Thursday 10 December 2020

किसानों को डर है कि एमएसपी व्यवस्था अप्रासंगिक हो जाएगी

नए खेती कानूनों का विरोध कर रहे किसानों से बात करने के लिए केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह अब सामने आ गए हैं। उन्होंने मंगलवार को 13 किसान नेताओं के एक ग्रुप के साथ मीटिंग की। यह मीटिंग भी बेनतीजा रही। बातचीत के बाद किसान नेताओं ने कहा कि बुधवार को केंद्र के साथ होने वाली छठे दौर की बैठक रद्द हो गई है क्योंकि सरकार को बिल में संशोधन के लिए लिखित प्रस्ताव देना था। सरकार ने लिखित प्रस्ताव दिया किन्तु किसान संगठनों ने सरकार के प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया। किसान नेता हनन मुला ने बताया कि सरकार कानूनों को पूरी तरह वापस लेने के लिए राजी नहीं है। ऐसे में हम उनके प्रस्ताव पर चर्चा करेंगे और आगे की रणनीति तय करेंगे। किसान संगठनों का कहना है कि अगर मोदी सरकार ने कृषि कानूनों को वापस नहीं लिया तो आने वाले वक्त में उन्हें उनकी उपज के औने-पौने दाम मिलने वाली न्यूनतम समर्थन मूल्य यानि एमएसपी की गारंटी खत्म हो जाएगी। द फार्मर्स प्रोड्यूस ट्रेड एंड कॉमर्स 2020 कृषि कानून के मुताबिक किसान अपनी उपज एपीएमसी यानि एग्री कल्चर प्रोड्यूस मार्केट कमेटी की ओर से अधिसूचित मंडियों से बाहर बिना दूसरे राज्यों का टैक्स दिए बेच सकते हैं। दूसरा कानून हैöफार्मर्स (एमपॉवरमेंट एंड प्रोटेक्शन) एग्रीमेंट ऑन प्राइस इंश्योरेंस एंड फार्म सर्विस कानून 2020। इसके अनुसार किसान अनुबंध वाली खेती कर सकते हैं और सीधे उसकी मार्केटिंग कर सकते हैं। तीसरा कानून हैöइंसेशियल कमोडिटीज (एमेंडमेंट) कानून। इसमें उत्पादन स्टोरेज के अलावा अनाज, दाल, खाने का तेल, प्याज की बिक्री को असाधारण परिस्थितियों को छोड़कर नियंत्रण-मुक्त कर दिया गया है। सरकार का तर्क है कि नए कानून से किसानों को ज्यादा विकल्प मिलेंगे और कीमत को लेकर अच्छी प्रतिस्पर्धा होगी। किसानों के विरोध-प्रदर्शन में सबसे बड़ा जो डर उभरकर सामने आया है वो यह है कि एमएसपी की व्यवस्था अप्रासंगिक हो जाएगी और उन्हें अपनी उपज लागत से भी कम कीमत पर बेचने के लिए मजबूर होना पड़ेगा। एमएसपी व्यवस्था के तहत केंद्र सरकार कृषि लागत के हिसाब से किसानों की उपज खरीदने के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य तय करती है। फसलों की बुआई के हर मौसम में कुल 23 फसलों के लिए सरकार एमएसपी तय करती है। 2015 में शांता कुमार कमेटी ने नेशनल सैंपल सर्वे का जो डाटा इस्तेमाल किया था, उसके मुताबिक केवल छह प्रतिशत किसान ही एमएसपी की दर से अपनी उपज बेच पाते हैं। किसानों को डर है कि एमएसपी मंडी के बाहर टैक्स मुक्त कारोबार के कारण सरकारी खरीद प्रभावित होगी और धीरे-धीरे यह व्यवस्था अप्रसांगिक हो जाएगी। किसानों की मांग है कि एमएसपी को सरकारी मंडी से लेकर प्राइवेट मंडी तक अनिवार्य बनाया जाए ताकि सभी तरह के खरीददार वह चाहे सरकारी हों या निजी इस दर से नीचे अनाज न खरीदें।। सरकार जो उपज खरीदती है, उसका सबसे बड़ा हिस्सा पंजाब और हरियाणा से आता है। पिछले पांच साल का आंकड़ा देखें तो सरकार द्वारा चाहे गेहूं हो या चावल, उसकी सबसे ज्यादा खरीद पंजाब और हरियाणा से हुई। कृषि लागत और मूल्य आयोग (सीएसीपी) एक बैंच मार्क सेट करने के लिए 22 से अधिक फसलों के न्यूनतम मूल्य (एमएसपी) की घोषणा करता है। सीएसीपी हालांकि हर साल अधिकांश फसलों के लिए एमएसपी की घोषणा करता है, मगर राज्यों द्वारा संचालित अनाज खरीद की एजेंसियां और भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) भंडारण और धनराशि की कमी के कारण उन कीमतों पर केवल चावल और गेहूं खरीदती है। हम उम्मीद करते हैं कि केंद्र सरकार किसानों की आशंकाएं दूर करेगी और इस ज्वलंत समस्या का जल्द समाधान निकल आएगा। हमें नहीं लगता कि बिना कानूनों में संशोधन किए कोई दूसरा रास्ता निकलेगा।

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