Tuesday, 23 February 2021

असंतुष्टों को चुप कराने के लिए राजद्रोह कानून नहीं लगा सकते

दिल्ली की एक अदालत ने हाल ही में कहा कि उपद्रवियों के बहाने असंतुष्टों को चुप कराने के लिए राजद्रोह का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने उन दो लोगों को जमानत दे दी जिन पर किसान आंदोलन के दौरान फेसबुक पर फर्जी वीडियो डालने का आरोप था। पुलिस ने उनके खिलाफ राजद्रोह के आरोप में केस दर्ज किया है। अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश धर्मेंद्र राणा ने देवी लाल बुदरक और स्वरूप राम को जमानत देते हुए कहा कि शांति व्यवस्था बनाए रखे के लिए सरकार के हाथ में राजद्रोह कानून एक शक्तिशाली औजार है। हालांकि मुझे संदेह है कि आरोपी के खिलाफ धारा 124(ए) के तहत कार्रवाई की जा सकती है। न्यायाधीश ने 15 फरवरी को दिए गए अपने आदेश में कहाöहालांकि उपद्रवियों का मुंह बंद करने के बहाने असंतुष्टों को खामोश करने के लिए इसे लागू नहीं किया जा सकता। जाहिर तौर पर कानून ऐसे किसी भी कृत्य का निषेद्य करता है जिसमें हिंसा के जरिये सार्वजनिक शांति को बिगाड़ने या गड़बड़ी फैलाने की प्रवृत्ति हो। दरअसल देखने में यह आया है कि सरकार ने पिछले दो वर्षों में औसतन रोजाना नौ लोगों को राष्ट्रद्रोह कहते पाया। लेकिन कोर्ट में उनमें से प्रत्येक 100 में से केवल दो पर ही आरोप तय हो पाया। देशद्रोह की धारा 124ए (आईपीसी) के तहत जिन लोगों पर पुलिस ने मुकदमे किए, उनमें से अधिकांश नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के खिलाफ आंदोलन में शामिल थे। सुप्रीम कोर्ट की कई संविधान पीठों ने स्पष्ट कहा है कि चाहे कितने ही कठोर शब्दों में सरकार की निन्दा क्यों न की जाए, इस कृत्य को देशद्रोह नहीं मान सकते हैं। लेकिन शायद सरकार की परिभाषा कुछ अलग ही है, जिसमें प्रजातंत्र का सबसे बड़ा वरदान अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और उसके तहत सरकार की आलोचना भी सत्ता वर्ग को देशद्रोह लगता है। जहां 19 वर्षीय ग्रेटा थनबर्ग और 23 वर्षीय दिशा रवि उसे देशद्रोही दिखने लगते हैं। किसान आंदोलन का हर समर्थक आंदोलनजीवी या परजीवी लगने लगता है। दरअसल इंटरनेट के इस युग में विचार की सीमा देश से परे भी जाती है और वहां भारत का प्रवर्तन निदेशालय, आयकर विभाग या फिर स्थानीय पुलिस का डंडा काम नहीं करता। सरकार पर आरोप लगाए जा रहे हैं कि वह किसान आंदोलन से लोगों का ध्यान बटाने के लिए टूलकिट षड्यंत्र का एक हौवा खड़ा कर रही है। चूंकि देश में पिछले कुछ वर्षों से एक खास किस्म के राष्ट्रवाद की एक नई बयार चल रही है। लिहाजा सत्तापक्ष यह बताने में लगा है कि हर विरोध के पीछे विदेशी ताकतें हैं। 1970 के दशक के पूर्वार्द्ध में इंदिरा गांधी के हर भाषण में भी यही तकिया कलाम रहता था। आरके लक्ष्मण का एक कार्टून तब चर्चा में रहा, जिसमें दिखाया गया था कि एक महिला नेता कुछ नंगे-भूखे ग्रामीणों के बीच बता रही है कि कैसे विदेशी ताकतें देश की समृद्धि से जल रही हैं। आज भी किसानों का दुख-दर्द सुनने की जगह उनमें खालिस्तानी और विदेशी हाथ तलाशा जा रहा है। विदेशों में अनेक भारतवासियों सहित प्रसिद्ध लोगों ने सरकार के इस रवैये की निन्दा की है। ब्रिटेन के एक अखबार ने दिशा रवि की गिरफ्तारी को अभिव्यक्ति की आजादी पर कुठाराघात बताया है, जबकि कई देशों में वहां के सांसदों ने भारत में किसान आंदोलन को गला दबाने वाला प्रयास माना है। क्या यह सभी टूलकिट षड्यंत्र का हिस्सा हैं? देशभर में सख्त कानूनों का बेजा प्रयोग किसी सरकार को नहीं करना चाहिए।

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