Tuesday, 31 July 2012
अन्ना के आंदोलन को पब्लिक रिस्पांस की कमी?
पाक टीवी चैनल में हिन्दू के धर्म परिवर्तन का लाइव कवरेज
अनिल नरेन्द्र
Monday, 30 July 2012
पाकिस्तानी सुप्रीम कोर्ट का समोसा न्याय
Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi Published on 31 July 2012 अनिल नरेन्द्र
पाकिस्तान की सुप्रीम कोर्ट पिछले काफी समय से सुर्खियों में है। राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी, प्रधानमंत्री राजा परवेज अशरफ से अदालत की खुली जंग के दौरान एक दिलचस्प किस्सा सामने आया। पाकिस्तान का सुप्रीम कोर्ट किस तरह छोटे से छोटे मामले में दखलअंदाजी कर रहा है इस केस से पता चलता है। मसला था पाकिस्तान में समोसे के बिकने के दाम का। देश की सुप्रीम कोर्ट ने समोसे की कीमतों को लेकर सरकार और दुकानदारों के बीच चल रहे संघर्ष में एक अहम फैसला दिया है। कोर्ट ने पंजाब प्रांत के उस आदेश को खारिज कर दिया है, जिसमें कहा गया था कि दुकानदार समोसे को छह रुपए (भारत के साढ़े तीन रुपए) से ज्यादा में नहीं बेच सकते। प्रांतीय सरकार के इस फैसले के खिलाफ पंजाब बेकर्स एण्ड स्वीट्स फैडरेशन ने शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाया था। पाकिस्तान में समोसे बेहद लोकप्रिय हैं और रमजान के महीने में इसकी बिक्री आसमान छूने लगती है। लेकिन कुछ वर्षों से इसकी बढ़ती कीमत को लेकर लोग नाराज थे। इस पर 2009 में लाहौर प्रशासन ने समोसे की कीमत (अधिकतम) छह रुपए तय कर दी थी और एक न्यायिक आदेश के तहत महंगा बेचने वाले दुकानदारों पर जुर्माना लगाने का प्रावधान किया गया था। पंजाब बेकर्स एण्ड स्वीट्स फैडरेशन ने उस समय भी इस फैसले के खिलाफ याचिका दायर की थी लेकिन लाहौर हाई कोर्ट ने उसे खारिज कर दिया था। तब फैडरेशन ने सुप्रीम कोर्ट की शरण ली। सुप्रीम कोर्ट एक बार देश में चीनी की कीमतों को नियंत्रित करने के प्रयास भी कर चुका है, लेकिन फिर भी वह तय कीमत से ज्यादा पर बिकती है। पंजाब बेकर्स एण्ड स्वीट्स फैडरेशन ने तर्प दिया था कि समोसा पंजाब खाद्य पदार्थ (नियंत्रण) कानून 1958 की सूची में नहीं है। ऐसे में प्रांतीय सरकार इसका मूल्य तय नहीं कर सकती जबकि पंजाब सरकार के वकील का तर्प था कि जनहित में वह ऐसा कर सकती है। पाकिस्तानी मीडिया के एक वर्ग ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा समोसे का मामला संज्ञान में लेने और फैसला देने की खिल्ली उड़ाई है। अखबार `डान' ने इसे सुप्रीम कोर्ट के फैसले को `समोसा न्याय' करार दिया है। उसने अपने सम्पादकीय में लिखा है, `दुकानदारों को तो इससे फायदा होगा, लेकिन देश के सैकड़ों अहम मामलों में इंसाफ का इंतजार कर रहे लाखों लोगों को अपनी बारी आने की राह देखनी होगी। उसने कहा है कि आप लाहौर के किसी भी बाजार में चले जाएं, समोसा छह रुपए से ज्यादा में ही बिक रहा है। ऐसे में क्या कोर्ट को अपना कीमती वक्त समोसे में खराब करना चाहिए।' हमारा भी मानना है कि जहां देश में इतनी राजनीतिक अस्थिरता का दौर चल रहा हो, कानून व्यवस्था की गम्भीर लड़ाई चल रही हो, देश की सर्वोच्च अदालत को ऐसे छोटे-छोटे महत्वपूर्ण मुद्दों से बचना चाहिए। हम समझ सकते थे कि अगर आटा, चावल, चीनी, दूध जैसे अत्यन्त जरूरी खाद्यान्न की कीमत पर सुप्रीम कोर्ट कीमतों को नियंत्रित करने में लगता पर समोसे जैसे स्नैक्स पर टाइम बर्बाद करना???
