Thursday, 31 December 2020
बिना ड्राइवर की ट्रेन कितनी सुरक्षित है?
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने मजेंटा लाइन पर चलने वाली देश की पहली ड्राइवरलेस मेट्रो को हरी झंडी दिखाई। इस मौके पर प्रधानमंत्री ने कहा कि अटलजी के प्रयासों से देश में पहली मेट्रो की शुरुआत हुई थी। जब 2014 में हमारी सरकार बनी उस वक्त केवल 5 राज्यों में मेट्रो सर्विस थी आज 18 शहरों में मेट्रो सर्विस है। 2025 तक हमारा लक्ष्य मेट्रो सर्विस को 25 शहरों में शुरू करना है। दिल्ली में बिना ड्राइवर के ऑटोमेटिक चलती मेट्रो ट्रेन चालू हो गई है। आज आपकी दिल्ली मेट्रो दुनिया के चर्चित शहरों में शामिल हो गई है। अपनी दिल्ली तेजी से विकास कर रही है। देश की पहली ड्राइवरलेस मेट्रो 38 किलोमीटर लंबी मजेंटा लाइन पर चलेगी। 390 किलोमीटर में दिल्ली मेट्रो का नेटवर्क दिल्ली समेत आसपास के नोएडा, गुरुग्राम, फरीदाबाद, गाजियाबाद जैसे शहरों को जोड़ता है। दिल्ली मेट्रो देश की सबसे बड़ी मेट्रो सेवा है। पहली बार इसका परिचालन 24 दिसम्बर, 2002 को शाहदरा और तीस हजारी स्टेशनों के बीच 8.4 किमी मार्ग पर हुआ था। मजेंटा लाइन दिल्ली में जनकपुरी वेस्ट और नोएडा बोटेनिकल गार्डन को जोड़ती है। इसी लाइन पर यह पहली ड्राइवरलेस ट्रेन तकनीक शुरू हुई है। इस तकनीक को 2021 के मध्य तक पिंक लाइन (मजलिस पार्क-शिव विहार) पर भी शुरू करने की योजना है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने उद्घाटन के बाद भाषण के दौरान कहा कि उन्हें तीन साल पहले मजेंटा लाइन के उद्घाटन का सौभाग्य मिला था और आज फिर इसी रूट पर देश की पहली ऑटोमेटिक मेट्रो ट्रेन का उद्घाटन करने का अवसर मिला है। उन्होंने कहा ये दिखाता है कि भारत कितनी तेजी से स्मार्ट सिस्टम की तरफ बढ़ रहा है। डीएमआरसी के मुताबिक अभी भी ज्यादातर ट्रेन को रिमोर्ट कंट्रोल के द्वारा ऑपरेशन रूम से नियंत्रित किया जाता है, जिसे ऑपरेशन कंट्रोल सेंटर या ओसीसी कहते हैं। यहां से इंजीनियरों की टीमें पूरे नेटवर्क में रियल टाइम ट्रेन मूवमेंट पर नजर रखती है। ये एयर ट्रैफिक कंट्रोल की तरह होता है। डीएमआरसी के पास अभी तीन ओसीसी हैं जो दो मेट्रो मुख्यालय के अंदर और एक शास्त्राr पार्क में है। डीएमआरसी ने बताया कि यह ड्राइवरलेस ट्रेन पूरी तरह सुरक्षित है। उन्हेंने बताया कि मेट्रो को चलाने से जुड़े कई काम पहले से ही ऑटोमेटिक हैं। हाई रिजाल्यूशन के कैमरे लग जाने से ट्रेक पर केबिन से नजर रखने की जरूरत नहीं होगी। इस नए प्लान के मुताबिक ट्रेक और ट्रेन के ऊपर से गुजरने वाली तारों पर लगातार नजर रखी जाएगी और आपातकाल की स्थिति में तुरंत कदम उठाया जा सकेगा। कमिश्नर ऑफ रेलवे सेफ्टी (सीएमआरएस) जिसने 18 दिसम्बर को बिना ड्राइवर के ट्रेन की अनुमति दी थी। उनका ये सुनिश्चित करने का निर्देश है कि कमांड सेंटर पर सब कुछ साफ दिखे और ट्रेन पर लगे कैमरों को नमी से मुक्त रखा जाए। डीएमआरसी के मुताबिक उन्होंने प्रणालियों के निरीक्षण और समीक्षा के लिए एक सलाहाकार भी नियुक्त किया है। इसकी रिपोर्ट डीएमआरसी, सीएमआरएस को परिचालन शुरू होने के बाद देगा। कमांड सेंटर पर इफार्मेशन कंट्रोलर होंगे जोकि यात्रियों और भीड़ की मानिटरिंग करेंगे। इसके अलावा ट्रेन से जुड़ी दूसरी जानकारियों और सीसीटीवी की भी लगातार मानिटरिंग की जाएगी। यात्रियों में ड्राइवरलेस ट्रेनों में बैठने का डर तो रहेगा। पर समय के साथ जब वह कंविस हो जाएंगे कि यह ट्रेन सुरक्षित है तो यह डर भी खत्म हो जाएगा।
वकील महमूद प्राचा के खिलाफ केस दर्ज हुआ
हजरत निजामुद्दीन थाने में प्रसिद्ध वकील महमूद प्राचा व अन्य लोगों के खिलाफ मामला दर्ज किया गया है। उनके खिलाफ सरकारी काम में बाधा डालने व पुलिस टीम के साथ अभद्र व्यवहार करने का मामला दर्ज किया गया है। महमूद प्राचा के कार्यालय में दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल का सर्च ऑपरेशन गत बृहस्पतिवार को करीब 15 घंटे चला था। दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल की शिकायत पर एफआईआर दर्ज की गई है। पुलिस अधिकारियों के अनुसार उत्तर-पूर्वी दिल्ली में हुए दंगों में एक दंगा पीड़ित को गलत बयान देने को कहा गया था। हलफनामा जिस नोटरी के नाम पर बनाया गया, उनकी तीन साल पहले 2017 में मौत हो चुकी है। उसकी पत्नी वकील है। नोटरी को दिल्ली सरकार द्वारा नोटरी का लाइसेंस मिला हुआ था। कोर्ट में बहस के दौरान इसकी पोल खुल गई। नोटरी की पत्नी ने कोर्ट में बयान दिया कि उसके पति की मौत हो चुकी है, उसने कोई हलफनामा नहीं बनाया है। इस पर कोर्ट ने संज्ञान लेते हुए दिल्ली पुलिस आयुक्त एसएन श्रीवास्तव को स्पेशल सेल व अपराध शाखा को इस मामले में मुकदमा दर्ज कर जांच करने के आदेश दिए। कोर्ट के निर्देश पर 22 अगस्त 2020 को स्पेशल सेल ने मुकदमा दर्ज कर जांच श्gारू कर दी। पुलिस का कहना है कि महमूद प्राचा ने जांच में सहयोग नहीं किया। पुलिस के पूछने पर भी प्राचा ने कंप्यूटर व उसके पासवर्ड के बारे में नहीं बताया। पुलिस ने कंप्यूटर व लैपटॉप आदि को खंगाला। आरोप है कि वहां अन्य लोगें को बुला लिया गया था। स्पेशल सेल की ओर से बृहस्पतिवार रात को ही निजामुद्दीन थाने में शिकायत दर्ज कर दी गई थी। स्पेशल सेल ने इस बारे में शुक्रवार को सफाई देते हुए कहा कि प्राचा और जावेद के दफ्तर पर छापे मारी कोर्ट के आदेश पर की गई थी। 15 घंटे तक चले सर्च ऑपरेशन के दौरान पुलिस टीम के साथ स्वतंत्र गवाह, वर्दी में पुलिसकर्मी और महिला पुलिसकर्मी समेत डीसीपी मनीषी चंद्र आदि अधिकारी भी मौजूद थे। छापेमारी की वीडियोग्राफी भी की गई। वकील महमूद प्राचा ने उनके कार्यालय में दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल द्वारा छापा मारने के दौरान की गई वीडियोग्राफी को सुरक्षित रखने के लिए अदालत में आवेदन दायर किया है। इतना ही नहीं उन्होंने अपने खिलाफ दर्ज किए गए मामले की जांच को लगातार निगरानी करने का भी आग्रह किया है। अदालत ने इस मामले में पुलिस को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है। पटियाला हाउस के ड्यूटी मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट अंशुल सिंघल ने दिल्ली पुलिस को नोटिस जारी कर 27 दिसंबर तक जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया था। अदालत ने जांच अदालत की निगरानी में करने की मांग वाली अर्जी पर सुनवाई 5 जनवरी तक स्थगित कर दी है। दिल्ली दंगों के कई आरोपियें की पैरवी अधिवक्ता महमूद प्राचा कर रहे हैं। अदालत ने कहा कि पूरे मामले की सुनवाई संबंधित अदालत में होगी और वही अदालत ही जब्त सामान को वापस दिलवाने व वीडियो की प्रति दिलवाने संबंधी मांग पर विचार करेगी। अधिवक्ता प्राचा ने आवेदन दाखिल कर अपने दफ्तर से जब्त सामान वापस लौटाने एवं उस दौरान बनाई गई वीडियो फुटेज को दिलवाने की मांग की थी। इस मामले में अदालत ने दिल्ली पुलिस को नोटिस जारी किया था और जांच अधिकारी को जब्त सामान व वीडियो फुटेज को साथ लाने को कहा। मामला अदालत में है और अब इस पर किसी प्रकार की टिप्पणी करना सही नहीं है। महमूद प्राचा अगर निर्दोष हैं तो निश्चित रूप से वह खुद अपनी पैरवी कर खुद को निर्दोष साबित करा सकते हैं। अगर उनके साथ नाइंसाफी हुई है तो भी अदालत फैसला कर लेगी।
-अनिल नरेन्द्र
Wednesday, 30 December 2020
इसलिए बनाया जाए शरद पवार को संप्रग अध्यक्ष
राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष शरद पवार को संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) का अध्यक्ष बनाने की चर्चा एक पखवाड़े में दूसरी बार छेड़ी गई है। उनके 80वें जन्मदिन से ठीक पहले भी चर्चा उठी थी। अब शिवसेना ने अपने मुखपत्र सामना के जरिये शरद पवार का नाम लिए बिना उन्हें संप्रग की जिम्मेदारी सौंपने की वकालत की है। सामना के संपादकीय में शनिवार को जहां कांग्रेस नेतृत्व वाले संप्रग की कमियां गिनाई गईं। वहीं पवार की तारीफ में कसीदे काढ़े गए हैं। संपादकीय कहता हैöकांग्रेस के नेतृत्व मे यूपीए (संप्रग) की हालत किसी एनजीओ जैसी दिख रही है। इसमें शामिल दल कौन है, क्या करते हैं, इस पर भ्रम की स्थिति है। यूपीए के सहयोगी दल किसान आंदोलन को गंभीरता से लेते नहीं दिखाई देते। पवार के नेतृत्व वाली राकांपा को छोड़ दें तो यूपीए के अन्य सहयोगी दलों में कोई हलचल नहीं है। संपादकीय कहता हैöपवार का एक स्वतंत्र व्यक्तित्व है। उनके अनुभव का लाभ पीएम नरेंद्र मोदी सहित दूसरी पार्टियां भी लेती हैं। बंगाल में भाजपा से लड़ रही ममता बनर्जी ने हाल ही में उनसे बात की है। महाराष्ट्र की शिवसेना नीत सरकार में कांग्रेस शामिल है, इसलिए सामना ने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी व राहुल गांधी की सीधी आलोचना के बजाय सिर्फ संप्रग की कमियां गिनाईं। अखबार ने लिखा कि कांग्रेस में एक साल से पूर्णकालिक अध्यक्ष नहीं है। सोनिया यूपीए की अध्यक्षा हैं और कांग्रेस का नेतृत्व कर रही हैं। लेकिन उनके आसपास के पुराने नेता अदृश्य हो गए हैं। मोती लाल वोरा और अहमद पटेल जैसे लोग अब नहीं रहे। ऐसे में कांग्रेस का नेतृत्व कौन करेगा? यूपीए का भविष्य क्या है, इसे लेकर भ्रम बना हुआ है। जिस तरह कांग्रेस में कोई नहीं, इसी तरह यूपीए में भी कोई नहीं है। लेकिन भाजपा पूरी सामर्थ्य के साथ सत्ता में है और उनके पास नरेंद्र मोदी जैसा दमदार नेतृत्व और अमित शाह जैसा राजनीतिक व्यवस्थापक है। सामना में लिखा गया कि अभी जिस तरह की रणनीति विपक्ष ने अपनाई है, वह मोदी और शाह के आगे बेअसर है। संप्रग में नेतृत्व की कमजोरी की ओर इशारा करते हुए कहा गया कि तृणमूल कांग्रेस, शिवसेना, अकाली दल, मायावती की बसपा, अखिलेश की सपा, आंध्र में जगन की वाईएसआर कांग्रेस, चन्द्रशेखर राव की टीआरएस, नवीन पटनायक की बीजद जैसे कई दल भाजपा के विरोध में है लेकिन वह कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए में शामिल नहीं हुए। जब तक यह दल यूपीए में शामिल नहीं होंगे, विपक्ष का बाण सरकार को भेद नहीं सकेगा। सामना में निशाना साधे जाने के बाद अब कांग्रेस ने पलटवार किया है। शिवसेना को हिदायत देते हुए कांग्रेस नेता और पूर्व सीएम अशोक चव्हाण ने कहा कि जो पार्टी यूपीए का हिस्सा नहीं, वो यूपीए के नेतृत्व के बारे में कांग्रेस को सलाह न दे। सोनिया जी का नेतृत्व सक्षम है। साथ ही उन्होंने कहा कि शरद पवार ने खुद स्पष्ट किया है कि वह यूपीए की कमान नहीं संभालेंगे। वहीं कांग्रेस के नेता नसीम खान ने भी शिवसेना पर कहा कि पार्टी ने महाराष्ट्र में कॉमन मिनिमम प्रोग्राम के आधार पर शिवसेना को समर्थन दिया है। शिवसेना यूपीए का हिस्सा नहीं है, इसलिए यूपीए के बारे में शिवसेना को अपने विचार व्यक्त करने का अधिकार नहीं है और शिवसेना को यह ध्यान रखना चाहिए।
भाजपा का यह कदम गठबंधन धर्म के खिलाफ है
अरुणाचल प्रदेश में जनता दल (यूनाइटेड) के छह विधायक भाजपा में शामिल होने के बाद दोनों पार्टियों के रिश्तों पर फिलहाल कोई असर भले न पड़े, पर भाजपा के इस कदम ने गठबंधन में अविश्वास की नींव जरूर डाल दी होगी। अरुणाचल में जनता दल (यूनाइटेड) को झटका देते हुए उसके सात में से छह विधायक सहयोगी सत्तारूढ़ भाजपा में शामिल हो गए हैं। साथ ही पीपुल्स पार्टी ऑफ अरुणाचल प्रदेश (पीपीएपी) का एक विधायक भी पार्टी बदलकर भाजपा में शामिल हो गया है। पंचायत और नगर निगम चुनाव के नतीजों की घोषणा से एक दिन पहले यह बदलाव हुआ। 2019 में हुए विधानसभा चुनाव में 15 सीटों पर उतरी जनता दल (यू) सात सीटें जीतकर भाजपा के बाद दूसरी बड़ी पार्टी बनी थी। भाजपा ने 41 सीटों पर जीत दर्ज की थी। इस बदलाव के बाद 60 सीटों की विधानसभा में अब भाजपा के 48 विधायक हो गए हैं, वहीं कांग्रेस और एनसीपी के चार-चार विधायक हैं। जदयू महासचिव केसी त्यागी ने कहा कि यह गठबंधन धर्म की भावना के खिलाफ है। जदयू के लिए यह बात समझ से परे है कि बिहार में गठबंधन के बावजूद भाजपा ने यह फैसला क्यों किया? केसी त्यागी का कहना है कि जदयू अरुणाचल प्रदेश में दोस्ताना विपक्ष था। दोनों पार्टियां एनडीए के हिस्सा हैं। ऐसे में यह क्यों हुआ, भाजपा ही बता सकती है? दरअसल पूर्वोत्तर में भाजपा लगातार खुद को मजबूत करने की कोशिश कर रही है। असम में बोडोलैंड क्षेत्रीय परिषद के चुनाव में भाजपा ने सहयोगी बोडो पीपुल्स फ्रंट का साथ छोड़कर यूनाइटेड पीपुल्स पार्टी लिबरल और गण सुरक्षा पार्टी के साथ हाथ मिला लिया था। यह भी तर्क दिया जा रहा है कि जदयू और भाजपा के बीच गठबंधन सिर्फ बिहार तक सीमित है। वर्ष 2019 के अरुणाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव में जदयू 15 सीटों पर चुनाव लड़ी थी और सात सीट जीतकर सभी को चौंका दिया था। प्रदेश की राजधानी ईटानगर में भी जदयू की जीत हुई थी। हालांकि दूसरी बड़ी पार्टी रहने के बावजूद जदयू ने विपक्ष में बैठने के बजाय सरकार को बाहर से समर्थन दिया था। ऐसा पहली बार हुआ है, जब सत्ता में रहते हुए अपने सहयोगी दल के विधायकों को किसी बड़ी पार्टी ने अपने में शामिल कर लिया है। माना जा रहा है कि सात में से छह विधायकों को अपनी पार्टी में शामिल कराकर भाजपा ने जदयू को एक बड़ा संदेश भी दिया है। भाजपा द्वारा जदयू विधायकों को अपनी पार्टी में शामिल किए जाने पर कांग्रेस और राजद ने तंज कसा है। कांग्रेस ने कहा है कि भाजपा विपक्षी पार्टी को तो तोड़ती रही है पर अरुणाचल प्रदेश की घटना ने साफ कर दिया है कि अब वह सहयोगी दल को भी तोड़ने लगी है। वहीं राजद ने कहा कि भाजपा ने जदयू के विधायकों को पार्टी में शामिल कर गठबंधन धर्म पर घात किया है। इससे एनडीए के अन्य घटक दलों को खासकर कम विधायकों वालों को झटका लगा है और अब सब चिन्ता और सोच में पड़ गए होंगे कि कहीं उनकी पार्टी पर भी भाजपा सेंध न लगा दे। समझ से बाहर है कि जब 60 सीटों के विधानसभा में भाजपा के पास बहुत (30) से कहीं ज्यादा सीटें (41) थीं तो उन्हें जदयू के विधायकों को क्यों तोड़ा? अरुणाचल में टूट से जदयू को बड़ा झटका लगना स्वाभाविक ही है। जदयू न सिर्फ केंद्र में एनडीए का हिस्सा है, बल्कि बिहार में भी भाजपा के साथ सरकार चला रही है। क्या नीतीश अपनी पार्टी का भाजपा में विलय तो नहीं चाहते?
