Published on 27 February, 2013
अनिल नरेन्द्र
यह अत्यंत दुख की बात है कि मनमोहन
सिंह की यह यूपीए सरकार पौराणिक और करोड़ों भारतीयों की आस्था के प्रतीक भगवान राम
द्वारा बनाए गए रामसेतु को तोड़ने पर अडिग है। केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से कहा
है कि 829 करोड़ रुपए खर्च करने के बाद इस परियोजना (सेतु समुद्रम परियोजना) को बन्द
नहीं किया जा सकता। अपनी परियोजना को आर्थिक और पर्यावरण के लिहाज से सही ठहराते हुए
केंद्र ने वैकल्पिक मार्ग के लिए गठित पर्यावरणविद् आरके पचौरी समिति की सिफारिश नकार
दी है। सुप्रीम कोर्ट में दायर हल्फनामे में जहाजरानी मंत्रालय ने कहा है कि भारत सरकार
ने बहुत शीर्ष स्तर के शोध के आधार पर परियोजना को हरी झंडी दी है। परियोजना को पर्यावरण
मंत्रालय से भी मंजूरी मिल गई है। पर्यावरण की शीर्ष संस्था नीरी ने भी परियोजना को
आर्थिक तथा परिस्थितिकीय तौर पर ठीक बताया है। हल्फनामे में कहा गया है कि सेतु समुद्रम
परियोजना सहित पचौरी समिति ने अपनी रिपोर्ट में वैकल्पिक मार्ग को साफ तौर पर नकार
दिया है। समिति ने कहा था कि सेतु समुद्रम परियोजना आर्थिक एवं पर्यावरण की दृष्टि
से ठीक नहीं है। मंत्रालय के उपसचिव अनंत किशोर ने कोर्ट में हल्फनामे में यह भी कहा
है कि केंद्र ने 2007 में विशिष्ठ व्यक्तियों की एक समिति का गठन किया था। उसकी ओर
से इस परियोजना को मंजूरी प्रदान की गई थी। कमेटी का कहना था कि परियोजना समुद्र मार्ग
निर्देशन, रणनीतिक लिहाज से और आर्थिक लाभ के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। उल्लेखनीय
है कि केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से आग्रह किया है कि रामसेतु के मुद्दे पर दायर
याचिकाओं का अदालत निपटारा कर दे। सुप्रीम कोर्ट में सरकार की महत्वाकांक्षी सेतु समुद्रम
परियोजना के खिलाफ कई याचिकाएं दायर हैं। यह परियोजना पौराणिक रामसेतु को तोड़कर भारत
के दक्षिणी हिस्से के इर्द-गिर्द समुद्र में छोटा नौवाहन मार्ग बनाने पर केंद्रित है।
यहां यह बताना जरूरी है कि यह परियोजना द्रमुक नेताओं ने बनाई थी और इसके पीछे एकमात्र
उद्देश्य परियोजना से पैसा कमाना है। परियोजना से जुड़ी सभी कम्पनियां द्रमुक नेताओं
और उनके रिश्तेदारों को करोड़ों रुपए कमाने के लिए बनी हैं। इस परियोजना के तहत समुद्र
क्षेत्र में 167 किलोमीटर लम्बा, 30 मीटर चौड़ा और 12 मीटर गहरा नौवाहन रास्ता तैयार
करने का प्रस्ताव है। भगवान राम और श्री हनुमान जी द्वारा बनाया गया दुनिया का यह अजूबा
सेतु एक राष्ट्रीय धरोहर होना चाहिए। ऐसी आस्था से जुड़ी वस्तुओं को पैसों से नहीं
तोला जा सकता। कल को क्या पैसों की खातिर आप ताजमहल या कुतुब मीनार गिरा देंगे? रामसेतु
के बारे में करोड़ों हिन्दुस्तानियों की आस्था है कि इसे श्रीराम की वानर सेना ने रावण
की राजधानी लंका तक पहुंचने के लिए तैयार किया था। पिछली रावण वंशज द्रमुक सरकार के
विपरीत सुश्री जयललिता सरकार का भी यही स्टैंड है कि केंद्र सरकार सेतु समुद्रम परियोजना
को पूरी तरह निरस्त करे और रामसेतु को राष्ट्रीय स्मारक बनाए। अब द्रमुक के दबाव पर
केंद्र सरकार एक बार फिर रामसेतु को तोड़ने पर अडिग लगती है। हम इस यूपीए सरकार को
चेताना चाहते हैं कि वह आग से खेल रही है। सरकार या उसके सहयोगियों में इतनी ताकत नहीं
कि वह श्रीराम से टक्कर ले सकें। अरबों रामभक्त उसके विरोध में खड़े हैं। सबसे दुखद
बात तो यह है कि केंद्र की इस तथाकथित धर्मनिरपेक्ष (हिन्दू विरोधी) सरकार ने सुप्रीम
कोर्ट में जो हल्फनामा दिया है उसमें यह भी कहा गया है कि रामसेतु हिन्दू धर्म का आवश्यक
अंग नहीं है। अगर भगवान राम, श्री हनुमान जी, श्रीलंका युद्ध हिन्दू धर्म का हिस्सा
नहीं हैं तो और क्या हिन्दू धर्म में बचता है? केंद्र सरकार के इस रवैये का हर हिन्दू
चाहे वह किसी भी वर्ग का क्यों न हो जमकर विरोध करेगा और आखिरी दम तक करता रहेगा। देखें
कि तुष्टिकरण पर मर रही यह सरकार हिन्दू जनमानस पर कैसे भारी पड़ती है। जय श्रीराम।