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मायावती की मूर्तियां तोड़ने की जगह विकास, कानून व्यवस्था, समृद्ध खेती पर ज्यादा ध्यान दें
अनिल नरेन्द्र
Saturday, 28 July 2012
अगर मैं दोषी हूं तो मुझे फांसी पर लटका दें ः नरेन्द्र मोदी
भाजपा के प्रभावी प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार और गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी पिछले कुछ समय से अखबारों व टीवी की सुर्खियों में पहले से ज्यादा आ रहे हैं। नरेन्द्र मोदी धीरे-धीरे अपनी नई राजनीतिक भूमिका के लिए तैयार हो रहे हैं। इसी के तहत उन्होंने अपनी राजनीति में लगे गुजरात के 2002 सांप्रदायिक दंगे के दाग-धब्बे हटाने के लिए कवायद तेज कर दी है। वे चाहते हैं कि अब उनका चेहरा किसी तरह से पूरे देश में स्वीकार्य बन जाए। दिल्ली से प्रकाशित होने वाले उर्दू के अखबार नई दुनिया के सम्पादक और समाजवादी पार्टी के राज्यसभा सांसद शाहिद सिद्दीकी को दिए एक इंटरव्यू में मोदी ने उन तमाम सवालों का जवाब दिया या सफाई दी, जो पिछले 10 वर्षों से उनका पीछा नहीं छोड़ रहे। मोदी ने एक बार फिर इन दंगों को लेकर माफी मांगने से इंकार किया है और कहा है कि ऐसी मांग का अब कोई मतलब नहीं। गोधरा कांड के बाद हुए गुजरात के दंगों के बारे में उन्होंने कह दिया है कि यदि दंगों में उनकी भूमिका गुनहगार की हो तो वे फांसी पर चढ़ने को तैयार हैं। लेकिन वह गुजरात दंगों के लिए देश से माफी मांगने को तैयार नहीं। जब उनसे कहा गया कि 1984 में हुए सिख विरोधी दंगों के लिए कांग्रेस प्रमुख सोनिया गांधी और प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने सिख समाज और देश से माफी मांग ली थी तो गुजरात के दंगों के लिए वे इसी तरह से माफी क्यों नहीं मांग लेते? इस सवाल पर मोदी ने यही कहा कि जब उन्होंने और उनकी सरकार ने दंगों की आग भड़काने में कोई भूमिका ही नहीं निभाई तो वे माफी क्यों मांगें? मोदी ने चुनौती देने के लहजे में कहा कि यदि उनकी भूमिका दंगों के गुनहगार की पाई जाए तो वह माफी नहीं चाहेंगे बल्कि फांसी का फंदा चाहेंगे। मोदी ने मनमोहन सिंह और सोनिया गांधी की माफी मांगने की राजनीतिक शैली पर तीखा कटाक्ष करते हुए कहा कि वे माफी मांगने की पाखंडी राजनीति नहीं करना चाहते। श्री नरेन्द्र मोदी से प्रश्न किया जा सकता है कि क्या सोनिया, राजीव और मनमोहन सिंह द्वारा 1984 के दंगों के लिए यह अर्थ निकलता है कि वे खुद हिंसा करने वालों में शामिल थे? अगर उन्होंने माफी मांगी तो इसके पीछे हमें दो कारण नजर आते हैं ः पहलाöउस दौरान शासन के अपने संवैधानिक कर्तव्य से मुंह मोड़ना, दूसराöआहत सिख समुदाय का भरोसा जीतना। दरअसल सरकार के निर्णायक पद पर बैठे व्यक्ति का