आजादी की लड़ाई देखी, अब किसान हित के लिए लड़ूंगी
किसान आंदोलन हर नए दिन व्यापक रूप लेता जा रहा है। लाखों अन्नदाता इस समय राजधानी की सीमाओं पर डटे हुए हैं। इनमें छोटे बच्चों से लेकर बड़ी तादाद में बुजुर्ग भी शामिल हैं। ऐसी ही एक महिला हैं जसविंदर कौर, जिन्होंने 15 साल की उम्र में 1945 में हुई आजादी की लड़ाई में अंग्रेजों से लोहा लिया था। अब वह दिल्ली के टीकरी बॉर्डर पर आंदोलन में भी हिस्सा ले रही हैं। उनका कहना है कि जब तक केंद्र सरकार कृषि कानून वापस नहीं लेती, वह आंदोलनरत किसानों के साथ डटी रहेंगी। दिल्ली के नांगलोई इलाके की रहने वाली जसविंदर कौर (90) मूल रूप से पंजाब के संगरूर जिले की रहने वाली हैं। कड़ाके की ठंड और कोरोना के डर के बावजूद वह पिछले एक सप्ताह से टीकरी बॉर्डर पर किसानों का समर्थन कर रही हैं। उन्होंने बताया कि देश की आजादी के लिए जिस प्रकार से उन्होंने संघर्ष किया था, उसी प्रकार किसान आंदोलन में भी वह अन्नदाताओं के हित के लिए लड़ेंगी। किसानी उन्हें विरासत में मिली है और वह अपनी चौथी पीढ़ी देख रही हैं। उनके कुनबे में 1‹0 लोग हैं। सब किसी न किसी रूप से खेती से जुड़े हुए हैं। जसविंदर कौर कहती हैं कि कई दिनों से वह टीवी पर किसान आंदोलन की खबरें देख रही थीं। उन्होंने देखा कि कड़ाके की ठंड में भी किसान सड़कों पर डटे हुए हैं। कई अन्नदाताओं की जान भी जा चुकी है। यह देखकर उन्हें काफी पीड़ा हुई। उन्होंने ठाना कि इस लड़ाई में वह भी आंदोलन में शामिल होंगी और कानूनों की वापसी तक किसानों का समर्थन देती रहेंगी। उन्होंने कहा कि जब 1965 में वह दिल्ली आई थीं उस दौरान यमुना नदी के आसपास कई किलोमीटर के क्षेत्र में खेतीबाड़ी होती थी, लेकिन वक्त के साथ-साथ सब कुछ बदल गया। धन्य हैं जसविंदर कौर जी का जज्बा। इतनी उम्र में भी डटी हुई हैं।
-अनिल नरेन्द्र
Tuesday, 29 December 2020
थका दो, भगा दो नीति पर काम कर रही सरकार
सरकार ने फिर किसानों को खत लिखा है और वार्ता के लिए बुलाया है। किसान बुधवार को मिलने वाले भी हैं। किसान और सरकार दोनों एक-दूसरे को अब तक समझ चुके हैं। आंदोलनकारी किसानों ने सरकार से उन बातों का जवाब मांगा है जिनको उन्होंने शुरू से ही उठाया है। सरकार उन मुद्दों पर न तो बातचीत कर रही है, उन्हें मनाना तो दूर की बात रही। प्रधानमंत्री के आदेश पर सरकार का हर नेता आजकल जनता को इन कानूनों के बारे में समझाने निकला है। प्रधानमंत्री हर भाषण में इन कानूनों की अच्छाइयां बताने के साथ-साथ तमाम विपक्षी पार्टियों पर आरोप लगाते हैं कि वह भोलेभाले किसानों को बरगला रही हैं। अगर किसान विपक्षी नेताओं से गुमराह हो रहा है जिन्हें मीडिया वैसा कवरेज भी नहीं देता तो पार्टी के मंत्री व स्थानीय नेताओं की कौन सुनेगा? दूसरा अगर विपक्षियों में बरगाने की इतनी ही कूवत होती तो वह डेढ़ साल पहले हुए आम चुनाव में जीत न जाते? क्या विपक्षी नेताओं की विश्वसनीयता लाखों किसानों को सर्दी में सड़कों पर भी उसी संकल्प से कष्ट सहने को मजबूर कर सकती है? सत्ता की नियति है कि इसके होशियार लोग भी कई बार गलती करते रहते हैं और अंत तक उन्हें समझ में नहीं आता कि करना क्या था? उदाहरण देखें, कनाडा में इन किसानों के रिश्तेदार हैं, जो खुद भी इन किसानों के परिवारों से हैं जो मदद भेज रहे हैं उस पर कुछ मंत्री विदेशी फंड बताकर आंदोलन को जन-विमर्श में कलंकित करना चाहते हैं। वह यह क्यों नहीं समझ रही कि यह किसानों के अस्तित्व की लड़ाई है और सरकार ने उन्हें आजीविका का कोई अन्य विकल्प नहीं दिया है। कांग्रेस ने दावा किया है कि केंद्र सरकार अन्नदाताओं को थका दो, भगा दो की नीति पर काम कर रही है। कांग्रेस महासचिव रणदीप सुरजेवाला ने संवाददाताओं से कहा कि 31 दिन से हाड़ कंपाती सर्दी में देश का अन्नदाता किसान दिल्ली के दरवाजे पर न्याय की गुहार कर रहा है। अब तक 44 किसानों की शहादत हो चुकी है। मगर पूंजीपतियों की पिछलग्गू मोदी सरकार का दिल नहीं पसीजा। उन्होंने दावा किया कि प्रधानमंत्री मोदी और भाजपा सरकार किसानों को थका दो और भगा दो की नीति पर काम कर रही है। प्रधानमंत्री टीवी पर सफाई और उनके मंत्री चिट्ठियों की दुहाई देते हैं, मगर मुट्ठीभर पूंजीपतियों की सेवक सरकार किसानों की दुश्मन बन बैठी है, कड़वा सत्य यह है कि मोदी सरकार राजनीतिक बेइमानी, धूर्तता व प्रपंच का सहारा लेकर समस्या का समाधान नहीं करना चाहती है। किसानों के रास्ते में सड़क खुदवाने वाले, किसानों पर सर्दी पर वॉटर केनन चलवाने वाले और लाठियां बरसाने वाले प्रधानमंत्री मोदी अब फिर सम्मान निधि का स्वांग रच रहे हैं। उन्होंने कहा कि आप आज किसानों को आतंकी, कुकुरमुत्ता, टुकड़े-टुकड़े गैंग, गुमराह गैंग, खालिस्तानी बता रहे हैं और आप उलटा खुद बरगला रहे हैं, विपक्षी नहीं। शर्मनाक है कि कृषि मंत्री ने भी अपने पत्र में किसानों को राजनीतिक कठपुतली तक कह दिया।
रेट्रोस्पेक्टिव टैक्स केसों में भारत सरकार को बड़ा झटका
रेट्रोस्पेक्टिव टैक्स का मामला केंद्र सरकार के गले की हड्डी साबित हो रहा है। इस मामले में वोडाफोन से करीब 20 हजार करोड़ रुपए का केस हारने के बाद अब भारत सरकार ब्रिटिश कंपनी केयर्न एनर्जी से 10,247 करोड़ रुपए के टैक्स विवाद का केस भी हार गई है। नीदरलैंड के हेग स्थित ट्रिब्यूनल ने इस मामले के केयर्न के पक्ष में फैसला सुनाया है। केयर्न एनर्जी ने बुधवार को कहा कि उसने भारत के खिलाफ मध्यस्थता अदालत में जीत हासिल की है, जिसमें रेट्रोस्पेक्टिव टैक्स के रूप में 10,247 करोड़ रुपए मांगे गए थे। सूत्रों के मुताबिक तीन सदस्यीय न्यायाधिकरण ने आदेश दिया कि 2006-07 में केयर्न द्वारा अपने भारत के व्यापार के आंतरिक पुनर्गठन करने पर भारत सरकार का 10,247 करोड़ रुपए का रेट्रोस्पेक्टिव टैक्स का दावा उचित नहीं है। इस न्यायाधिकरण में भारत सरकार की ओर से नियुक्त एक न्यायाधीश भी शामिल है। न्यायाधिकरण ने भारत सरकार से यह भी कहा कि कंपनी का जो फंड सरकार के पास है, वह ब्याज सहित कंपनी को वापस किया जाए। भारत सरकार ने केयर्न इंडिया का टैक्स रिफंड रोक रखा है। इसके साथ ही डिविडेंड जब्त कर रखा है। बकाया टैक्स के भुगतान के लिए कुछ शेयर बेच भी दिए गए हैं। अब भारत सरकार इस फैसले के खिलाफ अपील कर सकती है। इससे पहले हेग स्थित अंतर्राष्ट्रीय मध्यस्थता प्राधिकरण ने वोडाफोन के पक्ष में फैसला देते हुए इस कंपनी से टैक्स के रूप में करीब 22,000 करोड़ रुपए की मांग को गलत करार दिया था और इसे समानता की नीति के खिलाफ बताया था। दरअसल 2012 में तत्कालीन सरकार ने संसद में रेट्रोस्पेक्टिव टैक्स से संबंधित कानून को मंजूरी दे दी थी, जिसके तहत कंपनियों से अतीत में किए गए सौदों के आधार पर पूंजीगत लाभ (कैपिटल गेन) कर वसूला जा सकता है। वोडाफोन और केयर्न से जिन सौदों को लेकर मांग की गई, वह इस कानून के अस्तित्व में आने से पहले के थे। इसी साल सितम्बर में अंतर्राष्ट्रीय मध्यस्थता अदालत ने वोडाफोन से कर वसूली और नीदरलैंड के बीच हुए द्विपक्षीय निवेश समझौते में दी गई उचित और सामान व्यवहार की गारंटी का उल्लंघन माना और दूरसंचार कंपनी को हुए नुकसान की भरपायी के भी निर्देश दिए। दरअसल भारत सरकार का स्पष्ट मानना है कि कर व्यवस्था देश की संप्रभुता से जुड़ी है और इसमें बाहरी हस्तक्षेप स्वीकार नहीं किया जा सकता। भारत सरकार की मुश्किलें वोडाफोन और केयर्न के साथ ही खत्म नहीं हुई हैं। हेग स्थित ट्रिब्यूनल में वोडाफोन और केयर्न जैसे रेट्रोस्पेक्टिव टैक्स के एक दर्जन मामलों पर सुनवाई हो रही है। विशेषज्ञों का कहना है कि वोडाफोन मामले की नजीर को ध्यान में रखते हुए इन मामलों में भी भारत सरकार के खिलाफ ही फैसला सुनाया जाएगा? आखिर कंपनियां भारत के बाहर मुकदमा लड़ना क्यों पसंद करती हैं? जानकारों की मानें तो इसकी दो वजह हैं। पहली भारतीय न्याय व्यवस्था में बार एसोसिएशन का दबदबा है और वह विदेशी वकीलों और लॉ फर्मों को देश में वकालत करने से रोकती है। इस वजह से कंपनियों को लगता है कि वह अपने लिए सर्वश्रेष्ठ वकील खड़ा नहीं कर सकते। दूसरी वजह है कि यह कंपनियों को जल्दी फैसले की इच्छा रहती है, क्योंकि मुकदमा लंबा चलने से दोनों पक्षों को नुकसान होता है। फिर इन्हें लगता है कि हमारी अदालतों पर सरकारी दबाव होता है।
क्रिसमस के दिन अमेरिका के नैशविले में धमाका
क्रिसमस के दिन सुबह-सुबह अमेरिका के नैशविले शहर की सूनी सड़क पर एक जोरदार धमाका हुआ। एक वाहन में हुआ विस्फोट इतना भीषण था कि आसपास की इमारतों की खिड़कियों के शीशे टूट गए और कई भवनों को नुकसान पहुंचा। तीन लोग घायल भी हुए हैं। फेडरल जांच एजेंसी एफबीआई के एक पूर्व अधिकारी ने आतंकी कार्रवाई की तरफ इशारा किया है। पुलिस प्रवक्ता डॉन आरोन ने कहा कि स्थानीय समय के मुताबिक सुबह 6ः30 बजे विस्फोट हुआ, जो जानबूझ कर कराया गया। हालांकि पुलिस ने विस्फोट के कारणों के बारे में अभी कुछ नहीं बताया है। आरोन ने कहा कि तीन लोग घायल हुए हैं, उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया है, किसी की हालत गंभीर नहीं है। घटना की सूचना मिलते ही मौके पर ब्यूरो ऑफ अल्कोहल, टीबैको, फायर आर्म्स एंड एक्सपोसिव के संघीय जांचकर्ता पहुंच गए। एफबीआई घटना की जांच कर रही है। एफबीआई के पूर्व डिप्टी डायरेक्टर एंड्रयू मैककैबे ने कहा कि ऐसे भीषण विस्फोट की जांच संभावित आतंकी वारदात के तौर पर की जानी चाहिए। एक सवाल के जवाब में उन्होंने आशंका जताई कि पुलिस को निशाना बनाने के लिए विस्फोट कराया गया होगा। हालांकि उन्होंने यह नहीं कहा कि क्रिसमस को देखते हुए इस घटना को अंजाम दिया गया होगा। नैशविले के एक निवासी ने बताया कि घटनास्थल के आसपास हर तरफ पेड़ गिरे पड़े हैं और खिड़कियों के टूटे शीशे बिखरे हैं। अगर यह आतंकी घटना है तो यह गंभीर मामला है। अमेरिका में आतंकी घटनाओं को रोकने के लिए गंभीर प्रयास किए जा रहे हैं, फिर भी यह होती हैं तो दुर्भाग्यपूर्ण है।
-अनिल नरेन्द्र
Sunday, 27 December 2020
किसान आंदोलन को मिल रहा है जनसमर्थन
नए कृषि कानूनों को रद्द कराने और न्यूनतम समर्थन मूल्य की गारंटी की मांग को लेकर चल रहा किसान आंदोलन चरम पर है। इसे जनसमर्थन मिल रहा है और आंदोलन को बढ़ावा देने के लिए कलाकार जोश जगाने में लग गए हैं। बृहस्पतिवार को भी कई पंजाबी कलाकार और खिलाड़ी सिंघु बॉर्डर पहुंचे। उन्होंने किसानों के हक में आवाज बुलंद की और केंद्र सरकार से आग्रह किया कि किसानों की सभी मांगें मान लेनी चाहिए। किसान आंदोलन के प्रति लोगों का झुकाव बढ़ता जा रहा है। पंजाब का रहने वाला एक कृषि श्रमिक 370 किलोमीटर साइकिल चलाकर सिंघु बॉर्डर पहुंचा। 36 वर्षीय सुखपाल बाजवा मोगा जिले का रहने वाला है। उसका कहना है कि कृषि कानून के विरोध में आंदोलनरत किसानों के समर्थन में वह यहां पहुंचे हैं। उन्होंने कहा कि अगर यह कानून वापस नहीं लिए गए तो उनका जीवन-यापन मुश्किल हो जाएगा। दो दिन तक साइकिल चलाकर वह यहां पहुंचे। उन्होंने कहा कि वह एक श्रमिक हैं और मुश्किल से दो वक्त की रोटी कमा पाते हैं। इसलिए मोटरसाइकिल या ट्रेन से आना उनके लिए मुश्किल था। आर्थिक हालात ठीक नहीं होने के कारण ही वह साइकिल से यहां आए हैं। वह अपने परिवार में अकेले कमाने वाले हैं। 67 वर्षीय अमरजीत सिंह भी 265 किलोमीटर साइकिल चलाकर धरनास्थल पर पहुंचे। उन्होंने बताया कि वह पटियाला के रहने वाले हैं और पंजाब के सिंचाई विभाग में चीफ इंजीनियर रह चुके हैं। उनके साथ 10 और किसान साइकिल से यहां पहुंचे हैं। प्रदर्शन को पिछले कई दिनों से टीवी पर देख रहे थे। इसलिए उन्होंने भी आंदोलन में शामिल होने का निर्णय लिया। सिंघु बॉर्डर पर सरकार के खिलाफ हो रहे किसान आंदोलन के कई रूप देखने को मिल रहे हैं। कोई तो कई किलोमीटर साइकिल चलाकर पहुंच रहा है तो कोई नारेबाजी और हाथों में झंडे लेकर सरकार के खिलाफ अपना गुस्सा जाहिर कर रहे हैं। कुछ ऐसे भी हैं जो जरूरतमंद लोगों के लिए रक्तदान कर रहे हैं। सरकार उनकी मांगों को माने इसके लिए वह लोग अपने खून से ही सरकार को तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने के लिए पत्र लिख रहे हैं। हजारों किसानों के बीच यहां रक्तदान करने वालों की भी कमी नहीं है और न ही खून से पत्र लिखने वालों की। भाई कनैया जी मिशन सेवा सोसाइटी के प्रधान तरनजीत सिंह ने बताया कि उन्होंने सोमवार को यहां पर जरूरतमंद लोगों के लिए ब्लड डोनेशन कैंप लगवाया, जिसमें बड़ी तादाद में किसान भाइयों ने अपना खून दान किया। साथ ही सरकार के रवैये से नाराज इन किसानों ने सरकार को अपने खून से चिट्ठी भी लिखी है। उन्होंने कहा कि हम यह चिट्ठी किसान संगठनों के सदस्यों को जमा कराते हैं और उनसे आग्रह करते हैं कि वह प्रधानमंत्री कार्यालय तक इन चिट्ठियों को पहुंचाने का वादा करते हैं। प्रदर्शन स्थल पर कई ऐसी चीजें भी देखने को मिलती हैं जो कि लोगों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करती हैं। उन्हीं में से एक है रविराज की फसल और किसान की पेंटिंग जो कि करीब पांच फुट लंबी और 15 फुट चौड़ी है। रवि कहते हैं कि वह एक आर्टिस्ट हैं। किसान और फसल का रिश्ता एक बाप-बेटे की तरह होता है। रवि पटियाला के रहने वाले हैं। वह यहां अपनी पेंटिंग द्वारा किसान आंदोलन में समर्थन देने के लिए पहुंचे हैं। वह कहते हैं कि किसान के लिए फसल उनके बेटे के समान है। वह फसल को कई महीनों तक पालता पोषता है, फिर जब कटाई होती है तो वह चाहता है कि उसकी फसल के अच्छे भाव मिलें, लेकिन हमारे देश में ऐसा नहीं है। किसान फसलों को बचाने के लिए अपनी जान तक गंवा देता है। हम चाहते हैं कि सरकार इन काले कानूनों को वापस ले और उद्योग घरानों के हाथों हमारी फसलें जाने से बचा सके।
मोदी को मुंहबोला भाई मानने वाली करीमा बलोच नहीं रहीं
बलूचिस्तान की जानी-मानी राजनीतिक कार्यकर्ता और बलोच स्टूडेंट्स ऑर्गेनाइजेशन की पूर्व अध्यक्ष करीमा बलोच का शव कनाडा के टोरंटो में पाया गया है। टोरंटो की पत्रकार सबा एतजाज ने बीबीसी को बताया कि पुलिस ने इस बात की पुष्टि की है। करीमा बलोच के परिवार और दोस्तों ने बताया है कि उनका शव पुलिस कस्टडी में है जिसे शव की जांच के बाद लौटाया जाएगा। फिलहाल करीमा बलोच की मौत के कारणों का पता नहीं चल सका है। वहीं करीमा बलोच की मौत की खबर आते ही सोशल मीडिया पर मामले की जांच की मांग की जाने लगी। अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार संस्था एमनेस्टी इंटरनेशनल ने ट्वीट किया, सामाजिक कार्यकर्ता करीमा बलोच की टोरंटो में मौत होना बेहद दुखद है और इसकी तुरन्त व प्रभावी तरीके से जांच होनी चाहिए और दोषियों को सजा मिलनी चाहिए। 37 साल की करीमा बलोच कनाडा में एक शरणार्थी के तौर पर रह रही थीं। बीबीसी ने उन्हें दुनिया की 100 सबसे अधिक प्रभावशाली महिलाओं की सूची में शामिल किया था। करीमा बलोच साल 2005 में बलूचिस्तान के शहर तुर्वत में तब चर्चा में आई थी जब उन्होंने गायब हो चुके एक नौजवान शख्स गहराम की तस्वीर हाथ में पकड़ी थी। यह शख्स उनका नजदीकी रिश्तेदार था। उस वक्त कुछ ही लोग जानते थे कि नकाब पहने हुए यह महिला कौन है। बीबीसी संवाददाता रियाज सोहेल के मुताबिक करीमा बलोच के माता-पिता गैर-राजनीतिक थे लेकिन उनके चाचा और मामा बलोच राजनीति में काफी सक्रिय रहे हैं। बीएसओ के वरिष्ठ उपाध्यक्ष जाकिर मजीद के लापता होने के बाद करीमा को संगठन का अध्यक्ष बनाया गया। वो बीएसओ की पहली महिला अध्यक्ष बनीं। संगठन के लिए वो मुश्किल समय था जब उसके नेता अचानक लापता हो रहे थे। कुछ छिप गए थे और कुछ ने रास्ते अलग कर लिए थे। बलूचिस्तान की आजादी की मांग करने वाले एक छात्र संगठन बीएसओ आजाद पर पाकिस्तान की सरकार ने साल 2013 में प्रतिबंध लगा दिया था। इन हालात में भी करीमा बलोच ने संगठन की सक्रियता बनाए रखी और बलूचिस्तान के दूरस्थ इलाकों में संगठन की पहचान बनाए रखी। करीमा बलोच ऐसी पहली महिला नेता मानी जाती हैं, जिन्होंने नई परंपरा शुरू की और विरोध प्रदर्शनों को तुर्वत से क्वेटा तक सड़कों पर लाईं। करीमा बलोच ने बीबीसी को दिए गए साक्षात्कार में कहा था कि उनका विरोध लोगों को जबरन गायब करने और राज्य की कार्रवाइयों के खिलाफ है। साल 2008 में तुर्वत में इसी तरह की एक रैली के दौरान उन पर पहली बार आतंकवाद विरोधी कानून के तहत आरोप लगाए गए। बाद में उन्हें भगोड़ा करार दिया गया और उन पर फ्रंटियर कॉर्प्स से राइफल छीनने और लोगों को उकसाने का आरोप लगाया गया। जब पाकिस्तान में हालात बहुत खराब हो गए तो वह कनाडा चली गईं, जहां उन्होंने राजनीतिक शरण ली। बलूच नेशनल मूवमेंट ने करीमा बलोच की मौत पर 40 दिनों का शोक की घोषणा की है। करीमा बलोच ने कुछ साल पहले रक्षाबंधन के मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मदद की अपील भी की थी। बलोचिस्तान नेशनल पार्टी के नेता सनाउल्लाह बलोच ने ट्वीट कियाöकरीमा बलोच की आकस्मिक मौत होना एक राष्ट्रीय त्रासदी से कम नहीं। दुनिया के सबसे सुरक्षित देश कनाडा में एक बलोच बेटी के गायब होने और हत्या से जुड़े सारे तथ्य सामने आने चाहिए। करीमा बलोच गायब होने वालों की मजबूत आवाज, हमारे साथ नहीं रहीं। इस दुख के लिए शब्द नहीं हैं।
