Thursday 18 February 2021

सैनिकों की वापसी नहीं ये सरेंडर है

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता एवं पूर्व रक्षामंत्री एके एंटनी ने रविवार को आरोप लगाया कि गलवान घाटी एवं पैंगोंग झील इलाके से सैनिकों को पीछे ले जाना एवं बफर जोन बनाना भारत के अधिकारों का आत्मसमर्पण है। एंटनी ने संवाददाता सम्मेलन में यह भी कहा कि जब भारत सीमा पर कई चुनौतियों का सामना कर रहा है और दो मोर्चों पर युद्ध जैसी स्थिति बनी हुई है, ऐसे में रक्षा बजट में मामूली एवं अपर्याप्त वृद्धि देश के साथ विश्वासघात है। सरकार ने शुक्रवार को जोर देकर कहा था कि चीन के साथ सैनिकों को पूर्वी लद्दाख के पैंगोंग झील इलाके से पीछे हटने को लेकर इस समझौते में भारत किसी इलाके को लेकर कहीं भी झुका नहीं है। एंटनी ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सरकार राष्ट्रीय सुरक्षा को ऐसे समय में उचित प्राथमिकता नहीं दे रही है जब की चीन आक्रामक हो रहा है और पाकिस्तान की ओर से आतंकवाद को प्रोत्साहन जारी है। उन्होंने कहा कि सैनिकों को पीछे हटना अच्छा है क्योंकि इससे तनाव कम होगा लेकिन इसे राष्ट्रीय सुरक्षा की कीमत पर नहीं किया जाना चाहिए। एंटनी ने आरोप लगाया कि गलवान घाटी एवं पैंगोंग झील से पीछे हटना आत्मसमर्पण है। उन्होंने कहा कि यह आत्मसमर्पण करने जैसा है क्योंकि पारंपरिक रूप से इन इलाकें को भारत नियंत्रित करता रहा है। एंटनी ने आरोप लगाया, देश अपने अधिकारें का समर्पण कर रहा है। उन्होंने रेखांकित किया कि वर्ष 1962 में भी गलवान घाटी के भारतीय क्षेत्र होने पर विवाद था। पूर्व रक्षामंत्री ने कहा, सैनिकों को पीछे लाना और बफर जोन बनाना अपनी जमीन का आत्मसमर्पण करना है। उन्होंने चेतावनी देते हुए कहा कि सरकार सैनिकों की इस वापसी और बफर जोन बनाने के महत्व को भी समझ रही है। उन्होंने बताया कि चीन किसी भी समय पाकिस्तान की सियाचिन में मदद करने के लिए खुराफात कर सकता है। उन्हेंने कहा कि हम इस सरकार से जानना चाहते हैं कि पूरे भारत-चीन सीमा पर वर्ष 2020 के मध्य अप्रैल की जैसी पूर्व की स्थिति आएगी एवं इस संबंध में सरकार की क्या योजना है? उन्होंने कहा कि सरकार को सीमा पर यथास्थिति बहाल करने में देश और जनता को भरोसे में लेना चाहिए। उन्होंने कहा कि सरकार को ऐसा फैसला लेने से पहले सभी राजनीतिक पार्टियों के नेताओं से परामर्श करना चाहिए एवं राष्ट्रीय सुरक्षा को ध्यान में रखना चाहिए। एके एंटनी न केवल पूर्व रक्षामंत्री ही रह चुके हैं पर उन लीडरों में शामिल हैं जिन्हें आज भी इज्जत से देखा जाता है। जिनकी बात को गंभीरता से लिया जाता है।

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