आंकलन इस बात से होता है कि संकट की घड़ी में उसने क्या किया? असम में पिछले 10 दिनों से नस्ली हिंसा हो रही है। मुख्यमंत्री तरुण गोगोई बेशक खुद दंगे के जिम्मेदार न हों पर इससे इंकार नहीं किया जा सकता कि समय रहते उन्होंने दंगा रोकने के लिए जरूरी उचित कदम नहीं उठाए और दंगा बढ़ता गया। गुजरात दंगों के साथ नरेन्द्र मोदी की भूमिका पर तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी भी यह कहने पर मजबूर हो गए थे कि मोदी को राजधर्म निभाना चाहिए। राजनीतिक हलकों में मोदी की पिछले दिनों से शुरू हुई मीडिया अभियान की चर्चा तेज हुई है। यही माना जा रहा है कि वे अगले चुनाव में पक्के तौर पर राष्ट्रीय राजनीति में अपना हाथ आजमाना चाहते हैं। इसी रणनीति के तहत वे उर्दू अखबारों को इंटरव्यू देने में परहेज नहीं कर रहे। वे यह जताना चाहते हैं कि वे वास्तव में इतने कट्टर हिन्दूवादी नहीं हैं, जितना उन्हें समझा जा रहा है या प्रचारित किया जा रहा है। कई मौकों पर वे कह चुके हैं कि अहमदाबाद सहित राज्य के कई शहरों में निवास करने वाली मुस्लिम आबादी लगातार खुशहाल हो रही है। पिछले 10 सालों में राज्य में एक भी सांप्रदायिक दंगा नहीं हुआ। हालांकि विपक्षी दलों ने सांप्रदायिकता की आग भड़काने के लिए कई अफवाहें भी फैलाने की कोशिशें कीं लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिली। सवाल यह है कि मोदी अगर कोई नई बात नहीं कर रहे और गुजरात दंगों को लेकर उनका स्टैंड और सफाई वही है तो फिर उनकी कही बातों को लेकर इतना सियासी बवाल अब क्यों मचा है? असल में असली खेल टाइमिंग का है। 2014 में वह भाजपा और एनडीए की तरफ से प्रधानमंत्री पद के सम्भावित उम्मीदवार बनना चाहते हैं पर इसके लिए उन्हें इस साल के आखिर में गुजरात विधानसभा चुनाव में न सिर्प एक बार फिर जीत दिलानी होगी बल्कि एक बड़ी जीत दर्ज करनी होगी। मोदी को यह परीक्षा तब देनी है जब उनका अपना दल, राज्य और गठबंधन में ही उनको लेकर असमंजस की स्थिति बनी हुई है। वे जानते हैं कि राष्ट्रीय राजनीति में भाजपा का नेतृत्व करने और अगले आम चुनाव में प्रभावी प्रधानमंत्री बनकर उभरने की उनकी महत्वाकांक्षा तभी पूरी हो सकती है जब उनकी छवि सुधरे और वह एक सर्वमान्य नेता बन सकें। अभी तो उनके नाम को लेकर संघ को छोड़ न तो भाजपा में एका है और एनडीए में तो खुली दरार है।
किंग जॉर्ज को सलामी देती नई समाजवादी पार्टी
उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव सरकार के आठ जिलों के नाम बहाल करने के फैसलों की आमतौर पर सराहना हो रही है। उत्तर प्रदेश की समाजवादी पार्टी सरकार ने राज्य के आठ जिलों के नाम बदल दिए हैं। ये जिले मायावती के मुख्य मंत्रित्वकाल में सृजित किए गए थे। साथ में लखनऊ स्थित छत्रपति शाहू जी महाराज मेडिकल विश्वविद्यालय अब फिर से किंग जॉर्ज मेडिकल विश्वविद्यालय के नाम से जाना जाएगा। मंत्रिपरिषद ने जनपद प्रबुद्ध नगर का नाम शामली, भीम नगर का नाम सम्भल तथा पंचशील नगर का नाम बदलकर हापुड़ करने का निर्णय किया है। इसी प्रकार जनपद महामाया नगर का नाम हथरस, जनपद ज्योतिबाफुले नगर का नाम अमरोहा, जनपद कांशीराम नगर का नाम कासगंज, जनपद छात्रपति शाहू जी महाराज नगर का नाम अमेठी तथा जनपद रमाबाई नगर का नाम परिवर्तित कर कानपुर देहात रखने का फैसला किया है। गौरतलब है कि इन जनपदों के निवासियों एवं जन प्रतिनिधियों की ओर से इस आशय की मांग की जाती रही है कि इन जनपदों के नाम से कोई शहर नहीं है, जिससे इन जनपदों की स्थिति की जनकारी नहीं हो पाती। इसके अलावा प्रदेश व प्रदेश के बाहर के लोगों को अपनी पहचान बताने, गंतव्य स्थान बताने तथा शासकीय अभिलेख बनवाने में अनेकों समस्याओं का सामना भी करना पड़ता था। इसलिए अखिलेश सरकार ने आठ जनपदों के नाम परिवर्तित करने का निर्णय लिया। रहा सवाल छत्रपति शाहू जी महाराज चिकित्सा विश्वविद्यालय, लखनऊ का नाम फिर से किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय करने के फैसले पर जरूर थोड़ा विवाद हो रहा है। 70 के दशक में लोहिया का नारा उछालते हुए उत्तर प्रदेश की इस राजधानी लखनऊ में अंग्रेजी का इतना तीखा विरोध होता था कि अंग्रेजी में लिखे सारे होर्डिंग पर कालिख पोत दी जाती थी। उस दौर में समाजवादी आंदोलन के कारण हाई स्कूल में अंग्रेजी विषय को ऐच्छिक कर दिया गया था। मगर पिछले विधानसभा चुनाव में समाजवाद का चाल-चरित्र और चेहरा तीनों बदले तो दूसरे दल भी सकते में आ गए। समाजवादी पार्टी के नए चेहरे अखिलेश यादव ने टैबलेट और लैपटॉप का नया नारा दिया और पुराना रिकार्ड तोड़ बहुमत के साथ सत्ता में आए। सरकार के इस फैसले से कार्यकर्ताओं में भी चिन्ता बढ़ी है। क्योंकि यह ऐसा कोई काम नहीं था जिसे यह सरकार प्राथमिकता पर करे। खासकर बिजली से लेकर किसानों की अन्य समस्याओं को देखते हुए। रोचक तथ्य यह है कि लखनऊ के मशहूर चिड़िया घर का नाम आज भी प्रिन्स ऑफ वेल्स ज्यूलोजिकल गार्डन के नाम से जाना जाता है। न तो कभी मायावती के राज में यह बदला और न ही मुलायम के राज में। हालांकि एक तबके का मानना है कि किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय का नाम बहाल करना था तो बेहतर होता कि नया नाम आचार्य नरेन्द्र देव, एसएम जोशी, राम मनोहर लोहिया, जय प्रकाश नारायण, मधु लिमये, सुरेन्द्र मोहन जैसे किसी भी नेता के नाम पर रखते बजाय किंग जॉर्ज के। हालांकि यह भी कहा जा सकता है कि किंग जॉर्ज अंतर्राष्ट्रीय ख्याति पा चुका है, इस दृष्टि से वही पुराना नाम सही था। पिछले चुनाव में एक तबका सपा के समर्थन में ऐसा आया जो अंतर्राष्ट्रीय चश्मे से समाज को देखता है, उसका मानना है कि अखिलेश के इस फैसले से मेडिकल क्षेत्र में फिर से राज्य की प्रतिष्ठा बहाल होगी।
