Saturday 30 April 2016

उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन बरकरार, अदालत ने पूछे सवाल

उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन जारी रहेगा और 29 अप्रैल को विधानसभा में होने वाले फ्लोर टेस्ट पर भी रोक बरकरार रही। सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को अपनी सुनवाई के दौरान उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन हटाने के नैनीताल हाई कोर्ट के फैसले पर लगी रोक को जारी रखने का निर्णय लिया। न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा और न्यायमूर्ति शिवकीर्ति सिंह की पीठ ने अपने फैसले में कई महत्वपूर्ण सवाल उठाए हैं। पीठ ने कहा कि लाख टके का सवाल है कि क्या विधानसभा की कार्रवाई के आधार पर केंद्रीय कैबिनेट उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन लगाने की सिफारिश कर सकता है? राज्यपाल के रोल पर भी सवाल उठाए गए और साफ-साफ शब्दों में कहा गया है कि क्या राज्यपाल ने आर्टिकल 175(2) के तहत फ्लोर टेस्ट रोकने का संदेश भेजा था? और क्या राज्यपाल ऐसा कर सकते हैं? यह भी सवाल किया गया कि फ्लोर टेस्ट में देरी होना क्या राष्ट्रपति शासन लगाने का आधार हो सकता है? क्या मनी बिल गवर्नर के पास भेजने में देरी राष्ट्रपति शासन का आधार हो सकता है? राज्य में बिल पास हुआ था या नहीं, क्या दिल्ली से तय किया जाएगा? इसके अलावा यह भी कहा जा रहा है कि स्टिंग ऑपरेशन सही है तो भी यह राष्ट्रपति शासन का आधार नहीं हो सकता। पहले ही एसआर बोम्मई और रामेश्वर प्रसाद के सन्दर्भ में सुप्रीम कोर्ट कह चुका है कि किसी भी परिस्थिति में फ्लोर टेस्ट ही एक रास्ता है। अगर ऐसा हुआ तो यह कांग्रेस सहित विपक्ष की जीत मानी जाएगी। केंद्र सरकार को इसके लिए अब काफी होमवर्प करना होगा और ऐसे सबूत पेश करने होंगे, जिनके आधार पर अदालत को महसूस हो कि हालात बिल्कुल बेकाबू हो गए थे और उस दौरान राष्ट्रपति शासन ही एकमात्र हल बचा था। राष्ट्रपति शासन वाली अधिसूचना को संसद की मंजूरी दिलानी होगी और जिस तरह उत्तराखंड मामले में कांग्रेस के समर्थन में सारा विपक्ष एकजुट हो गया, उससे तो लगता नहीं है कि कम से कम राज्यसभा में केंद्र सरकार अपने मकसद में कामयाब हो पाएगी। संविधान विशेषज्ञों का साफ-साफ कहना है कि सरकार के लिए यह बाध्यकारी है कि वह दो माह के अंदर अधिसूचना को संसद में मंजूर करवाए। हां, नई सरकार के गठन का अगर रास्ता खुलता है तभी केंद्र संसद मंजूरी की फजीहत से बच सकता है यानि केंद्र सरकार के समक्ष फ्लोर टेस्ट ही विकल्प बचता है, जिसकी मांग विपक्ष कांग्रेस से करता रहा है। अगर फ्लोर टेस्ट हुआ तो फिर यह भी ध्यान देने वाली बात है कि विधानसभा स्पीकर गोविंद सिंह पुंजवाल ने नौ कांग्रेस विधायकों को अयोग्य ठहरा दिया था। अगर कोर्ट का फैसला पक्ष में नहीं आया तो विधानसभा का अंक-गणित पूरी रह बदल जाएगा। कांग्रेस ने उन नौ विधायकों को अयोग्य ठहराने के स्पीकर के फैसले से 70 सदस्यीय विधानसभा में संख्या 61 ही रह जाएगी। कांग्रेस के इन नौ बागी विधायकों ने रावत के खिलाफ बगावत कर भाजपा से हाथ मिला लिया था और अगर इनकी सदस्यता खत्म हो जाती है तो यह कांग्रेस के लिए फायदेमंद होगा और भाजपा के लिए नुकसानदेह। कांग्रेसियों को उम्मीद थी कि फैसला उनके पक्ष में आएगा और भाजपा यह उम्मीद लगाए बैठी थी कि मामला संवैधानिक पीठ के हवाले हो जाएगा, लेकिन दोनों की ही हसरत पूरी नहीं हुई। भाजपा और कांग्रेस अपने-अपने स्तर पर 29 अप्रैल के शक्ति-परीक्षण पर जुटी हुई थीं और इसी लिहाज से रणनीति भी बन रही थी। लेकिन पूरे मामले में एक और तारीख मिलने के बाद स्थिति अब पलट गई है। अब सप्ताहभर तक राजनीतिक दलों की गतिविधियों का शोर थमने के आसार हैं। यूं कहें कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा दी गई तारीख सप्ताहभर तक प्रदेश की सियासी गतिविधियों के लिए स्पीड ब्रेकर बन गई है।

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