Wednesday 16 December 2020

किसान एकता तोड़ना चाहती है सरकार

नए कृषि कानूनों को रद्द कराने और न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की गारंटी की मांग पर चल रहे किसान आंदोलन थमता नजर नहीं आ रहा है। सरकार की रणनीति अब लगती है कि किसानों में फूट डालकर आंदोलन खत्म कराने की लगती है। किसान आंदोलन नेताओं और खाप चौधरियों ने केंद्र सरकार पर गंभीर आरोप लगाए हैं। इनका कहना है कि केंद्र सरकार फूट डालकर आंदोलन को खत्म कराने की रणनीति बना रही है। किसानों की आवाज बुलंद कर रहे किसान नेताओं को धमकाने की कोशिश हो रही है। एकजुटता का अहसास कराने के लिए खाप चौधरी सोमवार को खापों के पारंपरिक केंद्रीय मुख्यालय गांव सोरम (मुजफ्फरनगर) में पंचायत करेंगे। कड़ाके की ठंड में किसान रविवार को 18वें दिन भी दिल्ली-हरियाणा के सिंघु बॉर्डर, दिल्ली, उत्तर प्रदेश के गाजीपुर और चिल्ला बॉर्डर पर डटे रहे। निर्वाल खाप भारत चौधरी बाबा राजवीर सिंह मुंडेट का कहना है कि केंद्र सरकार के इशारे पर स्थानीय नेता किसानों की आवाज दबाने का प्रयास कर रहे हैं। उन्हें किसी न किसी मामले में फंसाने की धमकी देकर चुप कराने की साजिश की जा रही है, ताकि आंदोलन खत्म किया जा सके। उत्तर प्रदेश और हरियाणा में कई किसान नेताओं को धमकाने की सूचना मिल रही है। हालांकि वह लोग इन्हें नजरंदाज कर आंदोलन को मजबूती देने में जुटे हैं। भाकियू के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत ने हाइवे पर सभा को संबोधित करते हुए कहा कि कृषि कानूनों को वापस लेने की मांग को सरकार सुन नहीं रही है। आंदोलन लंबा होता जा रहा है, ऐसे में अब सरकार को गोला लाठी देने का समय आ गया है। उन्होंने किसानों से कृषि यंत्रों को लेकर यूपी गेट पहुंचने का आह्रान किया। कहा कि किसान सरकार से बातचीत करने को तैयार हैं, लेकिन बात सिर्फ कृषि कानूनों को वापस लेने पर होगी। सुबह करीब 11 बजे किसानों ने पैदल मार्च निकाला। इस दौरान भारी संख्या में पुलिस बल तैनात रहा। राकेश टिकैत ने कहा कि जो किसान व्यस्त हैं या साधन के कारण नहीं आ पा रहे हैं वह सब स्थानीय स्तर पर प्रदर्शन कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि किसान की एकजुटता को सरकार तोड़ना चाहती है, किसान यह जान चुका है। एक और रणनीति पर सरकार काम कर रही है वह है कि आंदोलन को सिर्फ पंजाब का साबित करना। अब सरकार की रणनीति है कि मौजूदा किसान आंदोलन को महज पंजाब के किसानों का आंदोलन बनाकर उसे अलग-थलग कर दिया जाए। सत्तारूढ़ दल ने अपने तमाम फ्रंटल चेहरों की मदद से इस दिशा में काम शुरू भी कर दिया है। आरएसएस से जुड़े भारतीय किसान मोर्चा के एक पदाधिकारी का कहना था कि आंदोलन पंजाब और दिल्ली के आसपास का है। आंदोलन में जो मुद्दे उठ रहे हैं, वह पंजाब के बड़े किसानों और आढ़तियों से जुड़े हैं। इनका आम किसानों से कोई लेना-देना नहीं है। हम यह सारे तथ्य दूसरे राज्यों में ले जाकर वहां किसान यूनियनों की मदद से आम किसानों के बीच में यह बात रखने की कोशिश करेंगे। एक सरकारी रणनीतिकार के मुताबिक अगर हम यह संकेत देने में सफल होते हैं कि कृषि कानूनों को लेकर सिर्फ एक राज्य में विरोध हो रहा है, तो इसका मतलब है कि बाकी सभी को यह स्वीकार्य है। तब हम एक राज्य के लिए किसी कानून को नहीं बदल सकते। इसके अलावा सरकार लगातार आंदोलन में घुसपैठ कर चुके गैर-किसान तत्वों के मुद्दे पर को उठाते रहेंगे।

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