Friday, 27 July 2012
राजस्थान, हरियाणा के बाद अब दिल्ली में गुटखा पर प्रतिबंध
दिल्ली में जल्द ही प्रतिबंधित किए जाने की बात ने हजारों करोड़ रुपए के गुटखे बाजार में भूचाल ला दिया है। ब्लैक करने वालों ने तीन दिनों के भीतर गुटखे को सही दाम से दोगुने रेट पर पहुंचा दिया है। फुटकर में एक रुपए का बिकने वाला गुटखा दो रुपए में बिक रहा है। राजस्थान और हरियाणा में गुटखे पर प्रतिबंध लग चुका है। अब अफवाह है कि दिल्ली में भी जल्द गुटखे पर बैन लगने वाला है। हालत यह है कि सेंसेक्स की तरह एक दिन में कई बार गुटखे के दाम में उछाल आ रहा है। सेंसेक्स में तो गिरावट भी दर्ज होती है पर गुटखे बाजार में तो गिरावट की बात तो दूर उछाल हो रहा है। एक दिन में कई बार दामों में बदलाव होने से गुटखा खाने वालों का सिर तम्बाकू के दाम सुनकर चकरा रहा है। हालांकि सादा पान मसाला अपने रेट पर कायम है। बाजार में एक अगस्त से गुटखे पर प्रतिबंध लगाने की बात आग की तरह फैली हुई है। पान बिकेता को एजेंसी से ही प्रिंटेड रेट से कहीं ज्यादा पैसे में गुटखा मिल रहा है जिसमें भी सुबह-शाम परिवर्तन हो रहा है। हालत यह है कि सेल्समैन से रात में गुटखा खरीदने पर कुछ तो सुबह उसी गुटखे का दाम कुछ हो जाता है। दामों के बढ़ने की वजह से खरीददार से भी खटपट होती है। उन्होंने बताया कि गुटखा एजेंसी ब्लैक करने में लगी हुई है। राजधानी में गुटखे बिक्री पर जल्द ही प्रतिबंध लग सकता है। दिल्ली सरकार आगामी कैबिनेट बैठक में इस संबंध में एक विधेयक लाने की तैयारी कर रही है। दरअसल दिल्ली में बिक रहे कई नामी कम्पनियों के गुटखे में निकोटिन पाया गया है। यह खुलासा दिल्ली के खाद्य अपमिश्रण विभाग ने एक जांच के बाद किया है। फूड एण्ड सेफ्टी एक्ट के मुताबिक बिना चेतावनी के निकोटिन युक्त पदार्थ बेचने पर दो लाख रुपए का जुर्माना या छह महीने से लेकर आजीवन कारावास हो सकता है। दिल्ली के स्वास्थ्य मंत्री अशोक वालिया ने बताया है कि जांच के दौरान गुटखे में निकोटिन पाया गया है। इन उत्पादों की बिक्री पर प्रतिबंध लगाने के लिए सरकार एक विधेयक लाएगी। पिछले साल सितम्बर और अक्तूबर में विभिन्न इलाकों से गुटखे के छह सैम्पल एकत्रित किए गए थे। इनमें दिलबाग, संजोग, स्वागत और शिखर कम्पनियों के उत्पाद शामिल हैं। दिलबाग के दो उत्पाद लिए गए थे। इनमें से एक में 2.62 और दूसरे में 2.17 प्रतिशत निकोटिन पाया गया था। संयोग से कम्पनी के उत्पाद में 1.41 प्रतिशत निकोटिन निकला। दिल्ली इंस्टीट्यूट ऑफ फार्मास्यूटिकल एण्ड रिसर्च के सेंटर प्रिंसिपल प्रो. एसएल अग्रवाल कहते हैं कि निकोटिनयुक्त पदार्थों के सेवन से ब्रेन स्टिम्यूलेट हो जाता है। डिप्रेशन आ सकता है। इसके अलावा शरीर में मौजूद गोगलीन ब्लॉक हो जाता है। इससे स्वचालित शारीरिक गतिविधियां मसलन दिल का धड़कना, सांस लेना जैसी क्रियाएं मंद पड़ जाती हैं। यह सही है कि गुटखा सेहत के लिए हानिकारक होता है पर शराब और सिगरेट पीना भी तो हानिकारक होता है। केवल कानून बनाने से इसकी बिक्री नहीं रोकी जा सकतती। करोड़ों-अरबों रुपए का उद्योग भी तो है जिससे सरकार को भी करोड़ों का फायदा होता है। फिर उपभोक्ता कह सकता है कि आपका फर्ज है यह बताना कि यह हानिकारक है पर लेना या न लेना यह फैसला हम ही कर सकते हैं।
अमरनाथ यात्रा को हर लिहाज से सुरक्षित बनाया जाए
यह बहुत संतोष की बात है कि सुप्रीम कोर्ट ने अमरनाथ यात्रियों की मौतों पर असंतोष जताते हुए एक पैनल की नियुक्ति की है जिसका उद्देश्य होगा कि यात्रा के दौरान श्रद्धालुओं की बढ़ती मौतों की संख्या पर कैसे अंकुश लगाया जा सके? सरकारी आंकड़ों के अनुसार भी इस साल 98 से ज्यादा मौतें अमरनाथ यात्रा में हो चुकी हैं। गत दिनों भाजपा का एक प्रतिनिधिमंडल गृहमंत्री पी. चिदम्बरम से भी मिला। सुषमा स्वराज, अरुण जेटली के प्रतिनिधित्व में भाजपा ने एक ज्ञापन भी गृहमंत्री को सौंपा। अमरनाथ यात्रा की अवधि बढ़ाए जाने की मांग करते हुए भाजपा ने आरोप लगाया है कि इस बार वहां तीर्थ यात्रा के दौरान रिकार्ड संख्या में श्रद्धालुओं की मौत की मुख्य वजह जम्मू-कश्मीर सरकार का कुप्रबंधन और यात्रा का समय घटाना है। गृहमंत्री से मुलाकात करने के बाद सुषमा ने बताया कि उन्होंने यह मांग भी की है कि श्री अमरनाथ श्राइन बोर्ड में बाबा अमरनाथ में आस्था रखने वालों को ही स्थान दिया जाए। उन्होंने कहा कि अभी इस बोर्ड में 70 फीसद गैर हिन्दू हैं जो इस सिद्धांत के खिलाफ हैं कि किसी धर्म विशेष के आस्थास्थल संबंधी संचालन बोर्ड में केवल आस्था रखने वाले ही शामिल होने चाहिए। इस बार अमरनाथ यात्रा पर गए श्रद्धालुओं में से 98 की मौत हो चुकी है जो बहुत चिन्ता की बात है। उन्होंने कहा कि इस भयावह स्थिति की मुख्य वजह यह है कि बोर्ड ने न जाने किस कारण से इस बार यात्रा के दिनों को 60 से घटाकर 39 कर दिया है। एक ओर श्रद्धालुओं की संख्या बढ़कर आठ लाख हो गई है तो दूसरी ओर यात्रा की अवधि घटाकर 39 दिन किए जाने से यह भयावह स्थिति उत्पन्न हुई है। अमरनाथ यात्रा के दुर्गम पहाड़ी क्षेत्र में `मानव समिति कतार व्यवस्था' बनाने से भी हालात बद से बदतर हुए हैं। इसके चलते ऊंची पहाड़ियों, भारी वर्षा और अत्यधिक सर्दी में श्रद्धालुओं को दो से पांच दिन तक कतार में खड़े रहना पड़ रहा