Sunday 3 April 2016

सरकार को नक्सलियों और आतंकियों को एक ही नजर से देखना होगा

ऐसा जब लग रहा था कि नक्सलियों के हमलों में पिछले कुछ महीनों में कमी आई है तभी छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा जिले के भैलावाड़ा में नक्सलियों के ताजा हमले की खबर आई। छत्तीसगढ़ में नक्सलियों की आतंकी गतिविधियों के सबसे बड़े गढ़ दंतेवाड़ा में एक बार फिर सीआरपीएफ के सात जवान उनकी बारुदी सुरंग का निशाना बन गए। दंतेवाड़ा जिले में बुधवार को नक्सलियों ने पुलिस वाहन को निशाना बनाकर केंद्र व राज्य सरकार को न केवल यह संदेश देने का प्रयास किया है कि आज भी वह घात लगातर सुरक्षा बलों पर हमला करने में सक्षम हैं, बल्कि इस हमले से दोनों केंद्र व राज्य सरकार को एक बार फिर चुनौती दी है। बुधवार को दंतेवाड़ा में केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) के जवान इस पुलिस वाहन में सवार होकर गश्त पर निकले थे। ग्राम भैलावाड़ा के समीप जंगल में घात लगाकर बैठे नक्सलियों ने वाहन को बारुदी सुरंग से उड़ा दिया। इस घटना में पुलिस वाहन के परखच्चे उड़ गए और सात जवान मौके पर ही शहीद हो गए। जाहिर है कि पुलिस की इस गश्त पार्टी की नक्सलियों को पहले से जानकारी थी। जिस रोड पर यह हादसा हुआ उसके पास नक्सलियों ने बाकायदा एक सुरंग बनाई और उसमें विस्फोटक पदार्थ रखे और जैसे ही वाहन उस स्थान पर पहुंचा रिमोट से उस बम का विस्फोट कर दिया। जिस बारुदी सुरंग का इस्तेमाल किया गया वह इतना घातक था कि सड़क पर चार-पांच फुट का गड्ढा हो गया। इस घटना के बाद सीआरपीएफ के महानिदेशक के. दुर्गा प्रसाद का यह कहना है कि बल के जवानों की आवाजाही से जुड़ी जानकारी पहले लीक हो गई थी, जिससे नक्सलियों को इस खूनी खेल को अंजाम देने का मौका मिला। इस बारे में जानकारी लीक करने वाले नक्सली जासूस का पता लगाने के लिए जांच शुरू कर दी गई है। जहां वारदात हुई है, वहां कटे कल्याण एरिया कमेटी सक्रिय है। वारदात को अंजाम देने के बाद नक्सली करीब 10 मिनट वहां रुके थे और लाल सलाम के नारे लगाते रहे। यहां से थाना महज पांच किलोमीटर की दूरी पर है, लेकिन पुलिस को सूचना देर से मिली। बल के महानिदेशक का यह कहना कि कोई जासूस है न सिर्प चौंकाने वाला है, बल्कि कई सवाल भी खड़े करता है। सवाल यह है कि जब इस नक्सली इलाके में पहले भी ऐसी घटनाएं हो चुकी हैं तो फिर गोपनीयता में सेंध कैसे लगी? आखिर कौन कर रहा है जासूसी? क्या यह बल के भीतर का कोई आदमी है? अगर यह जासूस बल के भीतर का है तो क्या उसका खुलासा हो जाएगा। क्या इसी तरह नक्सलियों पर लगाम लगाने के लिए तैनात जवानों की बलि दी जाती रहेगी। राज्य और केंद्र सरकार को यह समझना होगा कि नक्सलियों और आतंकियों में कोई भेद नहीं किया जा सकता। जब आतंकियों के खिलाफ कोई नरमी नहीं बरती जाती और न ही उन्हें भटके हुए नौजवान की संज्ञा दी जाती है तो फिर नक्सलियों को अलग निगाह से क्यों देखा जाता है? उन्हें राष्ट्र का शत्रु मानने और पूरी सख्ती से उनका दमन करने में संकोच करना हमारी कमजोरी है और इसी का फायदा यह नक्सली और उनके समर्थक उठाते हैं। नक्सलियों को आतंकवादी की श्रेणी में इसलिए भी रखना चाहिए क्योंकि न तो यह लोकतंत्र पर यकीन करते हैं और न ही भारत के संविधान को ही मानते हैं। नक्सली सभ्य समाज के लिए बेहद खतरनाक एक ऐसी विचारधारा की उपज है जो समता और न्याय के बहाने देश को बम-बंदूकों के बल पर तहस-नहस करके सत्ता हासिल करना चाहते हैं। बैलेट की जगह बुलैट पर विश्वास रखते हैं। देश की जनता नहीं चाहती कि सरकार की दोमुंही नीतियों के चलते जनता की सुरक्षा में तैनात हमारे बहादुर जवानों की यूं बलि चढ़ती रहे। सरकार को इस मुद्दे पर न सिर्प गंभीरता से मंथन करना होगा, बल्कि नक्सल प्रभावित राज्यों में बार-बार सिर उठाने वाले नक्सलियों के खात्मे के लिए ठोस रणनीति बनानी होगी। इससे भी बड़ा दुर्भाग्य यह है कि इस विचारधारा के समर्थक देश के कोने-कोने में भी पल रहे हैं। क्या यह किसी से छिपा है कि जेएनयू में लंबे समय से नक्सलवाद के प्रबल अंध-समर्थक मौजूद हैं। कन्हैया सरीखे पुंद दिमाग वाले खुलेआम नक्सलियों का गुणगान करते हैं। यदि नक्सली संगठनों और साथ ही उनके पोषक तत्वों के खिलाफ ढुलमुल रवैये का परित्याग नहीं किया गया तो ऐसे ही हमले होते रहेंगे और हमारे बहादुर जवान शहीद होते रहेंगे।

-अनिल नरेन्द्र

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