Wednesday, 27 February 2013

फिर रावण वंशजों के दबाव में केंद्र सरकार ने रामसेतु तोड़ने की रट दोहराई



 Published on 27 February, 2013 
 अनिल नरेन्द्र
यह अत्यंत दुख की बात है कि मनमोहन सिंह की यह यूपीए सरकार पौराणिक और करोड़ों भारतीयों की आस्था के प्रतीक भगवान राम द्वारा बनाए गए रामसेतु को तोड़ने पर अडिग है। केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से कहा है कि 829 करोड़ रुपए खर्च करने के बाद इस परियोजना (सेतु समुद्रम परियोजना) को बन्द नहीं किया जा सकता। अपनी परियोजना को आर्थिक और पर्यावरण के लिहाज से सही ठहराते हुए केंद्र ने वैकल्पिक मार्ग के लिए गठित पर्यावरणविद् आरके पचौरी समिति की सिफारिश नकार दी है। सुप्रीम कोर्ट में दायर हल्फनामे में जहाजरानी मंत्रालय ने कहा है कि भारत सरकार ने बहुत शीर्ष स्तर के शोध के आधार पर परियोजना को हरी झंडी दी है। परियोजना को पर्यावरण मंत्रालय से भी मंजूरी मिल गई है। पर्यावरण की शीर्ष संस्था नीरी ने भी परियोजना को आर्थिक तथा परिस्थितिकीय तौर पर ठीक बताया है। हल्फनामे में कहा गया है कि सेतु समुद्रम परियोजना सहित पचौरी समिति ने अपनी रिपोर्ट में वैकल्पिक मार्ग को साफ तौर पर नकार दिया है। समिति ने कहा था कि सेतु समुद्रम परियोजना आर्थिक एवं पर्यावरण की दृष्टि से ठीक नहीं है। मंत्रालय के उपसचिव अनंत किशोर ने कोर्ट में हल्फनामे में यह भी कहा है कि केंद्र ने 2007 में विशिष्ठ व्यक्तियों की एक समिति का गठन किया था। उसकी ओर से इस परियोजना को मंजूरी प्रदान की गई थी। कमेटी का कहना था कि परियोजना समुद्र मार्ग निर्देशन, रणनीतिक लिहाज से और आर्थिक लाभ के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। उल्लेखनीय है कि केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से आग्रह किया है कि रामसेतु के मुद्दे पर दायर याचिकाओं का अदालत निपटारा कर दे। सुप्रीम कोर्ट में सरकार की महत्वाकांक्षी सेतु समुद्रम परियोजना के खिलाफ कई याचिकाएं दायर हैं। यह परियोजना पौराणिक रामसेतु को तोड़कर भारत के दक्षिणी हिस्से के इर्द-गिर्द समुद्र में छोटा नौवाहन मार्ग बनाने पर केंद्रित है। यहां यह बताना जरूरी है कि यह परियोजना द्रमुक नेताओं ने बनाई थी और इसके पीछे एकमात्र उद्देश्य परियोजना से पैसा कमाना है। परियोजना से जुड़ी सभी कम्पनियां द्रमुक नेताओं और उनके रिश्तेदारों को करोड़ों रुपए कमाने के लिए बनी हैं। इस परियोजना के तहत समुद्र क्षेत्र में 167 किलोमीटर लम्बा, 30 मीटर चौड़ा और 12 मीटर गहरा नौवाहन रास्ता तैयार करने का प्रस्ताव है। भगवान राम और श्री हनुमान जी द्वारा बनाया गया दुनिया का यह अजूबा सेतु एक राष्ट्रीय धरोहर होना चाहिए। ऐसी आस्था से जुड़ी वस्तुओं को पैसों से नहीं तोला जा सकता। कल को क्या पैसों की खातिर आप ताजमहल या कुतुब मीनार गिरा देंगे? रामसेतु के बारे में करोड़ों हिन्दुस्तानियों की आस्था है कि इसे श्रीराम की वानर सेना ने रावण की राजधानी लंका तक पहुंचने के लिए तैयार किया था। पिछली रावण वंशज द्रमुक सरकार के विपरीत सुश्री जयललिता सरकार का भी यही स्टैंड है कि केंद्र सरकार सेतु समुद्रम परियोजना को पूरी तरह निरस्त करे और रामसेतु को राष्ट्रीय स्मारक बनाए। अब द्रमुक के दबाव पर केंद्र सरकार एक बार फिर रामसेतु को तोड़ने पर अडिग लगती है। हम इस यूपीए सरकार को चेताना चाहते हैं कि वह आग से खेल रही है। सरकार या उसके सहयोगियों में इतनी ताकत नहीं कि वह श्रीराम से टक्कर ले सकें। अरबों रामभक्त उसके विरोध में खड़े हैं। सबसे दुखद बात तो यह है कि केंद्र की इस तथाकथित धर्मनिरपेक्ष (हिन्दू विरोधी) सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में जो हल्फनामा दिया है उसमें यह भी कहा गया है कि रामसेतु हिन्दू धर्म का आवश्यक अंग नहीं है। अगर भगवान राम, श्री हनुमान जी, श्रीलंका युद्ध हिन्दू धर्म का हिस्सा नहीं हैं तो और क्या हिन्दू धर्म में बचता है? केंद्र सरकार के इस रवैये का हर हिन्दू चाहे वह किसी भी वर्ग का क्यों न हो जमकर विरोध करेगा और आखिरी दम तक करता रहेगा। देखें कि तुष्टिकरण पर मर रही यह सरकार हिन्दू जनमानस पर कैसे भारी पड़ती है। जय श्रीराम।

नशीद प्रकरण ः भारत की कूटनीतिक सफलता या भारी कूटनीतिक पराजय?



 Published on 27 February, 2013 
 अनिल नरेन्द्र
मालदीव के पूर्व राष्ट्रपति मोहम्मद नशीद 11 दिनों से चल रहे हाई-प्रोफाइल ड्रामे को समाप्त करते हुए माले स्थित भारतीय उच्चायोग से अंतत बाहर आ गए। अपनी गिरफ्तारी का वारंट जारी होने पर उन्होंने पिछले बुधवार को माले स्थित भारतीय उच्चायोग में शरण ले ली थी। भारत इसकी वजह से एक विचित्र  स्थिति में फंस गया था। नशीद गिरफ्तारी से बचने के लिए 13 फरवरी से भारतीय दूतावास में थे। दरअसल वह अपने शासनकाल में मुख्य आपराधिक न्यायधीश अब्दुल्ला मोहम्मद को हिरासत में लिए जाने के आरोपों में अदालत में पेश होने में नाकाम रहे थे। नशीद की पार्टी ने आरोप लगाया था कि यह मामला राजनीति से प्रेरित है और सितम्बर में होने जा रहे राष्ट्रपति चुनाव में भाग लेने से उन्हें अयोग्य ठहराने के लिए ऐसा किया गया है। वारंट जारी होने के तत्काल बाद 13 फरवरी को नशीद भारतीय उच्चायोग में दाखिल हो गए थे। यूपीए सरकार के समर्थकों का मानना है कि मोहम्मद नशीद प्रकरण को बड़ी ही सूझबूझ से निपटा लिया गया। भारत ने जिस तरह मालदीव की वर्तमान सरकार और पूर्व राष्ट्रपति के बीच सुलह-समझौते का सहारा लेते हुए इस कार्य को अंजाम दिया वह सराहनीय है। मालदीव के 46 वर्षीय नशीद नवम्बर 2008 में लोकतांत्रिक ढंग से हुए चुनाव में तीन दशकों से काबिज रहे तानाशाह अब्दुल गयूम को दूसरे राउंड में हराकर राष्ट्रपति पद सम्भाला था। नशीद मालदीव लोकतांत्रिक पार्टी के संस्थापकों में गिने जाते हैं। गयूम की तानाशाह सरकार के खिलाफ आंदोलन करते हुए वह अपने राजनीतिक जीवन में कम से कम 20 बार जेल गए। उनको मालदीव का नेल्सन मंडेला कहा जाता है। लेकिन सेना एवं नौकरशाही में गयूम की पकड़ मजबूत होने के कारण नशीद को पिछले दो सालों से लगातार विरोध का सामना करना पड़ रहा है। 7 फरवरी 2012 को नशीद ने विवादास्पद परिस्थितियों में इस्तीफा दे दिया। करीब 11 दिन पहले गिरफ्तारी के डर से नशीद ने भारतीय उच्चायोग में शरण ली थी। भारत के सामने अजीब धर्म संकट खड़ा हो गया था। वह नशीद को बाहर करने की स्थिति में नहीं थी। कहा जा रहा है कि भारतीय राजनयिक दल के कूटनीतिक प्रयासों के बाद मालदीव सरकार और नशीद में कोई गुप्त समझौता हुआ है। फिलहाल वहां की सरकार का अब कहना है कि नशीद के खिलाफ कोई गिरफ्तारी वारंट नहीं है। इसलिए कहा जा रहा है कि भारत सरकार ने एक अत्यंत टेढ़ी स्थिति को अच्छे तरीके से हैंडल किया और इसे कूटनीतिक सफलता माना जा रहा है पर दूसरी ओर अगर कुछ हालिया घटनाओं के बाद देशभर का ध्यान फिर से देश की सुरक्षा को लेकर उन सवालों पर गया है जो ऐसे मौकों पर इससे पहले भी उठाए जाते रहे हैं। मसलन अफजल गुरू की फांसी के बाद देश के भीतर अलगाववाद की जड़ों को फलने-फूलने और इसके पाक अधिकृत कश्मीर से इस्लामाबाद के संबंधों पर चिन्ता इस तरह जताई गई जैसे यह खतरा कोई एक दिन में पैदा हुआ हो। दरअसल ये कुछ मिसालें हैं हमारी सरकार की नीतिगत अस्पष्टता और अदूरदर्शिता की। मालदीव का ताजा प्रकरण इस सिलसिले की नई मिसाल है। जब मोहम्मद नशीद को भारतीय उच्चायोग में शरण दी गई तो कहीं न कहीं यह आभास देने की कोशिश की गई कि भारत एक समर्थ और जिम्मेदार देश है और वह इस तरह के कूटनीतिक फैसले बेहिचक लेने की स्थिति में है पर ऐसा हुआ नहीं। अगर हम इस पूरे घटनाक्रम पर गौर करें तो यह नौबत आई ही इसलिए क्योंकि भारत को मालदीव में हालात के तेजी से बदलने का अंदाजा ही नहीं रहा। जिस नशीद को आज हम शरणागत सुरक्षा दे रहे हैं, उसका फरवरी 2012 में तख्ता पलट दिया गया था। तब भारत सरकार को यह इतना सहज लगा कि उसने वहीद मालिक को यहां का नया राष्ट्रपति बिना सोचे-समझे, बिना किसी विरोध के स्वीकार कर लिया और बाकायदा उसे बधाई तक दी। दिलचस्प है कि नशीद न सिर्प मालदीव की लोकप्रिय सरकार के मुखिया रहे बल्कि भारत के सच्चे मित्र भी हैं पर भारत अपने मित्र की मुश्किल समय में मदद क्या करता, वह अपनी नासमझी में उनके खिलाफ षड्यंत्र को भी नहीं ताड़ सका। तब जो एक षड्यंत्र भर था, आज वह मालदीव में लोकतांत्रिक प्रक्रिया को पटरी से उतारने की एक बड़ी कार्रवाई बन चुकी है। वहीद नहीं चाहते कि सितम्बर में होने वाले चुनाव में नशीद को देश में अपनी लोकप्रियता साबित करने का एक और मौका मिल जाए। लिहाजा उन पर अपने कार्यकाल के दौरान एक न्यायाधीश को गैर-कानूनी तरीके से गिरफ्तार करने का आरोप लगाया गया है। भारत अगर चाहता तो मालदीव में आज जैसी स्थिति है, उसमें अपना हस्तक्षेप पहले भी शुरू कर सकता था। लोकशाही को बचाने की दरकार के साथ किए गए उसके सख्त हस्तक्षेप का कोई विरोध तो क्या करता, उलटे इससे डेमोकेटिक दुनिया में भारत की साख और बढ़ती। वैसे यह मसला लोकतंत्र की हिमायत से आगे एक सधी कूटनीति का भी है। 1988 में राष्ट्रपति गयूम का तख्ता पलट करने की हिमाकत को विफल करने वाले भारत ने अपनी बढ़त बनाए नहीं रखी और आज नतीजा यह है कि चीन ने इस दौरान मालदीव में अपनी पैठ बना ली है। यह भारत के लिए न केवल एक कूटनीतिक पराजय ही है बल्कि भारत की सुरक्षा चिन्ता को लेकर यह उसकी खतरनाक अगम्भीरता को भी दर्शाता है।

Rawana descendents pressurize Union Government to reiterate its resolve to demolish Ram Setu


