के पूर्व में संक्रमण की चपेट में आने की पुष्टि हुई। पहले एवं दूसरे राष्ट्रीय सीरो सर्वेक्षण के दौरान जिन 21 राज्यों के 700 गांव अथवा 70 जिलों के जिन वार्डों को चुना गया था। तीसरा सर्वेक्षण भी उन्हीं स्थानों पर किया गया। कोरोना वायरस के हालात को लेकर स्वास्थ्य मंत्रालय ने कहा कि देश में कोरोना वायरस संक्रमण की दर 5.42 प्रतिशत है और यह कम हो रही है। पिछले तीन सप्ताह के दौरान 47 जिलों में संक्रमण का एक भी नया मामला सामने नहीं आया और 257 जिलों में एक भी कोविड-19 मरीज की मौत नहीं हुई। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने बृहस्पतिवार को कहा कि भारत में महज 19 दिनों के भीतर 45 लाख लोगों को कोविड-19 रोधी टीका लगाया जा चुका है। भारत 18 दिन के भीतर 40 लाख लोगों को टीका लगाकर सबसे तेज गति से टीकाकरण करने वाला देश बन गया है। मंत्रालय ने कहा कि कई अन्य देशों को ऐसा करने में 65 दिन लगे थे। भारत ने 16 जनवरी को राष्ट्रव्यापी कोविड-19 रोधी टीकाकरण अभियान शुरू किया था। टीकाकरण कराने वाले लोगों की संख्या में हर रोज वृद्धि हो रही है। कोरोना के संक्रमण से ठीक हुए लोगों को टीके की दो खुराक के बजाय केवल एक खुराक की जरूरत हो सकती है अगर वह मॉडर्न या फाइजर का कोविड-19 का टीका लगवा रहे हैं। एक अध्ययन में टीके की आपूर्ति संख्या सीमित होने की स्थिति में खुराक कम करने के तरीके भी सुझाए गए हैं। आप अपने डॉक्टर की सलाह से ही टीका लगवाएं।

नए मैसेजिंग एप का सहारा लेते आतंकी

व्हाट्सएप जैसे मैसेजिंग सर्विस को लेकर बहस जारी है। इस दौरान खबर मिली है कि पाकिस्तान में मौजूदा आतंकी संगठनों ने नए एप का रुख कर लिया है। इनमें तुर्की की एक कंपनी की ओर से हाल ही में विकसित एप भी शामिल है। जम्मू-कश्मीर के शीर्ष सुरक्षा अधिकारियों ने यह ताजा जानकारी दी है। उन्होंने बताया कि दहशतगर्दों के साथ मुठभेड़ में मिले सुबूतों और आत्मसमर्पण करने वाले आतंकियों की ओर से पाकिस्तानी संगठनों की मॉउस ऑपरेडी पर प्राप्त जानकारी के आधार पर तीन नए मैसेजिंग एप सामने आए हैं। इनमें से एक अमेरिकी तो दूसरा यूरोपीय कंपनी ने बनाया है। वहीं तीसरे एप का निर्माण तुर्की की कंपनी ने किया है। कश्मीर घाटी में कारिंदों की भर्ती में जुटे आतंकी आका लगातार तीनों एप का इस्तेमाल कर रहे हैं। हालांकि सुरक्षा कारणों से इनके नाम सार्वजनिक नहीं किए गए हैं। अधिकारियों की मानें तो नए एप इंटरनेट की धीमी स्पीड में भी काम करने में सक्षम हैं। उनका उन इलाकों में भी इस्तेमाल मुमकिन है, जहां केवल 2000 के दशक में प्रयुक्त डाटा फॉर ग्लोबल एवोल्यूशन (एच) या 2जी इंटरनेट सेवा उपलब्ध हो। मालूम हो कि केंद्र सरकार ने अगस्त 2019 में जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा वापस लेने के बाद वहां उपलब्ध इंटरनेट सेवाएं बाधित कर दी थीं। साल 2020 की शुरुआत में घाटी में 2जी सेवा बहाल हो गई थी। सुरक्षा एजेंसियां घाटी में पहले से ही वर्चुअल सिम कार्ड के खतरे से लड़ रही हैं। ऐसे में नए एप उनके लिए नई चुनौती बनकर उभरे हैं। -अनिल नरेन्द्र