है। चिकित्सकों का भी कहना है कि जलवायु अनुकूलन का अभाव, अधिक ऊंचाई से संबंधित बीमारियां, फर्जी स्वास्थ्य प्रमाण पत्र और व्यवस्था गत विफलता मौतों में वृद्धि का कारण हो सकते हैं। जम्मू-कश्मीर सुपर स्पेशियलटी अस्पताल शेर-ए-कश्मीर चिकित्सा विज्ञान संस्थान में चिकित्सा विभाग के प्रमुख परवेज कौल ने कहा कि तीर्थयात्रियों की मौत में सम्भवत जो एक प्रमुख कारण योगदान कर रहा है, वह है स्थानीय जलवायु में अनुकूलता का अभाव। अधिक ऊंचाई पर यात्रा करने से पहले जलवायु अनुकूलन हर हाल में होना चाहिए। कौल ने कहा कि तीर्थयात्रा बालाटाल और पहलगाम से उठते हैं और बगैर किसी उचित जलवायु अनुकूलन के ऊंचाइयों पर चढ़ना शुरू कर देते हैं। अधिक ऊंचाई की बीमारियां तथा उससे संबंधित समस्याओं से बचने के लिए तीर्थयात्रियों के लिए जलवायु अनुकूलन अनिवार्य होना चाहिए। तीर्थयात्रियों के लिए चिकित्सा सुविधाओं और उनके ठहरने के शिविरों का भी भारी अभाव है। दर्शन करने वालों की सुविधा के लिए पहलगाम, चन्दनवाड़ी और बालाटाल में बुनियादी सुविधाओं से लैस स्थायी यात्रा गृह बनाए जाएं जिनमें श्रद्धालुओं को ठहराने की क्षमता हो। इसके अलावा बालाटाल और जूनावार में 200 बिस्तरों वाले और यात्रा मार्ग में जगह-जगह चार-पांच अन्य छोटे अस्पताल खोलने होंगे। अमरनाथ यात्रा हिन्दू-मुस्लिम एकता का प्रतीक है जो जम्मू-कश्मीर की अर्थव्यवस्था को भी बड़ा योगदान देती है। सुरक्षा की दृष्टि से भी खतरा रहता है। उम्मीद है कि अमरनाथ यात्रा को और सुरक्षित बनाने पर सरकार पूरा ध्यान देगी। हर-हर महादेव।
हम गरीब देश हैं फिर भी सोने का इतना मोह
इस सम्पादकीय और पूर्व के अन्य संपादकीय देखने के लिए अपने इंटरनेट/ब्राउजर की एड्रेस बार में टाइप करें पूूज्://हग्त्हाह्ंत्दु.ंत्दुेज्दू.म्दस् सोने से भारतीयों का लगाव सामाजिक और सांस्वृतिक परम्परा का हिस्सा है। जब देश को सोने की चििड़या पुकारा जाता था तब इस कीमती धातु के प्राति दीवानगी समझी जा सकती थी, मगर अब भारत गरीब मुल्कों में शुमार है। ऐसे में घर पर ज्यादा खर्च करना शायद मुनासिब न हो। वह भी जब यह अनुत्पादक निवेश है और हर साल अरबों डॉलर की विदेशी मुद्रा इसके आयात पर खर्च करनी पड़ती है। इससे चालू खाते में घाटा लगातार बढ़ता जा रहा है जिसका सीधा असर भारत की अर्थव्यवस्था पर पड़ रहा है। सिर्प मानसिक संतुष्टि के लिए किए जाने वाले इस खर्च पर लगाम लगाने के लिए मानसिकता बदलने की जरूरत है। |
कोकराझार में न थमने वाली हिंसा के पीछे क्या कारण है?
Thursday, 26 July 2012
कांग्रेस किस हद तक गठबंधन धर्म निभाने को तैयार है?
रासायनिक हथियार पयोग करने की असद सरकार की धमकी
Wednesday, 25 July 2012
कहीं आपकी जेब में तो जाली नोट नहीं है?