Anil Narendra     
It is sad that the UPA Government of Manmohan Singh has reiterated its resolve to demolish the Lord Rama-constructed Ram Setu, a symbol of faith of crores of Indians. The Union Government has stated before the Supreme Court of India that after spending a huge amount of 8.29 billion rupees, this project (Setu Samudram Project) cannot be abondoned. Declaring the Setu Samudram as an economically and environmentally viable project, the Union Government has rejected the recommendations made by the Pachauri Committee appointed under the chairmanship of renowned environmentalist, RK Pachauri. In an affidavit filed in the apex Court, the Shipping Ministry has said that the Central Government has cleared the project on the basis of studies carried out at a very high level. The Project has also been approved by the Ministry of Environment. The apex body on environment, NEERI, has also declared the project economically and ecologically viable. The affidavit says that the Pachauri Committee, has, in its report clearly rejected the alternative route along with the Setu Samudram Project. The Committee had said that the project is not viable economically and environmentally. Shri Anant Kishore, a Deputy Secretary in the Ministry, has also said in the affidavit that the committee of eminent persons appointed by the Centre in 2007 had approved the project. The Committee was of the view that the Project was very important in view of its strategic sea lane control and economic profitability. It may be mentioned that the Central Government has appealed to the Supreme Court to dispose of petitions related to the Ram Setu issue. A number of petitions were filed in the Supreme Court against the ambitious Setu Samudram Project of the Government. Under the Project, construction of a short sea lane around the Southern part of the country by dismantling the mythological Ram Setu is envisaged. It may also be mentioned that this project is the brain child of DMK leaders and it was prepared with the sole object of earning money. All the companies related to the Project have been incorporated with the object of earning crores of rupees by DMK leaders and their relatives. A sea lane is proposed to be constructed under the project in the sea measuring 167 Km long, 30 metre wide and 12 metre deep navigational route. This wonder bridge constructed by Lord Rama and Shri Hanuman ji should have been considered as a national heritage. Such things connected with the faith of people cannot be measured in terms of money. Can we demolish Taj Mahal or Qutub Minar just for the sake of money? Crores of Indians consider that this Ram Setu was constructed by Lord Rama’s  monkey army to reach the capital of Ravana. Contrary to the earlier DMK Government of Rawana descendents, the Government of Ms Jayalalita is also of the view that the Central Government should completely reject the Ram Setu Project and declare it as a national monument. But, now under pressure from the DMK, the Central Government appears to be determined to demolish the Ram Setu. We want to warn the UPA Government that it is playing with fire. The Government and its partners are too weak to confront Shri Rama. Billions of devotees of Rama are opposing it. It is very sad that the so-called secular (anti-Hindus) Government has also said in the affidavit that the Ram Setu is not an important part of the Hindu religion. If Lord Rama, Shri Hanuman ji, Lanka war, are taken away from the Hindu religion, then what is left in the Hindu Dharma? Hindus, to whichever section they may belong, would firmly oppose this move of the Government and would continue to oppose it. Let’s see how this Government, which is bent upon appeasing various communities, outweighs the Hindu sentiments? Jai Shri Ram!

Tuesday, 26 February 2013

US successfully averted 39 terror attacks after 9/11. How?


Anil Narendra
Hyderabad bomb blasts have once again proved that in our country, neither the intelligence network is strong nor there is an agency, who could independently work to counter terrorism. There is lack of coordination among various agencies and that is the reason that even with intelligence input, we are unable to stop terror strikes. Jay Panda, a BJD MP has tweeted that 15 States had demanded a counter-terrorism agency, which could act only as a coordinator like such agencies in America and Britain and not take action. The American NCTC is involved in strategic planning and collation of information. Investigation and arrest are not within its jurisdiction. In Britain, Joint Terrorism Analysis Centre (JTAC) collates and analyses intelligence inputs. The US has been able to successfully avert 39 terror attacks after 9/11. About 20 conspiracies of terror strikes in cities like Washington DC and New Jersey were foiled well in time. All this was made possible with the help of ever-alert intelligence network and on-line surveillance system. It may be mentioned that in 35 out of 39 cases, security agencies were able to detect the conspiracies in the initial stages and successful averted loss of lives and property. But, in India, there were 11 terrorist attacks in various cities after the 26/11 Mumbai attacks taking a toll of more than 60 lives. There could neither a consensus on the National Counter Terrorism Centre (NCTC) nor further progress in the establishment of National Intelligence Grid (Net Grid) to facilitate on-line information sharing. The delay in constituting these agencies proved handicap for the security agencies and they could not reach the terror masterminds like David Hadley, who had conducted recce before the 26/11 Mumbai attacks. The constitution of both these agencies is facing political hurdles. After the 9/11 New York and Washington attacks, New York city was saved from 11 terror strikes, whereas five such attacks in Washington DC, four in New Jersey town, five attacks at blowing aircrafts and airports and 9 aimed at other targets were foiled by the security agencies. We should take a lesson from the US and Britain. Situation in our country is so bad that the main source of intelligence gathering is being ignored. The intelligence network or the Government is not at all interested in seeking cooperation of police constable, informers and common man. This is the reason that in spite of having prior warning about terror attempts in Hyderabad, the security agencies failed to foil such attempt. It is clear that the constable, who is the main source of gathering intelligence, is not associated with the counter terrorism campaigns. Also, no effort is made to gather intelligence from the common man. A constable is considered to be most important source of intelligence, because he mingles with public in public transport, markets, cinemas, tea stalls and even he shares public toilets with the common man. There is another important development also and that is neglecting informers. The informer system is being almost ignored. The intelligence agencies want to seek intelligence about terror activities from informers by just doling out 5-7 hundred rupees. Big agencies like IB do spend larger amounts on information gathering through informers, but the State Police outfits do not do much for intelligence gathering. Para military forces are no better in this regard. In sensitive areas like Kashmir, intelligence is sought for just a bottle of liquor, food and 200-400 rupees. If an informer is to be paid four of five thousand rupees, then the case is referred to the Headquarters for sanction. The information provided by an ordinary constable is not considered worthwhile. An ordinary constable is kept away from intelligence unit. Whereas, in America, Britain and other European countries including Germany, a constable is considered to be the most reliable source of intelligence. He or she is not only given hefty cash awards, but also gets promotion. Next important source of intelligence is informer. This main source of intelligence has been widely been used in the US after the 9/11. As a result, major successes ranging from the death of Osama bin Laden to averting major terror attacks, have been achieved in America. In our country, we think that we will not be able to stop such terror strikes, till we do not give due priority and direction to the counter terrorism campaign and do not strengthen our intelligence network.



रामदेव बनाम केंद्र लड़ाई आर-पार की



 Published on 26 February, 2013 
 अनिल नरेन्द्र
योग गुरु बाबा रामदेव की भारत सरकार खासकर कांग्रेस से आर-पार की लड़ाई शुरू हो गई लगती है। सरकार चाहे वह केंद्र में हो या कांग्रेस की राज्य की सरकारें हों, ने बाबा पर शिकंजा कसना तेज कर दिया है। सबसे ताजा उदाहरण हिमाचल प्रदेश में वीरभद्र सिंह की कांग्रेस सरकार का है। सोलन जिले के साधु पुल में बाबा रामदेव के पतंजलि योग पीठ को राज्य सरकार ने अपने कब्जे में ले लिया है। शुक्रवार को भारी संख्या में अधिकारी व पुलिसकर्मियों ने योग पीठ पहुंचकर निर्माणाधीन ढांचे व पूर्व भाजपा सरकार द्वारा लीज पर दी गई जमीन अपने कब्जे में ले ली। पतंजलि योग पीठ के अधिकारियों को एसडीएम ने लीज पर दी गई भूमि वापस लेने का नोटिस थमाया और परिसर खाली करने को कहा। साधु पुल में पूर्व भाजपा सरकार की ओर से बाबा रामदेव को दी गई 96.8 बीघा जमीन की 2010 में 99 साल के लिए लीज पर दी गई थी। सरकार ने तर्प दिया कि जमीन 1956 में पटियाला के महाराजा ने बच्चों के खेलकूद के लिए दान दी थी। लीज नेपाली मूल (बालकृष्ण) के नाम है जो अवैध है। उधर उत्तराखंड प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने बाबा रामदेव के हरिद्वार में स्थित हर्बल फूड पार्प को उसके द्वारा छोड़े जा रहे पानी में हानिकारक रसायन मिलने पर उसे नोटिस थमा दिया है। आधिकारिक सूत्रों के मुताबिक हरिद्वार के पदार्थों  इलाके में स्थित हर्बल फूड पार्प को नोटिस जारी कर पूछा गया है कि पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वाले इस उद्योग को क्यों न बन्द कर दिया जाए? फूड पार्प से छोड़े जा रहे पानी में हानिकारक रसायन होने की शिकायत स्थानीय किसानों ने की थी। साथ-साथ खबर यह भी है कि आयकर विभाग ने बाबा रामदेव से जुड़े पतंजलि योग पीठ एवं दिव्य योग मंदिर ट्रस्टों के खाते सीज कर दिए हैं। हरिद्वार के जितने भी बैंकों में ट्रस्ट के खाते हैं, उन सभी के लेन-देन पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। विभाग ने बैंकों को पत्र भेजकर सीधे निर्देश दिया है कि वह 34 करोड़ की वह धनराशि आयकर विभाग के खातों में डाल दें जो पतंजलि योग पीठ के ट्रस्टों को चुकानी है। आयकर विभाग ने कुछ माह पूर्व 34 करोड़ रुपयों का आयकर देना का आदेश पतंजलि योग पीठ के ट्रस्टों को दिया था। दिव्य योग मंदिर और पतंजलि योग पीठ द्वारा यह राशि नहीं चुकाई गई। इधर दिल्ली हाई कोर्ट ने बाबा को थोड़ी राहत जरूर दी है। हाई कोर्ट ने आयकर विभाग को उनके ट्रस्ट पतंजलि योग पीठ न्यास के 11 बैंक खातों को खोलने का निर्देश दिया है। इसके लिए ट्रस्ट को 2.1 करोड़ रुपए आयकर विभाग में जमा कराने होंगे। बाबा रामदेव के लिए अब लड़ाई आर-पार की बन गई है। उन्हें न केवल अपना आर्थिक साम्राज्य ही बचाना है बल्कि कुछ हद तक उन्हें अपने अस्तित्व की लड़ाई भी लड़नी पड़ेगी। बाबा ने तेज तेवर अपनाए हुए हैं। दिल्ली आए बाबा रामदेव ने एक संवाददाता सम्मेलन में अपने तेवर तीखे करते हुए एक बार फिर से कांग्रेस पार्टी और यूपीए सरकार पर जोरदार हमला बोला। कांग्रेस के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष राहुल गांधी को प्रधानमंत्री पद के लिए अनफिट करार देते हुए आरोप लगाया कि केंद्र के दो मंत्रियों ने उन्हें आंदोलन खत्म नहीं करने पर झूठे मुकदमों में फंसाकर जेल भेजने की धमकी दी है। योग गुरु ने प्रधानमंत्री पर भी खूब कटाक्ष किया। इलाहाबाद में बीती रात भगदड़ की घटना के कसूरवार लोगों पर कार्रवाई की मांग की। इस मामले में केंद्र और राज्य सरकार पर लापरवाही बरतने का आरोप लगाया। बाबा ने जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला के अफजल गुरू को फांसी नहीं दिए जाने संबंधी बयान की आलोचना की। राहुल गांधी को प्रधानमंत्री पद के लिए पूरी तरह अनफिट बताते हुए कहा कि राहुल गांधी अपने दाम्पत्य जीवन को लेकर ही बहुत असमंजस में हैं तो ऐसे में देश को क्या दिशा देंगे? डाक्टर मनमोहन सिंह को भी रिमोट से संचालित होने वाले देश के सबसे कमजोर प्रधानमंत्री बताया। व्यक्तिगत रूप से वह भले ही ईमानदार हों लेकिन भ्रष्ट मंत्रियों को संरक्षित कर देश को धोखा दे रहे हैं। यूपीए सरकार से दो-दो हाथ करने की घोषणा कर चुके योग गुरु ने कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह पर शिष्य बालकृष्ण और उनके बीच दरार पैदा करने की साजिश रचने का आरोप लगाया। जैसा मैंने कहा  कि बाबा रामदेव की अब यूपीए सरकार और कांग्रेस से आर-पार की लड़ाई शुरू हो चुकी है।

9/11 के बाद अमेरिका ने 39 बार आतंकी हमलों को विफल किया है, कैसे?


