Saturday, 12 December 2020
ना तुम मानों, ना हमöतो बात कैसे बनेगी?
नए कृषि कानूनों का विरोध कर रहे किसानों और केंद्र सरकार के बीच टकराव खत्म होने का कोई रास्ता फिलहाल निकलता नजर नहीं आ रहा है। बुधवार को केंद्र सरकार द्वारा प्रस्ताव मिलने के बाद 40 से ज्यादा किसानों के नेताओं की बैठक हुई। इसमें सर्वसम्मति से एक साथ हाथ उठाकर सभी ने केंद्र सरकार के प्रस्ताव को ठुकरा दिया। खबर मिलते ही कृषि मंत्री नरेंद्र तोमर गृहमंत्री अमित शाह से मिलने चले गए। प्रस्ताव ठुकराने के बाद शाम को किसानों ने प्रदर्शन तेज करने की घोषणा कर दी। उन्होंने अब एक नई बात भी विरोध में जोड़ दी। उन्होंने कहा कि अंबानी-अडानी के सामान का बहिष्कार करेंगे। देशभर में धरना देंगे और भाजपाइयों का घेराव करेंगे। दूसरी ओर कैबिनेट की बैठक के बाद केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने कहा कि एमएसपी और एपीएमसी दोनों बरकरार रहेंगे। उन्होंने यह भी कहा कि वैसे राजस्थान के निकाय चुनाव के परिणाम ने बता दिया है कि किसान कृषि कानूनों के पक्ष में हैं। वहीं उपभोक्ता मामलों के केंद्रीय मंत्री राव साहेब दानवे ने कहा कि चीन और पाकिस्तान ने सीएए के नाम पर पहले मुस्लिम समुदाय को उकसाया, अब किसानों को उकसा रहे हैं। केंद्र सरकार ने 22 पेज का जो प्रस्ताव किसानों को भेजा था उस पर किसानों का कहना था कि यह प्रस्ताव गोलमोल है। 22 में से 12 पेजों पर भूमिका, पृष्ठभूमि, फायदे, आंदोलन खत्म करने की अपील और धन्यवाद है। संशोधन की जगह हर मुद्दे पर लिखा है कि ऐसा करने पर विचार कर सकते हैं। कानून रद्द करने के मुद्दे के जवाब में सीधा हां या ना में जवाब देने की जगह सुझाव देने पर विचार की बात लिखी है। यह हैं सरकार की ओर से किसानों को दिए गए प्रस्ताव के जवाब। एमएसपी की वर्तमान खरीदी व्यवस्था पर सरकार लिखित आश्वासन देगी। राज्य सरकार चाहे तो प्राइवेट मंडियों पर भी शुल्क-फीस लगा सकती है। राज्य सरकार चाहे तो मंडी व्यापारियों का रजिस्ट्रेशन अनिवार्य कर सकती है। किसानों को सिविल कोर्ट कचहरी जाने का विकल्प भी दिया जाएगा। किसान और कंपनी के बीच कांट्रेक्ट की 30 दिन के अंदर रजिस्ट्री होगी। कांट्रेक्ट कानून में स्पष्ट करेंगे, खेती की जमीन या बिल्डिंग गिरवी नहीं रख सकते। किसान की जमीन कुर्की नहीं हो सकेगी। पुरानी बिजली व्यवस्था रहेगी। इसके अतिरिक्त किसानों के अन्य सुझाव होंगे तो उन पर विचार किया जाएगा। सरकार और भाजपा सूत्रों का कहना है कि आंदोलन पर सियासी रंग पूरी तरह चढ़ा दिख रहा है। सरकार के प्रस्ताव को ठुकराते हुए कुछ किसान नेताओं ने कांग्रेस नेता राहुल गांधी के अंदाज में अंबानी, अडानी का विरोध करने की घोषणा कर दी। वहीं वामपंथी विचारधारा के नेताओं ने चारों ओर से दिल्ली को जाम करने और दूसरी घोषणाएं की हैं। 35 से अधिक किसान नेताओं को मनाना आसान काम नहीं है। एक वर्ग मानता है कि किसानों का एक तबका एमएसपी पर गारंटी, एपीएमसी जारी रहने और निजी मंडियों पर लगाम लगाने जैसे कुछ प्रावधान को पर्याप्त मानकर आंदोलन समाप्त करने की इच्छा रखता है। लेकिन आंदोलन पर पंजाब और वामपंथी विचारधारा के नेताओं का भी प्रभाव है। किसान एकता का सवाल है, इसलिए सरकारी प्रस्ताव मानने की सोच रखने वाले वर्ग की चल नहीं रही है? दूसरी तरफ किसान नेताओं का कहना है कि जब सरकार तीन कानूनों में संशोधन की बात मान रही है तो इसका मतलब है कि यह कानून गलत है। इसलिए इन्हें वापस ही लिया जाए और एमएसपी गारंटी, अन्य मुद्दों पर नया कानून लाया जाए। किसानों के इस रुख और आंदोलन तेज करने की तैयारी को लेकर सरकार सकते में है। उन्हें इस बात की चिन्ता है कि कहीं यह आंदोलन हिंसक न हो जाए। ऐसा होता है तो स्थिति और बिगड़ सकती है।
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