Thursday 11 February 2021

यह किसानों की पूंजीपतियों से आजादी की लड़ाई है

केन्द्र सरकार के तीन कृषि कानूनों के खिलाफ बहादुरगढ़, दिल्ली बार्डर पर स्थित टिकरी में धरने में बैठे एक और किसान ने रविवार को फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली। पुलिस ने बताया कि किसान ने एक सुसाइड नोट छोड़ा है, जिसमें केन्द्र सरकार के खराब रवैये से परेशान होने की बात लिखी गई है। उन्होंने बताया कि मृतक की पहचान हरियाणा के जींद जिले के सिंगवाल के निवासी 52 वर्षीय कर्मवीर सिंगवाल के रूप में की गई है। उन्होंने बताया कि बीती रात ही वह अपने गांव से टिकरी बार्डर पहुंचा था। पुलिस ने बताया कि कर्मवीर ने रविवार को बहादुरगढ़ के बाईपास स्थित नए बस स्टैंड के पास एक पेड़ पर प्लास्टिक की रस्सी का फंदा लगाकर जान दे दी। बीकेयू नेता राकेश fिटकैत रविवार को भिवानी के कितलाना में संयुक्त मोर्चा की ओर से आयोजित किसान रैली में पहुंचे। इस मौके पर टिकैत ने कहा कि कृषि कानूनों को रद्द न होने पर अनाज को रुपए की तरह से संभाल कर तिजोरी में रखना पड़ेगा। उन्होंने कहा कि जब तक तीनें कृषि कानून वापस नहीं हो जाते तब तक हमारी घर वापसी नहीं होगी। यह किसानों की पूंजीपूतियों से आजादी की लड़ाई है। टिकैत ने कहा कि कुछ नेताओं ने किसानों को सिख और गैर-सिख में बांटने की कोशिश की। लेकिन वे अपने मंसूबों में कामयाब नहीं हो पाए। अब हरियाणा और पंजाब के लोग संगठित हो गए है। खास सिस्टम मजबूत है और आज इसकी जरूरत भी है। टिकैत ने कहा कि तीनों कानून वापस लिए जाएं और एमएसपी पर कानून बनाया जाए और गिरफ्तार किसानों को रिहा किया जाए। जब तक सरकार इन तीनों कानूनों को वापस नहीं लेती तब तक ये आंदोलन जारी रहेगा। उन्होंने कहा यह जन आंदोलन है। यह फेल (नाकाम)। नहीं होगा। टिकैत ने दावा किया कि नए कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलन मजबूत होता जा रहा है। कई खाप नेता महापंचायत में मौजूद थे। दादरी से निर्दलीय विधायक और सांगवान खाप के प्रमुख सोमवीर सांगवान भी कार्यक्रम में मौजूद थे। उन्होंने पिछले साल दिसंबर में राज्य सरकार से समर्थन वापस ले लिया था। उन्होंने राज्य सरकार को किसान विरोधी करार दिया था। किसान संगठनों के बीच एकजुटता दिखाते हुए टिकैत ने कहा, मंच और पंच नहीं बदलेंगे। टिकैत ने एक बार फिर से पंजाब बीकेयू नेता बलबीर सिंह राजेवाल की सराहना की। उन्हेंने कहा कि राजेवाल हमारे बड़े नेता हैं। हम यह लड़ाई मजबूती से लड़ेंगे। किसान संगठनों के इरादे पक्के लगते हैं। वह आरपार की लड़ाई लड़ने के मूड़ में हैं। हम फिर दोहराते हैं कि सरकार को इन तीनों कानूनों को स्थगित कर देना चाहिए और इन किसानों की मांगों को (जो उन्हें सही लगती हैं) नए कानून में शामिल करके पारित करें। किसान मानने वाले नहीं हैं। यह बहुत लंबी लड़ाई लड़ने के मूड़ में हैं। सरकार को अविलंब कोई हल निकालना होगा। यह सरकार के हित में भी है, देश हित में भी और किसानों के हित में भी है।

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