Wednesday, 2 December 2020
क्या भाजपा तोड़ पाएगी ओवैसी का गढ़?
हैदराबाद के नगर निगम चुनाव में गृहमंत्री अमित शाह का रोड शो में उतरना ही यह बताने के लिए काफी है कि भाजपा इस चुनाव को कितनी गंभीरता से ले रही है। चुनाव लोकसभा का हो, विधानसभा के या निकाय स्तर के, भाजपा पूरी ताकत लगाती है। कश्मीर के बाद इसका सुबूत अब हैदराबाद में मिल रहा है। वहां ग्रेटर हैदराबाद नगर निकाय चुनाव हो रहे हैं। प्रचार के लिए भाजपा के केंद्रीय मंत्री अमित शाह, भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा, यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ, युवा मोर्चा के अध्यक्ष तेजस्वी सूर्या की चुनावी यात्रा से चुनावी माहौल गरम हो गया है। खासकर योगी और सूर्या के बोल और शाह को मिले रिस्पांस से भाजपा की उम्मीदें बढ़ी हैं, वहां विपक्षी अंदरूनी नाकेबंदी में लग गए हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि यह निगम चुनाव में राष्ट्रीय नेताओं को गली-गली घुमाकर भाजपा असदुद्दीन ओवैसी के गढ़ को कितना तोड़ पाएगी? हैदराबाद में जानकारों का कहना है कि ऐसी भीड़ और गर्माहट हाल के साल में कम देखने को मिली है। विधानसभा चुनाव से भी अधिक गर्माहट ग्रेटर हैदराबाद निगम चुनाव ने पैदा की है। हर गली, कूचे, चौराहे, दुकानों और दफ्तरों में भाजपा के इन नेताओं के प्रचार की चर्चा है। लेकिन एआईएमआईएम से जुड़े सूत्रों का कहना है कि ओवैसी के रुतबे और गढ़ पर कोई असर पड़ने वाला नहीं है। बता दें कि हैदराबाद निगम की 150 सीटों में से 60 सीटें पुराने शहर में हैं। पुराना शहर ओवैसी का गढ़ है। वहां की 60 में से 51 सीटें एआईएमआईएम के पास हैं। पुराने शहर की बाकी नौ और बाहर की 90 सीटों पर भाजपा इस बार काफी कुछ गेन करने की उम्मीद कर रही है। राज्य में सत्तारूढ़ टीआरएस भी मैदान में है। जानकार मानते हैं कि ध्रुवीकरण में जाते दिख रहे चुनाव में टीआरएस को कुछ और कांग्रेस को काफी नुकसान हो सकता है। हिन्दू वोट भाजपा की तरफ जा सकता है। मतदान से पहले रविवार को शाह के तीखे तेवर का जवाब असदुद्दीन ओवैसी ने भी जोरदार तरीके से दिया है। किसानों का भी मुद्दा उठाते हुए ओवैसी ने कहा है कि अमित शाह चुनाव के लिए हैदराबाद आ सकते हैं तो किसानों से बात करने क्यों नहीं जा सकते हैं? दुनिया की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी होने का दावा करने वाली भाजपा छोटे से निगम चुनाव को लेकर इतना फिक्रमंद आखिर क्यों है? क्या इसकी वजह हर चुनाव को गंभीरता से लेने की भाजपा की आदत है या कोई बड़ी रणनीति है? पिछले चुनाव में 99 सीटें जीतकर टीआरएस ने पिछली बार मेयर पद पर जमाया था कब्जा। 44 सीटें असदुद्दीन ओवैसी की एएमआईएम को पिछले चुनाव में मिलीं। चार सीट से पिछली बार संतोष करने वाली भाजपा और मौका नहीं गंवाना चाहती। पिछले चुनाव में भाजपा को सिर्फ चार और ओवैसी की पार्टी को 44 सीटें मिली थीं। बिहार में भी एआईएमआईएम को पांच सीटें मिलने के कारण भाजपा असदुद्दीन की पार्टी को गंभीरता से लेने लगी है। पार्टी ने भूपेंद्र यादव को हैदराबाद निकाय चुनाव का प्रभारी बनाकर ऐसे संकेत दिए। इसलिए भाजपा एआईएमआईएम को उसके घर में ही घेरना चाहती है। ऐसा लगता है कि भाजपा निकाय चुनावों को राज्य की सत्ता हथियाने का जरिया समझती है। साल 2018 के हरियाणा निकाय चुनाव में भाजपा ने पांच नगर निगमों पर कब्जा कर लिया। इससे पार्टी के कार्यकर्ताओं का उत्साह बढ़ा और 2019 के लोकसभा चुनाव में जीत मिली। देखें कि हैदराबाद में क्या होता है।
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