Friday 22 April 2016

सुषमा स्वराज का तेहरान-मास्को दौरा

विदेश मंत्री सुषमा स्वराज की ईरान, रूसी व चीनी नेताओं से बातें कई दृष्टियों से महत्वपूर्ण है। चाहे मामला ईरान से तेल का रहा हो या फिर चीन से मसूद अजहर का रहा हो। अंतर्राष्ट्रीय नीतियां किसी नैतिकता और सिद्धांत की बजाय शुद्ध भू-राजनीतिक हितों पर आधारित होती हैं और मसूद अजहर के मामले में चीन के पाकिस्तान के प्रति झुकाव को इसी संदर्भ में देखना होगा। लंबे समय से आतंकवाद से जूझ रहे भारत का हमेशा से यही मानना रहा है कि आतंकवाद को खत्म करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय बिरादरी को इस पर दोहरा रुख खत्म करना होगा। रूस, भारत और चीन के विदेश मंत्रियों की मास्को में हुई बैठक में विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने देश के इसी रुख को दोहराया है और आगाह किया है कि आतंकवाद पर दोहरा रुख उनके लिए ही नहीं बल्कि पूरे विश्व के लिए खतरनाक हो सकता है। इसलिए हमें इस बात से संतोष जरूर मिला है कि सुषमा जी ने मास्को में इकट्ठे हुए विदेश मंत्रियों की बैठक से अलग चीन के विदेश मंत्री वांग वी से अलग मिलकर अपनी आपत्ति दर्ज कराई। मसूद अजहर और लखवी के मामले में भारत के अंतर्राष्ट्रीय प्रयासों को चीन धता बताता रहा है और ऐसा करने के पीछे साफ तौर पर पाकिस्तान को समर्थन देना है। जब मुंबई पर 26/11 का आतंकी हमला हुआ था और भारत पाकिस्तान के आतंकी ठिकानों पर निशाना लगाने की सोच रहा था तब भी चीन के प्रतिनिधि बिना बुलाए भारत आए थे और शांति और संयम से काम लेने की सलाह दे गए थे। उसी हमले के सिलसिले में जब लखवी की रिहाई का भारत ने विरोध किया था तो भी चीन ने पाकिस्तान का समर्थन किया था। हाल ही में पठानकोट में हुए हमले के मुख्य साजिशकर्ता और जैश--मोहम्मद के सरगना मसूद अजहर को संयुक्त राष्ट्र की आतंकी सूची में डालने का प्रयास किया तो इसे सिर्प इसलिए नाकाम कर दिया गया क्योंकि चीन ने इस पर वीटो कर दिया था। इसलिए यह अच्छा है कि सुषमा जी ने चीन को भारत के दृष्टिकोण से अवगत करा दिया है। मास्को से पहले सुषमा जी ईरान की राजधानी तेहरान गई थीं। ईरान भारत के लिए कई मायनों में महत्वपूर्ण है। ईरान के परमाणु कार्यक्रम के खिलाफ पश्चिमी देशों के आर्थिक प्रतिबंध हटाए जाने के बाद ईरान के साथ ऊर्जा क्षेत्र में संबंधों के विस्तार के लिए तेल एवं गैस क्षेत्र समेत पेट्रो रसायन और उर्वरक खंड में ईरान भारत के लिए महत्वपूर्ण है। सुषमा स्वराज ने ईरान के सर्वोच्च नेता सैयद अली खोमैनी के सलाहकार अली अकबर विलायती, विदेश मंत्री जावेद शरीफ से सभी मुद्दों पर बातचीत की। भारत ईरान से तेल का आयात बढ़ाने का भी इच्छुक है जो फिलहाल 3,50,000 बैरल प्रतिदिन का है। ईरान की सीमा अफगानिस्तान और पाकिस्तान से लगी हुई है। ईरानी नेताओं ने क्षेत्रीय मुद्दों विशेष तौर पर अफगानिस्तान और आतंकवाद की चुनौती पर भारत के साथ निकट परामर्श की भी उम्मीद जताई। ईरान के राष्ट्रपति हसन रूहानी ने स्वराज से कहाöभारत और ईरान के बीच ऐतिहासिक तौर पर बेहद गहरे सांस्कृतिक संबंध रहे हैं। इससे दोनों देशों के बीच पर्यटन और जनता के बीच सम्पर्प का बेहतर भागीदारी बढ़ाने का रास्ता बन सकता है। भारत और ईरान ने चाबहार परियोजना की प्रगति की समीक्षा की। भारत और ईरान में इस बात की सहमति भी बनी कि चाबहार के लिए व्यावसायिक अनुबंध और चाबहार बंदरगाह के लिए 15 करोड़ डॉलर के वित्त पोषण के तौर पर जल्द दस्तख्त किए जाएंगे। कुल मिलाकर चाहे मुद्दा आतंकवाद का रहा हो या भारत की ऊर्जा जरूरतों का रहा हो, सुषमा स्वराज का दौरा सफल रहा। ईरान से भारत के रिश्ते हमेशा से अच्छे रहे हैं और कुछ समय बाद प्रधानमंत्री का भी ईरान जाने का कार्यक्रम है। सुषमा जी ने सही ग्राउंड वर्प किया है।

No comments:

Post a Comment