Thursday, 21 April 2016

नीतीश का संघ-भाजपा मुक्त का नारा

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने पार्टी अध्यक्ष बनने के बाद अपने पहले सार्वजनिक कार्यक्रम में देश को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भाजपा से मुक्त करने का नारा दिया है। दरअसल नीतीश दिखाना चाहते हैं कि वे अब सिर्प बिहार के मुख्यमंत्री नहीं बल्कि राष्ट्रीय नेता के रूप में उभर रहे प्रधानमंत्री बनने लायक हैं। अभी तक विपक्षी दल कांग्रेस को निशाने पर रखकर अलग मोर्चा बनाने की बात करते थे। पर अब वह समीकरण बदल गया लगता है। हालांकि नीतीश ने यह संकेत तो अभी नहीं दिया कि किन दलों को एक झंडे के नीचे लाने का प्रयास होना चाहिए, पर जाहिर है कि उनकी मुराद समाजवादी विचारधारा में यकीन करने वाले और कुछ बड़े क्षेत्रीय दलों को जोड़ने से होगी। वैसे बता दें कि यह पहला मौका नहीं है जब अलग मोर्चा बनाने की बात उठी है। कई बार ऐसे प्रयास हो चुके हैं। कुछ मौकों पर तो ऐसे गठबंधनों को केंद्रीय सत्ता संभालने का मौका भी मिला, मगर हकीकत यह है कि विचार व्यवहार में उतना सफल नहीं हो सका। दो साल पहले लोकसभा चुनाव के समय मुलायम सिंह यादव ने भी तमाम छोटे दलों को जोड़कर भाजपा और कांग्रेस के सामने तीसरा मोर्चे के रूप में सशक्त चुनौती पेश करने की पहल की थी, पर वह सिरे नहीं चढ़ा। अब नीतीश कुमार भाजपा का भय दिखाकर सभी पार्टियों को जोड़ने की बात कर रहे हैं तो निश्चित रूप से इसके पीछे दो प्रमुख कारण हो सकते हैं। पहला बिहार विधानसभा चुनाव में बने गठबंधन का प्रभाव और दूसरा बड़े रणनीतिकार प्रशांत किशोर। बीते साल मिशन बिहार में नीतीश को राजग पर बड़ी बढ़त दिलाने वाले रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने अब बिहार के मुख्यमंत्री के लिए मिशन 2019 की पटकथा लिखने का सिलसिला शुरू कर दिया है। अगले लोकसभा चुनाव में तीन साल बाकी हैं, लेकिन भावी चुनावी जंग को नीतीश बनाम मोदी में तब्दील करने की तैयारी अभी से शुरू हो गई है। इस क्रम में नीतीश भाजपा के राष्ट्रवाद के जवाब में धर्मनिरपेक्षता और सामाजिक न्याय की पिच पर बैटिंग करते दिखेंगे। इसके लिए बीते लोकसभा चुनाव में कभी भाजपा को कांग्रेस मुक्त भारत का नारा देने वाले प्रशांत ने नीतीश को संघ मुक्त भाजपा मुक्त भारत का नारा दिया है। पहली बार जद (यू) की कमान संभालकर केंद्र की राजनीति में मोदी विरोधी राजनीति का केंद्र बनने की कोशिशों में जुटे नीतीश पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के बाद भाजपा विरोधी ताकतों को एकजुट करने की मुहिम छेड़ेंगे। ऐसे में सवाल यह खड़ा हो रहा है कि भाजपा मुक्त देश की बात करने वाले नीतीश कुमार के साथ आएगा कौन? अगले साल बिहार के पड़ोसी राज्य उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव होने हैं। नीतीश कुमार की नजर यहां के चुनाव पर लगनी स्वाभाविक ही है। यहां भाजपा के खिलाफ दो पार्टियां हैंöसपा और बसपा। यह दोनों पार्टियां नीतीश की अपील पर एक मंच पर आएंगी यह संभव नहीं लगता। यही स्थिति वामदलों की है। वह कई राज्यों में मजबूत तो हैं पर वहां उनका विरोध भाजपा व क्षेत्रीय दलों के साथ है। बंगाल में ममता बनर्जी और वामदल आमने-सामने हैं। तमिलनाडु में जयललिता और करुणानिधि एक दूसरे के कट्टर विरोधी हैं। केरल में तो नीतीश की सहयोगी पार्टी कांग्रेस और वामदल तो बिल्कुल आमने-सामने हैं। ऐसे में यह संभव नहीं लगता कि भाजपा विरोध के नाम पर नीतीश के साथ आ पाएंगे। फिर यह भी है कि हर क्षेत्रीय दल या फिर कांग्रेस-भाजपा से अलग पार्टी के अपने समीकरण हैं। सबने जाति, क्षेत्र, वर्ग आदि की अस्मिता के नाम पर अपना जनाधार बना रखा है, इसलिए जब वे एक साथ होते हैं तो उनके स्वार्थ टकराने लगते हैं। नीतीश कुमार खुद इससे पहले भाजपा के सहयोग से सत्ता में रह चुके हैं। ऐसे में वैकल्पिक राजनीति का विचार तब तक स्थायी रूप नहीं ले सकता जब तक विपक्षी दल अपने राजनीतिक स्वार्थों से ऊपर उठकर एक बड़े सिद्धांत के लिए वचनबद्ध नहीं होते।

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