-अनिल नरेन्द्र
Saturday, 26 December 2020
धर्म के कारण किसी को भी पीछे नहीं छोड़ा जाएगा
अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (एएमयू) के शताब्दी समारोह को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संबोधित करके एक बेहद सकारात्मक संदेश दिया है। उन्होंने एक तरह से देश के मुसलमानों का आह्वान किया कि वह देश की मुख्यधारा से अपने आपको जोड़ें। इसमें कोई शक नहीं है कि मुसलमानों के बीच शिक्षा का महत्व के प्रसार-प्रचार में एएमयू ने बेहतरीन योगदान दिया है। यह विश्वविद्यालय भारत की अमूल्य धरोहर है। यहां से तालीम लेकर निकले तमाम लोग दुनिया के तमाम मुल्कों में छाए हुए हैं। शताब्दी समारोह को संबोधित करते हुए अपनी सरकार के मंत्र सबका साथ सबका विकास को दोहराया और मोदी ने विविधता को देश की ताकत बताया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मंगलवार को अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (एएमयू) के शताब्दी समारोह को वीडियो कांफ्रेंस के माध्यम से संबोधित करते हुए यह बातें कहीं। उन्होंने इस समारोह की याद में एक डाक टिकट भी जारी किया। प्रधानमंत्री ने सर सैयद अहमद की उस टिप्पणी को याद किया कि अपने देश के बारे में जो व्यक्ति चिन्ता करता है, उसका पहला और सबसे महत्वपूर्ण कर्तव्य यह है कि वह जाति, पंथ या धर्म का विचार किए बिना सभी लोगों के कल्याण के लिए काम करे। प्रधानमंत्री ने बिना किसी भेदभाव के जनता को लाभ प्रदान करने वाली सरकार की योजनाओं के भी उदाहरण दिए। उन्होंने यह भी कहा कि देश के संसाधन हर नागरिक के लिए हैं। इनका सभी को लाभ मिलना चाहिए। हमारी सरकार इसी समझ के साथ काम कर रही है। प्रधानमंत्री ने एएमयू के सौ साल के सफर को याद करते हुए कहा कि हमें यह सुनिश्चित करने के लिए एकजुट होकर काम करने की जरूरत है कि एएमयू परिसर में एक भारत, श्रेष्ठ भारत की भावना दिनोंदिन मजबूत हो। उन्होंने यह भी कहा कि प्रगति में धार्मिक आधार पर किसी को वंचित नहीं होना चाहिए। वास्तव में एएमयू की स्थापना के मूल में ही प्रगतिशील सोच रही है और अल्पसंख्यक संस्थान होने के बावजूद इसने जाति या धर्म के आधार पर विद्यार्थियों के साथ भेदभाव नहीं किया है। यह देश के उन चुनिन्दा केंद्रीय संस्थानों में से हैं, जहां अपेक्षाकृत कम शुल्क में उत्कृष्ट शिक्षा उपलब्ध है। प्रधानमंत्री ने लोगों को भ्रामक प्रचार के विरुद्ध सतर्क रहने और दिल में राष्ट्र के हितों को सर्वोच्च मानने का आह्वान किया। राजनीति इंतजार कर सकती है, लेकिन समाज नहीं। इसी प्रकार गरीब चाहे किसी भी वर्ग से संबंधित हो, वह भी इंतजार नहीं कर सकता। हम समय बर्बाद नहीं कर सकते। हमें आत्मनिर्भर भारत का निर्माण करने के लिए मिलकर काम करना चाहिए। प्रधानमंत्री ने कोरोना महामारी के दौरान एएमयू द्वारा समाज को दिए गए अभूतपूर्व योगदान की सराहना करते हुए कहा कि एएमयू ने हजारों लोगों के निशुल्क परीक्षण किए, पृथक् वार्ड बनाए, प्लाजमा बैंक बनाए और पीएम केयर फंड में बड़ी राशि का योगदान किया जो इस विश्वविद्यालय की समाज के प्रति अपनी जिम्मेवारियों को पूरा करने की गंभीरता दर्शाता है। सौ सालों में एएमयू ने दुनिया के अनेक मुल्कों के साथ भारत के संबंधों को मजबूत बनाने के लिए भी कार्य किया है। उन्होंने कहा कि इस विश्वविद्यालय में उर्दू, अरबी और फारसी भाषाओं व इस्लामी साहित्य पर किए गए शोध पूरे इस्लामी जगत के साथ भारत के सांस्कृतिक संबंधों को नई ऊर्जा प्रदान की। सर सैयद अहमद ने जब इसकी स्थापना की थी तो उनकी कल्पना में ऑक्सफोर्ड, कैंब्रिज जैसी यूनिवर्सिटी थी, सौ साल बाद यह अपेक्षा की जा सकती है कि एएमयू आने वाले समय में ऐसी हर कसौटी पर खरा उतरेगा।
ब्रिटेन में रिपब्लिक टीवी पर लगा 20 लाख का जुर्माना
रिपब्लिक टीवी भारत में तो अपने कार्यक्रमों में बहुचर्चित तो है ही पर अब तो ब्रिटेन में भी चर्चा में आ गया है। रिपब्लिक टीवी के मालिक अर्नब गोस्वामी पर ब्रिटेन के ब्रॉड कास्टिंग रेग्यूलेटर ऑफकॉम ने 20 लाख रुपए का जुर्माना लगाया है। संस्था ने रिपब्लिक टीवी के एक कार्यक्रम को नफरत और असहिष्णुता को बढ़ावा देने वाला पाया है। ऑफिस ऑफ कम्युनिकेशन ने ब्रिटेन में न्यूज चैनल के ब्रॉडकास्ट अधिकार रखने वाली कंपनी वर्ल्डवाइड मीडिया नेटवर्क लिमिटेड पर 20 हजार पाउंड (करीब 20 लाख रुपए) का जुर्माना लगाया है। जारी आदेश में कहा गया है कि यह जुर्माना ऑफकॉम की ब्रॉडकास्ट शर्तों के उल्लंघन करने के कारण लगाया गया है। रिपब्लिक भारत चैनल पर यह कार्यक्रम छह सितम्बर 2019 को प्रसारित किया गया था। ऑफकॉम ने यह जुर्माना छह सितम्बर को प्रसारित पूछता है भारत कार्यक्रम को लेकर लगाया है। इसके साथ ही आदेश भी दिया है कि इस कार्यक्रम का फिर से प्रसारण न हो। आरोप है कि चैनल ने पाकिस्तानी लोगों के प्रति नफरत को बढ़ावा देने वाली सामग्री दिखाई। ऑफकॉम का कहना है कि कार्यक्रम में चर्चा के दौरान अपमानजनक भाषा, नफरत वाले बयान और व्यक्तियों, समुदायों, धर्म और जाति के खिलाफ आपत्तिजनक टिप्पणी की गई। आदेश में कहा गया है कि कार्यक्रम के दौरान पाकिस्तान और पाकिस्तानियों के खिलाफ आपत्तिजनक टिप्पणी की गई। एपिसोड में गोस्वामी, तीन भारतीय और तीन पाकिस्तानी मेहमानों के बीच 22 जुलाई 2019 को भारत के अंतरिक्ष यान चंद्रयान-2 पर चर्चा हो रही थी। ऑफकॉम का कहना है कि इस बहस में पाकिस्तान की तुलना भारत की तकनीकी प्रगति से की गई। पाकिस्तान पर भारत के खिलाफ आतंकवादी गतिविधियों को बढ़ावा देने का आरोप लगाया गया था। एक गेस्ट प्रेम शुक्ला ने पाकिस्तानी वैज्ञानिकों को चोर बताया और गोस्वामी ने पाकिस्तानी लोगों को संबोधित करते हुए कहाöहम वैज्ञानिक बनाते हैं, आप आतंकवादी बनाते हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि गोस्वामी और कुछ गेस्टों ने यह बताया कि सभी पाकिस्तानी लोग आतंकवादी हैं। चैनल के कंसल्टिंग एडिटर गौरव आर्य ने कहा कि उन्हें वैज्ञानिक, डॉक्टर, उनके नेता, राजनेता सभी आतंकवादी हैं। यहां तक कि उनके प्लेयर्स भी। यह पूरा राष्ट्र आतंकवादी है। मुझे नहीं लगता कि किसी को बनाया गया है। आप एक आतंकवादी यूनिट के साथ काम कर रहे हैं।
गिरगिट की तरह कोरोना बदलता अपना स्वरूप
यह कैसी त्रासदी है जो मनुष्य का पीछा नहीं छोड़ रही है। जिस देश ने सबसे पहले टीका लगाने की प्रक्रिया शुरू की, वहीं के चिकित्सकों ने ताजा अध्ययन से दुनिया को आगाह किया है कि ज्यादा प्रसार क्षमता वाले कोरोना वायरस के नए स्टेन पाए गए हैं। ब्रिटिश संसद में विगत सोमवार को देश के स्वास्थ्य मंत्री ने बताया कि राजधानी लंदन में करीब 1000 मामलों में इस महामारी के नए वायरस पाए गए। माना जा रहा है कि यह वायरस अभी तक ज्ञात वायरस से अलग और ज्यादा तेज प्रसार की क्षमता रखने वाला है और दक्षिण अफ्रीका में तेजी से लोगों को शिकार बना रहा है। मंत्री ने यह नहीं बताया कि तमाम वैक्सीन इस नए स्ट्रेन पर कितनी प्रभावी हैं। लेकिन इस मामले की विस्तृत रिपोर्ट वहां की सरकार ने विश्व स्वास्थ्य संगठन को भेज दी है। इधर भारत की राजधानी के एक प्रख्यात डॉक्टर तक चौंक गए जब उन्हें कोरोना के 12 रोगियों में फफूंद के मामले मिले। इस फंगस से अंधे होने, नाक और जबड़ों की हड्डियों के गलने व मस्तिष्क के प्रभावित होने का खतरा है। अब तो हमें बस उपर वाले का सहारा है। यह मनहूस वायरस जल्द समाप्त होने वाला नहीं।
-अनिल नरेन्द्र
Wednesday, 23 December 2020
पीड़िता के साथ हुआ था गैंगरेप और फिर उसकी हत्या
गांव बूलगढ़ी की किशोरी के साथ हैवानियत और उसकी हत्या के बहुचर्चित मामले की पिछले 69 दिनों से जांच कर रही सीबीआई ने शुक्रवार को हाथरस की एससी/एसटी कोर्ट में चारों आरोपियों के खिलाफ दो हजार पन्नों का आरोप पत्र दाखिल कर दिया। इस मामले में चारों आरोपियों पर युवती के साथ बलात्कार करने और उसकी हत्या करने का आरोप लगाया है। आरोपियों के वकील ने अदालत के बाहर बताया कि केंद्रीय जांच ब्यूरो ने संदीप, लवकुश, रवि और रामू के खिलाफ सामूहिक बलात्कार एवं हत्या के आरोप लगाए हैं। इस मामले की पहली तारीख चार जनवरी लगी है। कोतवाली चंदपा के गांव बूलगढ़ी में 14 सितम्बर को एक दलित युवती के साथ गैंगरेप और शारीरिक हिंसा की वारदात हुई। अलीगढ़ मेडिकल कॉलेज में उपचार के दौरान पीड़िता ने अपने बयान में सामूहिक दुष्कर्म की बात कही थी। पीड़िता के बयान पर पुलिस ने संदीप, रवि, लवकुश और रामू को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया। 29 सितम्बर को दिल्ली में पीड़िता की उपचार के दौरान मौत हो गई थी। रात को गांव में उसका अंतिम संस्कार कर दिया गया। परिजनों ने पुलिस पर जबरन अंतिम संस्कार का आरोप लगाया था। इस पर एसपी, सीओ सहित पांच पुलिसकर्मी निलंबित हुए थे। प्रदेश सरकार ने बहुचर्चित मामले की जांच के लिए पहले एसआईटी गठित की। इसी बीच केस सीबीआई को सौंप दिया गया। 63 दिन की गहन जांच-पड़ताल के बाद सीबीआई ने उसी थ्योरी को आगे बढ़ाया, जिस पर स्थानीय पुलिस काम कर रही थी। इसमें युवती का 22 सितम्बर को अलीगढ़ के जेएन मेडिकल कॉलेज में पुलिस के विवेचना अधिकारी सीईओ सादाबाद के समक्ष दिया गया बयान ही मुख्य आधार रहा। हाथरस मामले की हकीकत पर पुलिस शुरू से ही परदा डालने की कोशिश करती रही। उसका प्रयास था कि किसी तरह मामला रफा-दफा हो जाए। इसीलिए पहले प्राथमिकी दर्ज करने से बचती रही, फिर युवती के इलाज में भी लापरवाही बरती गई। जब मामला तूल पकड़ने लगा तो पुलिस और प्रशासन तरह-तरह की कहानियां गढ़कर आरोपियों को बचाने का प्रयास करते देखे गए। पुलिस ने पहले तो युवती के परिजनों को डरा-धमका कर चुप रहने का प्रयास किया। फिर किसी तरह साबित करने की कोशिश की गई कि युवती को परिवार वालों ने ही मारने की कोशिश की थी। जब विपक्षी दलों ने इस मामले को लेकर विरोध प्रदर्शन करना शुरू किया तो उन्हें हाथरस पहुंचने, पीड़ित परिवार से मिलने से रोकने की पूरी कोशिश की गई। यहां तक कि वहां के जिलाधिकारी पर भी आरोप लगे कि वह पीड़ित परिवार को धमका कर चुप कराने का प्रयास कर रहे थे। यह हैरान करने वाला प्रकरण था कि जिन लोगों पर न्याय दिलाने की जिम्मेदारी है, वही अन्याय की तरफ खड़े थे। उत्तर प्रदेश की कानून-व्यवस्था को लेकर पहले ही काफी अंगुलियां उठती रही हैं। हाथरस मामले में तो पुलिस-प्रशासन के रवैये ने उस आग में घी का ही काम किया। इससे पुलिस-प्रशासन की साख पर जबरदस्त चोट पहुंची है। जिन लोगों पर सुरक्षा और न्याय सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी है। अगर वही किसी आग्रह या प्रभाव में आकर अन्याय का साथ देंगे तो फिर कानून-व्यवस्था को लेकर कितना भरोसा किया जा सकता है, उत्तर प्रदेश पुलिस का यह चेहरा भयभीत करने वाला है। तभी तो माननीय सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी की थी कि उत्तर प्रदेश में जंगलराज है।
एक ही दिन सर्वोच्च स्कोर भी और न्यूनतम स्कोर भी
49204084041 नम्बर ही में आपके क्रेडिट कार्ड का ओटीपी नम्बर है, न ही नया मोबाइल नम्बर, यह ऑस्ट्रेलिया के एडिलेड टेस्ट में टीम इंडिया के निहायत शर्मनाक प्रदर्शन का स्कोर कार्ड है। भारतीय प्रशासकों ने शनिवार को सुबह टीवी में जो देखा उससे उनका दिल और दिमाग दोनों ही हिल गए। भारतीय सरजमीं के बाहर पहला डे-नाइट टेस्ट खेल रही विराट सेना ने गुरुवार और शुक्रवार को जैसा प्रदर्शन किया था, उससे लग रहा था कि वह ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ गुलाबी गेंद का पहला टेस्ट मैच जीतकर शायद इतिहास रच दें। शनिवार को इतिहास तो रचा गया, लेकिन यह ऐसा इतिहास है जो कोई भी भारतीय याद नहीं करना चाहेगा। पहली पारी में 244 रन बनाकर 53 रनों की बढ़त लेने वाली भारतीय टीम की दूसरी पारी 86 मिनट और 92 गेंदों में 36 रनों पर ही खत्म हो गई। इसके बाद 90 रनों के आसान से लक्ष्य को दो विकेट पर हासिल करके मेजबान टीम ने आठ विकेट से जीत दर्ज कर ली। इसी के साथ ऑस्ट्रेलिया ने चार मैचों की सीरीज में 1-0 से बढ़त ले ली। विराट कोहली की अगुवाई में भारतीय क्रिकेट टीम ने अगर टेस्ट क्रिकेट में सर्वोच्च स्कोर का रिकॉर्ड अपने नाम लिखवाया तो उनके नेतृत्व में ही टीम ने ठीक चार साल बाद न्यूनतम स्कोर का रिकॉर्ड भी बना दिया। संयोग से यह दोनों रिकॉर्ड एक ही दिन 19 दिसम्बर को बने। आज से चार साल पहले 19 दिसम्बर 2016 की कहानी एकदम भिन्न थी। मैदान था चेन्नई का एमए चिदंबरम स्टेडियम जब कोहली की अगुवाई में भारतीय टीम ने इंग्लैंड के खिलाफ अपनी पहली बारी में सात विकेट पर 759 रन पर समाप्त करके टेस्ट क्रिकेट में सर्वोच्च स्कोर का नया रिकॉर्ड बनाया था। पिछला रिकॉर्ड सात विकेट पर 726 रन था जो उसने श्रीलंका के खिलाफ 2009 दिसम्बर में ही मुंबई में बनाया था। भारत की जिस टीम ने सर्वोच्च स्कोर बनाया था उसमें वर्तमान टीम के चार खिलाड़ी विराट कोहली, चेतेश्वर पुजारा, रविचंद्रन अश्विन और उमेश यादव शामिल थे। लेकिन वह करुण नायर की नाबाद 303 रन और एके राहुल की 199 रन की पारी थी जिसके दम पर भारतीय टीम ने सर्वोच्च स्कोर का अपना नया रिकॉर्ड बनाया था। भारत के दोनों न्यूनतम स्कोर में कुछ समानताएं भी हैं। भारत ने 1974 में मैच के चौथे दिन बिना किसी नुकसान के दो रन से आगे खेलना शुरू किया और फिर पारी ताश के पत्तों की तरह बिखर गई। भारत का केवल एक बल्लेबाज सोलकर (नाबाद 18) दोहरे अंक में पहुंचा। ऑस्ट्रेलिया की गर्मियों में 46 साल बाद यही कहानी दोहराई गई। जिस टीम में विराट कोहली, चेतेश्वर पुजारा और अजिंक्य रहाणे जैसे बल्लेबाज हों वह 23.2 ओवर में 36 रन पर आउट हो गई। भारत का कोई बल्लेबाज दोहरे अंक में नहीं पहुंचा और मोहम्मद शमी के रिटायर्ड हर्ट होने के कारण भारतीय पारी समाप्त हो गई। टीम इंडिया के इस शर्मनाक प्रदर्शन पर तमाम किक्रेटप्रेमियों को धक्का लगना स्वाभाविक है। वह यकीन ही नहीं कर पा रहे कि टीम इंडिया ने इतना खराब खेला।
ब्रिटेन में कोरोना के नए स्टेज से चिंता
लंदन और इसके आसपास के इलाकों में कोविड-19 की नई किस्म का तेजी से प्रसार हो रहा है। ब्रिटेन के स्वास्थ्य सचिव सचिन मैट हैकांक ने बताया है कि देश में कोरोना के बिल्कुल नए प्रकार की पहचान की गई है। यह कोरोना वायरस पहले से काफी ज्यादा ताकतवर है और तेजी से हमला करता है। वायरस से अब तक 1000 से ज्यादा लोग संक्रमित हो चुके हैं। इसे देखते हुए नीदरलैंड और बेल्जियम ने ब्रिटेन से आने वाली उड़ानों पर रोक लगा दी है, जबकि जर्मनी उड़ानों की संख्या सीमित करने पर विचार कर रहा है। भारत ने भी ब्रिटेन से आने वाली उड़ानों पर कदम उठाए हैं। ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने शनिवार को देश की राजधानी में एक बार फिर नवम्बर जैसे राष्ट्रीय लॉकडाउन प्रतिबंध लागू कर दिए। वहीं क्रिसमस के दौरान प्रतिबंधों में दी जाने वाली छूट भी रद्द कर दी गई है। पीएम जॉनसन ने कहा कि वायरस की यह नई किस्म वास्तविक वायरस की तुलना में ज्यादा घातक है। हमें इस वायरस के बारे में अभी कम जानकारी है, इसलिए सावधानी बरतने की जरूरत है। नए प्रतिबंध 30 दिसम्बर तक प्रभावी होंगे। ब्रिटिश प्रधानमंत्री ने डाउनिंग स्ट्रीट से टीवी संदेश में कहाöअभी भी बहुत कुछ हमें पता नहीं है। हमें यह मालूम है कि यह नया वायरस तेजी से फैल रहा है, लेकिन हमें यह नहीं मालूम कि यह घातक है या नहीं। साथ ही हमें यह भी नहीं मालूम कि इस नए वायरस पर वैक्सीन का प्रभाव होगा या नहीं?
