Wednesday 30 December 2020

आजादी की लड़ाई देखी, अब किसान हित के लिए लड़ूंगी

किसान आंदोलन हर नए दिन व्यापक रूप लेता जा रहा है। लाखों अन्नदाता इस समय राजधानी की सीमाओं पर डटे हुए हैं। इनमें छोटे बच्चों से लेकर बड़ी तादाद में बुजुर्ग भी शामिल हैं। ऐसी ही एक महिला हैं जसविंदर कौर, जिन्होंने 15 साल की उम्र में 1945 में हुई आजादी की लड़ाई में अंग्रेजों से लोहा लिया था। अब वह दिल्ली के टीकरी बॉर्डर पर आंदोलन में भी हिस्सा ले रही हैं। उनका कहना है कि जब तक केंद्र सरकार कृषि कानून वापस नहीं लेती, वह आंदोलनरत किसानों के साथ डटी रहेंगी। दिल्ली के नांगलोई इलाके की रहने वाली जसविंदर कौर (90) मूल रूप से पंजाब के संगरूर जिले की रहने वाली हैं। कड़ाके की ठंड और कोरोना के डर के बावजूद वह पिछले एक सप्ताह से टीकरी बॉर्डर पर किसानों का समर्थन कर रही हैं। उन्होंने बताया कि देश की आजादी के लिए जिस प्रकार से उन्होंने संघर्ष किया था, उसी प्रकार किसान आंदोलन में भी वह अन्नदाताओं के हित के लिए लड़ेंगी। किसानी उन्हें विरासत में मिली है और वह अपनी चौथी पीढ़ी देख रही हैं। उनके कुनबे में 1‹0 लोग हैं। सब किसी न किसी रूप से खेती से जुड़े हुए हैं। जसविंदर कौर कहती हैं कि कई दिनों से वह टीवी पर किसान आंदोलन की खबरें देख रही थीं। उन्होंने देखा कि कड़ाके की ठंड में भी किसान सड़कों पर डटे हुए हैं। कई अन्नदाताओं की जान भी जा चुकी है। यह देखकर उन्हें काफी पीड़ा हुई। उन्होंने ठाना कि इस लड़ाई में वह भी आंदोलन में शामिल होंगी और कानूनों की वापसी तक किसानों का समर्थन देती रहेंगी। उन्होंने कहा कि जब 1965 में वह दिल्ली आई थीं उस दौरान यमुना नदी के आसपास कई किलोमीटर के क्षेत्र में खेतीबाड़ी होती थी, लेकिन वक्त के साथ-साथ सब कुछ बदल गया। धन्य हैं जसविंदर कौर जी का जज्बा। इतनी उम्र में भी डटी हुई हैं। -अनिल नरेन्द्र

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