Thursday 7 April 2016

महबूबा दुरुस्त तो आयद पर आगे का रास्ता आसान नहीं

जम्मू-कश्मीर की पहली महिला मुख्यमंत्री के रूप में शपथ लेकर महबूबा मुफ्ती ने राज्य में करीब तीन महीने से चली आ रही अनिश्चितता समाप्त कर दी है। भाजपा पहले की तरह ही सरकार में हिस्सेदार है। 56 साल की महबूबा जम्मू-कश्मीर की पहली और देश की दूसरी मुस्लिम महिला मुख्यमंत्री बन गईं। सोमवार को उन्होंने 22 मंत्रियों के साथ शपथ ली। इनमें 11 पीडीपी के, 9 भाजपा के और 2 पीपल्स कांपेंस के नेता शामिल हैं। भाजपा के निर्मल सिंह सूबे के उपमुख्यमंत्री बनाए गए हैं। कांग्रेस ने शपथ समारोह का बहिष्कार किया। यह शायद पहली बार है जब देश के चारों कोनों में महिला मुख्यमंत्री हैं। पश्चिम बंगाल (पूरब) ममता बनर्जी, गुजरात (पश्चिम) आनंदी बेन, जेएंडके (उत्तर) महबूबा मुफ्ती, तमिलनाडु (दक्षिण) जयललिता और राजस्थान में वसुंधरा राजे। यानी देश में अब कुल 5 महिला सीएम हैं। महबूबा देश की पहली मुस्लिम मfिहला मुख्यमंत्री तो नहीं हैं। सइदा अनवर तैमूर 1980 में असम की मुख्यमंत्री रह चुकी हैं लेकिन फिलहाल कट्टरपंथी ताकतों की ओर से छवि का संकट झेल रहे इस्लाम में अपनी शालीन लेकिन तेज तर्रार मुस्लिम राजनेता वाली तस्वीर के जरिए उन्हें इस मोर्चे पर भी एक बड़ी भूमिका निभानी होगी। राज्य में भाजपा, पीडीपी की सरकार बनने की बाधा तो बेशक समाप्त हो गई है, लेकिन अब सबसे बड़ी चुनौती यह होगी कि दोनों दल मिलकर सद्भाव तरीके से सरकार चलाने की कोशिश करें। इस कोशिश में सबसे बड़ी बाधा राष्ट्रवाद को लेकर होने वाली पवृत्ति व युवकों की नारेबाजी पर नियंत्रण रखना होगा। जहां भाजपा इन दिनों राष्ट्रवाद की विचारधारा को लेकर आकामक है वहीं पीडीपी समर्थकों के लिए उसी रूप में लेना चुनौतीपूर्ण होगा। एक और चुनौती जो इस सरकार के सामने है वह है इन अलगाववादियों से निपटना। भाजपा किसी भी हालत में नहीं चाहेगी कि महबूबा सरकार अलगाववादियों को लेकर नरम रुख अपनाए। अगर ऐसा होता है तो भाजपा के लिए देश के बाकी हिस्सों में अपना वोट बैंक खिसकने का खतरा पैदा हो जाएगा और लगभग यही स्थिति पीडीपी की भी है। अगर वह हुर्रियत या फिर अन्य कट्टरपंथियों के खिलाफ कड़ा रवैया अपनाती है तो उसके लिए राज्य में अपना आधार बचा पाना कठिन हो जाएगा। भाजपा ने मुफ्ती साहब की सरकार में जम्मू क्षेत्र में विकास में ढील दी थी। इस वजह से जम्मू क्षेत्र में भाजपा से लोग नाराज हैं। इस बार उसकी कोशिश होगी कि जम्मू में तेजी से विकास हो जबकि पीडीपी का सारा जोर कश्मीर घाटी पर रहेगा । राज्य के दोनों हिस्सों में विकास को लेकर कितनी आपसी खींचतान है इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि राज्य में कौन से शहर को स्मार्ट सिटी बनाया जाए? राज्य से एक ही सिटी को स्मार्ट सिटी बनाया जा सकता है लेकिन कोई भी यह खतरा लेने को तैयार नहीं है कि वह जम्मू और श्रीनगर में से किसी एक को चुने। महबूबा लंबे समय से राजनीतिक परिदृश्य में हैं और उन्होंने जमीनी स्तर पर संगठन खड़ा करने से लेकर पार्टी का नेतृत्व करने तक अपनी राजनीतिक काबलियत का लोहा मनवाया है। पर पशासनिक जिम्मा वे पहली बार उठाने जा रही हैं। त्रिशंकु विधानसभा ने दोनों पार्टियों को अपने विरोधाभासों को दरकिनार कर साथ आने पर मजबूर किया है। मुफ्ती मुहम्मद सईद महबूबा के मुकाबले थोड़े नरम थे और कुछ मामलों में उन्होंने एडजस्ट भी किया। अगर यह लचीलापन और आपसी समझ बनी रही तो गठबंधन सरकार का यह दूसरा दौर भी सुचारु रूप से चल सकता है। जम्मू-कश्मीर पर सारी दुनिया की नजरें गढ़ी रहती हैं। खासतौर पर हमारे पड़ोसी पाकिस्तान की। वह भी बड़ी उत्सुकता से देख रहा है कि कैसे चलती है महबूबा सरकार।

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