-अनिल नरेन्द्र
Thursday, 17 December 2020
कोहरे और ठंड में कांपते किसान, इरादे अब भी मजबूत
पिछले दो-तीन दिनों से दिल्ली की सड़कों पर जबरदस्त कोहरा है, ठंड बढ़ गई है। कड़कती ठंड के बीच लोगों का चन्द मिनट भी सड़क पर रह पाना बेहद मुश्किल होता जा रहा है। कोहरे की वजह से सड़कों पर विजिबिलिटी इतनी कम हो गई है कि चन्द कदम देख पाना भी मुश्किल है। दूर-दूर तक दिखाई नहीं दे रहा है, लेकिन पैदल चलने पर महज 10 कदमों पर ही कोई सड़कों के किनारे ट्रॉली के नीचे तो, कोई ट्रॉली के अंदर सोया दिखाई दे रहा है। यह नजारा है सिंघु बॉर्डर पर। धरना स्थल पर दिनभर चहल-पहल के बाद रोज रात लोग अपने-अपने जगहों पर पहुंच जाते हैं, जहां उन्होंने अपने रुकने का ठिकाना बनाया हुआ है। कुछ किसान गांव से लाए हुए ट्रॉलियों में सोने की व्यवस्था कर रहे हैं तो कोई जिन बसों में बैठकर आए थे, वहां पर सोने पर मजबूर हैं। लेकिन बहुत से ऐसे किसान हैं जिन्हें अब भी धरना स्थल पर सोने की जगह नसीब नहीं होती है। उन किसानों के लिए सर्द हवाएं मानों किसी मुसीबत से कम नहीं, इसके बावजूद प्रदर्शन कर रहे किसानों के जज्बे में कोई कमी देखने को नहीं मिली है। धरना स्थल के करीब 200 मीटर आगे कुंडली की तरफ खालसा एड की तरफ से अस्थायी रैन बसेरा दिखाई देती है। यहां पर करीब 400 लोगों के रहने की व्यवस्था की गई है। वहां पहुंचने में हमने देखा कि ब़ड़ी तादाद में लोग रजाई-गद्दे के बीच सोए हुए थे। वहां मौजूद इंचार्ज से बात करने पर पता चला कि यह वह लोग हैं जो कि धरना स्थल पर प्रदर्शन करने आए हुए हैं, यानि किसान। सिंघु बॉर्डर पर प्रदर्शनकारी किसान कई किलोमीटर तक फैले हुए हैं। सड़क पर ही ट्रैक्टर-ट्रॉलियों के बीच किसान रात को बेफिक्र होकर अपनी रात गुजारते हैं तो उनके पीछे नौजवानों का कड़ा पहरा होता है। यह नौजवान वालंटियर के रूप में 24 घंटे काम करते हैं। हालांकि इस काम के लिए वालंटियर्स की शिफ्ट भी बनी हुआ है। बीते 18 रातों से कड़कड़ाती ठंड में यह अलग-अलग दिनों में अलग-अलग चेहरे के रूप में यहां मुस्तैद दिखाई देते हैं। दरअसल सिंघु बॉर्डर पर एक मुख्य मंच बना हुआ है जोकि अब करीब 10 फुट ऊंचा और 30-40 फुट चौड़ा है। इसके सामने दिन में बड़ी तादाद में किसान बैठकर धरना और नारेबाजी करते हैं। जबकि इस मंच के पीछे कई तरह के स्टॉल, टेंट, खाने-पीने के लिए लंगर उपलब्ध हैं। बीच-बीच में ट्रॉलियों, बसों और कारों के अंदर किसान रात में सोते हैं। वह सड़क पर बेफिक्र होकर सो सकें इसके लिए वालंटियर्स दिन-रात पहरा देते हैं। वालंटियर का काम करने वाले जसवीर सिंह ने बताया कि वह यहां पर सेवादार के रूप में अपनी सेवा देते हैं। वह कहते हैं कि लाखों किसानों के बीच कोई पुलिस वाला मौजूद नहीं होता है। कुलविंदर सिंह (किडा) ने बताया कि वह भी एक सेवादार के रूप में मौजूद हैं। वह कबड्डी-प्रेमी के नाम से भी जाने जाते हैं और यहां पर आए कबड्डी टीम के सदस्यों के साथ वह अपनी सेवाएं दे रहे हैं। हम किसानों के जज्बे को सलाम करते हैं। तमाम विपरीत परिस्थितियों के बावजूद वह अपने मोर्चे पर डटे हैं। वाहे गुरु जी दा खालसा वाहे गुरु जी दी फतेह।
परिवार नियोजन के लिए जबरदस्ती नहीं कर सकते
सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार ने कहा है कि लोगों को परिवार नियोजन के तहत परिवार में बच्चों की संख्या दो तक सीमित रखने के लिए मजबूर करने के खिलाफ है। इससे जनसंख्या के सन्दर्भ में विकृति पैदा होगी। केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि परिवार नियोजन के लिए सरकार दबाव नहीं डाल सकती। इसका विपरीत असर भी होता है और डेमोग्राफी की विकृतियां पैदा होती हैं। सुप्रीम कोर्ट ने उस याचिका पर केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर जवाब दाखिल करने को कहा था, जिसमें याचिकाकर्ता ने जनसंख्या नियंत्रण के लिए वेंकट चेलैया कमीशन की सिफारिश लागू करने की गुहार लगाई है। याचिका में कहा गया है कि दो बच्चों की नीति लागू की जाए। सरकार को सब्सिडी और नौकरी के लिए दो बच्चों की पॉलिसी लागू करने का निर्देश दिया जाए। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की ओर से दाखिल अर्जी में कहा गया है कि परिवार नियोजन एक स्वैच्छिक नेचर का प्रोग्राम है। यह लोगों की इच्छा के हिसाब से फैमिली प्लानिंग की योजना है। इसमें कोई जोर-जबरदस्ती नहीं है। साथ ही सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार ने कहा है कि पब्लिक हेल्थ राज्य का विषय है। केंद्र ने कहा कि इस मामले में उनका सीधा रोल नहीं है। साथ ही कहा कि हेल्थ से संबंधित तमाम गाइडलाइंस को लागू करने का अधिकार राज्य का है। हेल्थ मिनिस्ट्री की ओर से यह भी कहा गया है कि सरकार समग्र राष्ट्रीय जनसंख्या नीति का पालन करती है। भारत सरकार जबरदस्ती परिवार नियोजन कराने के खिलाफ है। वैसे भारत सरकार जनसंख्या को स्थिर रखने के लिए तमाम कार्यक्रम चलाती है। मसलन विश्व जनसंख्या दिवस मनाया जाता है। मिशन परिवार विकास योजना है। इसके तहत परिवार नियोजन कार्यक्रम चलाता है। साथ ही जनसंख्या नियंत्रण के लिए अन्य कार्यक्रम चलाता है। सुप्रीम कोर्ट ने भाजपा नेता अश्विनी उपाध्याय की ओर से अर्जी दाखिल कर भारत सरकार को प्रतिवादी बनाया गया है और कहा गया है कि देश में जनसंख्या नियंत्रण करने के लिए कदम उठाए जाएं। याचिका में गुहार लगाई गई है कि दो बच्चों की पॉलिसी घोषित की जाए। यानि सरकारी नौकरी, सब्सिडी आदि का क्राइटेरिया तय किया जाए। साथ ही कहा कि इस पॉलिसी का उल्लंघन करने वालों के कानूनी अधिकार, वोटिंग अधिकार, चुनाव लड़ने का अधिकार आदि को ले लिया जाए। केंद्र सरकार के स्वास्थ्य मंत्रालय के हलफनामे पर याचिकाकर्ता अश्विनी उपाध्याय ने कहा कि मंत्रालय ने कहा कि जनसंख्या नियंत्रण राज्य का विषय है। जबकि हमारा कहना है कि मिनिस्ट्री के अधिकारी न संविधान को पढ़ते हैं, न समझते हैं। संविधान के शेड्यूल-7 में कार्यों का बंटवारा है। इसमें तीन लिस्ट हैं। केंद्रीय, राज्य और समवर्ती सूची। जनसंख्या नियंत्रण का विषय समवर्ती सूची में है यानि जनसंख्या नियंत्रण पर केंद्र और राज्य सरकारें दोनों ही कानून बना सकते हैं।
-अनिल नरेन्द्र
Wednesday, 16 December 2020
किसान एकता तोड़ना चाहती है सरकार
नए कृषि कानूनों को रद्द कराने और न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की गारंटी की मांग पर चल रहे किसान आंदोलन थमता नजर नहीं आ रहा है। सरकार की रणनीति अब लगती है कि किसानों में फूट डालकर आंदोलन खत्म कराने की लगती है। किसान आंदोलन नेताओं और खाप चौधरियों ने केंद्र सरकार पर गंभीर आरोप लगाए हैं। इनका कहना है कि केंद्र सरकार फूट डालकर आंदोलन को खत्म कराने की रणनीति बना रही है। किसानों की आवाज बुलंद कर रहे किसान नेताओं को धमकाने की कोशिश हो रही है। एकजुटता का अहसास कराने के लिए खाप चौधरी सोमवार को खापों के पारंपरिक केंद्रीय मुख्यालय गांव सोरम (मुजफ्फरनगर) में पंचायत करेंगे। कड़ाके की ठंड में किसान रविवार को 18वें दिन भी दिल्ली-हरियाणा के सिंघु बॉर्डर, दिल्ली, उत्तर प्रदेश के गाजीपुर और चिल्ला बॉर्डर पर डटे रहे। निर्वाल खाप भारत चौधरी बाबा राजवीर सिंह मुंडेट का कहना है कि केंद्र सरकार के इशारे पर स्थानीय नेता किसानों की आवाज दबाने का प्रयास कर रहे हैं। उन्हें किसी न किसी मामले में फंसाने की धमकी देकर चुप कराने की साजिश की जा रही है, ताकि आंदोलन खत्म किया जा सके। उत्तर प्रदेश और हरियाणा में कई किसान नेताओं को धमकाने की सूचना मिल रही है। हालांकि वह लोग इन्हें नजरंदाज कर आंदोलन को मजबूती देने में जुटे हैं। भाकियू के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत ने हाइवे पर सभा को संबोधित करते हुए कहा कि कृषि कानूनों को वापस लेने की मांग को सरकार सुन नहीं रही है। आंदोलन लंबा होता जा रहा है, ऐसे में अब सरकार को गोला लाठी देने का समय आ गया है। उन्होंने किसानों से कृषि यंत्रों को लेकर यूपी गेट पहुंचने का आह्रान किया। कहा कि किसान सरकार से बातचीत करने को तैयार हैं, लेकिन बात सिर्फ कृषि कानूनों को वापस लेने पर होगी। सुबह करीब 11 बजे किसानों ने पैदल मार्च निकाला। इस दौरान भारी संख्या में पुलिस बल तैनात रहा। राकेश टिकैत ने कहा कि जो किसान व्यस्त हैं या साधन के कारण नहीं आ पा रहे हैं वह सब स्थानीय स्तर पर प्रदर्शन कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि किसान की एकजुटता को सरकार तोड़ना चाहती है, किसान यह जान चुका है। एक और रणनीति पर सरकार काम कर रही है वह है कि आंदोलन को सिर्फ पंजाब का साबित करना। अब सरकार की रणनीति है कि मौजूदा किसान आंदोलन को महज पंजाब के किसानों का आंदोलन बनाकर उसे अलग-थलग कर दिया जाए। सत्तारूढ़ दल ने अपने तमाम फ्रंटल चेहरों की मदद से इस दिशा में काम शुरू भी कर दिया है। आरएसएस से जुड़े भारतीय किसान मोर्चा के एक पदाधिकारी का कहना था कि आंदोलन पंजाब और दिल्ली के आसपास का है। आंदोलन में जो मुद्दे उठ रहे हैं, वह पंजाब के बड़े किसानों और आढ़तियों से जुड़े हैं। इनका आम किसानों से कोई लेना-देना नहीं है। हम यह सारे तथ्य दूसरे राज्यों में ले जाकर वहां किसान यूनियनों की मदद से आम किसानों के बीच में यह बात रखने की कोशिश करेंगे। एक सरकारी रणनीतिकार के मुताबिक अगर हम यह संकेत देने में सफल होते हैं कि कृषि कानूनों को लेकर सिर्फ एक राज्य में विरोध हो रहा है, तो इसका मतलब है कि बाकी सभी को यह स्वीकार्य है। तब हम एक राज्य के लिए किसी कानून को नहीं बदल सकते। इसके अलावा सरकार लगातार आंदोलन में घुसपैठ कर चुके गैर-किसान तत्वों के मुद्दे पर को उठाते रहेंगे।
अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट ने दिया ट्रंप को तगड़ा झटका
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को अमेरिका के सुप्रीम कोर्ट से लगा है बड़ा झटका। ट्रंप और उनके प्रचार अभियान दल ने हाल में सम्पन्न हुए राष्ट्रपति चुनाव में बड़े पैमाने पर धोखाधड़ी के आरोप लगाए थे और कई प्रांतों में जो बाइडन की जीत को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। वहीं प्रांतीय चुनाव अधिकारियों और मुख्य धारा के मीडिया का कहना है कि उन्हें धोखाधड़ी के संबंध में कोई साक्ष्य नहीं मिले हैं। ट्रंप की चुनाव परिणामों को पलटने की याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया है। इन याचिकाओं को राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की रिपब्लिकन पार्टी और उसके समर्थकों की ओर से दायर किया गया था। इनमें दलील दी गई थी कि कोर्ट उन कांटे के मुकाबले वाले प्रांतों के चुनाव परिणामों को पलट दे, जिसमें डेमोक्रेडिट पार्टी के उम्मीदवार जो बाइडन ने जीत दर्ज की है। फैसले से गुस्साए ट्रंप ने इस पर प्रतिक्रिया देते हुए ट्वीट करके कहा, सुप्रीम कोर्ट वास्तव में मुझे नीचा दिखाना चाहता है। न तो उसमें किसी प्रकार की समझ है और न ही साहस। यह फैसला कानूनी तौर पर मेरा अपमान है और अमेरिका के लिए शर्मिंदगी से भरा है। बता दें कि अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव में डेमोक्रेटिक उम्मीदवार जो बाइडन को जीत मिली है। वह 20 जनवरी को राष्ट्रपति पद की शपथ लेंगे। सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को अपने संक्षिप्त और बिना हस्ताक्षर वाले आदेश में कहा, टेक्सास ने उस प्रकार से न्यायिक संज्ञेय में दिलचस्पी नहीं दिखाई, जिस प्रकार से अन्य राज्य चुनाव आयोजित करते हैं। इसलिए सभी लंबित प्रस्ताव विवादित करार देते हुए खारिज किए जाते हैं। सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय को ट्रंप के लिए बड़ा झटका माना जा रहा है, जो बाइडन के निर्वाचन को चुनौती देते हुए परिणामों को पलटने की कोशिश कर रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश सैमुअल एलीटो और न्यायाधीश क्लैंट्स थॉमस ने कहा कि उनका मानना है कि अदालत को मामले की सुनवाई करनी चाहिए, लेकिन उन्होंने टेक्सास के दावे पर स्थिति स्पष्ट नहीं की। कम से कम 126 रिपब्लिकन सांसदों ने इस मुकदमे का समर्थन किया था। खुद डोनाल्ड ट्रंप ने भी इन याचिकाओं को लेकर खुशी जाहिर की थी और कहा था कि उन्हें सुप्रीम कोर्ट में जीत की उम्मीद है। अदालत के आदेश आने के बाद प्रतिनिधि सभा की स्पीकर नैंसी पेलोसी ने कहा कि अदालत ने लाखों अमेरिकी मतदाताओं की इच्छा को पलटने के रिपब्लिकन पार्टी के गैर-कानूनी और अलोकतांत्रिक मुकदमे को खारिज करने का सही कदम उठाया है। याचिका पर हस्ताक्षर करने वाले सांसदों ने प्रतिनिधि सभा का अपमान किया है। प्रतिनिधि सभा के ही एक प्रमुख नेता स्टेनी होचर ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले से यह स्पष्ट हो गया है कि चुनावों में किसी प्रकार की धोखाधड़ी नहीं हुई थी और जो बाइडन अमेरिका के अगले राष्ट्रपति होंगे। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद भी ट्रंप कंपैन के तेवर ढीले पड़ते नहीं दिखाई दे रहे हैं। राष्ट्रपति ट्रंप के निजी वकील रुडी गुलियानी ने कहा कि राष्ट्रपति की कानूनी टीम चुनाव परिणामों को चुनौती देती रहेगी। उन्होंने एक साक्षात्कार में कहा, फैसलों में ऐसा कुछ नहीं कहा गया है जो हमें जिला अदालतों में याचिका दायर करने से रोकता है। विश्वास रखिए हम चुनौती देने जा रहे हैं।
न्यूज पेपर इंडस्ट्री डूबने के कगार पर है
इंडियन न्यूज पेपर सोसाइटी (आईएनएस) के प्रेजिडेंट एल आदिमूलम ने केंद्र सरकार से न्यूज पेपर इंडस्ट्री को प्रोत्साहन पैकेज दिए जाने की मांग की है। आईएनएस कई महीनों से पैकेज की उम्मीद कर रही है। आईएनएस का कहना है कि न्यूज पेपर इंडस्ट्री राजस्व में कमी के अभूतपूर्व संकट का सामना कर रही है, क्योंकि कोविड-19 की वजह से विज्ञापन और सर्कुलेशन दोनों प्रभावित हुए हैं। इसके कारण कई पब्लिकेशन या तो बंद हो गए हैं या कुछ संस्करण अनिश्चितकाल के लिए स्थगित कर दिए गए हैं। अगर यही स्थिति रही तो निकट भविष्य में और भी कई पब्लिकेशन बंद हो जाएंगे। आठ महीनों में इंडस्ट्री को करीब 12,500 करोड़ रुपए का नुकसान हो चुका है। साल के अंत तक यह अनुमान 16000 करोड़ रुपए तक जा सकता है। दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ ढहने के गंभीर सामाजिक-राजनीतिक नतीजों की कल्पना आसानी से की जा सकती है। इससे 30 लाख कामगारों और स्टाफ पर भी असर पड़ेगा, जो प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से न्यूज पेपर इंडस्ट्री में जर्नलिस्ट, प्रिंटर, डिलीवरी वेंडर और कई अन्य रूप में काम कर रहे हैं। अगर न्यूज पेपर इंडस्ट्री ढहती है तो इसका विनाशकारी असर लाखों भारतीयों पर पड़ेगा, जिसमें कर्मचारी और उनके परिवार तो शामिल हैं ही, इससे जुड़े उद्योग, प्रिEिटग प्रेस, न्यूज पेपर हॉकर और डिलीवरी ब्वॉय सहित पूरी चेन के एक वृहद ईको-सिस्टम पर भी असर पड़ेगा, जो दशकों से आजीविका के लिए इस पर आश्रित हैं।
-अनिल नरेन्द्र
Sunday, 13 December 2020
जब देखो चड्ढा, नड्डा, फड्डा, भड्डा बंगाल चले आते हैं