Saturday, 6 February 2021

नरेंद्र मोदी के भाई प्रह्लाद मोदी का दुख

गुजरात के स्थानीय निकाय चुनाव होने में अब अधिक दिन नहीं रह गए हैं। चुनाव चाहे कोई भी हो, परिणाम को लेकर उत्सुकता तो रहती ही है। लेकिन इस बार गुजरात के स्थानीय निकाय चुनाव कुछ मायनों में बेहद महत्वपूर्ण माने जा रहे हैं। गुजरात में दो चरणों में स्थानीय चुनाव होने हैं। 21 फरवरी और 28 फरवरी को। एक ओर जहां कांग्रेस ने अपने उम्मीदवारों की पहली सूची जारी कर दी है, वहीं भाजपा भी चुनावों को लेकर कमर कस चुकी है। गुजरात भाजपा अध्यक्ष सीआर पाटिल ने उम्मीदवारों के लिए आवश्यक मानदंडों की घोषणा में कहा है कि 60 साल से अधिक आयु वर्ग के लोगों, नेताओं के रिश्तेदारों और जो लोग पहले से ही कारपोरेशन में तीन कार्यकाल पूरे कर चुके हैं, उन्हें इस बार टिकट नहीं दिया जाएगा। पटेल की घोषणा के बाद से ही प्रदेश में भाजपा कार्यकर्ताओं-नेताओं के बीच हलचल का माहौल है। प्रधानमंत्री के बड़े भाई प्रह्लाद मोदी ने भी इस संबंध में टिप्पणी की है। बीबीसी से बात करते हुए प्रह्लाद मोदी ने कहा कि उनकी बेटी सोनल मोदी अहमदाबाद के बोदकदेव से चुनाव लड़ना चाहती थीं। लेकिन अब जब इस तरह के मानदंड तय किए गए हैं तो यह तय हो जाता है कि वो चुनाव नहीं लड़ पाएंगी, क्योंकि वो तो सीधे तौर पर पीएम मोदी के परिवार से आती हैं। बीबीसी ने प्रह्लाद मोदी से निकाय चुनाव समेत अन्य कई मुद्दों पर चर्चा की। सवालöआपकी बेटी चुनाव लड़ना चाहती हैं? जवाबöहां, मेरी बेटी अहमदाबाद के बोदकदेव की ओबीसी सीट से चुनाव लड़ना चाहती हैं। सवालöगुजरात भाजपा प्रमुख सीआर पाटिल ने तो घोषणा की है कि भाजपा नेताओं के रिश्तेदार और परिवार के सदस्यों को इस चुनाव में टिकट नहीं मिलेगा। तो अब? जवाबöहमने कभी भी ऐसा कुछ होने की उम्मीद नहीं की। हम पीएम मोदी की तस्वीर का इस्तेमाल करके अपनी जिंदगी नहीं चलाते हैं। हमारे परिवार के सभी सदस्य कठिन परिश्रम करते हैं, कमाते हैं और उसी से अपना खर्च चलाते हैं। मैं राशन की दुकान चलाता हूं। भाजपा में हमारे परिवार की ओर से कोई भाई-भतीजावाद नहीं है। नरेंद्र मोदी ने साल 1970 में घर छोड़ दिया था और पूरे भारत को अपना घर बना लिया। वह हमारे परिवार में पैदा