  Published on 26 February, 2013 
 अनिल नरेन्द्र 
हैदराबाद बम धमाकों ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि न तो हमारे देश में हमारा खुफिया तंत्र मजबूत है और न ही कोई ऐसी एजेंसी जो आतंकवाद  के खिलाफ स्वतंत्र रूप से काम कर सके। विभिन्न एजेंसियों में तालमेल का भारी अभाव है यही वजह है कि हम सूचना होते हुए भी आतंकवादी हमले रोकने में नाकाम हैं। बीजू जनता दल के सांसद जय पांडा ने ट्विटर पर लिखा है कि 15 राज्यों ने मांग की थी कि देश में एक आतंकवाद विरोधी एजेंसी होनी चाहिए जो अमेरिका और ब्रिटेन की तरह समन्वय की भूमिका निभाए न कि कार्रवाई करे। अमेरिका का एनसीटीसी रणनीतिक योजना बनाने और सूचनाओं को जमा करने का काम करता है। यह जांच और गिरफ्तारी नहीं करता है। ब्रिटेन का ज्वाइंट टेरेरिज्म एनालिसिस सेंटर (जेटीएसी) आतंकवाद से संबंधित खुफिया सूचनाओं को जमा करके उनका विश्लेषण करता है। अमेरिका ने 9/11 आतंकी हमले के बाद से अब तक ऐसी 39 साजिशों को विफल कर दिया है। न्यूयार्प, वाशिंगटन डीसी और न्यूजर्सी जैसे शहरों में आतंकी हमलों की करीब 20 साजिशों को समय रहते नाकाम किया गया। यह सब सम्भव हुआ है चुस्त-दुरुस्त खुफिया व ऑनलाइन निगरानी तंत्र की बदौलत। खास बात यह है कि 39 में 35 मामलों में सुरक्षा एजेंसियों ने साजिश को शुरुआती चरण में ही पकड़ लिया जिससे किसी तरह की जनहानि नहीं हुई। इसके उलट भारत में 26/11 मुंबई हमले के बाद विभिन्न शहरों में 11 आतंकी हमले हुए जिनमें 60 से ज्यादा लोगों की जानें गईं। न तो राष्ट्रीय आतंकवाद रोधी केंद्र (एनसीटीसी) पर कोई सहमति बनी और न ही ऑनलाइन जानकारी साझी करने वाले नेशनल इंटेलीजेंस ग्रिड (नेट ग्रिड) पर बात आगे बढ़ी। इसमें देरी की वजह से खुफिया एजेंसियों के लिए आतंकी हमलों की रेकी करने वाले डेविड हैडली जैसे आतंकी सूत्रधारों तक पहुंचा नहीं जा सका। यह दोनों ही रानीतिक झंझटों में ही उलझ कर रह गए हैं। 9/11 न्यूयार्प व वाशिंगटन हमलों के बाद न्यूयार्प शहर को 11 बार आतंकी हमलों से बचाया गया है।  वाशिंगटन डीसी को 5 बार और न्यूजर्सी को 4 बार व विमान/हवाई अड्डों को 5 बार और अन्य ठिकानों को 9 बार। हमें अमेरिका और ब्रिटेन से कुछ सीखना चाहिए। हमारा हाल तो इतना खराब है कि देश में खुफिया जानकारी जुटाने के मूल स्रोत की ही पूरी तरह अनदेखी हो रही है।  पुलिस के सिपाही, मुखबिर और आम जनता का सहयोग लेने में खुफिया तंत्र या सरकार की कोई रुचि नहीं है। यही वजह रही है कि हैदराबाद धमाके की सूचना होने के बावजूद उसे नाकाम नहीं किया जा सका। खुफिया सूचना होने के बावजूद समय रहते उन्हें विफल नहीं किया जाता। कारण साफ है कि खुफिया सूचना जुटाने के अहम स्रोत पुलिस के सिपाही को इस मुहिम से नहीं जोड़ा जाता। आम जनता से भी जानकारी जुटाने का कोई प्रयास नहीं है। सिपाही को सबसे बड़ा स्रोत इसलिए माना जाता है, क्योंकि वह सामान्य लोगों के साथ परिवहन, बाजार, सिनेमा, टी-स्टाल और यहां तक कि सार्वजनिक टॉयलेट इस्तेमाल करता है। अहम बात यह है कि भारत में मुखबिर का समाप्त होना। मुखबिर सिस्टम पर किसी का कोई ध्यान नहीं रहा। भारत में खुफिया इकाइयां पांच-सात सौ रुपए में मुखबिर से आतंकी सूचना लेना चाहती हैं। आईबी जैसी बड़ी इकाई तो थोड़ा-बहुत खर्च भी करती है, लेकिन राज्यों में  पुलिस द्वारा खुफिया सूचना लेने के लिए ज्यादा कुछ नहीं किया जाता। अर्धसैनिक बलों में भी यही स्थिति है। कश्मीर जैसे संवेदनशील इलाकों में सूचनाएं लेने के लिए शराब की बोतल, खाना और दो-चार सौ रुपए खर्च किए जा रहे हैं। किसी मुखबिर को चार-पांच हजार रुपए देने हैं तो हेड क्वार्टर में फाइल भेजनी पड़ती है। सिपाही की सूचना पर कोई भरोसा नहीं करता। सामान्य ड्यूटी वाले सिपाही को खुफिया इकाई से दूर रखा जाता है। दूसरी ओर अमेरिका, ब्रिटेन और जर्मनी सहित अनेक यूरोपीय देशों में खुफिया सूचनाओं के लिए सिपाही सबसे भरोसेमंद हैं। उसे भारी नकद इनाम के अलावा तरक्की भी मिलती है। इसके बाद मुखबिर का नम्बर आता है। अमेरिका में 9/11 के बाद खुफिया सूचनाओं के लिए इस मूल स्रोत का व्यापक इस्तेमाल हुआ। नतीजा, ओसामा बिन लादेन की मौत से लेकर अब तक वहां हमले की बड़ी साजिशों को नाकाम किया जा चुका है। जब तक हम अपने देश में आतंकवाद विरोधी अभियान को सही प्राथमिकता, दिशा और खुफिया तंत्र को मजबूत नहीं करेंगे तब तक हमें नहीं लगता कि हम इन आतंकी हमलों को रोक पाएंगे।

Sunday, 24 February 2013

दुनिया में आतंक से सर्वाधिक प्रभावित देशों में भारत चौथे स्थान पर



 Published on 24 February, 2013 
 अनिल नरेन्द्र 
इधर केंद्रीय गृहमंत्री सफाई दे रहे थे कि भगवा आतंकवाद पर उनके मतलब को गलत समझा गया है और माफी मांग रहे थे उधर हैदराबाद में आतंकी बम फोड़ रहे थे। सुशील कुमार शिंदे ने जब केंद्रीय गृह मंत्रालय का पद्भार सम्भाला था तब भी 2 अगस्त को उनके कार्यभार सम्भालते ही पुणे में चार सिलसिलेवार बम विस्फोट हुए थे। इन विस्फोटों की गुत्थी अभी तक नहीं सुलझी कि शिंदे के कार्यकाल में दूसरा विस्फोट हो गया। निजामों के शहर हैदराबाद में गुरुवार को फिर आतंक का साया पड़ा। महानगर के दिलसुख नगर इलाके में पांच मिनट के अंतराल में दो धमाके हुए। कोणार्प और वेकराद्रि सिनेमा हॉल के करीब हुए इन धमाकों में 16 लोगों की मौत हो गई और 84 लोग जख्मी हुए, जिनमें से कुछ की हालत गम्भीर बताई जा रही है। धमाके में आईईडी (इंफ्रोवाइज्ड एक्सप्लोसिव डिवाइस) का इस्तेमाल किया गया। दो साइकिलों पर रखे गए विस्फोटक में टाइमर के जरिये धमाका किया गया। चूंकि बम विस्फोट एक साथ कई ठिकानों पर हुए इसलिए इसमें कोई संदेह नहीं रह जाता कि इनके पीछे किसी न किसी आतंकी संगठन का ही हाथ होगा। जिस तरह भीड़ भरे इलाके में बम विस्फोट हुए उससे यही स्पष्ट होता है कि आतंकियों का मकसद बड़े पैमाने पर तबाही मचाना था। जैसे ही मैंने हैदराबाद में इन विस्फोटों के बारे में सुना पहली बात मेरे दिमाग में यही आई कि कहीं यह अफजल गुरू की फांसी का जवाब तो नहीं है। बेशक प्लानिंग और योजना सीमा पार बैठे आतंकी सरगनाओं की हो पर उसे अमली जामा तो स्थानीय भारतीय लोगों ने ही पहनाया होगा। यह लश्कर-ए-तैयबा, हिजबुल मुजाहिद्दीन या फिर आईएसआई की साजिश हो सकती है, जिसे अंजाम इंडियन मुजाहिद्दीन या कश्मीरी अलगाववादियों ने दिया है। विस्फोट का पैटर्न यही साबित करता है। जिस तरह से विस्फोट के लिए दोपहिए वाहनों का इस्तेमाल किया गया है और भीड़भाड़ वाले इलाके को चुनकर बम रखे गए, वह देसी पैटर्न स्थापित करता है। ऐसे विस्फोटक देसी होते हैं जो अपेक्षाकृत कमजोर होते हैं लेकिन उन्हें जिस तरीके से प्लांट किया जाता है उससे जानमाल को ज्यादा क्षति होती है। फिर सवाल उठता है कि विस्फोट हैदराबाद में ही क्यों? हैदराबाद के ताजा धमाके जिन स्थानों पर हुए उसकी वीडियो और बाकी जानकारी एकत्रित करने में इंडियन मुजाहिद्दीन का हाथ हो सकता है। बताया जा रहा है कि हैदराबाद जुलाई 2012 से ही आतंकी निशाने पर था। आतंकी संगठन आईएम के दो मेम्बरों ने हैदराबाद के दिलसुख नगर की रेकी की थी। यह रेकी आईएम सरगना रियाज भटकल के निर्देश पर की गई थी। अगस्त 2012 में हुए पुणे धमाके के मामले में आईएम के दो आतंकियों सैयद मकबूल और इमरान को दिल्ली पुलिस ने गिरफ्तार किया था। पूछताछ में इन्होंने बताया था कि हैदराबाद में दिलसुख नगर के अलावा बेगमपेट और एबिंड्स इलाके की रेकी एक मोटर साइकिल से की गई थी। लेकिन इससे पहले कि वे हैदराबाद में धमाके को अंजाम देते भटकल ने उन्हें पुणे में धमाका करने का आदेश दिया। हैदराबाद धमाकों को पिछले साल अगस्त में पुणे में हुए विफल धमाके से जोड़कर देखा जा रहा है। हैदराबाद में 25 अगस्त 2007 को दो जगह हुए धमाकों, दिलसुख नगर में मिले विस्फोटक और 21 फरवरी को तीसरी जगह मिले विस्फोटक के घटनाक्रम में भी साइकिल और टाइमर बम के इस्तेमाल की बात सामने आई है। वर्ष 2007 के दिलसुख नगर धमाके में अमोनियम नाइट्रेट विस्फोटक के साथ बॉल बियरिंग, डिटोनेटर और टाइमर का इस्तेमाल किया गया था। खुफिया ब्यूरो (आईबी) ने 13 फरवरी को पाकिस्तान में यूनाइटेड जेहाद काउंसिल की बैठक के बाद अलर्ट जारी किया था। शिंदे ने भी इसकी पुष्टि की है। बैठक में आतंकी समूहों ने अफजल की फांसी का बदला लेने की बात कही थी। रॉ ने भी लश्कर-ए-तैयबा या उसके सहयोगी गुट की तरफ से हमले की आशंका जताई थी। अलर्ट में इंडियन मुजाहिद्दीन और सिमी का भी नाम था। धमाकों का टाइमिंग भी नोट करें जिस तरह बजट सत्र से कुछ दिन पहले अफजल गुरू को फांसी दी गई थी उसी की तर्ज पर आतंकवादियों ने बजट सत्र शुरू होते ही इस वारदात को अंजाम दिया। साथ ही उत्तर भारत के बजाय इस तरह की घटना दक्षिण भारत में होना एक अलग संकेत देती है क्योंकि केरल, तमिलनाडु, कर्नाटक, महाराष्ट्र सिमी और इंडियन मुजाहिद्दीन के मजबूत बेस हैं जहां उनके मजबूत स्लीपर सेल हैं। इन सूचनाओं से संतुष्ट ही हुआ जा सकता है कि इस तरह की वारदात की आशंका पहले ही जता दी गई थी। यदि वास्तव में ऐसा ही हुआ था तो सवाल यह उठता है कि इन आतंकियों को रोका क्यों नहीं जा सका? यह पहली बार नहीं है जब खुफिया एजेंसियों की ओर से यह दावा किया गया हो कि उन्हें आतंकियों के इरादों की पहले से ही भनक लग गई थी और इसके बारे में संबंधित राज्यों को सूचित भी कर दिया गया था। अब तो ऐसा लगता है कि आतंकी तो अपनी हरकतों को अंजाम देने के लिए नित नए तरीके अपनाते हैं, लेकिन हमारी खुफिया एजेंसियां व सुरक्षा एजेंसियां पुराने ढर्रे पर ही काम कर रही हैं। इससे अधिक दुर्भाग्यपूर्ण और कुछ नहीं हो सकता कि आतंकी खतरे का सामना करने के बावजूद न तो खुफिया एजेंसियों में पर्याप्त तालमेल नजर आ रहा है और न ही सुरक्षा एजेंसियों में। पाठकों को यह जानकर धक्का जरूर लगेगा कि दुनिया में आतंकवाद से सर्वाधिक प्रभावित देशों की सूची में भारत अब चौथे स्थान पर आ गया है। पहले स्थान पर इराक, दूसरे स्थान पर पाकिस्तान, तीसरे स्थान पर अफगानिस्तान और चौथे स्थान पर भारत है।