पश्चिम बंगाल में औपचारिक बाजी यानि विधानसभा चुनावों की तारीखों का अभी ऐलान नहीं हुआ है लेकिन उससे पहले ही चुनावी शतरंज की बिसात बिछ चुकी है और दोनों प्रमुख खिलाड़ियों (तृणमूल कांग्रेस और भाजपा) ने अपनी-अपनी चालें चलना भी शुरू कर दी हैं। राज्य में विधानसभा की 294 में से 200 सीटें जीतने का केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह का दावा, जनवरी में नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) लागू करने का कैलाश विजयवर्गीय का दावा, पश्चिम बंगाल में कानून-व्यवस्था पूरी तरह ढहने और लोकतंत्र खत्म होने के भाजपा नेताओं के दावे हों या फिर भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा के कोलकाता दौरे के समय उनको काले झंडे दिखाने और उनके काफिले पर पथरावöयह सब इसी शतरंजी चालों का हिस्सा बताए जा रहे हैं। सीएए के मुद्दे पर जहां घमासान शुरू हो गया है वहीं जेपी नड्डा के काफिले पर पथराव के मुद्दे पर केंद्र और ममता सरकार आमने-सामने आ गए हैं। पश्चिम बंगाल में भाजपा और तृणमूल कांग्रेस के बीच चल रहा राजनीतिक युद्ध दिनोंदिन तेज होता जा रहा है। गुरुवार को भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा के काफिले पर पथराव की घटना हुई। इसके बाद दोनों में जुबानी जंग भी खूब चली। सीएम ममता बनर्जी ने पथराव की इस घटना को भाजपा का नाटक बताते हुए कहाöउनके पास कोई और काम नहीं, सबके सब यहां जमे रहते हैं। ममता ने कहाöउनके (भाजपा) के पास कोई और काम नहीं है। अकसर गृहमंत्री यहां होते हैं, बाकी समय उनके चड्ढा, नड्डा, फड्डा, भड्डा यहां होते हैं। जब उनके पास कोई दर्शक नहीं होता है तो वह अपने कार्यकर्ताओं को नौटंकी करने के लिए कहते हैं। डायमंड हार्बर इलाके में हुई इस घटना पर ममता ने अंगुली उठाते हुए कहाöआपके साथ सुरक्षाकर्मी हैं। कोई आप पर हमला कैसे कर सकता है? हमले की योजना बनाई गई होगी, मैंने पुलिस से जांच करने के लिए कहा है। लेकिन मैं हर समय झूठ बर्दाश्त नहीं करुंगी। वह (भाजपा कार्यकर्ता) हर दिन हथियारों के साथ (रैलियों के लिए) आते हैं। वह खुद को थप्पड़ मार रहे हैं और इसका आरोप तृणमूल कांग्रेस पर लगा रहे हैं। जरा स्थिति के बारे में सोचिए। वह बीएसएफ, सीआरपी, सेना और सीआईएसएफ के साथ घूम रहे हैं.... तो फिर इतने भयभीत क्यों हैं? ममता की बातें सुनकर नड्डा ने कहाöउन्होंने मेरे बारे में बहुत सारी संज्ञाए, विचार और शब्दावली दी है। ममता जी यह आपके संस्कारों के बारे में बताता है और यह बंगाली संस्कृति नहीं है.... ममता जी बंगाल को कितने नीचे ले गई हैं। उधर खबर है कि केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह 19 दिसम्बर को एक बार फिर पश्चिम बंगाल पहुंच रहे हैं। डेढ़ महीने में यह दूसरी बार है जब अमित शाह पश्चिम बंगाल पहुंच रहे हैं। पश्चिम बंगाल के 24 परगना जिले में जेपी नड्डा के काफिले पर हमले के चन्द घंटे बाद तृणमूल कांग्रेस ने दावा किया कि उसे सूचना मिली है कि भगवा दल के कार्यकर्ताओं ने ही लोगों को अशांति पैदा करने के लिए भड़काया था। तृणमूल कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सुब्रत मुखर्जी ने कहा कि क्या भाजपा का राज्य की सत्तारूढ़ पार्टी के ऐतिहासिक रिपोर्ट कार्ड से ध्यान हटाने का प्रयास था? वैसे भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा को जैड सिक्युरिटी मिली हुई है और इसे सबसे उच्चतम सुरक्षा दीवार के रूप में देखा जाता है। इसके बावजूद अगर कुछ लोग नड्डा के वाहन पर पत्थरबाजी करने में सफल हो गए तो निश्चित रूप से इसे सुरक्षा व्यवस्था में एक बड़ी चूक के रूप में देखा जाना चाहिए।
तेलंगाना से उत्साहित भाजपा की नजर अब पूरे दक्षिण भारत पर
दक्षिण भारत के एकमात्र राज्य कर्नाटक में मजबूती के साथ स्थापित होने के बाद भी पास के तेलंगाना और आंध्र प्रदेश में भाजपा की कमजोरी हमेशा से पार्टी को सालती रही है। हाल कुछ ऐसा रहा है कि पिछले छह वर्षों में जहां भाजपा अपनी बदली सोच, क्षमता और कर्मठता के कारण उत्तर और पूर्वोत्तर में शिखर पर पहुंच गई, वहीं तेलंगाना में दो दशक में एक कदम भी नहीं बढ़ पाई है। 1999 में भी पार्टी के चार सांसद थे और 2019 में भी चार सांसद हैं। ऐसे में हैदराबाद नगर निगम चुनाव नतीजे ने यह बता दिया है कि अब तेलंगाना के जरिये भाजपा का निशाना पूरे दक्षिण भारत पर है। भाजपा अब उस घोषित स्वर्णिमकाल की ओर बढ़ने की रणनीति में जुटी हुई है, जहां पंचायत से लेकर राज्य की सत्ता तक भाजपा की इतनी धमक रहे कि वह अपनी विचारधारा को विस्तार दे सके। उस वक्त सवाल उठे थे, हैरत जताई गई थी जब एक हफ्ते पहले भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा, केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ समेत बड़े दिग्गज हैदराबाद नगर निगम चुनाव प्रचार में उतर गए थे। दरअसल भाजपा ने सभी राजनीतिक दलों के सामने नेतृत्व की कार्यशैली का बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है। यह फिर से समझा दिया है कि राजनीतिक दल के शीर्ष नेतृत्व को भी नीचे तक जाने और वर्करों के साथ खड़े होने में हिचक नहीं दिखानी चाहिए बल्कि शीर्ष नेतृत्व की मौजूदगी विचारधारा को स्थापित करने में मददगार होती है। रोचक बात यह है कि यह तत्परता उस कांग्रेस में नहीं दिखी जहां लगातार नेतृत्व को लेकर अंदर से ही सवाल खड़े किए जा रहे हैं। यही कारण है कि भाजपा महासचिव भूपेंद्र यादव ने भी यह चुटकी लेने में देर नहीं की कि टीआरएस के सामने कांग्रेस ने वीआरएस ले लिया। हैदराबाद के नतीजों ने यह स्पष्ट संकेत दे दिया है कि 2023 के तेलंगाना विधानसभा चुनाव पहले से अलग होंगे। भाजपा बहुत मजबूत विकल्प बनकर उभरी है। वह चार से बढ़कर 40 के ऊपर पहुंच गई, जबकि असदुद्दीन ओवैसी की एआईएमआईएम अपने सीमित कट्टर समर्थक वर्गों में सिमट कर रह गई है। हैदराबाद चुनाव में वह लगभग वहीं खड़ी है। यह नतीजा यह भी बताता है कि राष्ट्रीय महत्वाकांक्षा के साथ बिहार के बाद बंगाल के लिए बढ़ रहे ओवैसी को फिलहाल खारिज नहीं किया जा सकता है। जाहिर तौर पर हैदराबाद के नतीजे ममता बनर्जी को परेशान जरूर कर रहे होंगे। अगर तेलंगाना व दक्षिण भारत की बात की जाए तो भाजपा कर्नाटक दोहराने की कोशिश करेगी। यह बात याद दिलाने की कोशिश भी होगी कि स्वतंत्र तेलंगाना के प्रतीक भले ही टीआरएस नेता के. चन्द्रशेखर राव बन गए हों, लेकिन इसकी सोच जनसंघ नेताओं ने डाली थी। कर्नाटक से अलग तेलंगाना में भाजपा को विस्तार के लिए जनता दल जैसा कंधा तो नहीं मिल सकता है, लेकिन टीआरएस के प्रति सत्ता विरोधी लहर का संकेत भाजपा के लिए उत्साहवर्द्धक जरूर है। अब भाजपा की नजरें पूरे दक्षिण भारत के राज्यों पर कब्जा करने की लग रही हैं। तेलंगाना परिणामों ने भाजपा की महत्वाकांक्षा को बढ़ाया है। आने वाले दिनों में हम देखेंगे कि दक्षिण भारत में भाजपा ज्यादा सक्रिय दिखेगी।
केंद्र में मोदी सरकार नहीं, अंबानी-अडानी सरकार है
किसान आंदोलन दिनोंदिन अपना विकराल रूप लेता जा रहा है। अभी तक तो किसान नेशनल हाइवे पर बैठकर दिल्ली का घेराव कर रहे थे अब उन्होंने रणनीति बनाकर रिलायंस के पेट्रोल पम्प को बंद करने की रणनीति अपनाई है। इसी के चलते सोनीपत में गांधी चौक स्थित रिलायंस शॉपिंग मॉल पर ताला लगाकर रिलायंस विरोधी और केंद्र विरोधी नारेबाजी की। किसान नेताओं का कहना है कि यह देश में मोदी सरकार नहीं बल्कि रिलायंस और अंबानी, अडानी चल रही है। शहर के गांधी चौक स्थित रिलायंस स्मार्ट मॉल पर दोपहर कुछ किसान नेताओं व कार्यकर्ताओं ने पहुंचकर शॉपिंग मॉल पर ताला लगाकर केंद्र की मोदी सरकार के खिलाफ जमकर नारेबाजी की। नेताओं ने कहा कि इस आंदोलन को केवल किसानों का आंदोलन ना समझें, यह प्रत्येक देश के नागरिक, गरीब मजदूर का आंदोलन है। उन्होंने कहा कि आज कहने को तो केंद्र में मोदी सरकार है परन्तु यह सरकार रिलायंस अंबानी और अडानी के इशारों पर चलती है। आम आदमी लगातार पिस रहा है और हमें इनके सामान का बहिष्कार करना चाहिए और देश का सरकारी तंत्र यूज करना चाहिए। किसान नेताओं का कहना है कि इन्हें पूंजीपतियों को राज्यसभा सांसद बनाया जाता है और फिर अपने हिसाब से देश के कानून का प्रयोग करते हैं जोकि निन्दनीय है। उन्होंने प्रत्येक देशवासी से अपील करते हुए कहा कि हमें इनका प्रयोग छोड़कर इन्हें दिखा देना चाहिए कि इनके बिना भी देश चल सकता है। अंबानी-अडानी अब किसानों के निशाने पर आ चुके हैं।
-अनिल नरेन्द्र
Saturday, 12 December 2020
ना तुम मानों, ना हमöतो बात कैसे बनेगी?
नए कृषि कानूनों का विरोध कर रहे किसानों और केंद्र सरकार के बीच टकराव खत्म होने का कोई रास्ता फिलहाल निकलता नजर नहीं आ रहा है। बुधवार को केंद्र सरकार द्वारा प्रस्ताव मिलने के बाद 40 से ज्यादा किसानों के नेताओं की बैठक हुई। इसमें सर्वसम्मति से एक साथ हाथ उठाकर सभी ने केंद्र सरकार के प्रस्ताव को ठुकरा दिया। खबर मिलते ही कृषि मंत्री नरेंद्र तोमर गृहमंत्री अमित शाह से मिलने चले गए। प्रस्ताव ठुकराने के बाद शाम को किसानों ने प्रदर्शन तेज करने की घोषणा कर दी। उन्होंने अब एक नई बात भी विरोध में जोड़ दी। उन्होंने कहा कि अंबानी-अडानी के सामान का बहिष्कार करेंगे। देशभर में धरना देंगे और भाजपाइयों का घेराव करेंगे। दूसरी ओर कैबिनेट की बैठक के बाद केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने कहा कि एमएसपी और एपीएमसी दोनों बरकरार रहेंगे। उन्होंने यह भी कहा कि वैसे राजस्थान के निकाय चुनाव के परिणाम ने बता दिया है कि किसान कृषि कानूनों के पक्ष में हैं। वहीं उपभोक्ता मामलों के केंद्रीय मंत्री राव साहेब दानवे ने कहा कि चीन और पाकिस्तान ने सीएए के नाम पर पहले मुस्लिम समुदाय को उकसाया, अब किसानों को उकसा रहे हैं। केंद्र सरकार ने 22 पेज का जो प्रस्ताव किसानों को भेजा था उस पर किसानों का कहना था कि यह प्रस्ताव गोलमोल है। 22 में से 12 पेजों पर भूमिका, पृष्ठभूमि, फायदे, आंदोलन खत्म करने की अपील और धन्यवाद है। संशोधन की जगह हर मुद्दे पर लिखा है कि ऐसा करने पर विचार कर सकते हैं। कानून रद्द करने के मुद्दे के जवाब में सीधा हां या ना में जवाब देने की जगह सुझाव देने पर विचार की बात लिखी है। यह हैं सरकार की ओर से किसानों को दिए गए प्रस्ताव के जवाब। एमएसपी की वर्तमान खरीदी व्यवस्था पर सरकार लिखित आश्वासन देगी। राज्य सरकार चाहे तो प्राइवेट मंडियों पर भी शुल्क-फीस लगा सकती है। राज्य सरकार चाहे तो मंडी व्यापारियों का रजिस्ट्रेशन अनिवार्य कर सकती है। किसानों को सिविल कोर्ट कचहरी जाने का विकल्प भी दिया जाएगा। किसान और कंपनी के बीच कांट्रेक्ट की 30 दिन के अंदर रजिस्ट्री होगी। कांट्रेक्ट कानून में स्पष्ट करेंगे, खेती की जमीन या बिल्डिंग गिरवी नहीं रख सकते। किसान की जमीन कुर्की नहीं हो सकेगी। पुरानी बिजली व्यवस्था रहेगी। इसके अतिरिक्त किसानों के अन्य सुझाव होंगे तो उन पर विचार किया जाएगा। सरकार और भाजपा सूत्रों का कहना है कि आंदोलन पर सियासी रंग पूरी तरह चढ़ा दिख रहा है। सरकार के प्रस्ताव को ठुकराते हुए कुछ किसान नेताओं ने कांग्रेस नेता राहुल गांधी के अंदाज में अंबानी, अडानी का विरोध करने की घोषणा कर दी। वहीं वामपंथी विचारधारा के नेताओं ने चारों ओर से दिल्ली को जाम करने और दूसरी घोषणाएं की हैं। 35 से अधिक किसान नेताओं को मनाना आसान काम नहीं है। एक वर्ग मानता है कि किसानों का एक तबका एमएसपी पर गारंटी, एपीएमसी जारी रहने और निजी मंडियों पर लगाम लगाने जैसे कुछ प्रावधान को पर्याप्त मानकर आंदोलन समाप्त करने की इच्छा रखता है। लेकिन आंदोलन पर पंजाब और वामपंथी विचारधारा के नेताओं का भी प्रभाव है। किसान एकता का सवाल है, इसलिए सरकारी प्रस्ताव मानने की सोच रखने वाले वर्ग की चल नहीं रही है? दूसरी तरफ किसान नेताओं का कहना है कि जब सरकार तीन कानूनों में संशोधन की बात मान रही है तो इसका मतलब है कि यह कानून गलत है। इसलिए इन्हें वापस ही लिया जाए और एमएसपी गारंटी, अन्य मुद्दों पर नया कानून लाया जाए। किसानों के इस रुख और आंदोलन तेज करने की तैयारी को लेकर सरकार सकते में है। उन्हें इस बात की चिन्ता है कि कहीं यह आंदोलन हिंसक न हो जाए। ऐसा होता है तो स्थिति और बिगड़ सकती है।
दिल्ली को दहलाने की बड़ी साजिश नाकाम
देश की राजधानी की सीमा पर चल रहे किसान आंदोलन के बीच दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने सोमवार को पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई, आतंकी गुट हिजबुल मुजाहिद्दीन और खालिस्तान की बड़ी साजिश का खुलासा किया। पुलिस ने सोमवार सुबह पूर्वी दिल्ली के रमेश पार्क में मुठभेड़ के बाद पांच संदिग्ध आतंकियों को गिरफ्तार किया। संदिग्ध आतंकियों में से दो पंजाब और तीन जम्मू-कश्मीर के रहने वाले हैं। पंजाब निवासी दोनों संदिग्ध आईएसआई और खालिस्तान गुटों के इशारे पर दिल्ली में संघ नेताओं की हत्या करने आए थे, जबकि कश्मीरी इन दोनों को नारको आतंकवाद के जरिये फंडिंग करने आए थे। खालिस्तान समर्थक संदिग्ध ही शौर्य चक्र विजेता बलविंदर सिंह संधू की हत्या में शामिल थे। स्पेशल सेल के पुलिस उपायुक्त प्रमोद सिंह कुशवाहा ने बताया कि टीम को सूचना मिली कि खालिस्तानी सुख भिखारीवाल ने पंजाब से दो कथित आतंकी शार्प शूटर दिल्ली भेजे हैं। कथित कश्मीरी आतंकी खालिस्तानी शार्प शूटरों को फंडिंग के लिए नकदी व हेरोइन सौंपेंगे। करीब आठ करोड़ की हेरोइन को बेचकर पैसे का आतंकी गतिविधियों में इस्तेमाल किया जाएगा। सुबह करीब 6ः45 बजे टीम ने संदिग्धों को रोकने का इशारा किया तो उन्होंने पुलिस टीम पर गोलियां बरसा दीं। 13 राउंड फायरिंग के बाद सभी को दबोच लिया गया। दिल्ली में गिरफ्तार पांच संदिग्धों की निशानदेही और दिल्ली पुलिस व सुरक्षा एजेंसियों के इनपुट की मदद से खालिस्तानी हैंडलर सुख भिखारीवाल को दुबई से दबोच लिया गया। भारत सरकार ने सुख भिखारीवाल को भारत लाने के लिए दुबई से बातचीत व कानूनी प्रक्रिया शुरू कर दी है। सुख भिखारीवाल खालिस्तान का प्रमुख हैंडलर था और पंजाब व आसपास के इलाकों में खालिस्तान के खिलाफ आवाज उठाने वाले आठ से ज्यादा लोगों की हत्या करवा चुका था। शौर्य चक्र विजेता बलविंदर सिंह संधू की हत्या में भी वह शामिल था। दिल्ली में गिरफ्तार उसके साथियों ने पुलिस को बताया कि उनकी भिखारीवाल से रोज बात होती थी। दुबई में होने की जानकारी गृह मंत्रालय को दी गई और सरकार ने दुबई प्रशासन से बात की और भिखारीवाल को वहां पकड़ लिया गया। जल्द उसे भारत लाया जा सकता है। हालांकि इस बार एक बात की ओर जरूर ध्यान दिलाना चाहिए कि महामारी से लड़ने सहित किसान आंदोलन के मद्देनजर राजधानी में चौकसी के बावजूद पांच संदिग्ध हथियारों सहित कैसे अपने ठिकाने पर पहुंच गए? यह किसी से छिपा नहीं है कि आतंकी संगठनों के सदस्यों द्वारा मादक पदार्थों और हथियारों की तस्करी से जमा किए गए पैसों का इस्तेमाल भारत में सांप्रदायिक वैमनस्य फैलने के साथ-साथ आतंकी गतिविधियों को अंजाम देने में किया जाता रहा है। यह भी जगजाहिर है कि ज्यादातर आतंकी संगठन पाकिस्तान स्थित अपने ठिकानों से अपनी गतिविधियां संचालित करते हैं। दिल्ली पुलिस की इस कार्रवाई ने समय रहते एक बड़ी साजिश का पर्दाफाश करके बड़े आतंकी हमले से राजधानी को बचा लिया।
-अनिल नरेन्द्र
Thursday, 10 December 2020
किसानों को डर है कि एमएसपी व्यवस्था अप्रासंगिक हो जाएगी