जरूर हुए हैं लेकिन वह भारत के बेटे हैं। सवालöतो क्या फिर नरेंद्र मोदी आपके परिवार के सदस्य नहीं हैं? जवाबöभारत सरकार ने परिवार की एक परिभाषा तय की है। जिन-जिन लोगों के नाम घर के राशन कार्ड पर हैं, वह सभी परिवार के सदस्य हैं। हमारे परिवार के राशन कार्ड में नरेंद्र दामोदरदास मोदी का नाम नहीं। तो क्या वह मेरा परिवार है? मैं यह सवाल आपसे और दूसरों से पूछ रहा हूं। जिस राशन कार्ड में नरेंद्र भाई का नाम है, वह अहमदाबाद के रानी का है। ऐसे में तो रानी के लोग उनका परिवार हुए। सवालöअगर सोनल मोदी चुनाव लड़ती हैं तो लोग कहेंगे कि वह पीएम मोदी की भतीजी हैं। जवाबöबहुत से लोग कहते हैं कि हम भगवान राम के वंशज हैं। क्या हम उन्हें रोक सकते हैं? यह रिश्ता वास्तविक है। हम इसे मिटा नहीं सकते। लेकिन अगर आप पता करते हैं कि क्या सोनल कभी भी पीएम के आधिकारिक निवास पर गईं तो आपको पता चल जाएगा कि यह संबंध कितना मजबूत है। सवालöसोनल पीएम मोदी से कब मिली थीं? जवाबöजब से नरेंद्र भाई देश के प्रधानमंत्री बने हैं, मुझे नहीं पता कि उनके घर का दरवाजा कैसा दिखता है। मुझे नहीं पता तो मेरे बच्चों को कैसे पता चलेगा? हम उनसे तभी मिल सकते हैं, जब वह हमें आमंत्रित करें। अगर वह हमें नहीं बुलाते हैं तो मैं उनके दरवाजे पर इंतजार नहीं कर सकता। सवालöजब भी पीएम मोदी अहमदाबाद/गांधीनगर आते हैं तो वह हीरा बा (अपनी मां) से मिलने जाते हैं। जवाबöवह बा से मिलते हैं, लेकिन इस बात को लेकर काफी स्पष्ट निर्देश होते हैं कि परिवार के बाकी सदस्य दूर ही रहें। अपनी शुरुआती यात्राओं में वह जब भी बा से मिलने गए हैं, तो आपने गौर किया होगा कि छोटे भाई का परिवार भी आसपास दिखाई देता था, लेकिन अब नहीं। पिछले कुछ सालों की तस्वीरें उठाकर देखेंगे तो पिछले कुछ सालों में बा के अलावा तस्वीर में कोई और नजर नहीं आता है। अगर पार्टी हमें उनके परिवार के तौर पर देखती है और हमें टिकट नहीं देती है तो यह पार्टी का स्टैंड है। नरेंद्र जब पंकज के यहां जाते हैं, क्योंकि बा वहां रहती हैं, लेकिन इस बात का क्या मतलब कि जब वह आते हैं तो एक भी बच्चा दिखाई नहीं देता जब उन्होंने घर छोड़ ही दिया है और उन्हें परिवार की जरूरत नहीं तो हम भी नहीं जाते।

