Wednesday 27 April 2016

9/11 हमलों को लेकर अमेरिका- सऊदी अरब आमने-सामने

अमेरिका को कुछ महीनों बाद नया राष्ट्रपति मिलने वाला है, लेकिन मौजूदा राष्ट्रपति बराक ओबामा के सामने शायद अपने कैरियर की सबसे बड़ी चुनौती सामने आ खड़ी हुई है। मसला 9/11 आतंकी हमले से जुड़ा है, जिसमें हमलावरों को मदद पहुंचाने में सऊदी अरब की भूमिका सामने आई है। ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि क्या अमेरिकी संसद में वह बिल पारित होगा, जिसमें सऊदी अरब के खिलाफ अमेरिकी कोर्ट में मुकदमे की बात शामिल है। अमेरिका की राजनीति में राष्ट्रपति चुनाव की इन दिनों चर्चाएं जरूर हैं, लेकिन उससे कहीं अधिक गंभीर विचार-विमर्श ओबामा प्रशासन को सऊदी अरब के खिलाफ अमेरिकी कोर्ट में मुकदमे पर करना पड़ रहा है। अमेरिकी संसद के निचले सदन `कांग्रेस' में ऐसा बिल लाने की तैयारी है, जिसमें सऊदी अरब को 9/11 न्यूयॉर्प हमलों में आतंकवादियों की मदद करने के लिए संदेह भरी नजरों से देखा जा रहा है। उसमें स्पष्ट उल्लेख है कि सऊदी अरब ने अपने चैनल के जरिये अमेरिका में मौजूद आतंकवादियों को न केवल प्रशिक्षण में मदद दिलाई, बल्कि उन्हें वित्तीय सहायता भी पहुंचाई। यही बड़ा कारण है कि हमले के 15 साल बाद भी 9/11 हमले के कारण, उसके जिम्मेदार और मददगारों पर कार्रवाई की प्रक्रिया चल रही है। कांग्रेस में यह बिल इसलिए लाया जा सकता है, क्योंकि 9/11 की जांच रिपोर्ट में 28 पन्ने ऐसे हैं जिन्हें अभी सार्वजनिक नहीं किया गया जो सऊदी अरब के 9/11 हमले से संबंधित हैं। यह जानकारी सामने आई है कि हमलावरों को सऊदी अरब से मदद मिली थी। इसे अमेरिका में 9/11 हमले के पीड़ितों और उनके परिवारों को न्याय दिलाने के तौर पर देखा जा रहा है। ऐसे में अगर बिल पारित करके सऊदी अरब के खिलाफ कोर्ट में मुकदमा चलता है तो अमेरिका और सऊदी अरब रिश्तों में निश्चित रूप से तनाव आ जाएगा। विश्व में अमेरिका ही ऐसा देश है, जिसकी डिप्लोमैटिक, आर्थिक और सैन्य गतिविधियां विदेशों में अन्य देशों के मुकाबले ज्यादा होती हैं। अगर देशों को मुकदमे से छूट के सिद्धांत का हनन होता है, तो अन्य देशों की तुलना में अमेरिका के खिलाफ ज्यादा मुकदमे कायम होंगे। विदेश नीति के कारण भी अमेरिका सबसे आकर्षक और हाई-प्रोफाइल टारगेट बन जाएगा। इस कारण अमेरिका लंबे समय से किसी अन्य देश के द्वारा अंतर्राष्ट्रीय कानूनों के झंझटों से बचा हुआ है। ऐसा इसलिए भी क्योंकि उदाहरण के तौर पर सीरिया में अमेरिका ने उन विद्रोहियों का सहयोग किया, जिन्होंने असद सरकार की सेना से संघर्ष करने के दौरान आम लोगों की भी जान ली। इसके परिणामस्वरूप अमेरिका पर आतंक को बढ़ावा देने और मदद करने पर भी मुकदमा चल सकता है। यही नहीं, अमेरिकी सेना अलकायदा और इस्लामिक स्टेट के आतंकियों पर हमले करती है तो उसे कई देश मानते हैं कि यह कार्रवाई भी आतंकवाद जैसी है।

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