नए खेती कानूनों का विरोध कर रहे किसानों से बात करने के लिए केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह अब सामने आ गए हैं। उन्होंने मंगलवार को 13 किसान नेताओं के एक ग्रुप के साथ मीटिंग की। यह मीटिंग भी बेनतीजा रही। बातचीत के बाद किसान नेताओं ने कहा कि बुधवार को केंद्र के साथ होने वाली छठे दौर की बैठक रद्द हो गई है क्योंकि सरकार को बिल में संशोधन के लिए लिखित प्रस्ताव देना था। सरकार ने लिखित प्रस्ताव दिया किन्तु किसान संगठनों ने सरकार के प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया। किसान नेता हनन मुला ने बताया कि सरकार कानूनों को पूरी तरह वापस लेने के लिए राजी नहीं है। ऐसे में हम उनके प्रस्ताव पर चर्चा करेंगे और आगे की रणनीति तय करेंगे। किसान संगठनों का कहना है कि अगर मोदी सरकार ने कृषि कानूनों को वापस नहीं लिया तो आने वाले वक्त में उन्हें उनकी उपज के औने-पौने दाम मिलने वाली न्यूनतम समर्थन मूल्य यानि एमएसपी की गारंटी खत्म हो जाएगी। द फार्मर्स प्रोड्यूस ट्रेड एंड कॉमर्स 2020 कृषि कानून के मुताबिक किसान अपनी उपज एपीएमसी यानि एग्री कल्चर प्रोड्यूस मार्केट कमेटी की ओर से अधिसूचित मंडियों से बाहर बिना दूसरे राज्यों का टैक्स दिए बेच सकते हैं। दूसरा कानून हैöफार्मर्स (एमपॉवरमेंट एंड प्रोटेक्शन) एग्रीमेंट ऑन प्राइस इंश्योरेंस एंड फार्म सर्विस कानून 2020। इसके अनुसार किसान अनुबंध वाली खेती कर सकते हैं और सीधे उसकी मार्केटिंग कर सकते हैं। तीसरा कानून हैöइंसेशियल कमोडिटीज (एमेंडमेंट) कानून। इसमें उत्पादन स्टोरेज के अलावा अनाज, दाल, खाने का तेल, प्याज की बिक्री को असाधारण परिस्थितियों को छोड़कर नियंत्रण-मुक्त कर दिया गया है। सरकार का तर्क है कि नए कानून से किसानों को ज्यादा विकल्प मिलेंगे और कीमत को लेकर अच्छी प्रतिस्पर्धा होगी। किसानों के विरोध-प्रदर्शन में सबसे बड़ा जो डर उभरकर सामने आया है वो यह है कि एमएसपी की व्यवस्था अप्रासंगिक हो जाएगी और उन्हें अपनी उपज लागत से भी कम कीमत पर बेचने के लिए मजबूर होना पड़ेगा। एमएसपी व्यवस्था के तहत केंद्र सरकार कृषि लागत के हिसाब से किसानों की उपज खरीदने के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य तय करती है। फसलों की बुआई के हर मौसम में कुल 23 फसलों के लिए सरकार एमएसपी तय करती है। 2015 में शांता कुमार कमेटी ने नेशनल सैंपल सर्वे का जो डाटा इस्तेमाल किया था, उसके मुताबिक केवल छह प्रतिशत किसान ही एमएसपी की दर से अपनी उपज बेच पाते हैं। किसानों को डर है कि एमएसपी मंडी के बाहर टैक्स मुक्त कारोबार के कारण सरकारी खरीद प्रभावित होगी और धीरे-धीरे यह व्यवस्था अप्रसांगिक हो जाएगी। किसानों की मांग है कि एमएसपी को सरकारी मंडी से लेकर प्राइवेट मंडी तक अनिवार्य बनाया जाए ताकि सभी तरह के खरीददार वह चाहे सरकारी हों या निजी इस दर से नीचे अनाज न खरीदें।। सरकार जो उपज खरीदती है, उसका सबसे बड़ा हिस्सा पंजाब और हरियाणा से आता है। पिछले पांच साल का आंकड़ा देखें तो सरकार द्वारा चाहे गेहूं हो या चावल, उसकी सबसे ज्यादा खरीद पंजाब और हरियाणा से हुई। कृषि लागत और मूल्य आयोग (सीएसीपी) एक बैंच मार्क सेट करने के लिए 22 से अधिक फसलों के न्यूनतम मूल्य (एमएसपी) की घोषणा करता है। सीएसीपी हालांकि हर साल अधिकांश फसलों के लिए एमएसपी की घोषणा करता है, मगर राज्यों द्वारा संचालित अनाज खरीद की एजेंसियां और भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) भंडारण और धनराशि की कमी के कारण उन कीमतों पर केवल चावल और गेहूं खरीदती है। हम उम्मीद करते हैं कि केंद्र सरकार किसानों की आशंकाएं दूर करेगी और इस ज्वलंत समस्या का जल्द समाधान निकल आएगा। हमें नहीं लगता कि बिना कानूनों में संशोधन किए कोई दूसरा रास्ता निकलेगा।
सिमी का आतंकी अब्दुल्ला दानिश
भारत सरकार द्वारा वर्ष 2001 में स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया (सिमी) को प्रतिबंधित किए जाने के बाद से ही फरार चल रहे संगठन के मुख्य सदस्य इस्लामिक मूवमेंट हिन्दी मैगजीन के चीफ एडिटर अब्दुल्ला दानिश को काफी तलाश के बाद आखिरकार दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल की टीम ने दिल्ली के जाकिर नगर इलाके से दबोच लिया है। गिरफ्तार किए गए आरोपी की पहचान 58 वर्षीय अब्दुल्ला दानिश के तौर पर की गई है। आरोप है कि वह प्रतिबंधित संगठन सिमी को नए नाम से लांच करने की तैयारी में लगे थे। मुंबई, अहमदाबाद सीरियल ब्लास्ट के गुनहगार आतंकियों से जेल में लगातार सम्पर्क कर रहे थे। दानिश मूल रूप से उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ स्थित बुधपुर गांव का रहने वाला है। पुलिस ने आरोपी को एक गुप्त सूचना के आधार पर शनिवार को ट्रैप लगाकर गिरफ्तार किया। वह पिछले 19 साल से फरार था। इसकी पुष्टि करते हुए स्पेशल सेल के डीसीपी प्रमोद सिंह कुशवाहा ने बताया कि आरोपी अब्दुल्ला दानिश पर राष्ट्रद्रोह के केस दर्ज होने के अलावा दिल्ली में देश विरोधी गतिविधियों में संलिप्त होने का भी आरोप है। तब से ही आरोपी की दिल्ली पुलिस को तलाश थी। काफी समय तक फरार रहने की वजह से उसे 2002 में भगोड़ा घोषित कर दिया गया था। आरोपी पिछले 25 सालों के दौरान कई मुस्लिम युवाओं का माइंड वॉश करवाकर उन्हें आतंकी संगठनों और सिमी से जोड़ चुका है। आरोपी दिल्ली के अलावा उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, गुजरात जैसे राज्यों से मुस्लिम युवाओं को सिमी से जोड़ता था। गिरफ्तार आरोपी अब्दुल्ला के परिवार में चार भाई और तीन बहनें हैं। पुलिस के मुताबिक उसके माता-पिता पहले हिन्दू थे, बाद में उन्होंने इस्लाम धर्म अपना लिया था। माता-पिता की वजह से दानिश अब्दुल्ला आजमगढ़ स्थित मदरसे में भी जाता था। इसके बाद वह सिमी से जुड़ गया। वह लगातार युवाओं को सिमी सहित अन्य प्रतिबंधित संगठनों से जोड़ता रहा है। दानिश एनआरसी और सीएए के खिलाफ लामबंद होने और सांप्रदायिक माहौल को बिगाड़ने के लिए कट्टरपंथी विचारधारा का प्रचार कर रहा था। इसके लिए वह नए लड़कों की भर्ती कर रहा था। साथ ही फर्जी वीडियो का इस्तेमाल करके मुसलमानों पर किए जा रहे अत्याचारों का झूठा प्रचार करता रहा है। 27 सितम्बर 2001 में भारत सरकार ने सिमी पर प्रतिबंध लगाया था। संगठन के पदाधिकारियों ने प्रेस कांफ्रेंस की। जब पुलिस ने छापेमारी की, सिमी के कई कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार किया, कई कार्यकर्ता घटनास्थल से फरार हो गए। उनमें अब्दुल्ला दानिश भी शामिल था। तब से फरार चल रहा था। शनिवार को आखिरकर वह दिल्ली पुलिस के हत्थे चढ़ गया।
-अनिल नरेन्द्र
Wednesday, 9 December 2020
सबसे बड़ा पेंच एमएसपी कानूनी गारंटी का है
तीन नए कृषि कानूनों को वापस लेने के लिए चल रहे किसान आंदोलन में मुख्य पेंच न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की कानूनी गारंटी को लेकर बना हुआ है। एमएसपी के सवाल पर आंदोलनकारी किसान संगठन ही नहीं बल्कि संघ के अनुषांगिक संगठन भी सरकार के खिलाफ हैं। हालांकि इस मांग से जुड़ी जटिलताओं के कारण सरकार पूरी तरह असमंजस में है। सरकार के सूत्रों का भी कहना है कि अगर एमएसपी की कानूनी गारंटी की घोषणा कर दी जाए तो तीनों कानूनों के शायद मांग संबंधी स्वर धीमे हो सकते हैं क्योंकि सरकार पहले से ही इन कानूनों के कई प्रावधानों में संशोधन के लिए तैयार है। मसलन सरकार किसानों को सीधे अदालत का दरवाजा खटखटाने, एनएसआर क्षेत्र से जुड़े नए प्रदूषण कानून में बदलाव करने, निजी खरीददारों के लिए पंजीयन अनिवार्य करने और छोटे किसानों के हितों की रक्षा के प्रावधानों में जरूरी बदलाव के लिए तैयार है। मुश्किल यह भी रही है कि आजादी के बाद से ही सरकारें किसान और ग्राहकों के बीच सीधा संबंध स्थापित करने में नाकाम रही हैं। इसके कारण ग्राहकों को भी ज्यादा कीमत चुकानी पड़ी, लेकिन इसका मामूली हिस्सा ही किसानों की जेब तक पहुंचा। कृषि क्षेत्र का मुनाफा बिचौलियों की भेंट चढ़ता रहा। आजादी के सात दशक से अधिक समय बीत जाने के बावजूद सरकारें किसानों की आय बढ़ाने में नाकाम रही। और भी कई मुद्दे हैं जिसमें अभी भी असमंजस की स्थिति बनी हुई है। सरकार का उद्देश्य कृषि क्षेत्र में निजी भागीदारी बढ़ाने की है। एमएसपी को सरकार कानूनी तो बना देगी, मगर निजी क्षेत्र को खरीददारी के लिए बाध्य नहीं कर पाएगी। ऐसे में अगर फसल की मांग कम हुई तो निजी क्षेत्र खरीददारी करेंगे या नहीं? सरकार औसतन कुल उपज का छह प्रतिशत ही खरीद करती है। वर्तमान क्षमता के अनुरूप इसे 10 प्रतिशत तक बढ़ाया जा सकता है। किसी एक फसल की अधिक उपज होने के बाद उसकी मांग में कमी आएगी। सरकार एक सीमा से अधिक फसल नहीं खरीदेगी। इसके बाद एमएसपी से कम कीमत पर खरीद गैर-कानूनी होने पर निजी क्षेत्र खरीददारी प्रक्रिया से नहीं जुड़ेंगे। ऐसे में किसान उन फसलों का क्या करेगा? एमएसपी के दायरे में आने वाली फसलों की अलग-अलग गुणवत्ता होती है। गुणवत्ता के हिसाब से एक फसल का अलग-अलग मानक तय करते हुए अलग एमएसपी तय करनी होगी। मानकों पर खरा नहीं उतरने वाली फसलों का क्या होगा? सरकार के सूत्र इसे बेहद जटिल प्रक्रिया मानते हैं। सरकार का कहना है कि तीनों कानूनों के जरिये उसकी कोशिश कृषि क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा कराने की थी। निजी क्षेत्र अपनी सूझबूझ से ऐसी फसलों की खेती कराएंगे, जिनकी भविष्य में मांग ज्यादा होने की संभावना रहेगी। मगर एमएसपी को कानूनी बनाने से नए कृषि कानूनों का उद्देश्य पूरा नहीं होगा। सरकार प्रतिस्पर्धा के लिए निजी क्षेत्र पर शर्तें नहीं थोपना चाहती। सरकार के सूत्रों का कहना है कि वैसे भी कृषि क्षेत्र निजी क्षेत्र के लिए आकर्षण की प्राथमिकता वाला क्षेत्र नहीं है। समस्या जटिल है। देखें आगे क्या होता है?
चीनी भ्रष्ट अधिकारियों की वजह से दुनिया में फैला कोरोना
कोरोना वायरस के प्रसार को रोकने में विफलता को लेकर चीन एक बार फिर सवालों के घेरे में है। चीन की शीर्ष रोग नियंत्रण एजेंसी में गोपनीयता और पक्षपात के कारण बड़े पैमाने पर जांच की कमी रही और गड़बड़ियां सामने आईं, जिनसे कोरोना वायरस के प्रसार को रोकने के शुरुआती प्रयास बाधित हुए। समाचार एजेंसी एसोसिएटिड प्रेस की पड़ताल में यह बात सामने आई है। पड़ताल के मुताबिक चीन के सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रीवेंशन ने जांच किटों और वितरण का अधिकार विशेष रूप से शंघाई की तीन ऐसी कंपनियों को दिया जिनसे अधिकारियों के व्यक्तिगत संबंध थे। इन कंपनियों के बारे में हालांकि तब तक लोगों ने ज्यादा सुना भी नहीं था। यह पड़ताल 40 से ज्यादा चिकित्सकों, सीडीसी कर्मचारियों, स्वास्थ्य विशेषज्ञों और उद्योग के बारे में जानकारी रखने वालों के साथ ही आंतरिक दस्तावेजों, अनुबंधों, संदेशों और ई-मेल पर आधारित है। इस मामले और लेन-देन के बारे में जानकारी रखने वाले दो सूत्रों के मुताबिक शंघाई की कंपनियोंöजीनियो डिएक्स बॉयोटेक, हुर्रसई बॉयोटेक्नोलॉजी और बॉयोजर्म मेडिकल टेक्नोलॉजी ने चीन सीडीसी को सूचना और वितरण अधिकार के लिए भुगतान किया। सूत्रों ने कहा कि कीमत प्रत्येक के लिए 10 लाख आरएमबी (1,46,600 डॉलर) थी। यह स्पष्ट नहीं है कि क्या रकम खास व्यक्तियों के पास गई। इस बीच सीडीसी और उसकी पितृ एजेंसी नेशनल हेल्थ कमीशन ने अन्य वैज्ञानिकों और संगठनों को अपने घरेलू किटों से विषाणु की जांच करने से रोकने का प्रयास किया। उन्होंने मरीजों के नमूनों को नियंत्रण में ले लिया और कोरोना वायरस से मामले की पुष्टि के लिए जांच के पैमानों को और ज्यादा जटिल बना दिया। अन्य गलतियों और देरी से जांच की समस्याओं ने विषाणु को वुहान में बेरोकटोक अपनी जड़ें जमाने और दुनियाभर में प्रसार का मौका दिया। काउंसिल ऑन फॉरेन रिलेशंस में वैश्विक स्वास्थ्य के लिए सीनियर फैलो यान झोंग हुआंक ने कहाöक्योंकि आपके पास जांच किट उपलब्ध कराने वाली सिर्फ तीन कंपनियां थीं, इससे जांच की क्षमता बेहद सीमित हो गई। उन्होंने कहाöयह एक प्रमुख समस्या थी जिससे मामलों और मौतों की संख्या में तेजी से इजाफा हुआ। चीन के विदेश मंत्रालय और चीन की शीर्ष स्वास्थ्य एजेंसी ‘नेशनल हेल्थ कमीशन’ ने इस मामले में प्रतिक्रिया के अनुरोध पर कोई जवाब नहीं दिया। अब इसमें कोई संदेह नहीं रह गया कि कोरोना वायरस के विश्वभर में फैलने के पीछे चीन की साजिश और भ्रष्टाचार था।
अमेरिका की सुप्रीम कोर्ट ने दी भारतीय मूल के लोगों को राहत
अमेरिकी कोर्ट ने नाबालिग अवस्था में बिना वैध दस्तावेजों के देश में दाखिल हुए अप्रवासियों को निर्वासन से बचाने के लिए बराक ओबामा के दौर में लागू योजना को पूर्ण रूप से बहाल करने का आदेश दिया। ट्रंप प्रशासन के फैसले को कोर्ट ने पलट दिया है। कोर्ट के इस फैसले से बड़ी संख्या में भारतीय प्रवासियों को लाभ होगा। गौरतलब है कि डोनाल्ड ट्रंप ने 2017 में बाल्यकाल में आए लोगों के खिलाफ कार्रवाई स्थगित करने की योजना (डीएसीए) को खत्म करने की कोशिश की थी। लेकिन अमेरिका की सुप्रीम कोर्ट ने इस कोशिश को इस साल जून में बाधित कर दिया था। कोर्ट ने शुक्रवार को आंतरिक सुरक्षा विभाग को डीएसीए लाभार्थियों पर कार्रवाई स्थगन की अवधि दो साल और बढ़ाने और सोमवार से नए आवेदन स्वीकार करने के निर्देश दिए। इसका मतलब है कि सितम्बर 2017 के बाद पहली बार वह लोग नए सिरे से आवेदन कर सकेंगे जो पहले इसके लिए पात्र नहीं थे। यह योजना उन अवैध अप्रवासियों को निर्वासन से सुरक्षा मुहैया कराती है जो अमेरिका में बच्चे के तौर पर दाखिल हुए थे। जस्टिस गर्टोफिस ने अपने आदेश में लिखाöअदालत मानती है कि यह अतिरिक्त राहत तर्कसंगत है। डीएसीए कार्यक्रम के तहत करीब 6,40,000 लोग रजिस्टर्ड हैं। एक रिपोर्ट के मुताबिक अमेरिका में कम से कम 6,30,000 भारतीय बिना दस्तावेजों के अमेरिका में रह रहे हैं। यह संख्या वर्ष 2010 के मुकाबले 72 प्रतिशत अधिक है। ट्रंप प्रशासन इस फैसले के खिलाफ संघीय अदालत में अपील दाखिल कर सकता है या सुप्रीम कोर्ट कोर्ट में याचिका दायर कर सकता है या सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर अस्थायी राहत का अनुरोध कर सकता है। प्रतिनिधि सभा की स्पीकर नैंसी पेलोसी ने कहा कि अदालत ने ओबामा कार्यकाल की योजना को बरकरार रखा है जो अमेरिकी लोगों की इच्छा का सम्मान है।
-अनिल नरेन्द्र
Tuesday, 8 December 2020
तुर्की की कश्मीर में सीरियाई लड़ाकों को भेजने की योजना
तुर्की के राष्ट्रपति रजब तैयब एर्दोगन हमेशा से ही पाकिस्तान का कई मुद्दों पर समर्थन करते रहे हैं। इसी बीच उन्हें लेकर एक नया खुलासा हुआ है। यह खुलासा ग्रीस के एक जाने-माने पत्रकार ने अपनी रिपोर्ट में किया है। दरअसल ग्रीस के पत्रकार एंड्रियास माउंटजौरौली ने अपनी रिपोर्ट में दावा किया है कि एर्दोगन पाकिस्तान की सहायता के लिए कश्मीर में सीरिया के विद्रोही आतंकियों को भेजने की योजना बना रहे हैं। इसके लिए तुर्की के अधिकारियों ने कई आतंकी गुटों से बात की है। ग्रीस की न्यूज वेबसाइट पेंटापोस्टागमा पर प्रकाशित अपने लेख में एंड्रियास माउंटजौरौली ने लिखा है कि सीरियन नेशनल आर्मी मिलिशिया के सुलेमान शाह ब्रिगेड्स के कमांडर मोहम्मद अबू इम्सा ने कुछ दिन पहले ही अपने साथी मिलिशिया सदस्यों से कहा है कि तुर्की यहां से कश्मीर में अपने कुछ यूनिट्स को तैनात करना चाहता है। सुलेमान ब्रिगेड्स को तुर्की का खुला समर्थन हासिल है, जिसका उत्तरी सीरिया के अफरीन जिले पर पूरा नियंत्रण है। सुलेमान ब्रिगेड के कमांडर अबू इम्सा ने यह भी कहा कि तुर्की के अधिकारी सीरिया के अन्य हथियारबंद गिरोहों से इस बारे में बात कर रहे हैं। वे गिरोह के कमांडरों से उन लोगों के नाम बताने को कह रहे हैं जो कश्मीर जाना चाहते हैं। अबू इम्सा से कहा कि कश्मीर जाने वाले आतंकियों को तुर्की की तरफ से 2000 डॉलर की राशि भी दी जाएगी। कमांडर ने अपने गिरोह से कहा कि कश्मीर भी उतना ही पहाड़ी है जितना आर्मीनिया का नागोर्नो काराबाख है। तुर्की ने आर्मीनिया के साथ लड़ाई में खुलकर अजरबैजान का साथ दिया था। इतना ही नहीं, तुर्की ने सीरिया में अपने सहयोगी आतंकी संगठन के लड़ाकों को काराबाख में लड़ाई के लिए तैनात भी किया था। खुद फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने इसकी पुष्टि की थी। किलिंग मशीन कहे जाने वाले इन आतंकवादियों को मुस्लिम देश अजरबैजान के पक्ष में ईसाई देश आर्मीनिया से युद्ध के लिए काफी पैसा भी दिया गया था। रिपोर्ट में लिखा है कि तुर्की के राष्ट्रपति एर्दोगन मुस्लिम दुनिया का सबसे बड़ा नेता बनने की कोशिश में हैं। सऊदी अरब के इस्लामिक वर्ल्ड पर प्रभुत्व को चुनौती देने के लिए राष्ट्रपति एर्दोगन ऐसे कदम उठा रहे हैं। पत्रकार ने यहां तक लिखा है कि एर्दोगन कश्मीर मुद्दे पर भारत को धमकी भी दे रहे हैं। उन्होंने लिखा कि तुर्की लंबे समय से भूमध्य सागर क्षेत्र में ग्रीस, साइप्रस और मिस्र के खिलाफ आक्रमक तैयारियों में जुटा है। ग्रीस के पत्रकार ने दावा किया है कि तुर्की और पाकिस्तान आपस में रक्षा सहयोग को बढ़ाकर दूसरे देशों की जमीन लूटना चाहते हैं। हाल में ही शील्ड ऑफ मेडेटेरियन युद्धाभ्यास के दौरान पाक लड़ाकू विमान तुर्की पहुंचे थे। राष्ट्रपति एर्दोगन पाकिस्तान की सहायता से ग्रीस की जमीन पर कब्जा करने का प्रयास करना चाहते हैं। इसलिए ही वह कश्मीर के मुद्दे पर पाकिस्तान की सहायता के लिए आतंकी गुटों को भेजने की योजना बना रहे हैं।