द इनइक्वालिटी वायरस

दुनिया में कोरोना संक्रमितों का आंकड़ा 10 करोड़ के करीब है, जबकि 21 लाख से ज्यादा मौतें हो चुकी हैं। वहीं मानव जीवन पर 100 साल के सबसे बड़े संकट में भी अमीरों की सम्पत्ति बेतहाशा बढ़ी है। महामारी के नौ महीनों में देश के शीर्ष 100 अमीरों की कमाई करीब 13 लाख करोड़ रुपए बढ़ी। अगर इस राशि को देश के 13.8 करोड़ गरीबों में बांटा जाए तो हर व्यक्ति को करीब 94,000 रुपए मिलेंगे। यह खुलासा ऑक्सफैम की द इनइक्वालिटी वायरस नाम की रिपोर्ट में हुआ है। रिपोर्ट के मुताबिक 18 मार्च से 31 दिसम्बर तक दुनिया में गरीबों की संख्या 50 करोड़ बढ़ी है। जबकि अरबपतियों की सम्पत्ति 284 लाख करोड़ रुपए बढ़ी है। सबसे ज्यादा नुकसान भारत में अकुशल श्रमिकों को हुआ है। देश के 12.2 करोड़ श्रमिकों में से 9.2 करोड़ यानि 75 प्रतिशत को नौकरी गंवानी पड़ी। एक अप्रैल 2020 में तो हर घंटे करीब 1.70 लाख लोगों को नौकरी से हाथ धोना पड़ा। छोटे कारोबारी तबाह हो गए, कारखाने लाखों की तादाद में बंद हो गए। श्रमिकों को पेट भरने के लाले पड़ गए और लाखों की बेरोजगार युवकों को परिवारों सहित अपने गांव में पलायन करना पड़ा। रास्ते में कइयों ने दम तोड़ दिया। हकीकत यह है कि कोविड महामारी के प्रकोप से दुनिया अभी भी पूरी तरह से उबर नहीं पाई है। इस कोरोना काल में आर्थिक मोर्चे पर वैश्विक स्तर पर कई विसंगतियां भी देखने को मिलीं। एक ओर जहां दैनिक मजदूरी से गुजारा करने वाली गरीब जनता दो वक्त की रोटी जुटाने के लिए जद्दोजेहद करती नजर आई, वहीं दूसरी ओर इसके ठीक विपरीत धन-कुबेरों के खजाने और भरते चले गए। ऑक्सफैम की इस द इनइक्वालिटी वायरस रिपोर्ट में कहा गया है कि कोविड-19 महामारी के परिणामस्वरूप आर्थिक दृष्टि से समाज में असमानता में वृद्धि हुई इस कोरोना काल में जाने-माने उद्योगपति मुकेश अंबानी ने जहां 90 करोड़ रुपए प्रति घंटे के हिसाब से धन कमाया, वहीं 24 प्रतिशत लोगों की एक महीने की आमदनी तीन हजार रुपए से भी कम रही। इसका तात्पर्य यह कि कोरोना काल में मुकेश अंबानी ने एक घंटे में जितनी राशि कमाई, उसे कमाने में एक अकुशल मजदूर को 11,000 साल लगेंगे। इस दर से मुकेश अंबानी ने एक सैकेंड में जितना कमाया, उतना कमाने के लिए एक आम इंसान को तीन साल लगेंगे। भारत के 11 प्रमुख अरबपतियों की आय में महामारी के दौरान जितनी बढ़ोत्तरी हुई, उससे मनरेगा और स्वास्थ्य मंत्रालय का मौजूदा बजट एक दशक तक प्राप्त हो सकता है।

किसान आंदोलन में शामिल किसान गुमशुदा

बुधवार को मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल ने बताया कि किसान आंदोलन शुरू होने के बाद देश के विभिन्न राज्यों से आए 115 किसान इस समय दिल्ली की जेलों में बंद हैं। यह किसान दिल्ली सीमा से सटे विभिन्न धरना स्थलों पर कृषि कानूनों को वापस लेने के लिए चल रहे प्रदर्शन में शामिल होने के लिए पहुंचे थे। मुख्यमंत्री ने बताया कि किसान आंदोलन में शामिल होने आए किसानों के गुम होने की जानकारी उन्हें किसान नेताओं ने दी। नेताओं ने इन लोगों के गुम/लापता होने पर चिंता जाहिर करते हुए दिल्ली सरकार से मदद मांगी थी। केजरीवाल ने बताया कि इस बैठक के बाद दिल्ली के सभी जेलों में 26 जनवरी के बाद व प्रदर्शन के दौरान ऐसे लोगों की सूची तैयार की गई है, जो विभिन्न जेलों में बंद हैं। ऐसे लोगों की एक नौ पृष्ठों की सूची तैयार की गई है। उन्होंने कहा कि इस जानकारी की मदद से किसान प्रदर्शन से जुड़े लोग अपने गुम लोगों की पहचान कर सकेंगे। केजरीवाल ने बताया कि पिछले कुछ दिनों से किसान आंदोलन से जुड़े नेताओं व अलग-अलग लोगों ने इस मामले में सम्पर्क किया था और बताया था कि उनके परिवार के लोग किसान प्रदर्शन में शामिल होने के लिए पहुंचे थे वह घर नहीं पहुंचे हैं और उनसे सम्पर्क भी नहीं हो पा रहा है। सरकारों का दायित्व है कि जो लोग गुम हैं, उनकी तलाश करके संबंधित परिवारों को जानकारी दें। अरविन्द केजरीवाल ने आश्वासन दिलाया कि इसके बाद भी अगर कुछ लोग गुम या लापता हैं, तो ऐसे लोगों की तलाश के लिए हर संभव कोशिश की जाएगी। इस मामले में उपराज्यपाल और केंद्र सरकार से भी बात की जाएगी। -अनिल नरेन्द्र