Saturday, 23 February 2013

कैमरन की यात्रा से भारत-ब्रिटेन के आपसी रिश्ते और मजबूत होंगे



 Published on 23 February, 2013 
 अनिल नरेन्द्र 
ब्रिटेन के प्रधानमंत्री डेविड  कैमरन तीन दिन की भारत यात्रा पर आए थे। यह उनकी दूसरी भारत यात्रा थी। व्यापारिक संबंध और प्रगाढ़ बनाने की इच्छा जताते हुए कैमरन ने भारतीय कारोबारियों और विद्यार्थियों के लिए वीजा पाने की प्रक्रिया को आसान बनाने की घोषणा के अलावा यह भी कहा कि ब्रिटेन में रह रहे भारतीय छात्रों को और रियायतें दी जाएंगी। उन्होंने भारत से विशेष संबंध बनाने की इच्छा भी जाहिर की, जो अतीत से नहीं, भविष्य से परिभाषित है। इससे भारत में ब्रिटेन की बढ़ती व्यापारिक दिलचस्पी भी जाहिर होती है। पिछले हफ्ते फ्रांस के राष्ट्रपति फ्रांसको होलेंड के भी भारत आने के पीछे यही खास वजह थी। दरअसल यूरोप आर्थिक संकट से गुजर रहा है। ऐसे में यूरोपीय देशों को भारत जैसे उभरती अर्थव्यवस्था वाले देशों में अपने लिए बाजार मिलने और इस तरह अपनी मुश्किलें कम होने की उम्मीद दिखती है। यूरोपीय संघ विदेश व्यापार में भारत का प्रमुख साझेदार रहा है, फिर ब्रिटेन से वैसे भी उसका लेन-देन और भी अधिक रहा है। भारत में ब्रिटेन सबसे बड़ा यूरोपीय निवेशक है और यूरोप में भारतीय निवेश का करीब आधा अकेले ब्रिटेन में है। कैमरन 2010 में जब यहां आए थे तब ब्रिटेन की आर्थिक हालात और खराब थी। उन्होंने ब्रिटेन में भारत की मदद से ज्यादा से ज्यादा रोजगार के अवसर पैदा होने की अपनी इच्छा को खुलकर स्वीकार किया था। इस यात्रा में भी वह भारत की आर्थिक प्रगति के तमाम कसीदे पढ़ गए हैं। आज ब्रिटेन वह महाशक्ति नहीं है, जो वह 19वीं और 20वीं सदी के पूर्वार्द्ध में था। लेकिन भारत के इतिहास में उसकी गहरी उपस्थिति है और वह हमारे लिए लम्बे वक्त तक महत्वपूर्ण बना रहेगा। ग्रेट ब्रिटेन के प्रधानमंत्री डेविड कैमरन का जलियांवाला बाग जाना इसी साझा इतिहास को रेखांकित करता है। हालांकि कैमरन जलियांवाला बाग गए और उन्होंने जलियांवाला बाग गोली कांड को अंग्रेजी इतिहास का बहुत शर्मनाक अध्याय बताया पर उन्होंने 94 साल पहले 13 अप्रैल, 1919 को जनरल डायर द्वारा किए गए इस नरसंहार पर सार्वजनिक रूप से माफी नहीं मांगी। 1919 के जलियांवाला बाग नरसंहार स्थल पर जाने वाले कैमरन पहले लोकतांत्रिक तरीके से चुने गए ब्रिटिश प्रधानमंत्री है। घटनास्थल पर कैमरन ने शहीदों को श्रद्धांजलि दी और हाथ जोड़कर एक मिनट का मौन रखकर सम्मान प्रकट किया। जलियांवाला बाग में आगंतुक पुस्तिका पर कैमरन ने लिखा कि ब्रिटेन के इतिहास में यह अत्यंत शर्मनाक घटना है। यह एक ऐसी घटना जिसे तब विंस्टन चर्चिल ने सही रूप में राक्षसी कृत्य करार दिया था। यहां जो कुछ भी हुआ वह हम भूल नहीं सकते। हम यह सुनिश्चित करेंगे कि ब्रिटेन दुनियाभर में शांतिपूर्ण प्रदर्शन के अधिकार के समर्थन में खड़ा हो। कुछ संगठनों ने घटनास्थल पर यात्रा के दौरान ब्रिटिश प्रधानमंत्री द्वारा माफी मांगने के लिए जोर भी दिया पर उन्होंने ऐसा नहीं किया। कुल मिलाकर डेविड कैमरन की यह भारत यात्रा अच्छी रही और उम्मीद है कि भारत और ब्रिटेन के आपसी संबंधों को और मजबूती मिलेगी।

शिंदे की माफी एक सोची-समझी रणनीति के तहत मजबूरी का बयान है



 Published on 23 February, 2013 
 अनिल नरेन्द्र
वह कहावत है न कि देर आए दुरुस्त आए गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे पर फिट बैठती है। हिन्दू आतंकवाद संबंधी अपने बयान पर आखिरकार केंद्रीय गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे को झुकना पड़ा। बजट सत्र की पूर्व संध्या पर एनडीए को भेजे पत्र में शिंदे ने लिखा है कि किसी धर्म को आतंक से जोड़ने का उनका इरादा नहीं था। इतना ही नहीं शिंदे ने यह भी साफ किया कि भाजपा और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ कोई आतंकी शिविर नहीं चलाते हैं। भाजपा ने इस बयान का स्वागत किया है और कहा है कि शिंदे का यह बयान उन लोगों के लिए सबक है जो भाजपा और संघ पर गलत आरोप लगाते रहते हैं। शिंदे के बयान से लोगों में भारी गुस्सा था। भाजपा ने लोकसभा स्पीकर मीरा कुमार की ओर से बुलाई गई सर्वदलीय बैठक और दिल्ली के जंतर-मंतर पर प्रदर्शन के दौरान शिंदे को अल्टीमेटम देते हुए कहा था कि वे अपना बयान सिद्ध करें अन्यथा माफी मांगें। यूपीए सरकार को चुनौती देते हुए पार्टी नेताओं ने कहा था कि संघ और भाजपा पर पाबंदी लगाकर दिखाएं। दरअसल यूपीए सरकार और कांग्रेस की मजबूरी बन गई थी कि वह शिंदे से माफी मंगवाए। मजबूरी कहें या रणनीति कांग्रेस ने यह माफी सोची-समझी रणनीति के तहत ही मंगवाई है। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी, पी. चिदम्बरम, अहमद पटेल की बैठक हुई और कई चरणों में बयान तैयार हुए। कांग्रेस के चिन्तन शिविर में भगवा आतंकवाद, आरएसएस और भाजपा के शिविरों में आतंकी प्रशिक्षण के बयान पर पूरी भगवा ब्रिगेड ने संप्रग पर हल्ला बोल दिया था। कांग्रेस की मजबूरी थी माहौल को शांत करना। बजट पेश करना और पास कराना, सिस्टम को हिला देने वाले और टॉप तक अटैक करते दिख रहे हेलीकाप्टर घोटाले का सामना करना, आतंकवाद संबंधी बयान का कोर्ट में सामना न कर पाना, इन सब मुद्दों पर विचार ने गृहमंत्री शिंदे के खेद का आधार तैयार किया। मैं समझता हूं कि यह कांग्रेस का सही कदम था क्योंकि यह सत्र उसके और सरकार के लिए वैसे भी बहुत मुश्किल है और एक मुद्दा खत्म होता है तो बेहतर रहेगा। भाजपा ने भी शिंदे की माफी स्वीकार करके कम से कम इस मामले को तो रास्ते से हटा दिया है। भाजपा के पास और बहुत मुद्दे हैं जिन पर वह सरकार और कांग्रेस को कठघरे में खड़ा करेगी। यह प्रसन्नता की बात है कि संसद के सुचारू रूप से चलने में एक गतिरोधक तो समाप्त हुआ। जब हम शिंदे की माफी की बात कर रहे हैं तो शिंदे ने तो माफी मांग ली, लेकिन पार्टी के जिन वरिष्ठ नेताओं ने इस बयान का धुर समर्थन किया था, क्या वे भी माफी मांगेंगे? उल्लेखनीय है कि पिछले महीने 20 जनवरी को जयपुर के कांग्रेस चिन्तन शिविर में गृहमंत्री ने बयान दिया था कि भाजपा और संघ के प्रशिक्षण शिविरों में हिन्दू आतंकवाद की ट्रेनिंग  दी जाती है। इस टिप्पणी को लेकर पिछले एक महीने से कांग्रेस और संघ परिवार के बीच टकराव की नौबत रही है। मजेदार बात यह है कि शिंदे के बयान का जोरदार समर्थन कांग्रेस के कई नेताओं ने किया था। खासतौर पर पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव दिग्विजय सिंह और पूर्व केंद्रीय मंत्री मणिशंकर अय्यर ने। दोनों ने कहा कि उन्हें तो बहुत पहले से पता था कि संघ नेतृत्व हिन्दू आतंकवाद का कारोबार कर रहा है। मुंबई दंगों के बाद ऐसे कई मौके आए जब बड़बोले दिग्विजय सिंह ने हिन्दुत्व को किसी न किसी रूप में निशाना बनाया। मणिशंकर अय्यर ने कहा है कि शिंदे ने भले ही कोई सफाई दी हो, लेकिन वे आज भी अपने पुराने नजरिए पर कायम हैं। क्योंकि उनके पास ऐसे तमाम तथ्य हैं जिनसे साबित किया जा सकता है कि पूरा संघ परिवार सालों से सांप्रदायिक उन्माद फैलाने के लिए काम करता आया है। भारतीय जनता पार्टी, राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ और अन्य हिन्दूवादी संगठनों को गृहमंत्री शिंदे के ताजा बयान से बहुत खुश नहीं होना चाहिए। इसका यह मतलब नहीं निकालना चाहिए कि उन्होंने सरकार और सत्तारूढ़ कांग्रेस पार्टी को थूक कर चाटने पर मजबूर किया है। यह सिर्प एक केंद्रीय गृहमंत्री का एक रणनीतिक बयान है जो केवल बजट सत्र में सरकार को चलाने की एक मजबूरी है। हालांकि इससे इस बात की कोई गारंटी नहीं कि बजट सत्र सुचारू रूप से चलेगा?

Cameron visit to strengthen Indo-Britain relations


Anil Narendra        
British Prime Minister, David Cameron came to India on a three day visit. It was his second visit to India. Expressing his wish to expand Indo-Britain trade relations, besides announcing simplification of visa process for Indian businessmen and students, the British Premier also said that Indian students residing in Britain would also be given more concessions. He also expressed his desire to forge special relations with India that should not be guided by the past, not by future. All this, also shows Britain’s growing interest in trade. French President Francois Hollande also visited India last week, with such interest. In fact, Europe is passing through an economic crisis and as such the European countries consider India and other emerging economies as potential markets and see in them hope to mitigate their economic problems. European Union has been a main trade partner for India, but with Britain, India has traditionally been trading more. Britain has been the biggest inverter in India and more than half of Indian investment in European countries, is in Britain. When Cameron came to India in 2010, the economic crisis in Britain was more serious. He had openly expressed his desire to create maximum employment opportunities with India’s help. During this visit also, he praised the economic progress that India has made. Britain, today is not that super power that it used to be during 19th century and first half of the 20th century. But it has a profound presence in the history of India and it would continue to be of importance for the time to come. The visit of the Prime Minister of Great Britain to Jallianwala Bagh, underlines the common history of both the countries. Though Cameron visited Jallianwala Bagh and termed the Jallianwala Bagh massacre as a deeply shameful chapter in British history, but he did not tender apology over the Jallianwala Bagh massacre by General Dyer on 13 April 1919. Cameron is the first democratically elected first British Premier to visit the Jallianwala Bagh massacre site. Cameron paid homage to martyrs and observed one minute silence with folded hands in honour of the martyrs. He wrote on the Visitors’ Book at Jallianwala Bagh that it was the deeply shameful act in the British history. One, that had been described by Winston Churchil as monstrous act. Whatever happened here is unforgettable for us. We will ensure that Britain stands for the right of peaceful demonstration throughout the world. Some organizations pressurized the British Premier to apologize at the site, but he did not do it. All told, this visit of David Cameron proved fruitful and we hope the relations between India and Britain would prosper in the time to come.

Friday, 22 February 2013

रूस में गिरा उल्का पिण्ड हिरोशिमा एटम बम से 30 गुना शक्तिशाली था?