फ्रांस की 76 मस्जिदों की जांच शुरू
पेरिस में दो आतंकी हमलों के बाद फ्रांस ने मस्जिदों की सख्त जांच शुरू कर दी है। यहां होम मिनिस्टर ने साफ कर दिया है कि अगर मस्जिदों में कुछ गलत पाया गया तो उन्हें बंद कर दिया जाएगा। फ्रांस सरकार के सूत्रों का दावा है कि देश में कुछ जगहों से कट्टरता और अलगाववाद को बढ़ावा दिया जा रहा है और इनके खिलाफ कड़े कदम उठाए जाएंगे। फ्रांस में अक्तूबर में एक हिस्ट्री टीचर का सिर काटकर उसे मौत के घाट उतार दिया गया था। इसके बाद नीस शहर में एक कट्टरपंथी ने तीन लोगों की हत्या कर दी थी। फ्रांस के होम मिनिस्टर गेराल्ड डेरमैनियन ने गुरुवार को कहा है कि कुछ मस्जिदों को बंद किया जा सकता है, क्योंकि यह आतंकवाद को बढ़ावा दे रही हैं। सरकार की जांच के दायरे में 76 मस्जिदें हैं। इससे देश में अलगाववाद बढ़ रहा है। पेरिस के एक उपनगरीय इलाके में मस्जिद को पहले ही छह महीने के लिए बंद किया जा चुका है। अक्तूबर में हिस्ट्री टीचर सैमुअल पैटी की हत्या करने वाला आतंकी इसी मस्जिद से जुड़ा था। वो मूल रूप से चेचेन्या का रहने वाला था और गैर-कानूनी तौर पर फ्रांस में रह रहा था। यूरोप में जितने मुस्लिम देश हैं, उनमें से सबसे ज्यादा मुस्लिम फ्रांस में ही रहते हैं। हिस्ट्री टीचर की हत्या के बाद राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने साफ कर दिया था कि इस्लामिक कट्टरता को जड़ से खत्म करना जरूरी है और उनकी सरकार इसके लिए हर कदम उठाएगी। हिस्ट्री टीचर की हत्या के दो हफ्ते बाद नीस शहर में तीन लोगों की चाकू से गला रेत कर हत्या कर दी गई थी। इसके बाद सरकार और फ्रांस के लोगों का सब्र का बांध टूट गया। बता दें कि फ्रांस में बड़ी तादाद में इस्लामिक स्टेट के आतंकी घुस चुके हैं और अभी कई और हमलों की संभावना बनी हुई है। फ्रांस सहित यूरोप के कई और देश आतंकियों के निशाने पर हैं। दरअसल पूरा यूरोप अब इन आतंकियों को रोकने में जुट गया है। चाहे वे मस्जिदें हों चाहे वह फ्लाइटों से नए आतंकियों के घुसने का प्रयास हो। यूरोपीय यूनियन के देशों में पाकिस्तान इंटरनेशनल एयरलाइंस पर लगा बैन हटाया नहीं जाएगा। यूनियन ने साफ कर दिया है कि पीआईए छह महीने गुजर जाने के बावजूद अपने सेफ्टी स्टैंडर्स प्रोटोकॉल में कई सुधार नहीं कर पाई है। लिहाजा जुलाई में लगाया गया प्रतिबंध जारी रहेगा। पाकिस्तान सरकार ने इस फैसले पर अफसोस जाहिर किया है। यह मामला जून में शुरू हुआ तब पाकिस्तान के एविएशन मिनिस्टर गुलाम सरवर ने संसद में खुलासा किया था कि देश के 40 प्रतिशत पायलट फर्जी लाइसेंस और डिग्री लेकर नौकरी कर रहे हैं। जियो न्यूज के मुताबिक पीआईए की दिक्कतें खत्म नहीं हो पा रही हैं। ज्यादातर देशों ने पीआईए की फ्लाइट्स पर बैन लगा दिया। इनमें मुस्लिम देश, यूरोपीय यूनियन और अमेरिका शामिल हैं। फर्जी लाइसेंस तो बहाना है असल डर इसका है कि इन उड़ानों में आतंकी आते हैं और तमाम देशों में आतंकी हमले बढ़ते हैं।
जय बालाजी महाराज, जय श्रीराम
राजस्थान के दौसा-करौली जिले में विश्व प्रसिद्ध श्री मेहंदीपुर बालाजी मंदिर का जीर्णोद्धार किया जा रहा है। मंदिर ट्रस्ट ने लॉकडाउन के बाद यह काम शुरू किया था। मंदिर को विशालकाय रूप दिया गया है। अंदर 60-70 फुट के स्थान पर भक्तों की 15-20 कतारों की व्यवस्था हो सकेगी। 75 फुट ऊंचा शिखर ऐसा बना है कि दूर से दिखाई दे। पिछले हिस्से में श्री प्रेतराज सरकार के संकरे रास्ते को 20 फुट च़ौड़ा किया गया है। मेहंदीपुर में समस्त हनुमान भक्त सेवाधाम ट्रस्ट के श्री हनुमान सेवा सदन और अन्य संस्थाओं द्वारा सेवा कार्य किए जाते हैं। मंदिर ट्रस्ट तो लगातार सेवा कार्य करता रहा है। समस्त हनुमान भक्त सेवाधाम ट्रस्ट के अध्यक्ष संजय गर्ग के मुताबिक मुख्य मंदिर के जीर्णोद्धार के अलावा सड़कों, सीवर आदि का काम भी हुआ है। मंदिर के महंत श्री किशोरपुरी जी महाराज ने पिछले साल मंदिर के सामने के हिस्से में श्रीराम मंदिर में भी निर्माण कार्य कराया था। इन कार्यों से श्रद्धालुओं को दर्शन और आवागमन में सुविधा होगी। श्री बालाजी मंदिर में गत 24 नवम्बर को फिर से दर्शन शुरू हो गए हैं। राज्य में अभी कई पाबंदियां हैं। इस वजह से आम दिनों के 10 हजार भक्तों की तुलना में अभी 700-1000 श्रद्धालु ही आ रहे हैं। मेहंदीपुर का एक हिस्सा दौसा और करौली जिले में आता है। मान्यता है कि यहां हनुमान जी के बालरूप, उनके साथ प्रेतराज सरकार और कोतवाल कप्तान भैरव का स्थल करीब 1000 साल पुराना है। यह भी कहा जाता है कि एक महंत गोसाई जी को अद्भुत सपना हुआ। वह उठकर चल दिए। उन्हें आभास हुआ कि साथ में असंख्य जलते हुए दीपक, घोड़ों की आवाजें, सेना भी चल रही थी। एक स्थान पर पहुंचकर सब रुक गए, सेना ने वहां दंडवत प्रणाम किया। फिर सब अदृश्य। गोसाई जी घर आकर सो गए। फिर स्वप्न हुआ, तीन मूर्तियां दिखीं, आवाज की उठो मेरी सेवा करो। थोड़ी देर बाद हनुमान जी के दर्शन हुए। गोसाई जी अगले दिन उसी स्थान पर पहुंचे। घंटे-घड़ियाल, नगाड़ों आदि की आवाजें आ रही थीं। दिखाई कुछ नहीं दे रहा था। गोसाई जी ने वहीं दो पहाड़ों के बीच उस घाटी में पूजा शुरू कर दी। तभी से पूजा हो रही है। घाटी में है, इसलिए इसे घाट मेहंदीपुर बालाजी भी कहा जाता है। हनुमान जी कि बालरूपी मूर्ति यहां बनाई नहीं गई है, बल्कि पहाड़ में स्वयं प्रकट है। साथ में प्रेतराज सरकार और भैरव के स्थान हैं। भैरव बाबा को बालाजी की सेना का कप्तान माना जाता है। प्रेतराज सरकार भूत-प्रेतों, ऊपरी हवाओं को यहां दंड देते हैं। उनकी यहां कि यह धारणा विश्व में अनूठी और संभवत अद्वितीय है। तीन देव की उपस्थिति की धारणा को 21वीं सदी में मानने वाले भी करोड़ों में हैं। यहां नियमित पूजा क्रम करते हुए महंत की 12 पीढ़ियां हो चुकी हैं। लेकिन अब से पहले के महंत गणेशपुरी जी महाराज के समय इस स्थल और मंदिर की ख्याति देश-विदेश में फैली। वर्तमान महंत किशोरपुरी जी 1970 के समय अच्छे रूप में बने मंदिर को अब किशोरपुरी जी और ट्रस्ट ने नया रूप दे दिया है, जो आज की आवश्यकताओं के अनुरूप है। जय बालाजी महाराज।
-अनिल नरेन्द्र
Sunday, 6 December 2020
गांवों में तेजी से बढ़ता कोरोना का प्रकोप
देश में अब हर हफ्ते औसतन तीन लाख के लगभग नए कोरोना केस आ रहे हैं। यानि औसतन हर दिन 41000 से ऊपर केस। यह भले ही बहुत ज्यादा नहीं लगते, लेकिन हकीकत यह है कि देश के कुल 718 जिलों में से 284 जिलों में कोरोना वायरस का प्रकोप बहुत तेजी से फैल रहा है। इस आकलन में 633 जिलों को ही शामिल किया जा सका क्योंकि बाकी जिलों में टाइम सीरीज डेटा उपलब्ध नहीं थे। आंकड़े बताते हैं कि देश के ग्रामीण इलाकों में नए कोरोना केस तेजी से बढ़ रहे हैं जबकि शहरी इलाकों में कोविड-19 महामारी से थोड़ी-थोड़ी राहत मिलती दिख रही है। इन 284 जिलों के 55.3 प्रतिशत यानि 157 जिले ग्रामीण इलाकों में हैं। वहीं 21.1 प्रतिशत यानि 60 जिले अर्द्धशहरी जबकि 16.9 प्रतिशत यानि 48 जिले शहरी इलाकों के हैं। ध्यान रहे कि सितम्बर में हर दिन औसतन 90 हजार नए केस आ रहे हैं। यानि जिन 284 जिलों में नए कोरोना मामलों की बाढ़ आ रही है, उनमें 80 प्रतिशत से ज्यादा ग्रामीण और अर्द्धशहरी क्षेत्रों के हैं, जहां लचर स्वास्थ्य व्यवस्था है। शहरी क्षेत्रों से थोड़ी राहत की खबर आ रही है, जहां शुरुआत में कोरोना ने अपनी जड़ें जमा ली थीं। अप्रैल के आखिरी सप्ताह में 77 प्रतिशत कोरोना केस शहरी क्षेत्रों में ही थे जबकि सिर्फ 10 प्रतिशत केस ही ग्रामीण इलाकों में पाए गए थे। लेकिन 29 नवम्बर को कोरोना मामलों में शहरी क्षेत्र की हिस्सेदारी घटकर 52 प्रतिशत रह गई। ग्रामीण क्षेत्रों की हिस्सेदारी बढ़कर 24 प्रतिशत जबकि अर्द्धशहरी क्षेत्रों में हिस्सेदारी 21 प्रतिशत हो गई। अगर ग्रामीण और अर्द्धशहरी इलाकों (जिलों) को मिला दिया जाए तो अप्रैल के मुकाबले नवम्बर में नए कोरोना मामलों की रफ्तार घटती दिखती है। लेकिन इसका प्रमुख कारण हर जिले के कुल मामलों और टेस्टिंग रेट में भारी अंतर है। कुछ जिलों में बहुत ज्यादा मामलों के कारण बाकी जिलों का औसत भी बढ़ गया है। नवम्बर के दौरान 19 जिलों में अब तक के कुल कोरोना मामलों में आधे अकेले नवम्बर में आए हैं। इनमें सिर्फ गुरुग्राम और फरीदाबाद शहरों, गंगानगर और हिसार अर्द्धशहरी जबकि 12 ग्रामीण जिले हैं। चिन्ता का विषय यह है कि अब कोरोना संक्रमण ग्रामीण इलाकों में भी तेजी से फैल रहा है जहां स्वास्थ्य व्यवस्था लचर है।
-अनिल नरेन्द्र
दिलजीत दोसांझ और कंगना रनौत पर छिड़ी ट्विटर वॉर
किसान आंदोलन से जुड़े बीसीसी के एक वीडियो पर बॉलीवुड अभिनेता, सिंगर दिलजीत दोसांझ और अभिनेत्री कंगना रनौत के बीच तीखी बहसबाजी हो गई है। यह वीडियो बुजुर्ग महिला किसान महिंदर कौर से जुड़ा है, जिनकी तस्वीरें और वीडियो सोशल मीडिया में वायरल हुई थीं। इन तस्वीरों और वीडियो में 88 साल की महिंदर झुकी हुई कमर के बावजूद झंडा लिए पंजाब के किसानों के साथ केंद्र सरकार के कृषि कानूनों के खिलाफ मार्च करती नजर आ रही हैं। महिंदर कौर की इस तस्वीर के बाद सोशल मीडिया पर उनकी तुलना शाहीन बाग प्रदर्शन की अगुवाई करने वाली बिलकिस दादी से की जाने लगी थी। हालांकि इस बीच सोशल मीडिया पर कुछ लोग महिंदर कौर को शाहीन बाग की बिलकिस दादी भी बताने लगे। इसी बीच अभिनेत्री कंगना रनौत ने बिलकिस और महिंदर कौर दोनों की तस्वीरें एक साथ ट्वीट करते हुए तंज कसा था, कंगना ने लिखा थाöहां, हां। यह वही दादी हैं जिन्हें टाइम मैगजीन की 100 सबसे प्रभावशाली व्यक्तियों की लिस्ट में शामिल किया गया था... और यह 100 रुपए में उपलब्ध हैं। बीसीसी ने इस पूरे घटनाक्रम के बाद महिंदर कौर से बातचीत की थी और कंगना के ट्वीट के बारे में उनकी प्रतिक्रिया जानना चाही थी। बीबीसी से बातचीत में महिंदर कौर ने कंगना रनौत की टिप्पणी पर सख्त एतराज जताया था। उन्होंने कहा था कि कंगना मेरे साथ आकर कुछ देर खेत में काम करें। उन्हें पता तो चले कि किसानी का काम कितना मुश्किल है। बीबीसी का यह वीडियो सोशल मीडिया में खूब चर्चित हुआ। पंजाब से ताल्लुक रखने वाले दिलजीत दोसांझ ने भी इसे ट्विटर पर शेयर किया और कंगना को टैग करते हुए पूछा, यह लीजिए टीम कंगना। सुबूत के साथ सुन लीजिए। इंसान को इतना भी अंधा नहीं होना चाहिए, कुछ भी बोले जा रही हैं। इसके जवाब में कंगना ने लिखाöओ करन जौहर के पालतू, जो दादी शाहीन बाग में अपनी सिटीजनशिप के लिए प्रोटेस्ट कर रही थीं वो बिलकिस बानो दादी जी किसानों के लिए भी प्रोटेस्ट करती हुई दिखीं। महिंदर कौर जी को मैं जानती भी नहीं। क्या ड्रामा चलाया है तुम लोगों ने। इसे तुरन्त बंद करो। फिर दिलजीत ने ट्वीट कियाöतूने जितने लोगों के साथ फिल्म की, तू उनकी सबकी पालतू है? फिर तो लिस्ट लंबी हो जाएगी मालिकों की...? यह बॉलीवुड वाले नहीं, पंजाब वाले हैं। झूठ बोलकर लोगों को भड़काना, इमोशंस से खेलना तो आप अच्छी तरह से जानती हो। इस पर कंगना ने जवाब दियाöमैंने सिर्फ शाहीन बाग वाली दादी पर कमेंट किया था। अगर किसी ने मुझे गलत साबित किया तो मैं माफी मांग लूंगी। कंगना और दिलजीत की बहस यहीं नहीं रुकी बल्कि और तेज हो गई है। दोनों ने आपत्तिजनक लहजे में एक-दूसरे को भला-बुरा कहा। महिंदर कौर पंजाब के बठिंडा के एक गांव की रहने वाली हैं। उन्होंने अपनी पूरी जिंदगी खेतीबाड़ी में लगा दी और किसान होने के नाते प्रदर्शन में हिस्सा ले रही हैं। उन्होंने पूछाöकंगना कौन है? वो मुझे क्यों बदनाम कर रही हैं? मैं कोई दिहाड़ी पर मजदूरी नहीं करती हूं। मैं खेतीबाड़ी करती हूं। अभी भी करती हूं। मेरा बेटा पानी लगाने जाता है, साथ में मैं भी जाती हूं। कंगना खुद एक दिन दिहाड़ी पर जाएं। हमारे साथ धरने पर बैठें। शाम को हम उन्हें हजार रुपए दे देंगे।
चले गए जिंदादिल मसाला किंग महाशय धर्मपाल
महाशय धर्मपाल गुलाटी भारत सहित दुनियाभर में लोगों के भोजन को मसालेदार और चटपटा बनाने के लिए जाने जाते थे, लोग उन्हें मसाला किंग भी कहते थे। मसालों के बादशाह एमडीएच ग्रुप के संस्थापक और मालिक महाशय धर्मपाल गुलाटी का 97 साल की उम्र में निधन हो गया। कोरोना से ठीक होने के बाद उन्हें हार्ट अटैक आया जिससे उनका निधन हो गया। पिछले साल ही उन्हें पद्मभूषण से सम्मानित किया गया था। महाशय धर्मपाल गुलाटी 22 दिन पहले कोरोना संक्रमण की वजह से माता चानन देवी अस्पताल में एडमिट हुए थे। कुछ दिन बाद उनकी रिपोर्ट नेगेटिव आई और अस्पताल से डिस्चार्ज कर दिया गया। लेकिन फिर तबीयत खराब होने की वजह से दोबारा एडमिट किया गया। उन्हें हार्ट अटैक आया और चल बसे जिंदादिल दिल्ली वाले। यह गौरव की बात है कि एमडीएच मसाला कंपनी अपने गौरवशाली 101 साल पूरे कर चुकी है। एमडीएच ने स्थापना काल से ही शुद्धता व गुणवत्ता को लेकर एक अलग पहचान बनाई और भारत के साथ-साथ विश्व के अन्य देशों में भी एमडीएच ब्रांड मसाले लोगों की पहली पसंद बने हुए हैं। आज से 101 साल पहले ही एमडीएच कंपनी सियालकोट (जो आज पाकिस्तान में है) से काम कर रही थी। एमडीएच मसालों की शुद्धता एवं गुणवत्ता ही एमडीएच की पहचान है। महाशय जी का जन्म 27 मार्च 1923 को सियालकोट के एक सम्मानित परिवार में हुआ था। महाशय जी ने अपनी प्राथमिक शिक्षा आर्य समाज स्कूल में प्राप्त की तथा कक्षा पांच की पढ़ाई बीच में ही छोड़ने के बाद अपने पुश्तैनी मसालों के कार्य में जुट गए। 1947 में भारत के विभाजन के कारण अपना सब कुछ पीछे छोड़कर और 1500 रुपए की मामूली राशि के साथ अपने परिवार सहित भारत आ गए। यहां आकर दिल्ली के करोल बाग में स्थापित हुए। महाशय जी ने 650 रुपए का एक तांगा खरीदा और कुछ दिन चलाया जिससे अपने परिवार की जीविका चलाई। किन्तु शीघ्र ही कुछ बड़ा करने की इच्छा मन में जागी और पुन अपने पुश्तैनी व्यापार मसालों का कार्य आरंभ किया। मजबूत इच्छाशक्ति और कड़ी मेहनत के बल पर एमडीएच कंपनी को शिखर तक ले जाने का संकल्प पूरा कर दिखाया और एमडीएच मसालों की शुद्धता के क्षेत्र में एक विशेष पहचान बनाई। महाशय जी अपने जीवन में छह सिद्धांतों का पालन करते रहे, ईमानदार बनना, मेहनत करना, मीठा बोलना, कृपा परमपिता परमात्मा की, आशीर्वाद माता-पिता का और प्यार संसार का। उनके शुभ प्रयास से आज 70 से अधिक संस्थाएं जैसे विद्यालय, गौशालाएं, अस्पताल, अनाथालय, वृद्ध आश्रम, विधवाओं एवं निर्धन कन्याओं के विवाह, आर्य समाज, आदिवासी क्षेत्रों में बोर्डिंग स्कूल इत्यादि-इत्यादि बनाना। यह सब धार्मिक व सामाजिक कार्य महाशय धर्मपाल चैरिटेबल ट्रस्ट और महाशय चुन्नी लाल चैरिटेबल ट्रस्ट के अंतर्गत चलते हैं। ऐसे महान कर्मयोगी को हम अपनी श्रद्धांजलि पेश करते हैं। एक जिंदादिल दिल्ली वाला हमें छोड़कर चला गया।
Thursday, 3 December 2020
प्रदर्शनकारी किसान बोले, हम निर्णायक जंग लड़ने आए हैं
