Friday 1 April 2016

आखिर कैसे रोकें कन्या भ्रूण हत्या के मामले

कुछ दिन पहले केंद्रीय महिला एवं कल्याण मंत्री मेनका गांधी ने प्रस्ताव दिया था कि गर्भस्थ शिशुओं के लिंग-परीक्षण पर लगी रोक न केवल हटा ली जाए बल्कि इसे अनिवार्य बना दिया जाए। कांग्रेस ने ऐसी किसी पहल के विरोध में सड़क पर उतरने की धमकी दी है। हालांकि मेनका ने साफ किया कि ऐसा कोई प्रस्ताव सरकार के विचाराधीन नहीं है, यह सिर्प एक वैकल्पिक राय है। कटु सत्य तो यह है कि प्रचार-प्रसार के तमाम प्रयासों और जागरुकता अभियानों के बावजूद देश में कन्या भ्रूण हत्या पर कारगर रोक नहीं लग सकी है। आबादी में पुरुषों के मुकाबले महिलाओं के अनुपात में गिरावट की रफ्तार थोड़ी कम जरूर हुई है, लेकिन इतनी नहीं कि इसे रेग्यूलर ट्रेंड माना जा सके। सरकार ने लिंग परीक्षण पर रोक भले ही लगा रखी हो पर देश में गली-गली में ऐसे क्लीनिक मौजूद हैं जहां अवैध तौर पर सेक्स डिटर्मिनेशन टेस्ट किए जा रहे हैं। ऐसे में नाममात्र के लिए लगी इस कानूनी रोक को हटा लेने का सुझाव देकर मेनका गांधी ने ठहरे पानी में कंकड़ फेंकने का काम किया है। उनका कहना है कि इसके बदले प्रेग्नेंसी के हर मामले में लिंग परीक्षण को अनिवार्य बनाकर यह सुनिश्चित किया जाए कि गर्भ में लड़कियों को सिर्प लड़की होने की वजह से न मार डाला जाए। आ]िखर कब तक यह समस्या बनी रहेगी? जब एक तरह की कोशिश व एप्रोच से समस्या नहीं सुलझ पा रही हो तो कोशिश का ढंग बदल कर देखना क्या बेहतर नहीं होगा? हां, इस सुझाव की उपयोगिता स्वीकार करने और इसके पीछे मौजूदा इरादे को ठीक मान लेने के बावजूद यह सवाल बचा रहता है कि अभी की स्थिति में क्या इसे लागू किया भी जा सकता है। मेनका गांधी के सुझाव का कुल नतीजा अगर पैसे लेकर दस्तखत मारने वाली नौकरशाही का एक और ढांचा खड़ा करने के कागजी प्रस्ताव के रूप में सामने आता है तो इससे लिंग अनुपात सुधरने की कितनी उम्मीद की जा सकती है? प्रश्न यह है कि संभावित माता-पिता पर नजर रखने की अतिरिक्त जिम्मेदारी कौन उठाएगा? जैसे-जैसे शिक्षा का स्तर बढ़ रहा है, देश में बेशक भ्रूण हत्या में कमी आ रही है। लेकिन 2014 के आंकड़ों को देखें तो कन्या भ्रूण हत्या के सर्वाधिक मामले मध्यप्रदेश में पाए गए। वर्ष 2013 और 2014 के बीच भ्रूण हत्या के मामलों में 51.6 फीसदी कमी देखी गई है। लेकिन तथ्य यह भी हैं कि हरियाणा, पंजाब और जम्मू-कश्मीर व मध्यप्रदेश में लैंगिक अनुपात अभी भी चिन्तनीय बना हुआ है।
-अनिल नरेन्द्र



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