    Published on 22 February, 2013   
 अनिल नरेन्द्र

हम लोग यानी मानव अपनी रोजमर्रा की जिन्दगी या जद्दोजहद में इतना मसरूफ हो जाते हैं कि ऊपर वाले का, कुदरत का कभी शुक्रिया नहीं करते कि कितनी मेहर उसने हमें बख्शी है। आदमी हर चीज को फॉर ग्रांटेड लेता है। शायद ही कभी सोचता है कि सैकेंडों में उसकी सारी दुनिया उजड़ सकती है। जब मैंने रूस में उल्का पिण्ड गिरने की खबर पढ़ी तो मेरे रौंगटे खड़े हो गए। क्या हमने कभी सोचा कि अगर कोई उल्का पिण्ड भारत से टकरा जाए तो क्या होगा? रूस की यूराल पर्वतमाला के ऊपर शुक्रवार  को सुबह करीब 10 टन वजन वाला उल्का पिण्ड गिरा  जिससे भयानक धमाके हुए। अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के वैज्ञानिकों का कहना है कि रूसी क्षेत्र के ऊपर वायु मंडल के साथ उल्का के टकराव से जितनी ऊर्जा निकली वह जापान के हिरोशिमा शहर पर अमेरिका की ओर से गिराए गए परमाणु बम से निकली ऊर्जा से 30 गुना ज्यादा थी। 55 फुट चौड़ा और 10 टन वजनी उल्का पिण्ड रूस के यूराल पर्वतीय क्षेत्र के ऊपर वायु मंडल के साथ हुए टकराव से भीषण विस्फोट हुआ। विस्फोट इतना जबरदस्त था कि हजारों घर क्षतिग्रस्त हो गए। इसमें करीब 1000 लोग जख्मी हो गए। लोगों को अंदाजा नहीं हो पा रहा था कि आखिर हो क्या रहा है? चेल्याबिंस्क इलाके में रहने वाले सर्गेई हामेतोव ने बताया कि हर आदमी दूसरे के घर में उसकी खैरियत जानने के लिए जा रहा था। यह जगह मास्को से 1500 किलोमीटर दूर है। चेल्याबिंस्क में ही इसका सबसे ज्यादा प्रभाव पड़ा है। सर्गेई ने न्यूज एजेंसी एपी को बताया कि हमने एक तेज रोशनी देखी, फिर वह घट गई और जोर से आवाज सुनाई दी। रूस की इमरजेंसी मिनिस्ट्री ने एक बयान में कहा कि कम आबादी वाले इलाके चेल्याबिंस्क में उल्का पिण्ड गिरा है। उल्का पिण्ड में धमाके के बाद लोगों के घरों में उसके टुकड़े बिखर गए। तब लोगों ने सोचा कि इन टुकड़ों का क्या करेंगे पर अब वह टुकड़े सबसे खास  बन गए हैं। लारिसा नाम की एक महिला को धमाके के बाद अपनी छत की टाइलों में हुए छेद से एक पत्थर (छोटा) मिला था। सोमवार को एक अजनबी उनके घर आया और 3254 रुपए में उसे खरीदने की पेशकश करने लगा, थोड़ा मोलभाव  करके सौदा 12,476 रुपए में तय हो गया। कुछ घंटों के बाद एक और शख्स आया और छत के उस छेद में झांका और पत्थर के लिए 70,500 रुपए ऑफर करने लगा पर तब तक महिला पत्थर बेच चुकी थी। लारिसा को बहुत अफसोस हुआ। शुक्रवार तक जिस धमाके से लोग दहले हुए थे सोमवार तक उसी से वे चांदी काटने लगे। नतीजा यह हुआ कि वहां बर्प में दबे उल्का के टुकड़ों के लिए होड़ लग गई है। बेशक उल्का पिण्ड जैसी चीजों का व्यापार अवैध है पर इसका विशाल ग्लोबल मार्केट है। जैसा मैंने शुरू में कहा कि हमें ऊपर वाले का हर वक्त शुक्रिया करना चाहिए कि उसकी रहमत सब पर बनी रहे।


इन प्रिंसिपलों और टीचरों की मानसिकता कब बदलेगी?



   Published on 22 February, 2013   
अनिल नरेन्द्र

स्कूलों में बच्चों के साथ हिंसक व्यवहार के खिलाफ हालांकि कड़े कानून हैं और ऐसे अनेक मामलों में अध्यापकों, प्रधानाचार्यों को दंडित भी किया जा चुका है पर फिर भी कुछ लोग सुधरने को तैयार नहीं। स्कूल परिसर में पढ़ाई-लिखाई का माहौल भयमुक्त बनाने के मकसद से पाठ्यचर्या और अध्यापन संबंधी नई नीतियां तैयार की गईं, नए तौर-तरीकों और शिक्षा उपकरणों के इस्तेमाल पर बल दिया जाने लगा है, मगर अब भी कुछ प्रिंसिपल व टीचर पुराने ढर्रे पर बेंत, फुट रुल से बच्चों की पिटाई पर विश्वास करते हैं कभी-कभी बच्चे को सबक सिखाने के चक्कर में ऐसी जगह मार देते हैं जिससे बच्चे का वह अंग तमाम जिन्दगी के लिए ही बेकार हो जाता है। अकसर हम सुनते हैं, पढ़ते हैं कि स्कूल में पिटाई की वजह से बच्चे अपना मानसिक संतुलन खो बैठे और कुछ ने तो आत्महत्या तक कर ली। जब  मैंने हाल ही में यह खबर पढ़ी कि उत्तर प्रदेश के बुलंद शहर जिले में एक प्रिंसिपल के हाथों पिटाई की वजह से पहली कक्षा के एक बच्चे की आंख की रोशनी चली गई तो मुझे बहुत भारी सदमा पहुंचा। बच्चे की इस निर्मम पिटाई की वजह थी कि उसके माता-पिता स्कूल की फीस समय पर नहीं जमा कर सके। फीस अगर जमा नहीं हुई थी तो इससे मासूम बच्चे का क्या दोष था? होना तो यह चाहिए था कि प्रिंसिपल बच्चे के मां-बाप को बुलाते और उनसे बात करते। जाहिर-सी बात है कि बच्चा गरीब तबके से रहा होगा। उसके पिता दिहाड़ी मजदूर हैं। अखबारों में छपी खबरों के आधार पर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने स्वत संज्ञान लेते हुए बुलंदशहर के जिलाधिकारी और पुलिस अधीक्षक से इस बाबत रिपोर्ट तलब की है। आयोग ने जिलाधिकारी से यह भी बताने को कहा है कि वह स्कूल गरीब तबके के बच्चों को मुफ्त शिक्षा देने संबंधी नियमों का पालन कर रहा था या नहीं? शिक्षा का अधिकार कानून लागू होने के बाद निजी स्कूलों में पच्चीस फीसदी सीटें गरीब बच्चों के लिए आरक्षित रखना जरूरी हो गया है। मगर शायद ही किसी स्कूल ने इस नियम को मन से स्वीकार किया हो। वे गरीब बच्चों की हित-चिन्ता के बजाय अपना लाभ सबसे पहले देखते हैं। यही वजह है कि किसी न किसी बहाने वे आर्थिक रूप से कमजोर तबके के अभिभावकों से भी पैसे वसूलते हैं पर बड़े शहरों में निजी स्कूलों द्वारा इस प्रकार का व्यवहार करना फिर भी समझ में आता है पर गांव या कस्बे के स्तर के स्कूलों में प्रिंसिपलों व टीचरों द्वारा इस प्रकार के पुराने दकियानूसी तरीकों का आज भी इस्तेमाल होना हमारी समझ से तो बाहर है। केंद्र और राज्य सरकारों को इस दिशा में और सख्त कदम उठाने की जरूरत है ताकि ऐसे मामलों में कमी आए।

Thursday, 21 February 2013

क्या बजट सत्र सुचारु रूप से चल सकेगा? जिम्मेदार कौन?



 Published on 21 February, 2013 
 अनिल नरेन्द्र
बजट सत्र चालू होने वाला है। संकेत तो साफ हैं कि सत्र हंगामेदार रहेगा। अव्वल तो ज्यादा दिन सुचारु रूप से चलेगा नहीं और चला भी तो यूपीए सरकार ज्यादा समय तक कटघरे में खड़ी रहेगी। विपक्ष के पास बहुत बारूद है। हेलीकाप्टर सौदा, भगवा आतंकवाद, पेट्रोल-डीजल की कीमतों में वृद्धि, बिगड़ती कानून व्यवस्था, कुरियन का मामला इत्यादि इत्यादि यह सब मुद्दे उठेंगे। भगवा आतंकवाद पर भाजपा का स्टैंड स्पष्ट है कि जब तक गृहमंत्री अपना बयान वापस नहीं लेते और माफी नहीं मांगते तब तक उनका बहिष्कार जारी रहेगा। कांग्रेस पार्टी बेशक इस स्टैंड पर ऐतराज करे पर इतिहास गवाह है कि कांग्रेस ने भी यही सब कुछ किया था जब वह विपक्ष में थी और राजग का राज था। ताबूत घोटाले को लेकर जार्ज फर्नांडीस का बहिष्कार महीनों तक भला था। रही बात संसद को ठप करने की तो कांग्रेस यह क्यों भूल रही है कि जब संयुक्त राष्ट्र संघ के महासचिव और बाद में अमेरिका के राष्ट्रपति जार्ज बुश आए थे तो उन्हें सेंट्रल हॉल में सांसदों को संबोधित करना था पर कांग्रेस ने न केवल बायकाट किया बल्कि दोनों विदेशी अति महत्वपूर्ण मेहमानों को बोलने से रोक दिया। कांग्रेस देश के बारे में दुनिया को पता नहीं क्या संदेश देना चाहती थी? कांग्रेस की सबसे बड़ी मुश्किल अब यह है कि उसके पास पणब मुखर्जी जैसा संकट मोचक कोई नहीं बचा। पणब दा जैसे-तैसे करके विपक्ष को मना लेते थे और काम चलाऊ रास्ता निकाल लेते थे पर उनके राष्ट्रपति बनने के बाद अब कांग्रेस की फ्लोर मैनेजमेंट जीरो हो गई है। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने खुद कमान संभाली है पर वह रोब से ज्यादा काम लेती है, चोरी और सीना जोरी दोनों एक साथ नहीं चल सकती। संसद को चलाने का दायित्व सत्ता पक्ष का होता है। हम एक लोकतांत्रिक देश हैं और लोकतंत्र में विपक्ष को अपनी बात मनवाने के लिए संसद को ठप करने का अख्तियार है। यह कांग्रेस का फर्ज भी बनता है और यूपीए सरकार का भी कि वह अव्वल तो विपक्ष की मांगों पर गंभीरता से विचार करे और समाधान निकालने का पयास करे। होता क्या है कि संसद ठप करवा कर जब और कोई रास्ता नहीं सूझता तो विपक्ष की मांग अंतत मान लेती है। हमने 2जी स्पेक्ट्रम में विपक्ष की जेपीसी बनाने के मामले में देखा कि किस तरह सरकार पहले मानी नहीं और जब काम पूरी तरह ठप हो गया तो जाकर मानी। अगर यह काम पहले ही मान जाती तो शायद संसद ठप भी नहीं होती। सत्ता पक्ष को अपनी ईमानदारी से विपक्ष को कन्विंस करना पड़ेगा, लीपा-पोती से मामला बनने वाला नहीं। फिर यह कहना भी सही नहीं होगा कि सिर्प भाजपा ही संसद ठप करने में लगी रहती है। सत्ता पक्ष के घटक दल भी अपने मुद्दे उठाते हैं। उदाहरण के तौर पर कांग्रेस सांसद तेलंगाना का मुद्दा उठा सकते हैं। ममता प. बंगाल में कांग्रेस की गतिविधियों पर भी हंगामा कर सकती हैं। इस सब के बावजूद सभी पक्षों की कोशिश होनी चाहिए कि संसद चले। आखिर गरीब जनता की करोड़ों रुपए की कमाई को इस तरह बर्बाद होने से रोकना चाहिए।