आतंकियों का फंडिंग बैंक
Tuesday, 24 July 2012
शरद पवार की लड़ाई नम्बर दो की हैसियत की नहीं है
आचार्य बालकृष्ण की गिरफ्तारी के पीछे असल उद्देश्य क्या है?
Sunday, 22 July 2012
क्या राहुल गांधी प्रधानमंत्री पद सम्भालने के लिए तैयार हैं?
Saturday, 21 July 2012
Controversial decision about Indo-Pak cricket matches
--Anil Narendra
काका का आखिरी डायलॉग ः टाइम हो गया पैकअप
बच्चों को पिज्जा-बर्गर कम भारतीय व्यंजन ज्यादा दें
Friday, 20 July 2012
Lashkar, the most dangerous terror outfit and Pakistan, the most dangerous country
According to terrorist Hafiz Saed and recently arrested Abu Jandal, Lashkar-e-Taiba and ISI were directly behind the 26/11 Mumbai terror attacks. The presence of ISI officer, Major Sameer Ali at the Karachi Control Room during the Mumbai attack on 26th November, 2008 is sufficient to prove of Lashkar-ISI combine in abetting terrorism against India and the world. It would not be wrong to say that as on today, Lashkar-e-Taiba is more dangerous terrorist organization than al Qaeda and Pakistan has become most dangerous country of the world in this respect. A former ISI officer has also recently accepted that Lashkar-e-Taiba is the most dangerous terror outfit. Former CIA Analyst, Bruce Riddle, who is at present a Professor at Johns Hopkins School, has said that Lashkar is an independently controlled outfit in Pakistan and it continues to maintain strong operational connection with Pakistani security forces and country's spy agency. Since Riddle is working with a private institution, as such his opinion cannot be construed as the official opinion of the US administration, but the views of governments are formed on the basis of country's strategists' considered views. A few days back, Lashkar was not being considered that seriously. It was considered to be a boastful organization, active in the southern part of Pakistani Punjab, who sometimes wants jihadi flag fluttering at Lal Qila and at White House also. The US government thinks that the Lashkar is among dozens of such organizations. US is also not much worried, because it cannot attack it, but 26/11 has also forced it to change its opinion. Bruce Riddle thinks that at present, the status of Lashkar-e-Taiba among the terrorist organizations of the world is highest, because Pakistan government dare not touch it and this outfit has the support of Pakistan Army and its spy agency ISI in one form or the other. According to a report, founder of Lashkar, Hafiz Saed formally participates in the meetings of Corps Commanders of Pakistani Army. There is not a single terrorist organization in the world whose men participate in rallies brandishing their arms and even after revelation of names of its citizens in terror attacks on other country, Pakistan does not restrict its activities and to tell the truth is doesn't care also. To reach to this conclusion, Riddle has linked 26/11 with three major arrests that of Amir Ajmal Kasab, David Coleman and Abu Jindal and based his conclusion on this. One thing is clear from the statements of these three persons that ISI and some officers of the Pakistani Army were also involved in planning the 26/11 attack. Even today, Pakistan considers this attack as the action of 'non-State actors'. A Pak Minister has, recently gone to the extent saying that some persons within India had a major role in 26/11 Mumbai attack. Irrespective of denials by Pakistan, arrests one after other, prove its involvement in these attacks. True face of Pakistan is coming before the world. Bruce Riddle says that if the governments of other Gulf countries display such promptness as shown by Saudi Arabia in arresting Abu Jindal, in providing funds and protection to terror organizations like Lashkar-e-Taiba, then its back can be broken like al Qaeda's. In fact, the real problem is that the aid given to Pakistan by US finds its way to the coffers of the Lashkar-like terror organizations and so long America would not consider these organizations as headache for itself, it would not evince interest in tackling these outfits. Today, Lashkar-e-Taiba has become the most dangerous terror organization and Pakistan, the most dangerous country.
-- Anil Narendra
Decisive battle between Pak Supreme Court and Zardari
--Anil Narendra