Wednesday, 6 April 2016

तंजील अहमद की हत्या से उभरे कई सवाल

उत्तर प्रदेश के बिजनौर शहर में राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) के बहादुर डीसीपी तंजील अहमद की हत्या ने पूरे मुल्क को हिलाकर रख दिया है। उन पर जिस तरह ताबड़तोड़ गालियां दागी गईं उससे साफ है कि हत्यारों का पूरे परिवार को ही खत्म करने का इरादा था। स्योहरा इलाके के सहसपुर निवासी तंजील अहमद अपने परिवार के साथ एक शादी समारोह से कार से लौट रहे थे तभी दो बाइक सवारों ने गोलियों की बौछार कर दी। बदमाशों ने नौ एमएम की पिस्तौल से तंजील को 24 गोलियां मारीं और फरार हो गए। घटना में उनकी पत्नी गंभीर रूप से घायल हो गईं जबकि दो बच्चे सीट के नीचे छिप गए जिससे उनकी जान बच गई। तंजील की बेटी जिमनिश ने सहमे हुए दृश्य को बताया। कार अभी सहसपुर में प्रवेश करने ही वाली थी कि सड़क पर बन रही नाली पर पापा ने गाड़ी की रफ्तार धीमी की तभी मुंह पर कपड़ा बांधे लेफ्ट साइड से बाइक पर सवार दो लोग आए और अम्मी की तरफ से खिड़की पर गोली चला दी। खतरा भांपते ही पापा ने हमें कहा हैड डाउन, तो मैं व मेरे भाई शाहबाज नीचे होकर सीट के नीचे छिप गए। बाइक वालों ने फायरिंग करनी शुरू कर दी। 10 मिनट तक फायर होते रहे, इसके बाद हमलावर भाग गए। थोड़ी देर बाद देखा तो पापा खून से लथपथ पड़े थे। उसने बताया कि गोलियां चलने के बाद पापा ने मां की गोद में नीचे झुककर बचने का प्रयास किया। पांच मिनट बाद पीछे से बड़े ताया की कार आ गई। अम्मी को भी गोलियां लगी थीं और उनके भी खून निकल रहा था। चूंकि तंजील अहमद राष्ट्रीय जांच एजेंसी से जुड़े थे इसलिए इस तरह की आशंकाएं उभरना स्वाभाविक है कि कहीं उनकी हत्या के पीछे आतंकी तत्वों का तो हाथ नहीं है? ध्यान रहे कि जिस बिजनौर जिले में उन्हें निशाना बनाया गया वहां कुछ समय पहले हुए बम विस्फोट की जांच एनआईए ही कर रही थी। गौरतलब है कि बिजनौर जिला एक लंबे समय से आतंकियों के रडार पर रहा है। वर्ष 2001 में आतंकियों ने थाना शह कोतवाली पोस्ट पर मौजूद एक दरोगा व पुलिसकर्मी की हत्या की थी। वर्ष 2014 में 12 सितम्बर को सिमी के छह आतंकी जिला मुख्यालय के मौहल्ला जाटान में विस्फोट के बाद फरार हो गए। देश की सबसे महत्वपूर्ण जांच एजेंसी एनआईए के डिप्टी एसपी की हत्या से जिले का हर शख्स सकते में है। जिले में हर किसी की जुबान पर तंजील अहमद की हत्या को आतंकी वारदात से जोड़कर देखा जा रहा है। इस घटना से जहां हत्यारों का दुस्साहस तो स्पष्ट होता ही है वहीं उत्तर प्रदेश की कानून व्यवस्था की स्थिति पर नए सिरे से सवाल भी खड़ा करती है। उत्तर प्रदेश सरकार चाहे जैसे दावे क्यों न करे, सूबे में कानून व्यवस्था नाम की कोई चीज नहीं है। तंजील अहमद की हत्या कोई साधारण हत्या का मामला नहीं है। पुलिस फोर्स के एक वरिष्ठ अधिकारी की इस तरह हत्या करना हमलावरों का दुस्साहस दर्शाता है। अगर आतंकी इसके पीछे हैं तो हमारी जांच एजेंसियों को हत्यारों को ढूंढ निकालना होगा और उन्हें सजा दिलवानी होगी। अगर ऐसा नहीं होता तो हमारे सुरक्षा बलों व जांच एजेंसियों का मनोबल गिरेगा और हमलावरों का आत्मविश्वास बढ़ेगा। केंद्र सरकार को भी यह सुनिश्चित करने की जरूरत है कि एनआईए और अन्य इसी तरह की एजेंसियों के जो अधिकारी संवेदनशील और विशेष रूप से आतंकी मामलों की जांच कर रहे हैं उन्हें सुरक्षा हर स्तर पर मुहैया करवाई जाए। तंजील हत्याकांड से एक बात और साफ होती है कि हमलावरों को इनकी पूरी मूवमेंट की पूर्व जानकारी थी और संभव है कि वह उनकी कार के पीछे लगे हों और मौका पाते ही अपना काम कर गए। हमें इसे बहादुर अफसर की शहादत पर नाज है।

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