Friday 15 April 2016

मुख्यमंत्री नीतीश अब पार्टी अध्यक्ष भी बने

जनता दल (यूनाइटेड) की राष्ट्रीय कार्यकारिणी ने नीतीश कुमार को पार्टी का नया अध्यक्ष चुन लिया है, जिसकी पुष्टि औपचारिक तौर पर इसी महीने होने वाली पार्टी की राष्ट्रीय परिषद की बैठक में भी कर दी जाएगी। विगत एक दशक से भले ही वरिष्ठ समाजवादी नेता शरद यादव जनता दल (यू) के अध्यक्ष थे, मगर यह पार्टी का मुखौटा समान थे, असल में कमान तो नीतीश कुमार के हाथों में ही थी। पार्टी के इस कदम से नीतीश का पूरा वर्चस्व पार्टी पर हो गया है। कुछ लोगों का मानना है कि इस सारी कवायद के पीछे प्रशांत किशोर का शातिर दिमाग है। माना जा रहा है कि 2019 के आम चुनाव में मोदी के मुकाबले खड़े होने की तैयारी कर रहे सुशासन कुमार उर्प नीतीश कुमार के लिए अपनी पार्टी पर पूरा नियंत्रण जरूरी था और इसे उसी कवायद के रूप में देखा जा रहा है। प्रशांत किशोर की यह शैली वही है जो 2014 के लोकसभा चुनाव में मोदी को उन्होंने सुझाई थी। यह इन्हीं का आइडिया था कि मोदी को पार्टी की कमान अपने हाथ में रखनी चाहिए। यह दूसरी बात है कि प्रधानमंत्री होते हुए नरेंद्र मोदी पार्टी पर उतनी कड़ी पकड़ व नजर नहीं रख सकते थे, इसलिए उन्होंने अपने सबसे ज्यादा विश्वासपात्र अमित शाह को पार्टी की कमान थमा दी। अब भाजपा में सारे महत्वपूर्ण फैसले मोदी-शाह की जोड़ी ही करती है। यह किसी से छिपा नहीं है कि नीतीश देश के प्रधानमंत्री बनना चाहते हैं। खुद नीतीश भी कह रहे हैं कि जनता चाहेगी तो वह प्रधानमंत्री पद के दावेदार होंगे। चर्चा तो यह भी है कि शरद यादव अध्यक्ष पद नहीं छोड़ना चाहते थे। अंदरखाते नीतीश और शरद के बीच शीतयुद्ध की स्थिति बनी हुई है। बिहार विधानसभा चुनाव में जद (यू), राजद और कांग्रेस गठबंधन को महत्वपूर्ण जीत दिलाने वाले नीतीश और उनके राजनीतिक सलाहकार प्रशांत किशोर इस जीत को अन्य राज्यों में भी ले जाना चाहते हैं। सूत्र बताते हैं कि नीतीश को पार्टी की कमान संभालने की सलाह प्रशांत किशोर ने तुरन्त चुनाव के बाद दी थी। जद (यू) में अजीत सिंह के नेतृत्व वाली रालोद और झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री बाबू लाल मरांडी के झारखंड विकास मोर्चा के विलय के बारे में बातचीत चल रही है और शरद यादव के हस्तक्षेप के कारण कई निर्णयों को लागू करने में नीतीश को दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा था। शरद यादव ने लालू के साथ गठबंधन का भी विरोध किया था, लेकिन नीतीश के कड़े तेवर के बाद शरद यादव ने भारी मन से लालू का साथ स्वीकार किया। इस बात की भी चर्चा रही कि शरद के पर्दे के पीछे शह के कारण ही मांझी ने नीतीश के खिलाफ मोर्चा खोला था।

-अनिल नरेन्द्र

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