Wednesday 17 February 2021

रावण के देश में पेट्रोल सस्ता तो राम के देश में महंगा क्यों?

भारत सरकार के पेट्रोलियम मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने राज्यसभा में तेल की बढ़ती कीमतों पर सवालों के जवाब दिए, धर्मेंद्र प्रधान ने तेल की कीमतों की पड़ोसी देशों से तुलना पर कहा कि ऐसा कहना सही नहीं होगा कि तेल की कीमतें अभी सबसे ज्यादा हैं। समाजवादी पार्टी के सांसद विशम्भर प्रसाद निषाद ने मंत्री से राज्यसभा में सवाल पूछा था कि सीता माता की धरती नेपाल में पेट्रोलियम पदार्थ भारत से सस्ते हैं? रावण के देश श्रीलंका में भी पेट्रोल-डीजल की भारत से कम कीमत है, तो फिर राम के देश में सरकार पेट्रोल-डीजल के दाम कब कम करेगी? मंत्री जी ने कहाöऐसा कहना ठीक नहीं है कि ईंधन तेल की कीमतें अभी सबसे ज्यादा हैं। उन्होंने कहा कि देश में पेट्रोल और डीजल की कीमतें एक अंतर्राष्ट्रीय मूल्य प्रणाली के तहत नियंत्रित होती हैं और यह मिथ्या अभियान चलाने का प्रयास किया जा रहा है कि ईंधन की कीमतें अब तक के उच्च स्तर पर हैं, पेट्रोल-डीजल के रोज बढ़ रहे दामों ने आम आदमी की जेब और दिल में तो आग लगाई ही है, विपक्षी दलों को भी भाजपा पर वार करने का मौका दे दिया है। आज दिल्ली में पेट्रोल 89.29 रुपए प्रति लीटर तो डीजल 79.70 रुपए प्रति लीटर पहुंच गया है। लगभग हर शहर में दोनों के दाम ऑल टाइम ऊंचाई पर हैं। घरेलू बाजार में लगातार चौथे दिन ईंधनों में आग लगी हुई है। नया साल पेट्रोलियम पदार्थों व ईंधनों के लिए अच्छा नहीं रहा है। जनवरी और फरवरी में महज 16 दिन पेट्रोल महंगा हुआ। लेकिन इतने दिनों में यह 04.33 रुपए महंगा हो गया। मुंबई में पेट्रोल 94 रुपए पार चला गया है जो मेट्रो शहरों में सबसे ज्यादा है। बीते साल की दूसरी छमाही में भी पेट्रोल के दाम खूब बढ़े थे। 10 महीने में इसके दाम में करीब 10 रुपए प्रति लीटर की बढ़ोत्तरी हो चुकी है। आम आदमी पार्टी (आप) और कांग्रेस नेताओं का आरोप है कि आम लोगों की बजाय मोदी सरकार सिर्फ पूंजीपतियों के लिए काम कर रही है। पेट्रोलियम पदार्थों के दाम बढ़ने का असर ट्रांसपोर्ट से लेकर उद्योगों तक पड़ता है। इससे बाजार में हर वस्तु की कीमत बढ़ती है। दूसरी तरफ भाजपा नेताओं का कहना है कि अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के रेट बढ़ने का असर है। फिर भी पिछली सरकारों के मुकाबले पेट्रोल-डीजल के दामों में कम इजाफा हुआ है। लगातार बढ़ रहे डीजल के दामों में ट्रांसपोर्ट बिजनेस घाटे में चला गया है। ट्रांसपोर्टर का 60 प्रतिशत खर्च डीजल का है। मार्जन काफी कम है और कॉम्पीटीशन में काम कर रहे हैं। भाड़ा भी नहीं बढ़ा है। सरकार नहीं चेती तो गाड़ियां खड़ी करने पर मजबूर होंगे ट्रांसपोर्टर और अपने कागजों को सरेंडर कर देंगे। गाड़ियों का लोन होता है, किस्त तक नहीं चुका पा रहे हैं। कोविड-19 की वजह से धंधा वैसे ही चौपट हो गया है और अब डीजल प्राइस की मार झेलनी पड़ रही है। जब रोजमर्रा की वस्तुएं महंगी हो जाएंगी तो कमजोर तबके की पहले से टूटी कमर और भी झुक जाएगी।

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