काटजू लगता है बोलने से पहले अब सोचते नहीं



 Published on 21 February, 2013 
 अनिल नरेन्द्र 
श्री मार्कंडेय काटजू जब सुपीम कोर्ट के चीफ जस्टिस थे तो उन्होंने कई लैडमार्प जजमेंट दिए जो आज भी नोट किए जाते हैं। हालांकि मीडिया में बने रहने की आदत या कमजोरी तब भी जस्टिस काटजू में थी पर उन्होंने पद की गरिमा को कभी ठेस नहीं पहुंचाई और उनके आचरण पर किसी ने उंगली नहीं उठाई लेकिन जब से वह भरतीय पेस परिषद के अध्यक्ष बने हैं तब से एक के बाद एक ऐसा विवादास्पद बयान दे रहे हैं कि समझ नहीं आ रहा कि उन्हें क्या हो गया है? क्यों वह इस पकार के फिजूल विवाद पैदा करने के बयान दे रहे हैं? अब आप इनके ताजा विवाद को ही ले लीजिए। उल्लेखनीय है कि पिछले दिनों मार्कंडेय काटजू ने अंग्रेजी अखबार द हिंदू में एक लेख लिखकर गुजरात के विकास के दावों के बारे में कुछ सवाल उठाए थे। अगर यहां तक भी बात रुकती तो भी चलो बर्दाश्त हो जाती पर वह तो इससे कहीं आगे बढ़ गए। 2002 के गुजरात दंगों के बारे में लिखा कि कोई सरकार महज विकास के नगाड़े बजाकर इतने बड़े दंगों के पाप नहीं छिपा सकती क्योंकि इन दंगों में जितनी कूरता हुई थी, वह न किसी माफी लायक है और न ही भूलने लायक है। मैं यह मानने को तैयार नहीं हूं कि 2002 के गुजरात दंगों में मोदी का हाथ नहीं था। काटजू ने आगे लिखा कि भारतीयों का बड़ा वर्ग नरेन्द्र मोदी को आधुनिक मूसा और मसीहा के तौर पर पेश कर रहा है, जो देश का नेतृत्व करते हुए लोगों को ऐसी जगह ले जाएंगे जहां दूध और शहद की नदियां बहती हों। मोदी को भारत के अगले पधानमंत्री के तौर पर सबसे बेहतरीन नेता के तौर पर पेश किया जा रहा है। ऐसा सिर्प भाजपा या संघ ही नहीं बल्कि शिक्षित युवाओं सहित देश का तथाकथित शिक्षित वर्ग भी यही राग अलाप रहा है। काटजू ने लिखा, वास्तव में इस समय गुजरात के मुसलमान डरे हुए हैं कि अगर वे 2002 पर कुछ बोलेंगे तो उन पर हमला हो जाएगा। मोदी के समर्थक दावा करते हैं कि गोधरा में 59 हिंदुओं की हत्या की पतिकिया में गुजरात दंगे हुए। मैं इससे सहमत नहीं हूं। गोधरा कांड अब भी रहस्य बना हुआ है। दूसरा गोधरा के लिए जिम्मेदार लोगों की पहचान होनी चाहिए और उन्हें सजा दी जानी चाहिए। अंत में मार्कंडेय काटजू ने देश के लोगों से अपील तक कर दी कि देश को वह गलती नहीं दोहरानी चाहिए जैसी जर्मनी ने 1933 में की थी। यानी हिटलर को सत्ता में लाकर। काटजू को भाजपा नेता अरुण जेटली ने करारा जवाब दिया है। मैं आज उस पर चर्चा नहीं करूंगा क्योंकि मेरे सवाल काटजू साहब से अलग हैं। काटजू साहब आज किस पद पर हैं और किस लिए  हैं यह याद कराना जरूरी हो गया है। पेस कौंसिल ऑफ इंडिया एक्ट 1978 की धारा 7(1) में साफ लिखा है कि कौंसिल का अध्यक्ष (इस केस में मार्कंडेय काटजू) पूरे समय के लिए सरकारी मुलाजिम होंगे। इसके तहत व अन्य सुविधाएं भारत सरकार तय करेगी। यानी यह फुल टाइम सरकारी अफसर हैं। क्या हमें काटजू को बताना पड़ेगा कि सरकारी अफसर क्या कर सकता है, क्या नहीं। कोई कोड आफ एंशिक्स नाम की चीज भी होती है। उनका मुख्य काम मीडिया पर नजर रखने का है कि चैनलों पर कोई आपत्तिजनक चीज तो नहीं दिखाई जा रही, समाचार पत्रों में कोई आपत्तिजनक लेख या टिप्पणी तो नहीं की जा रही। यह है उनका काम। यह नहीं कि कभी कह दें कि बिहार में नीतीश कुमार ने मीडिया का गला घोंट दिया है या ममता बनर्जी तानाशाह बन गई हैं। श्रीमान जी के जो मुंह में आता है बिना सोचे समझे बोल देते हैं। कभी कहते हैं कि इस देश में 99 पतिशत लोग बेवकूफ हैं तो कभी कह देते हैं कि कश्मीर का स्थाई हल है भारत-पाक का विलय। एक टीवी चैनल में इंटरव्यू देते हुए काटजू इतने नाराज हो गए क्योंकि उनसे तीखे सवाल पूछे जा रहे थे कि उन्होंने पत्रकार को गेट आउट तक कह दिया। क्या काटजू यह सब कांग्रेस पार्टी के कहने पर कर रहे हैं? हमें नहीं लगता कि कांग्रेस इतनी नासमझी से काम लेगी और ऐसे अपना मजाक बनवाएगी। यह तो काटजू साहब अपने आकाओं को पसन्न करने के लिए इस पकार की भाषा बोल रहे हैं। जस्टिस मार्कंडेय काटजू की बातें इतनी एकतरफा और असंतुलित लगती हैं कि इनकी जितनी भी निंदा की जाए कम है। वह आज एक ऐसे पद पर बैठे हैं जिस पद की गरिमा ऐसे बयानों से नहीं बढ़ती। बजट सत्र आरम्भ हो रहा है। काटजू ने कांग्रेस पार्टी और यूपीए सरकार के लिए एक और सिरदर्द बढ़ा दिया है।

Wednesday, 20 February 2013

मजबूर मां ने आखिर अख्तियार किया अंतिम विकल्प



 Published on 20 February, 2013 
 अनिल नरेन्द्र
एमडीएलआर एयरलाइंस की पूर्व एयर होस्टेस गीतिका शर्मा (23) का परिवार उसके सुसाइड से उभरा भी नहीं था कि उसके परिवार में एक और त्रासदी हो गई। गीतिका की मां अनुराधा शर्मा ने भी पंखे से लटक कर आत्महत्या कर ली। इसके बाद अनुराधा का पति और उसका बेटा अंकित बचा है। पता लगा है कि अनुराधा ने भी उसी कमरे में फांसी लगाई जिस कमरे में पिछले साल 4 अगस्त की रात को उसकी बेटी गीतिका ने पंखे से लटक कर आत्महत्या की थी। जिस वक्त अनुराधा ने आत्महत्या की इस वक्त घर पर कोई नहीं था। अनुराधा ने अपने सुसाइड नोट में अपनी मौत का कारण एमडीएलआर एयरलाइंस के मालिक गोपाल कांडा और उसकी कम्पनी में कभी एचआर मैनेजर के रूप में काम करने वाली अरुणा चड्ढा को बताया है। सुसाइड नोट में और भी कई ऐसी गम्भीर बातें लिखी गई हैं जिनकी पुलिस जांच कर रही है। अनुराधा शर्मा ने अपने सुसाइड नोट में  लिखा, `मैं अपनी जिंदगी इसलिए खत्म कर रही हूं क्योंकि मैं अन्दर तक तनाव से भरी हुई हूं, पूरी तरह से बिखर चुकी हूं, लिहाजा मैं आज अपनी जिंदगी खत्म कर रही हूं। मेरा भरोसा टूट चुका है। मेरे साथ धोखा हुआ है। दो व्यक्ति मेरी मौत के लिए जिम्मेदार हैं। अरुणा चड्ढा और गोपाल कांडा। दोनों ने मेरा भरोसा तोड़ा और अपने फायदे के लिए मेरा इस्तेमाल किया। उन्होंने मेरी जिंदगी बर्बाद कर दी और अब मेरे परिवार को बर्बाद करना चाहते हैं। मेरा  परिवार बहुत भोला है।' सवाल यह है कि गोपाल कांडा तो इस समय जेल में बन्द है। दिल्ली पुलिस गोपाल कांडा और अरुणा चड्ढा के खिलाफ चार्जशीट दाखिल कर चुकी है और रोहिणी कोर्ट में चार्जशीट पर बहस होनी है।  सूत्रों का कहना है कि गोपाल कांडा को बचाने के लिए अब उसके प्रभावशाली बन्दे सक्रिय हो गए हैं। आरोप है कि केस में समझौता करने के लिए लगातार प्रेशर डाला जा रहा था जिसमें कुछेक  पुलिस अफसर भी शामिल बताए जा रहे हैं। कांडा का फेवर करने वालों में शामिल पुलिस अफसर हरियाणा के हैं। इधर दिल्ली पुलिस के सीनियर अफसर का कहना है कि इस तरह की कोई भी शिकायत गीतिका के परिजनों की तरफ से नहीं की गई। गीतिका के भाई ने धमकी मिलने का आरोप लगाया था। इसके बाद पुलिस प्रोटेक्शन की पेशकश की गई थी। अनुराधा की मौत की वजह क्या रही इस बात की जांच की जा रही है। सुसाइड नोट के आधार पर खुदकुशी को उकसाने, गवाहों पर प्रेशर डालने और धमकाने का केस दर्ज किया जाएगा।  वहीं परिवार से जुड़े सूत्रों का कहना है कि गोपाल कांडा को सजा में हो रही देरी की वजह भी गीतिका की मां की खुदकुशी का कारण बनी है। इसे बेचैनी कहें या कानूनी शिकंजे के और ज्यादा कसने का डर। तिहाड़ जेल में बन्द गोपाल कांडा को जैसे ही गीतिका की मां अनुराधा की खुदकुशी का पता चला, वह हक्का-बक्का रह गया। कुछ देर तक माथा पकड़े बुत बनकर बैठा रहा। बेचैनी का आलम तब और बढ़ गया जब उसे पता चला कि अनुराधा ने मरने से पहले एक सुसाइड नोट भी छेड़ा है। इस दुखद घटना पर सबसे बड़ा खेद यह है कि पूरा परिवार ही तबाह हो गया है।

अरुण जेटली की जासूसी कौन कर रहा है और क्यों?


 Published on 20 February, 2013 
  अनिल नरेन्द्र 
पिछले कई दिनों से राजनीतिक हलकों में यह चर्चा जोरों पर थी कि भारतीय जनता पार्टी के नेता और राज्यसभा में नेता विपक्ष अरुण जेटली का फोन टेप हो रहा है। क्या अरुण जेटली की कोई जासूसी कर रहा है? ये सवाल जेटली की कॉल डिटेल की कथित जांच को लेकर खड़ा हुआ। भाजपा प्रवक्ता प्रकाश जावडेकर और पार्टी अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने मामले को गम्भीर बताते हुए गृहमंत्री से सवाल किया है कि ऐसा किसके कहने पर किया गया। अब इस मामले में पर्दा उठ चुका है। इससे पहले प्रकाश जावडेकर ने सरकार से प्रश्न किया आखिर उसके राज में हो क्या रहा है? ये जासूसी क्यों की जा रही है? देश में लोकतंत्र है या तानाशाही लागू हो गई है? गृहमंत्री को सफाई देनी चाहिए। अरुण जेटली के फोन नम्बर की डिटेल निकलवाने के केस में धीरे-धीरे परतें खुल रही हैं। पोंटी चड्ढा के भाई हरदीप सिंह चड्ढा की कॉल डिटेल में मिले नम्बरों की ऑनरशिप साउथ दिल्ली की पुलिस ने जांच के दौरान निकलवाई थी। इनमें जेटली का भी नम्बर आया। साउथ डिस्ट्रिक्ट पुलिस के आपरेशंस सेल के एसीपी कुलवंत सिंह ने स्पेशल सेल को बताया कि 17 नवम्बर को छत्तरपुर में पोंटी चड्ढा और उनके भाई हरदीप चड्ढा के मर्डर के बाद उनकी कॉल डिटेल में मिले फोन नम्बरों की ऑनरशिप हासिल की गई थी। हरदीप की कॉल डिटेल में मिले नम्बरों में एक नम्बर अरुण जेटली का भी था। हरदीप की मौत से एक दिन पहले उनकी जेटली से बात हुई थी। उनकी बातचीत का संबंध चड्ढा बंधु हत्याकांड से न मिलने की वजह से जेटली से कोई पूछताछ नहीं की गई थी। यह मामला नवम्बर को ही खत्म हो गया था। पुलिस को इस नम्बर की ऑनरशिप मिलने के बाद ही जानकारी मिली थी कि नम्बर जेटली का है। जनवरी में एयरटेल को नई दिल्ली डिस्ट्रिक्ट पुलिस के आपरेशंस सेल के एसीपी की ओर से ईमेल मिला, जिसमें एक नम्बर की कॉल डिटेल रिकार्ड भेजने के लिए कहा गया था। एयरटेल के अफसरों ने वह नम्बर अरुण जेटली का होने की वजह से अपने नोडल अफसर को एसीपी भूप सिंह शौकीन से कन्फर्म करने को कहा। चाणक्यपुरी के एसीपी भूप सिंह ही आपरेशंस सेल का भी चार्ज सम्भाल रहे थे। तब यह राज खुला कि जेटली की कॉल डिटेल कोई अवैध रूप से मांग रहा था। जांच के बाद स्पेशल सेल ने शुक्रवार को आईटी एक्ट के तहत कांस्टेबल अरविन्द डबास को गिरफ्तार किया। वह पिछले साल नई दिल्ली के स्पेशल स्टाफ में तैनात था। इस वजह से डबास एसीपी के ईमेल का पासवर्ड जानता था। सीनियर अफसरों ने बताया कि डबास पोंटी-हरदीप मर्डर केस की वजह से जेटली की सीडीआर नहीं मंगा रहा था। उसे उत्तराखंड के किसी नेता ने हरदीप मर्डर केस में गिरफ्तार सुखदेव सिंह नामधारी के किसी आदमी ने यह डिटेल निकलवाने के लिए हायर नहीं किया था। डबास यह जालसाजी निजी वजह से कर रहा था। दरअसल डबास अपनी जमीन के मुआवजे में से एक करोड़ रुपए देहरादून में इन्वेस्ट करने के लिए वहां के किसी भाजपा नेता को दे चुका था। वह नेता उसे चीट कर रहा था। नोएडा के किसी आदमी ने खुद को जेटली का नजदीकी बताते हुए डबास को भरोसा दिलाया कि अगर वह उसे 10 लाख रुपए दे दे तो देहरादून के बीजेपी नेता को वह जेटली से फोन करा देगा। उसने यकीन दिलाने के लिए जेटली का नम्बर डबास को दिया था। डबास ने उस नम्बर की असलियत पता लगाने के लिए उसकी ऑनरशिप ही नहीं बल्कि सीडीआर भी मांगने के लिए एयरटेल को ईमेल किया था। इस कहानी में कितना दम है इसका पता नहीं, लेकिन यह साफ है कि जेटली के कॉल डिटेल्स लेने की कोशिश हुई है और वह भी एक-दो नहीं चार-चार पुलिस दफ्तरों से, ऐसे में सवाल है कि क्या कोई जेटली की जासूसी करने की कोशिश कर रहा है। गृह मंत्रालय ने भी फोन टैपिंग के आरोपों को खारिज कर दिया है और इस मामले में पुलिस से पूरी रिपोर्ट मांगी है।

