Saturday 27 February 2021

20 साल काटी जेल, अंत में हुए बरी

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने दुष्कर्म के एक मामले में 20 साल से जेल में बंद आरोपी को निर्दोष करार देते हुए रिहा करने का आदेश दिया है। कोर्ट ने इस बात पर हैरानी जताई कि अभियुक्त पिछले 20 सालों से जेल में है, इसके बावजूद सरकार ने उम्रकैद की सजा पाए बंदियों को 14 साल में रिहा कर देने संबंधी कानून का भी पालन नहीं किया। यह आदेश न्यायमूर्ति केजे ठाकुर तथा न्यायमूर्ति गौतम चौधरी की खंडपीठ ने ललितपुर के एक व्यक्ति की जेल अपील को स्वीकार करते हुए दिया है। 16 वर्षीय विष्णु पर 16 दिसम्बर 2000 को अनुसूचित जाति की महिला से दुष्कर्म के आरोप में प्राथमिकी दर्ज कराई थी। सत्र न्यायालय ने दुष्कर्म के आरोप में 10 साल व एससी/एसटी एक्ट के तहत आजीवन कारावास की सजा सुनाई। आरोपी सन 2000 से जेल में है। आरोपी की ओर से जेल से अपील दाखिल कर अनुरोध किया गया कि वह 20 साल से जेल में बंद है इसलिए शीघ्र सुनवाई की जाए। कोर्ट ने पाया कि दुराचार का आरोप साबित ही नहीं हुआ। मेडिकल रिपोर्ट में जबरदस्ती करने का कोई साक्ष्य नहीं था। पीड़िता गर्भवती थी। ऐसे कोई निशान नहीं हैं, जिससे यह कहा जा सके कि जबरदस्ती की गई थी। रिपोर्ट भी पति व ससुर ने घटना के तीन दिन बाद लिखाई। पीड़ित ने इसे अपने बयान में स्वीकार भी किया है। हाई कोर्ट ने उम्रकैद की सजा काट रहे बंदियों की 14 साल की सजा पूरी करने के बाद रिहाई के लिए बने कानून का पालन न करने पर राज्य सरकार पर तीखी टिप्पणी की है। कोर्ट ने कहा है कि यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है कि बिना किसी गंभीर अपराध के कैदी 20 साल से जेल में बंद है और राज्य सरकार रिहाई के लिए बने कानून का पालन नहीं कर रही है। कोर्ट ने विधि सचिव से कहा है कि वह सभी जिलों की जेलों में बंद 10 से 14 साल तक की सजा काट चुके बंदियों की रिहाई की संस्तुति सरकार को भेजें। भले ही उनकी सजा के खिलाफ कोई अपील विचाराधीन हो। सवाल यह है कि 16 वर्षीय विष्णु ने जो 20 साल जेल में बिना वजह काटे उसका जिम्मेदार कौन है? अगर दुष्कर्म मामलों में भी 20-20 साल लग जाते हैं तो बाकी केसों का क्या हाल होगा? क्या सरकार विष्णु को मुआवजा देगी? -अनिल नरेन्द्र

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