Wednesday, 10 February 2021

चमोली में जल प्रलय ने केदारनाथ हादसे की याद ताजा कर दी

उत्तराखंड के चमोली जिले में रविवार को कुदरत ने एक बार फिर भारी तबाही मचाई। नीती घाटी में रैणी गांव के शीर्ष भाग में ऋषिगंगा के मुहाने पर सुबह करीब 9ः15 बजे ग्लेशियर का एक हिस्सा टूटकर नदी में गिर गया जिससे भीषण बाढ़ आ गई। अचानक आई जल प्रलय से नदी पर निर्मित एनटीपीसी की ऋषिगंगा जल विद्युत परियोजना पूरी तरह से तबाह हो गई। धौलीगंगा नदी पर निर्माणाधीन तपोवन-विष्णुगाड जल विद्युत परियोजना को भी भारी नुकसान पहुंचा। स्थानीय प्रशासन के अनुसार इन दोनों जगहों पर 155 लोगों के हताहत होने की आशंका है। तपोवन बांध स्थित एक सुरंग से मलबा हटाकर 16 लोगों समेत 25 लोगों को बचाया गया। इनका पता इनके पास मौजूद मोबाइल के सिग्नल से चल सका। हादसे की सूचना मिलते ही मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत चमोली पहुंचे। वहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बचाव अभियान पर नजर रखे हुए हैं। करीब साढ़े चार घंटे के बाद श्रीनगर बांध की झील में पानी का तेज बहाव आया, मगर तब तक स्थिति नियंत्रण में आ गई, नहीं तो बाढ़ का असर ऋषिकेश व हरिद्वार तक हो सकता था। तपोवन-विष्णुगाड में 2978 करोड़ रुपए व ऋषिगंगा परियोजना में 40 करोड़ रुपए के नुकसान का अनुमान है। इसके अलावा 1000 करोड़ रुपए से ज्यादा के अन्य नुकसान की आशंका जताई जा रही है। अब तक राहत और बचाव कार्य के दौरान चमोली जिला पुलिस ने 15 शव मिलने की पुष्टि की है। बताया जा रहा है कि अभी भी 150 से अधिक लोग लापता हैं। रात में जलस्तर बढ़ने के कारण कुछ देर रेस्क्यू ऑपरेशन रोकना पड़ा था, लेकिन तड़के चार बजे से एक बार फिर बचाव कार्य शुरू हो गया। जेसीबी की मदद से मलबा हटाया जा रहा है। इसमें फंसे लोगों को बचाने की कोशिश हो रही है। आईटीबीपी देहरादून में सैक्टर हेडक्वार्टर की डीआईजी अपर्णा कुमार ने बताया कि तपोवन की बड़ी टनल को 70-80 मीटर खोला गया है और मलबा निकाला जा रहा है। यह हादसा जिस दूरस्थ इलाके में हुआ है उसका मतलब यह है कि अभी तक किसी के पास इस सवाल का स्पष्ट जवाब नहीं होगा कि यह क्यों हुआ है? ग्लेशियरों पर शोध करने वाले विशेषज्ञों के मुताबिक हिमालय के इस हिस्से में ही एक हजार से ज्यादा ग्लेशियर हैं। सबसे प्रबल संभावना यह है कि तापमान बढ़ने की वजह से विशाल हिमखंड टूट गए हैं जिसकी वजह से उनसे भारी मात्रा में पानी निकला और इसी वजह से हिमस्खलन हुआ होगा और चट्टानें और मिट्टी टूटकर नीचे आई होगी। भारत सरकार के वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ जियोलॉजी से हाल में ही रिटायर हुए डीपी डोभाल कहते हैं कि हम उन्हें मृत बर्फ कहते हैं क्योंकि यह ग्लेशियरों के पीछे हटने के दौरान अलग हो जाते हैं और इसमें आमतौर पर चट्टानों और कंकड़ों का मलबा होता है। इसकी संभावना बहुत ज्यादा है क्योंकि नीचे की तरफ भारी मात्रा में मलबा बहकर आया है। कुछ विशेषज्ञों का यह भी मानना है कि हो सकता है कि ग्लेशियर की किसी झील में हिमस्खलन हुआ है जिसकी वजह से भारी मात्रा में पानी नीचे आया हो और बाढ़ आ गई हो। ग्लेशियर बर्फ का बहुत बड़ा हिस्सा होता है जिसे हिमखंड भी कहते हैं। यह अकसर नदी की तरह दिखते हैं और बहुत धीमी गति से बहते हैं। ग्लेशियर बनने में कई साल लगते हैं। यह ऐसी जगहों पर बनते हैं जहां बर्फ गिरती है। मगर गल नहीं पाती। यह बर्फ धीरे-धीरे ठोस होती जाती है। भार की वजह से यह आगे जाकर पहाड़ों से खिसकती है। हिन्दु कुश हिमालय क्षेत्र में ग्लोबल वार्मिंग की वजह से बढ़ रहे तापमान के कारण ग्लेशियर पिघल रहे हैं। इसकी वजह से ग्लेशियर झीलें खतरनाक विस्तार ले रही हैं और कई नई झीलें बन रही हैं पर जब उनका जल स्तर खतरनाक बिन्दु पर पहुंच जाता है, वह अपनी सरहदों को लांघ देती हैं और जो भी रास्ते में आता है उसे बहा ले जाती हैं। साल 2013 में जब केदारनाथ और कई अन्य इलाकों में प्रलयकारी बाढ़ आई थी तब भी कई चेतावनियां दी गई थीं पर विशेषज्ञों का कहना है कि सरकार ने केदारनाथ हादसे से कोई सबक नहीं लिया। खैर! पोस्टमार्टम तो होता रहेगा जरूरत फंसे लोगों को जिन्दा निकालने की है, हम इस हादसे में जो मारे गए हैं उन्हें श्रद्धांजलि देते हैं।

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