Tuesday, 19 February 2013

अंतत पोंटी चड्ढा हत्याकांड में चार्जशीट दाखिल



 Published on 19 February, 2013 
 अनिल नरेन्द्र 
17 नवम्बर 2012 को छतरपुर स्थित पोंटी चड्ढा-हरदीप चड्ढा हत्याकांड ने सभी को हिला दिया था। दिल्ली पुलिस ने आखिरकार पोंटी व हरदीप चड्ढा हत्याकांड मामले में चार्जशीट दाखिल कर दी है। आरोप पत्र उत्तराखंड अल्पसंख्यक आयोग के बर्खास्त अध्यक्ष एसएस नामधारी और उनके निजी सुरक्षा अधिकारी सचिन त्यागी समेत 22 लोगों के विरुद्ध दाखिल किया गया है। करीब 1000 से भी ज्यादा पन्नों के आरोप पत्र में पुलिस ने कुल 110 लोगों को बतौर गवाह बनाया है। अदालत ने नामधारी और 10 अन्य आरोपियों को पेश करने का निर्देश दिया है। अगली सुनवाई 19 फरवरी को होगी। कुल 22 आरोपियों में से पुलिस ने नामधारी, उसके पीएसओ सचिन त्यागी और व अन्य को गिरफ्तार कर रखा है। पुलिस ने अदालत को बताया कि इस मामले में उन्होंने एक अन्य शख्स नरेन्द्र अहलावत को भी गिरफ्तार किया है और उसके खिलाफ जल्दी ही सप्लीमेंट्री चार्जशीट दाखिल की जाएगी। शुक्रवार को अदालत ने नाराजगी जाहिर की थी कि पुलिस ने अभी तक इस मामले में चार्जशीट दाखिल क्यों नहीं की है जबकि मियाद 17 फरवरी को पूरी हो रही है। हत्या के मामले में आरोपी की गिरफ्तारी के 90 दिनों के भीतर अगर आरोपी के खिलाफ चार्जशीट दाखिल न की जाए तो आरोपी को सीआरपीसी के प्रावधानों के तहत जमानत मिल जाती है। आरोप पत्र में 19 लोगों के खिलाफ हत्या का आरोप नहीं है, उनके खिलाफ हत्या का प्रयास, गम्भीर चोट पहुंचाने, अपहरण व आपराधिक साजिश रचने, सबूत मिटाना, गैर-कानूनी तरीके से बंधक बनाना व आर्म्स एक्ट आदि में मुकदमा चलाने की मांग अदालत से की गई है। दिल्ली पुलिस ने अतिरिक्त मजिस्ट्रेट मुकेश कुमार की अदालत में आरोप पत्र दायर किया। दायर आरोप पत्र पर संज्ञान लेते हुए अदालत ने मुख्य आरोपी नामधारी व अन्य को 19 फरवरी को अदालत में पेश करने का निर्देश दिया है। नामधारी के अलावा पोंटी चड्ढा को घटना का मुख्य साजिशकर्ता बताते हुए कहा गया है कि फार्म हाउस संख्या 42 पर जबरन कब्जा करने के लिए साजिश रची गई। आरोप पत्र में नामधारी का निजी गार्ड रहा सचिन त्यागी और अन्य लोगों के नाम शामिल हैं। पोंटी और नामधारी मुख्य साजिशकर्ता थे। दोनों हथियार से लैस होकर फार्म हाउस पर कब्जा करने गए थे। नामधारी व त्यागी के खिलाफ अन्य धाराओं के साथ-साथ हत्या का भी आरोप लगाया गया है। हालांकि आरोपी तो पोंटी को भी बनाया गया है पर चूंकि पोंटी की मौत हो चुकी है इसलिए उसके खिलाफ ट्रायल नहीं चलेगा। जब पोंटी का भाई हरदीप भी फार्म हाउस मौके पर पहुंचा तब पोंटी के आदमी फार्म हाउस के गेट पर ताला लगा रहे थे। इस दौरान हरदीप ने गेट पर ताला लगाने वाले शख्स पर गोली चलाई और साथ ही पोंटी पर भी गोली चलाई, लेकिन इसी दौरान नामधारी और उसके पीएसओ त्यागी ने हरदीप को गोली मार दी। अब केस चलेगा और देखें कि अदालत से क्या-क्या नया निकलता है। आज भी ऐसे लोगों की कमी नहीं जो कह रहे हैं कि इसके पीछे बहुत गहरी साजिश है और मामला इतना साधारण नहीं है जितना चार्जशीट बता रही है।

और अब जंग होगी शीला दीक्षित बनाम विजय गोयल



 Published on 19 February, 2013 
 अनिल नरेन्द्र 
भारतीय जनता पार्टी दिल्ली इकाई के प्रदेशाध्यक्ष को लेकर लम्बे समय से चल रही कशमकश अब समाप्त हो गई है। पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने तमाम विरोधों को नजरअंदाज करते हुए वरिष्ठ और कर्मठ भाजपा नेता विजय गोयल के नाम पर मोहर लगा दी है। श्री विजय गोयल एक और कर्मठ व जूझारू अध्यक्ष विजेन्द्र गुप्ता की जगह यह महत्वपूर्ण पद सम्भालेंगे। विजय गोयल छात्र जीवन से ही भाजपा की सक्रिय राजनीति में रहे हैं। उन्होंने सदर बाजार से कांग्रेस दिग्गज जगदीश टाइटलर को चुनाव हराकर  पहला लोकसभा चुनाव जीता था, उसके बाद उन्होंने चांदनी चौक से निवर्तमान दिल्ली कांग्रेस अध्यक्ष जय प्रकाश अग्रवाल को लगातार दो बार चुनाव में पराजित किया। वह अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में केंद्र में मंत्री रहते हुए महत्वपूर्ण दायित्व सम्भाले रहे और उनका कद काफी बढ़ा था। अध्यक्ष पद को लेकर चल रही दौड़ में अब भी यह कोशिश थी कि पार्टी को गुटबाजी से बचाने के लिए विधानसभा चुनाव तक विजेन्द्र गुप्ता को ही अध्यक्ष रखा जाए ताकि गुटबाजी पर अंकुश लगा रहे। अंतिम दौर में विजय गोयल और डॉ. हर्षवर्धन ही रह गए लेकिन पार्टी अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने विजय गोयल को चुना। डॉ. हर्षवर्धन पहले भी अध्यक्ष रह चुके हैं, विजय गोयल के अध्यक्ष बनने से दिल्ली के राजनीतिक समीकरण भी एक ही झटके में बदल गए हैं। चूंकि फिलहाल बीजेपी इस  बात पर विचार कर रही है कि दिल्ली में किसी को भी मुख्यमंत्री के रूप में  प्रोजेक्ट न किया जाए, ऐसे में विजय गोयल के अध्यक्ष बनने के बाद अगले विधानसभा चुनाव में लड़ाई शीला दीक्षित बनाम विजय गोयल हो सकती है। ऐसे में विजय गोयल के लिए यह चुनौती होगी कि एक ओर वह अपनी पार्टी में चल रही गुटबाजी पर कंट्रोल कैसे करते हैं और दूसरी ओर वह किस तरह से दिल्ली सरकार को बैकफुट पर धकेलने में कामयाब रहते हैं। विजेन्द्र गुप्ता तमाम खूबियों के बावजूद कई नेताओं को साथ लेकर नहीं चल पा रहे थे। ऐसे में पार्टी के लिए सबसे बड़ी चुनौती यह थी कि शीला दीक्षित को चौथी बार रोकने के लिए ऐसे नेता को लाया जाए जो टक्कर दे सके। हालांकि ऐसा नहीं कहा जा सकता कि विजय गोयल के मुकाबले शीला दीक्षित किसी भी प्रकार से कमजोर हैं लेकिन इतना जरूर है कि विजय गोयल के आने से कांग्रेस की चिन्ता जरूर बढ़ जाएगी। विजय गोयल के बारे में पार्टी नेतृत्व का मानना है कि उनकी जमीन से जुड़ी छवि और जुझारूपन कांग्रेस के लिए चुनौती जरूर पेश करेगा। वैसे इससे पहले भी विजय गोयल ही शीला दीक्षित सरकार के लिए परेशानी का सबब बनते रहे हैं। कॉमनवेल्थ गेम्स से लेकर बिजली के निजीकरण तक के मामलों के जरिए विजय गोयल ही दिल्ली सरकार को घेरते रहे हैं। उनकी यही जुझारू छवि उनके पक्ष में गई। नए अध्यक्ष के रूप में उनकी सबसे पहली चुनौती तो यही होगी कि दिल्ली में अपनी नई टीम बनाएं। चूंकि अब चुनाव के लिए 10 महीने से भी कम का वक्त बचा है ऐसे में उन्हें अपनी संतुलित टीम के लिए सबसे पहले माथापच्ची करनी पड़ सकती है। इसके साथ ही दूसरी बड़ी चुनौती यह है कि कई टुकड़ों में बंटी पार्टी को एकजुट रखना। अध्यक्ष बनन् ाs पर विजय गोयल को बधाई।