नए कृषि कानूनों के मसले पर किसानों के आंदोलन का दायरा फैलने के साथ अब सरकार के सामने यह चुनौती बड़ी हो रही है कि अब वह इस मामले को कैसे सुलझाए? 7 दिनों से राजधानी की सीमा पर डटे पंजाब, हरियाणा समेत कई राज्यों के किसानों ने लंबी लड़ाई का ऐलान किया है। सिंघु बार्डर पर पंचायत के बाद किसान संगठनों ने एक स्वर में कहा कि वह यहां निर्णायक लड़ाई लड़ने के लिए आए हैं और जब तक हमारी मांगे नहीं मान ली जाती तब तक यह लड़ाई जारी रहेगी। सरकार ने मंगलवार को नए कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलन कर रहे किसानों की मांगों पर गौर करने के लिए समिति गठित करने की पेशकश की जिसे आंदोलनरत किसानों ने ठुकरा दिया। किसान संगठन तीनों नए कृषि कानूनों को पूरी तरह रद्द करने पर अड़े हुए हैं। किसानों ने कहा, हम चाहते हैं कि प्रधानमंत्री हमारी बात सुनें। हम अपनी मांगों से समझौता नहीं करेंगे। यदि सत्तारूढ़ पार्टी हमारी चिंता पर विचार नहीं करती है तो उसे भारी कीमत चुकानी होगी। किसान नेता गुरनाम सिंह ने कहा कि आंदोलन को दबाने के लिए अब तक प्रदर्शनकारियों के खिलाफ लगभग 31 मामले दर्ज किए जा चुके हैं। कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों के सवाल कितने जायज हैं और सरकारी दावे कितने खोखले, किसान नेताआंs ने रविवार को प्रेस कांप्रेंस में एक-एक कर सरकार के पूरे एजेंडे को बेपरदा कर दिया है। रही सही कसर विपक्ष और खुद सरकार ने अपनी मंशा जगजाहिर कर पूरी कर दी है। मसलन, नाराज किसानों ने सवाल किया कि सरकार बताए कि नए कृषि कानूनों को उसे क्यों लाना पड़ा? बताए कि किस किसान संगठन और किन किसानों ने सरकार से इन कृषि कानूनों (तथाकथित सुधारों) को लाने की मांग की थी? सरकार के इन कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलन के बीच दिल्ली मार्च करने वाले किसान समूह के प्रतिनिधियों ने कहा है कि सरकार केवल कारपोरेट के कल्याण में रुचि रखती है, यही कारण है कि इस तरह के काले कानून लाए जा रहे हैं। अगर ऐसा नहीं है तो सरकार किसानों के सवालों से क्यों भाग रही है? गृह मंत्री अमित शाह के प्रस्ताव को खारिज करने के बाद संवाददाता सम्मेलन में किसान नेताओं ने कहा, हम सरकार से पूछते हैं कि किस किसान संगठन और किन किसानों ने सरकार से अपना भला करने की मांग की थी, दूसरा सरकार बताए कि कौन से बिचौलिए को निकालने की बात कर रहे हैं? बिचौलिए को डिफाइन करे सरकार। कहा बिचौलिए सरकार के रक्षा सौदों में होते है, मंडी में आढ़ती केवल सर्विस प्रोवाइडर हैं। उनका कहना है कि पूरे शहर में पुलिस बल दहशत और भय का माहौल बना रहे हैं। किसानों पर लाठियां बरसा रहे हैं, यह कहां का इंसाफ है? पंजाब से आए आंदोलनरत किसान जत्थे में शामिल एक किसान की मौत हो गई। लुधियाना के गज्जन सिंह (55) की मौत किसके सिर पर है? संयुक्त किसान संघर्ष समिति के साथ अब केरल, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश और राजस्थान सहित दूसरे प्र्रदेशों के किसान लामबंद हो रहे हैं। कृषि कानूनों के खिलाफ लामबंद हुए किसानों को हरियाणा की खाप पंचायतों के बाद दिल्ली की टैक्सी यूनियन ने भी समर्थन देने का दावा किया है। किसानों के इस आंदोलन में धीरे-धीरे दूसरे संगठन भी एक जुट होने लगे हैं, ताकि केन्द्र सरकार पर कृषि कानूनों को वापस लेने का दबाव बनाया जा सके। कृषि पर आश्रित भारी आबादी और उसके राजनीतिक फलितार्थ के मद्देनजर इस क्षेत्र की एहमियत को नकारा नहीं जा सकता। हम तो यह सुझाव देंगे कि सरकार किसान संगठनों को आश्वासन दे कि वह इन कानूनों को फिलहाल स्थगित करने को तैयार है और किसानों की जायज मांगों को कानून में शामिल करें।
एशिया में सबसे ज्यादा रिश्वत की दर भारत में है
भ्रष्टाचार पर नजर रखने वाली संस्था ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल की एक नई रिपोर्ट के अनुसार एशिया में सबसे ज्यादा रिश्वत दर भारत में है और सार्वजनिक सेवाओं का उपयोग करने के लिए व्यक्तिगत संपर्कें का उपयोग करने वाले लोगों की संख्या भी यहीं सबसे अधिक है। ग्लोबल करप्शन बैरोमीटर (जीटीबी) एशिया के अनुसार रिश्वत देने वालों में से लगभग 50 प्रतिशत से ऐसा करने को कहा गया था, वहीं निजी संपर्कों का उपयोग करने वालें में से 32 प्रतिशत का कहना था कि रिश्वत नहीं देने पर उन्हें सेवा प्राप्त नहीं होगी। यह रिपोर्ट उस सर्वेक्षण पर आधारित है जो इस वर्ष भारत में 17 जून से 17 जुलाई के बीच किया गया था और इसमें 2,000 लोगों को शामिल किया गया था। रिपोर्ट में कहा गया है कि क्षेत्र में रिश्वत देने की उच्चतम दर (39 प्रतिशत) के साथ-साथ भारत में उन लोगों की संख्या भी सबसे अधिक (46 प्रतिशत) है, जो लोक सेवाओं का उपभोग करने के लिए उनकी निजी संपर्कों का उपयोग करते हैं। रिपोर्ट में कहा गया है, राष्ट्रीय और राज्य सरकारों को लोक सेवाओं के लिए प्रशासनिक प्रक्रियाओं में सुधार लाने, रिश्वत खोरी और भाई-भतीजावाद पर काबू करने के लिए निवारक उपायों को लागू करने तथा आवश्यक लोक सेवाओं को जल्दी व प्रभावी ढंग से पहुंचाने के लिए लोगों के अनुकूल ऑनलाइन प्लेटफार्मों में निवेश करने की आवश्यकता है। इसमें कहा गया है कि भ्रष्टाचार पर काबू के लिए ऐसे मामलों की जानकारी देना महत्वपूर्ण है लेकिन भारत में ज्यादातर नागरिकों (63 प्रतिशत) का मानना है कि अगर वे भ्रष्टाचार की रिपोर्ट करेंगे तो उन्हें बदले की कार्रवाई का तो अलग सामना करना पड़ेगा पर साथ-साथ वह काम कभी नहीं होगा। रिपोर्ट के अनुसार भारत, मलेशिया, थाइलैंड, श्रीलंका और इंडोनेशिया सहित कई देशों में यौन उत्पीड़न की दर भी अधिक है और खासकर अफसर पर भ्रष्टाचार पर काबू के लिए काफी कुछ करने की जरूरत है। भारत में 89 प्रतिशत लोगों को लगता है कि सरकारी भ्रष्टाचार एक बड़ी समस्या है, 18 प्रतिशत प्रतिभागियों को वोट के बदले रिश्वत की पेशकश की गई। सर्वेक्षण में शामिल लोगों में से लगभग 63 प्रतिशत लोगों का मानना है कि भ्रष्टाचार से निपटने के लिए सरकार अच्छा काम कर रही है, वहीं 73 प्रतिशत लोगें ने कहा कि भ्रष्टाचार विरोधी एजेंसियां भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई में अच्छा काम कर रही हैं। यह अध्ययन 17 देशों में किया गया और इसमें कुल मिलाकर करीब 20,000 नागरिकों को शामिल किया गया। रिपोर्ट के अनुसार भारत के बाद दूसरा स्थान कंबोडिया का है, जहां यह दर 37 प्रतिशत है। इसके बाद इंडोनेशिया (30 प्रतिशत) का स्थान है। मालदीव और जापान सबसे कम रिश्वत पर (2 प्रतिशत) हैं जबकि दक्षिण कोfिरया में यह दर 10 प्रतिशत और नेपाल में 12 प्रतिशत है। पहले के मुकाबले भारत में रिश्वत खोरी बढ़ती जा रही है। छोटे-छोटे प्रशासनिक काम से लेकर बड़े-बड़े ठेके सब रिश्वत के बल पर चलते हैं। पूरा सिस्टम ही करप्ट हो गया है। मारता तो छोटा तबका है जिसे छोटे-छोटे काम के लिए भी रिश्वत देनी पड़ती है। हमें उम्मीद थी कि रिश्वत का यह सिलसिला कम होगा पर यह तो पैर पसारता ही जा रहा है।
क्या ब्लादिमीर पुतिन कैंसर से पीड़ित हैं?
अगर मीडिया रिपोर्टों पर यकीन किया जाए तो कैंसर की वजह से पुतिन राष्ट्रपति पद छोड़ने पर मजबूर हो सकते हैं? रूस के राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन एक संविधान संशोधन के जरिए 2036 तक पद पर आसीन रहने के लिए योग्य हो गए थे। हालांकि एक राजनीतिक विश्लेषक ने उनके भविष्य के बारे में हैरत कर देने वाला दावा किया है। उनका कहना है कि पुतिन अगले साल की शुरुवात में राष्ट्रपति पद से इस्तीफा दे देंगे और वजह है उनका स्वास्थ्य। पुतिन के आलोचक वैरली सोलोवी ने दावा किया है कि राष्ट्रपति कैंसर से पीड़ित हैं। वैरली पहले ही दावा कर चुके हैं कि उन्हें पार्किसन्स डिसीज है। उन्होंने अब सूत्रों के हवालों से दावा किया है कि पुतिन का स्वास्थ्य खराब है। उन्होंने द सन को बताया कि पुतिन दो बीमारियों से जूझ रहे हैं। उन्हें साइको न्यूरोलॉजिकल परेशानी है और कैंसर भी। वैलरी ने कहा कि अगर किसी को सटीक जानकारी चाहिए तो वह डाक्टर नहीं हैं और नैतिक रूप से इस बारे में बताने का अधिकार उन्हें नहीं है। वैलरी पहले भी दावा कर चुके हैं कि इस साल फरवरी में पुतिन की सर्जरी हुई थी। उन्हें सितम्बर में हिरासत में लिया गया था जब वह विपक्षी पार्टी के सदस्य सरगेई की गिरफ्तारी के विरोध में मार्च कर रहे थे। हम उम्मीद करते हैं कि यह खबर गलत हो और पुतिन की लंबी उम्र हो। आने वाले दिनों में यह स्थिति स्पष्ट हो सकती है।
-अनिल नरेन्द्र
Wednesday, 2 December 2020
क्या भाजपा तोड़ पाएगी ओवैसी का गढ़?
हैदराबाद के नगर निगम चुनाव में गृहमंत्री अमित शाह का रोड शो में उतरना ही यह बताने के लिए काफी है कि भाजपा इस चुनाव को कितनी गंभीरता से ले रही है। चुनाव लोकसभा का हो, विधानसभा के या निकाय स्तर के, भाजपा पूरी ताकत लगाती है। कश्मीर के बाद इसका सुबूत अब हैदराबाद में मिल रहा है। वहां ग्रेटर हैदराबाद नगर निकाय चुनाव हो रहे हैं। प्रचार के लिए भाजपा के केंद्रीय मंत्री अमित शाह, भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा, यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ, युवा मोर्चा के अध्यक्ष तेजस्वी सूर्या की चुनावी यात्रा से चुनावी माहौल गरम हो गया है। खासकर योगी और सूर्या के बोल और शाह को मिले रिस्पांस से भाजपा की उम्मीदें बढ़ी हैं, वहां विपक्षी अंदरूनी नाकेबंदी में लग गए हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि यह निगम चुनाव में राष्ट्रीय नेताओं को गली-गली घुमाकर भाजपा असदुद्दीन ओवैसी के गढ़ को कितना तोड़ पाएगी? हैदराबाद में जानकारों का कहना है कि ऐसी भीड़ और गर्माहट हाल के साल में कम देखने को मिली है। विधानसभा चुनाव से भी अधिक गर्माहट ग्रेटर हैदराबाद निगम चुनाव ने पैदा की है। हर गली, कूचे, चौराहे, दुकानों और दफ्तरों में भाजपा के इन नेताओं के प्रचार की चर्चा है। लेकिन एआईएमआईएम से जुड़े सूत्रों का कहना है कि ओवैसी के रुतबे और गढ़ पर कोई असर पड़ने वाला नहीं है। बता दें कि हैदराबाद निगम की 150 सीटों में से 60 सीटें पुराने शहर में हैं। पुराना शहर ओवैसी का गढ़ है। वहां की 60 में से 51 सीटें एआईएमआईएम के पास हैं। पुराने शहर की बाकी नौ और बाहर की 90 सीटों पर भाजपा इस बार काफी कुछ गेन करने की उम्मीद कर रही है। राज्य में सत्तारूढ़ टीआरएस भी मैदान में है। जानकार मानते हैं कि ध्रुवीकरण में जाते दिख रहे चुनाव में टीआरएस को कुछ और कांग्रेस को काफी नुकसान हो सकता है। हिन्दू वोट भाजपा की तरफ जा सकता है। मतदान से पहले रविवार को शाह के तीखे तेवर का जवाब असदुद्दीन ओवैसी ने भी जोरदार तरीके से दिया है। किसानों का भी मुद्दा उठाते हुए ओवैसी ने कहा है कि अमित शाह चुनाव के लिए हैदराबाद आ सकते हैं तो किसानों से बात करने क्यों नहीं जा सकते हैं? दुनिया की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी होने का दावा करने वाली भाजपा छोटे से निगम चुनाव को लेकर इतना फिक्रमंद आखिर क्यों है? क्या इसकी वजह हर चुनाव को गंभीरता से लेने की भाजपा की आदत है या कोई बड़ी रणनीति है? पिछले चुनाव में 99 सीटें जीतकर टीआरएस ने पिछली बार मेयर पद पर जमाया था कब्जा। 44 सीटें असदुद्दीन ओवैसी की एएमआईएम को पिछले चुनाव में मिलीं। चार सीट से पिछली बार संतोष करने वाली भाजपा और मौका नहीं गंवाना चाहती। पिछले चुनाव में भाजपा को सिर्फ चार और ओवैसी की पार्टी को 44 सीटें मिली थीं। बिहार में भी एआईएमआईएम को पांच सीटें मिलने के कारण भाजपा असदुद्दीन की पार्टी को गंभीरता से लेने लगी है। पार्टी ने भूपेंद्र यादव को हैदराबाद निकाय चुनाव का प्रभारी बनाकर ऐसे संकेत दिए। इसलिए भाजपा एआईएमआईएम को उसके घर में ही घेरना चाहती है। ऐसा लगता है कि भाजपा निकाय चुनावों को राज्य की सत्ता हथियाने का जरिया समझती है। साल 2018 के हरियाणा निकाय चुनाव में भाजपा ने पांच नगर निगमों पर कब्जा कर लिया। इससे पार्टी के कार्यकर्ताओं का उत्साह बढ़ा और 2019 के लोकसभा चुनाव में जीत मिली। देखें कि हैदराबाद में क्या होता है।
ममता बनर्जी को झटका
पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव से करीब छह महीने पहले तृणमूल कांग्रेस को बड़ा झटका देते हुए कद्दावर नेता शुभेंदु अधिकारी ने हुगली रिवर ब्रिज कमिश्नर्स के चेयरमैन पद के साथ परिवहन मंत्री के पद से इस्तीफा देकर मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को कड़ी चुनौती दी है। जाहिर है कि शारदा चिट फंड और नारद घोटाले में नाम आने तथा पार्टी में अभिषेक बनर्जी के बढ़ते कद के कारण नेतृत्व से शुभेंदु की जो दूरी बनी थी, वह इतनी ज्यादा हो गई है कि मेल-मिलाप की संभावना क्षीण लगती है। कुछ दिनों से मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से नाराज चल रहे अधिकारी को एक दिन पहले ही हुगली रिवर ब्रिज कमिश्नर्स (एमआरबीसी) के अध्यक्ष पद से हटा दिया गया था। अब यह सवाल है कि वह पार्टी की सदस्यता से भी जल्द इस्तीफा देंगे या नहीं? पार्टी के अंदरूनी सूत्रों के अनुसार अधिकारी ने कुछ समय से तृणमूल सुप्रीमो के साथ दूरी बना ली थी। पश्चिम बंगाल के चुनाव के कुछ ही महीने दूर हैं और ऐसे समय पर उन्होंने इस हफ्ते एक अराजनीतिक बैनर के तहत पूर्वी मिदनापुर के खेजूरी में एक विशाल रैली भी निकाली थी। दरअसल बीते कुछ महीनों में पार्टी नेताओं से दूरी रखने और मंत्रिमंडल की बैठकों में भी हिस्सा नहीं लेने पर ऐसी अटकलें तेज हो गईं थीं कि वह पार्टी में रहेंगे या नहीं। हालांकि अभी स्पष्ट नहीं है कि शुमेंद्र कहां जाएंगे पर मंत्रिपद से इस्तीफे का पत्र उन्होंने जिस तत्परता से उसे ट्वीट किया, फिर उनके इस्तीफे पर राज्य भाजपा अध्यक्ष और भाजपा प्रभारी ने जैसी टिप्पणियां कीं, उससे उनके भाजपा में जाने की उम्मीदें बढ़ी हैं। यह नहीं कि मुकुल रॉय के बाद शुमेंद्र का जाना तृणमूल के लिए बड़ा झटका होगा और पूर्व मिदनापुर में तृणमूल के पास उनका फिलहाल विकल्प भी नहीं है। फिर उनके साथ कई और विधायकों के पार्टी से अलग होने की भी सूचना है। विधानसभा चुनाव से पहले तृणमूल में लग रही सेंध ममता बनर्जी के लिए चिन्तनीय होना चाहिए क्योंकि इसका सीधा फायदा भाजपा को होगा।
बड़ी मुश्किल से मिलती है मनरेगा मजदूरी
मनरेगा में काम कर रहे मजदूरों को उनकी मजदूरी के लिए बैंकों के चक्कर लगाने पड़ रहे हैं। यही नहीं, इन मजदूरों को न सिर्फ बायोमैट्रिक आथेंटिकेशन फेल होने से मुश्किलों का बहुत सामना करना पड़ रहा है। मजदूरी की रकम निकालने के लिए बैंक पहुंचने के करीब चार घंटे बाद पैसे हाथ आ पाते हैं। अजीम प्रेम जी यूनिवर्सिटी और लिबटेक के साझा सर्वे में यह जानकारी निकल कर सामने आई है। यह सर्वे आंध्र प्रदेश, झारखंड और राजस्थान में किया गया है। इसमें 1947 लोगों से मनरेगा की मजदूरी बैंकिंग सिस्टम के जरिये निकालने पर राय मांगी गई थी। मजदूरों को कंज्यूमर सर्विस प्वाइंट या फिर बैंकिंग कार्सपांडेंट के जरिये रकम निकालने वालों को बायोमैट्रिक आथेंटिकेशन की मुश्किल से गुजरना पड़ता है। आंकड़ों के मुताबिक करीब 40 प्रतिशत मजदूरों को पांच में से एक लेनदेन में आथेंटिकेशन फेल होने का सामना करना पड़ रहा है। वहीं सात प्रतिशत लोगों का यहां तक कहना है कि उनके पिछले पांच लेनदेन फेल हुए हैं। सर्वे में लोगों ने बताया कि राजस्थान में करीब 33 प्रतिशत, झारखंड में 20 प्रतिशत और आंध्र प्रदेश में करीब सात प्रतिशत मजदूरों को अपने बैंक खाते को आधार से जोड़ने में मुश्किलों का सामना करना पड़ा है। इस सर्वे के दौरान पता चला है कि मजदूरों में बैंकिंग सेवाओं से जुड़ी जानकारियों का भी भयंकर अभाव था। आंध्र प्रदेश में 65 प्रतिशत, झारखंड में 50 प्रतिशत और राजस्थान में 97 प्रतिशत लोगों को यह पता नहीं था कि वो महीने में कितने लेनदेन कर सकते हैं। खाता एक्टिव रखने के लिए न्यूनतम बैलेंस जैसी जरूरी जानकारी भी आधे लोगों को नहीं पता।
-अनिल नरेन्द्र
Subscribe to:
Posts (Atom)