Tuesday 5 April 2016

जैश सरगना मसूद अजहर पर चीन का वीटो

चीन ने एक बार फिर संयुक्त राष्ट्र में भारत की पीठ पर छुरा घोंपकर पाकिस्तान से अपनी दोस्ती निभाई है। चीन ने पठानकोट हमले के लिए जिम्मेदार आतंकी संगठन जैश--मोहम्मद के सरगना मसूद अजहर को आतंकी सरगना मानने से इंकार कर दिया है। यह काफी दिलचस्प विरोधाभास है कि जिस दिन चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग वाशिंगटन में अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा के साथ बातचीत के बाद संवाददाताओं से बात कर रहे थे तो उन्होंने आतंकवाद के खतरे से निपटने में अमेरिका और चीन की भूमिका की चर्चा की और उसी दिन चीन ने आतंकवादी संगठन जैश--मोहम्मद के सरगना मसूद अजहर को बचाने के लिए संयुक्त राष्ट्र में अपनी वीटो का इस्तेमाल किया। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत ने मसूद अजहर पर पाबंदी के लिए प्रस्ताव रखा था और इसके सबूत भी पेश किए थे। सुरक्षा परिषद के अन्य स्थायी सदस्य अमेरिका, फ्रांस आदि इस प्रस्ताव के समर्थन में थे, लेकिन चीन ने वीटो करके इसे विफल कर दिया। वैसे ऐसा पहली बार नहीं हुआ है जब चीन ने मसूद अजहर पर पाबंदी के प्रस्ताव को विफल किया है। जैश--मोहम्मद पर तो सन 2001 के बाद से पाबंदी लगी हुई है, लेकिन 26/11 के मुंबई हमले के बाद मसूद अजहर पर पाबंदी लगाने के भारतीय प्रस्ताव को चीन ने वीटो कर दिया था। संयुक्त राष्ट्र में चीन के प्रतिनिधि ने पाकिस्तान के आतंकी संगठन जैश--मोहम्मद के सरगना मसूद अजहर पर इसलिए पाबंदी नहीं लगने दी कि कथित तौर पर संबंधित नियमों और प्रक्रिया का सही तरह से पालन नहीं किया गया। चूंकि चीनी प्रतिनिधि यह स्पष्ट करने में नाकाम रहे कि किस नियम या प्रक्रिया के पालन में खामी थी जिसके लिए उसने वीटो किया? उसने यह इसलिए किया कि चीन कूटनीतिक बेशर्मी का परिचय देने पर आमादा था और वह भी एक ऐसे आतंकी के लिए जिसकी कारगुजारी से पूरी दुनिया परिचित है। चीन इससे अनभिज्ञ नहीं हो सकता कि मसूद अजहर पठानकोट में आतंकी हमले के लिए जिम्मेदार है और उसके संगठन जैश--मोहम्मद पर संयुक्त राष्ट्र की पाबंदी पहले से ही चली आ रही है। इन स्थितियों में संयुक्त राष्ट्र के समक्ष भारत की यह मांग सर्वथा उचित ही थी कि मसूद अजहर को काली सूची में डाला जाए, लेकिन पाकिस्तान से अपनी दोस्ती जताने हेतु चीन ने अड़ंगा लगा दिया। हमें इससे भी संतुष्ट नहीं होना चाहिए कि चीन के रवैये पर हमने अपनी निराशा प्रकट कर दी है। यह मामला सिर्प निराशा प्रकट करने तक ही सीमित रहने का नहीं है। भारत को चीन को दो टूक कहना चाहिए कि उसने एक आतंकी का समर्थन कर न केवल भारत को नीचा दिखाने का प्रयास किया है बल्कि वैश्विक आतंकवाद से लड़ने के दुनिया के संकल्प पर भी चोट की है। चीन की इस हरकत के बाद भारत को उसे अपने मित्र और हितैषी के रूप में देखना बंद करना चाहिए। यह जगजाहिर है कि चीन पाकिस्तान का सदाबहार दोस्त है और वह उसके हितों की रक्षा के लिए भी प्रतिबद्ध है, लेकिन उसने अब यह भी प्रकट कर दिया कि उसकी इस प्रतिबद्धता में घोषित आतंकी का खुला समर्थन भी शामिल है। मसूद अजहर पर पाबंदी लगने से पाकिस्तान मुश्किल में पड़ जाएगा। क्योंकि पाकिस्तानी सत्ता प्रतिष्ठान से उसके बहुत मित्रतापूर्ण संबंध हैं। वह सेना और आईएसआई के संरक्षण में ही अपना आतंकवाद चलाता है। पाकिस्तान में मसूद अजहर और हाफिज सईद जैसे आतंकवादी सरगनाओं ने सत्ता प्रतिष्ठान और समाज में इतना मजबूत ताना-बाना बुन रखा है कि उस पर हाथ डालना अब सरकार या सेना के लिए चाहकर भी मुमकिन नहीं है। चीन के इस रवैये से भारत को न केवल सावधान रहना होगा बल्कि इसकी काट भी करनी होगी। पाकिस्तान के साथ चीन का गठजोड़ दिनोंदिन मजबूत होता जा रहा है और चीन जानता है कि भारत उसके खिलाफ एक सीमा से आगे नहीं बढ़ेगा। भारत को चीन के इस भ्रम को तोड़ना होगा।

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