Sunday, 17 February 2013

मामला सहारा प्रमुख की सम्पत्ति कुर्क करने का



 Published on 17 February, 2013 
 अनिल नरेन्द्र
सहारा ग्रुप की मुश्किलें कम होती नजर नहीं आ रहीं। सुप्रीम कोर्ट की कड़ी टिप्पणी के बाद बाजार नियामक भारतीय प्रतिभूति एवं विनियम बोर्ड (सेबी) ने सहारा समूह की दो कम्पनियों और समूह के प्रमुख सुब्रत रॉय व अन्य तीन निदेशकों के बैंक खाते और डिमेट खाते सीज कर दिए हैं। इसके साथ ही सेबी ने सुब्रत रॉय और तीनों निवेशकों की चल व अचल सम्पत्ति भी अटैच कर ली है। सेबी ने यह कार्रवाई न्यायिक आदेश के बावजूद निवेशकों को 24 हजार करोड़ रुपए नहीं  लौटाने के मामले में की है। असल में मामले कुछ यूं हैं। सहारा समूह की दो कम्पनियों, सहारा इंडिया रीयल इस्टेट कारपोरेशन और सहारा हाउसिंग इन्वेस्टमेंट कारपोरेशन पर सेबी की बिना मंजूरी बाजार से पैसे उगाने का अभियोग। समूह की दोनों कम्पनियों ने तीन करोड़ निवेशकों से उगाहे 17,500 करोड़ रुपए। सुप्रीम कोर्ट ने 15 फीसदी ब्याज के साथ निवेशकों को रकम लौटाने को कहा था और आदेश दिया था। कोर्ट ने यह रकम तीन किस्तों में निवेशकों को लौटाने को कहा था। जून 2011 में सेबी ने सहारा को निवेशकों की रकम लौटाने का आदेश दिया था। इस फैसले के खिलाफ सहारा ने प्रतिभूति अपील ट्रिब्यूनल (सैट) में की। सैट ने सेबी का आदेश बरकरार रखा। इसके खिलाफ सहारा ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की। दिसम्बर 2012 को सुप्रीम कोर्ट ने सहारा ग्रुप को यह रकम तीन किस्तों में लौटाने की मोहलत दे दी थी। इसमें 5120 करोड़ रुपए का तत्काल भुगतान करना था। वहीं 10 हजार करोड़ की पहली किस्त इस साल जनवरी के पहले सप्ताह में देनी थी। शेष रकम फरवरी के पहले सप्ताह में लौटानी थी। सेबी ने बुधवार को कहा कि ग्रुप ने बाकी दो किस्तों का भुगतान नहीं किया है। इसलिए सुप्रीम कोर्ट के निर्देश अनुसार बैंक खातों पर रोक और ग्रुप के प्रमुख सुब्रत रॉय की चल-अचल सम्पत्ति कुर्प करने की कार्रवाई करनी पड़ी। दूसरी ओर सहारा ग्रुप का दावा है कि वह निवेशकों को 19,400 करोड़ रुपए पहले ही अदा कर चुका है। जहां तक 5120 करोड़ रुपए के भुगतान की बात है तो इसमें 2620 करोड़ रुपए ही निवेशकों को वापस दिए जाने हैं। सेबी ने इस कार्रवाई की सूचना आरबीआई व ईडी को भी भेज दी है। साथ ही सेबी ने आदेश दिया है कि सहारा समूह के मुखिया सुब्रत रॉय व अन्य तीनों निदेशक अपने शेयर किसी को भी हस्तांतरित नहीं करें। सेबी ने सहारा समूह के खिलाफ बड़ा कदम उठाते हुए सुब्रत व तीन निदेशकों वन्दना भार्गव, रविशंकर दूबे और अशोक रॉय चौधरी सहित  समूह की दो कम्पनियोंöसहारा इंडिया रीयल इस्टेट कारपोरेशन व सहारा हाउसिंग इन्वेस्टमेंट कारपोरेशन के बैंक व डिमेट खाते सीज कर दिए। सेबी की कार्रवाई की प्रतिक्रिया में सहारा ने जारी बयान में दोहराया है कि कम्पनी की कुल देनदारी 5120 करोड़ रुपए से ज्यादा नहीं होगी और कम्पनी यह रकम पहले ही सेबी के पास जमा कर चुकी है। सहारा ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के सेबी के पास किस्तें जमा कराने संबंधी आदेश को लेकर कम्पनी ने शीर्ष अदालत में एक अंतरिम आवेदन दिया है, जिस पर जल्द ही सुनवाई होनी है। सहारा का कहना है कि सेबी ने पुराने तथ्यों और आंकड़ों के आधार पर कम्पनी के खिलाफ कार्रवाई की है, उसने नए तथ्यों पर गौर नहीं किया। सेबी का निजी व्यक्तियों की सम्पत्ति अटैच करना सही कदम नहीं है।

अनुष्का शंकर का `वन बिलियन राइजिंग' अभियान रंग लाया



 Published on 17 February, 2013 
 अनिल नरेन्द्र
जब मेरे पास भारत रत्न से सम्मानित सितारवादक पंडित रविशंकर की बेटी अनुष्का शंकर का एक ई-मेल आया जिसमें अनुष्का ने खुलासा किया कि वर्षों तक उनका यौन शोषण होता रहा तो मुझे दुख भी हुआ और गुस्सा भी आया। अनुष्का का संदेश साफ था कि बहुत हो चुका अब और नहीं। उन्होंने मुझे वन बिलियन राइजिंग नामक अभियान में अपनी स्वीकृति देने को कहा जो मैंने अविलम्ब दे दी। अनुष्का ने बताया कि बचपन में एक ऐसे व्यक्ति ने कई वर्षों तक उनका शारीरिक और मानसिक शोषण किया, जिस पर उनके मां-बाप बेहद भरोसा करते थे। बकौल अनुष्का एक आम महिला की तरह मुझे भी जबरन छूने, फब्तियां कसने जैसी कई तरह की छेड़खानी का शिकार होना पड़ा। उन्होंने कहा कि बच्ची होने के कारण इन चीजों से वह निपटना भी नहीं जानती थी। 31 वर्षीय सितारवादक ने गैंगरेप के बाद महिलाओं के खिलाफ जो ऑनलाइन अभियान वन बिलियन राइजिंग चलाया शायद उन्हें खुद भी यह अंदाजा नहीं होगा कि वह इतना सफल होगा। राजधानी दिल्ली में महिलाओं पर बढ़ते अत्याचार, शोषण और हिंसा के खिलाफ गुरुवार को एक बार फिर से बड़ी संख्या में महिलाओं ने सड़कों पर उतर कर वन बिलियन राइजिंग का समर्थन करने के लिए अपनी आवाज बुलंद की। महिलाएं माथे पर `बस औरतों पर हिंसा अब और नहीं' लिखी गुलाबी पट्टी बांधकर विरोध कर रही थीं। बलात्कार, हिंसा के लिए अकसर महिलाओं के छोटे पहनावे को जिम्मेदार ठहराने वाले लोगों को दिल्ली के संसद मार्ग पर अलग-अलग इलाकों से साड़ी, कुर्ता-पायजामा, सूट-सलवार, मिनी स्कर्ट पहनकर पहुंचीं  महिलाओं को देखना चाहिए था जो कह रही थीं कि पुरुषवादी मानसिकता को बदलने की जरूरत है। इन कपड़ों के दिखाने के पीछे एक मात्र तर्प है कि महिलाएं किसी भी तरह कई कपड़े पहनती हैं तब भी हिंसा की शिकार होती हैं। विश्व स्तर पर आयोजित `वन बिलियन राइजिंग' अभियान हर साल आयोजित होता है, लेकिन इस बार वह अपने वास्तविक रंग में दिखाई दिया। साउथ एशिया स्तर पर इसके आयोजन में संगत और नागोरी जैसी करीब 70 संस्थाओं ने मिलकर काम किया। दिल्ली में इसे सफल बनाने के लिए पिछले छह महीनों से काम चल रहा था। 200 देशों में एक साथ चलाया गया है यह अभियान। 10 हजार से ज्यादा लोगों ने और 13 हजार संगठनों ने देशभर में इसे सफल बनाने का प्रयास किया है। `जागो रे दिल्ली जागो, बन्द करो अब बस करो औरतों पर हिंसा अब और नहीं हिंसा मुक्त जीवन जीने का अधिकार हमारा' जैसे जोश भरे नारों व गानों के साथ शुरू हुई संगीतमय `वन बिलियन राइजिंग' मुहिम में शामिल कई चेहरे चाहे एक-दूसरे से अनजान थे लेकिन सभी की मांगें और कोशिश एक थी। इस मुहिम के जरिए पूरी दुनिया से वे कहना चाहती थीं कि महिलाओं को बराबरी और समानता के साथ हिंसा मुक्त जीवन जीने का अधिकार है। वैलेंटाइन डे पर आयोजित इस मुहिम को बाकी प्रदर्शनों की तरह सिर्प विरोध का नजरिया नहीं बनाया गया बल्कि विश्वभर में महिलाओं के हक और सुरक्षा के लिए साथ आए लोगों की एकता व सतर्पता के जश्न के तौर पर मनाया गया। अनुष्का अंतर्राष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त सितारवादक स्वर्गीय पंडित रविशंकर की बेटी हैं। उनके इस खुलासे से कुछ बेहद महत्वपूर्ण मनोवैज्ञानिक पहलुओं पर रोशनी पड़ती है। पंडित रविशंकर किसी गरीब, अशिक्षित और संयुक्त परिवार के सदस्य नहीं थे। उनकी बेटी ऐसे सम्पन्न और सम्भ्रांत माहौल में पल रही थी जिनका एक पांव भारत में और दूसरा विदेश में होता है।  लेकिन अनुष्का के इस रहस्योद्घाटन से यह साफ होता है कि बच्चियों के यौन शोषण की प्रवृत्ति कुछ खास तरह के समाज या माहौल तक सीमित नहीं है, यह तथाकथित ऊंची सोसायटी में भी मौजूद है। दूसरा पक्ष यह है कि यह खुलासा इस आम धारणा को भी गलत साबित करता है कि कला-संस्कृति आदि से जुड़े लोग हिंसा, अपराध और शोषण जैसी मानसिक बीमारियों से मुक्त होते हैं। हालांकि अनुष्का ने उस विश्वासी आदमी की पहचान जाहिर करने से परहेज किया है,बावजूद इसके वे बधाई की पात्र हैं। पब्लिक की नजरों में सेलिब्रेटी का दर्जा पा चुके लोगों में से बहुत कम ऐसे होंगे, जिन्होंने आप-बीती को समाज के सामने इतनी बेबाकी से रखा है। जो साहस अनुष्का ने दिखाया है उम्मीद है कि इससे प्रेरणा लेकर बाकी भी भुक्तभोगी महिलाएं सामने आएंगी। हमारा फर्ज बनता है कि हम अनुष्का के इस अभियान का समर्थन करें और महिलाओं के खिलाफ बढ़ते अत्याचारों को रोकने के लिए अपनी आवाज बुलंद करें। दुख से कहना पड़ता है कि इतना कुछ हो जाने के बावजूद दिल्ली आज भी महिलाओं के लिए सेफ सिटी नहीं है और यह मैं अकेले ही नहीं कह रहा, दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह व गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे को पत्र  लिखकर शिकायत की है कि दिल्ली में कानून व्यवस्था खासकर महिलाओं की सुरक्षा संतोषजनक नहीं है।

‘One Billion Rising’ campaign of Anushka Shankar heralds change


Anil Narendra 
I was pained and equally angered, when I received an e-mail from Anushka Shankar, daughter of late virtuoso Bharat Ratna Pt. Ravi Shankar, saying that she had been subjected to sexual exploitation. Anushka’s message was loud and clear - enough is enough. She asked me to lend support to the ‘One Billion Rising’ campaign, which I immediately gave. She told that a person, whom her parents trusted implicitly, subjected her to sexual and emotional abuse for years. According to her, she had also been the victim of various forms of sexual harassments like groping, touching, verbal abuse and other things, while growing like other women. She said that being a child, she didn’t know how to deal with such exploitation. Perhaps, not even this 31-year old Sitar player expected that her on-line initiative ‘One Billion Rising’ would be such a tremendous success that she had launched after the gang rape episode. Once again, women of Delhi, in a very large numbers, took to streets on Thursday to voice their support to the ‘One Billion Rising’ campaign against increasing atrocities and violence against women and their sexual harassment. Women, this time, were demonstrating with pink bands on their foreheads which carried the message – ‘Enough, no more violence against women’. Those who put blames for violence against women on mini dresses should have watched women in saris and kurta-pyjamas and suit-salwars, mini-skirts shouting slogans on the streets and demanding a change in the male mindset. They also wanted to say that irrespective of the type of clothes women wear,  they are subjected to sexual harassment. ‘The One Billion Rising’ campaign is an annual affair, but this year, it was witnessed in its true colours. Almost 70 organizations including Sangat and Nagori participated in this campaign organized at South Asian level. In Delhi, preparations for the campaign were continuing for last six months. It was organized in 200 countries simultaneously. More than 10,000 people and 13,000 organisations worked hard to make it a success throughout the country. The musical start of the campaign kicked off with passionate slogans and songs like ‘Awake, Delhi awake’, ‘Stop, it’s enough’, ‘No more violence against women’, ‘free life our right’, and the faces participating in the campaign might be strangers to each others, but their efforts and demands were same. Through this campaign, they wanted to convey to the world that women have the right to live a violence-free life with equality. Organized on the occasion of Valentine Day, this campaign was not carried out as a protest demonstration only, but it was a celebration of unity and integrity of people who had gathered with the spirit of rights and security of women all over the world. Anushka is the daughter of world famous Sitar Player late Pt Ravi Shankar. Her revelations throw lights on some very important psychological aspects. Pt Ravi Shankar was not a member of any poor uneducated and joint family. Her daughter was being brought up in a prosperous and respected family that was very often shuttling between India and other foreign countries. But this revelation by Anushka clearly shows that the issue of sexual exploitation of girl child is not limited to any specific society or environ, but it is also prevalent among the so-called high society. The second aspect of this revelation contradicts the general notion that people connected with art and culture are free from the metal disorders such as violence, crimes and exploitation. Anushka withheld the identity of the reliable person subjecting her to sexual exploitation for which she deserves kudos. Only a handful of persons, who have reached at the celebrity level, dare present their stories of their exploitations with such boldness before the society. We hope that other women who had undergone such experiences in their lives would be inspired from the boldness shown by Anushka and come forward with their stories of exploitations. It’s our duty to support Anushka’s campaign and raise our voice against the increasing violence and atrocities against women. But it is sad that after all such efforts, Delhi is not a safe city for women and I am not alone in saying this. Even Delhi Chief Minister had written to the Prime Minister Dr Manmohan Singh and the Home Minister Sushil Kumar Shinde that the law and order situation in  Delhi, especially safety of women, is not satisfactory.