Tuesday 12 April 2016

सूखे से निपटने के लिए दृढ़ इच्छा- शक्ति और प्लानिंग जरूरी है

देश में अगर एक बड़ा हिस्सा सूखे से बदहाल है तो वह सुर्खियों में अदालती आदेशों की वजह से ही क्यों  आता है? देश पानी के संकट से गुजर रहा है। इस कदर कि बुधवार को सुप्रीम कोर्ट और बॉम्बे हाई कोर्ट दोनों में ही पानी के मुद्दे पर सुनवाई हुई। इस दौरान सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को फटकार लगाते हुए कहा कि 10 राज्यों में सूखे की मार से वहां की जनता झेल रही है। पारा 45 डिग्री सेल्सियस पर पहुंच रहा है। लोगों के पास पीने का पानी नहीं है। हालात खराब होते जा रहे हैं। ऐसे में आप आंखें कैसे मूंद सकते हैं? उन्हें मदद पहुंचाने के लिए कुछ तो करिए। पिछले दो वर्षों से कम बारिश की वजह से मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड, महाराष्ट्र, कर्नाटक, ओडिशा, उत्तर प्रदेश, तेलंगाना, राजस्थान और आंध्र प्रदेश में अप्रैल से ही सूखे के हालात हैं। सूखे की आग में झुलस रहे उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड में तमाम दुश्वारियां घर कर गई हैं। पानी के लिए बच्चों को पढ़ाई छोड़नी पड़ रही है, तो वहीं तंगहाल मां-बाप अपनी बेटियों के हाथ पीले तक नहीं कर पा रहे हैं। खेत-खलिहान वीरान पड़े हैं और गांवों के भीतर हर ओर समस्याएं डेरा डाले हुए हैं। पीने व अन्य घरेलू आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए पानी का इंतजाम बुंदेलखंड के ग्रामीण क्षेत्रों में बड़ी चुनौती बना हुआ है। खासतौर पर महिलाओं के लिए। उन्हें पानी के लिए मीलों सफर करना पड़ता है। बच्चे भी पानी के इंतजाम में लगे हैं। गांवों में साइकिल पर दोनों ओर पानी के बर्तन टांगकर मीलों सफर करते हैं। टीकमगढ़ में तो पीने का पानी थाने से दिया जा रहा है। बुंदेलखंड में पानी की कमी बच्चों की पढ़ाई तक को प्रभावित कर रही है। बच्चे पढ़ाई छोड़कर घर के लिए पानी के इंतजाम में जुटे रहते हैं। खासतौर पर लड़कियां। चन्द्र नगर की मुस्कान व रोशनी बताती हैं कि वह गांव के स्कूल में पढ़ती हैं। लेकिन आजकल स्कूल नहीं जा पा रही हैं। क्योंकि सुबह से ही उन्हें गांव के दूसरी ओर लगे हैंडपम्प पर पानी भरने जाना पड़ता है। दिन में कभी-कभी तो 14-15 चक्कर लगाने पड़ते हैं। देश के 91 प्रमुख जलाशयों में सिर्प 25 फीसदी पानी बचा है। प्रभावित राज्यों में 90 फीसदी ग्राउंड वॉटर का इस्तेमाल हो चुका है यानि धरती में सिर्प 10 फीसदी पानी बचा है। चूंकि जलवायु परिवर्तन के कारण बारिश कम होने, शहरी इलाकों में वर्षाजल के रिचार्ज न होने और रहन-सहन में आए बदलाव के कारण जल स्रोतों की लंबी उपेक्षा से यह स्थिति आई है, ऐसे में राष्ट्रीय स्तर पर पानी बचाने और भूमिगत जलस्तर को बढ़ावा देने की योजनाओं को निरंतर चलाए जाने की सख्त जरूरत है। पर ऐसा कुछ नहीं हुआ नतीजतन हर साल गर्मियों में एक के बाद एक राज्य में जल संकट की स्थिति पैदा हो जाती है। नतीजतन पानी के लिए झगड़ा-फसाद होने, जल स्रोतों पर पहरा बिठाने, लोगों और मवेशियों के मारे जाने तथा गांव के गांव खाली होने की खबरें आने लगती हैं। विदर्भ और बुंदेलखंड जैसे इलाकों में पानी पर दंगे भड़कने की नौबत आ रही है। कुछ इलाकों में पानी पर झगड़ा व मारपीट और खूनखराबे तक स्थिति पहुंचने लगी है। जिन इलाकों में नहरें नहीं हैं वहां का हाल तो सबसे बुरा है। भूजल का स्तर काफी नीचे जा चुका है। कुएं, तालाब, नलकूप सब सूख चुके हैं। ग्रामीण जीवन इसमें कितना बदहाल हो रहा होगा, इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि लगातार तीसरे साल उसे मौसम की यह मार झेलनी पड़ रही है। ऐसे में मनरेगा की राशि जारी करके गांवों को राहत पहुंचाने का आदेश भी अदालतों को देना पड़ रहा है। काश! ये हालात बदलें। पूरा देश जिस भयावह सूखे का सामना कर रहा है उसका मुकाबला करने के लिए राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप नहीं, बल्कि सामूहिक इच्छाशक्ति, तैयारी और संवेदना चाहिए।

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