Tuesday 29 December 2020

रेट्रोस्पेक्टिव टैक्स केसों में भारत सरकार को बड़ा झटका

रेट्रोस्पेक्टिव टैक्स का मामला केंद्र सरकार के गले की हड्डी साबित हो रहा है। इस मामले में वोडाफोन से करीब 20 हजार करोड़ रुपए का केस हारने के बाद अब भारत सरकार ब्रिटिश कंपनी केयर्न एनर्जी से 10,247 करोड़ रुपए के टैक्स विवाद का केस भी हार गई है। नीदरलैंड के हेग स्थित ट्रिब्यूनल ने इस मामले के केयर्न के पक्ष में फैसला सुनाया है। केयर्न एनर्जी ने बुधवार को कहा कि उसने भारत के खिलाफ मध्यस्थता अदालत में जीत हासिल की है, जिसमें रेट्रोस्पेक्टिव टैक्स के रूप में 10,247 करोड़ रुपए मांगे गए थे। सूत्रों के मुताबिक तीन सदस्यीय न्यायाधिकरण ने आदेश दिया कि 2006-07 में केयर्न द्वारा अपने भारत के व्यापार के आंतरिक पुनर्गठन करने पर भारत सरकार का 10,247 करोड़ रुपए का रेट्रोस्पेक्टिव टैक्स का दावा उचित नहीं है। इस न्यायाधिकरण में भारत सरकार की ओर से नियुक्त एक न्यायाधीश भी शामिल है। न्यायाधिकरण ने भारत सरकार से यह भी कहा कि कंपनी का जो फंड सरकार के पास है, वह ब्याज सहित कंपनी को वापस किया जाए। भारत सरकार ने केयर्न इंडिया का टैक्स रिफंड रोक रखा है। इसके साथ ही डिविडेंड जब्त कर रखा है। बकाया टैक्स के भुगतान के लिए कुछ शेयर बेच भी दिए गए हैं। अब भारत सरकार इस फैसले के खिलाफ अपील कर सकती है। इससे पहले हेग स्थित अंतर्राष्ट्रीय मध्यस्थता प्राधिकरण ने वोडाफोन के पक्ष में फैसला देते हुए इस कंपनी से टैक्स के रूप में करीब 22,000 करोड़ रुपए की मांग को गलत करार दिया था और इसे समानता की नीति के खिलाफ बताया था। दरअसल 2012 में तत्कालीन सरकार ने संसद में रेट्रोस्पेक्टिव टैक्स से संबंधित कानून को मंजूरी दे दी थी, जिसके तहत कंपनियों से अतीत में किए गए सौदों के आधार पर पूंजीगत लाभ (कैपिटल गेन) कर वसूला जा सकता है। वोडाफोन और केयर्न से जिन सौदों को लेकर मांग की गई, वह इस कानून के अस्तित्व में आने से पहले के थे। इसी साल सितम्बर में अंतर्राष्ट्रीय मध्यस्थता अदालत ने वोडाफोन से कर वसूली और नीदरलैंड के बीच हुए द्विपक्षीय निवेश समझौते में दी गई उचित और सामान व्यवहार की गारंटी का उल्लंघन माना और दूरसंचार कंपनी को हुए नुकसान की भरपायी के भी निर्देश दिए। दरअसल भारत सरकार का स्पष्ट मानना है कि कर व्यवस्था देश की संप्रभुता से जुड़ी है और इसमें बाहरी हस्तक्षेप स्वीकार नहीं किया जा सकता। भारत सरकार की मुश्किलें वोडाफोन और केयर्न के साथ ही खत्म नहीं हुई हैं। हेग स्थित ट्रिब्यूनल में वोडाफोन और केयर्न जैसे रेट्रोस्पेक्टिव टैक्स के एक दर्जन मामलों पर सुनवाई हो रही है। विशेषज्ञों का कहना है कि वोडाफोन मामले की नजीर को ध्यान में रखते हुए इन मामलों में भी भारत सरकार के खिलाफ ही फैसला सुनाया जाएगा? आखिर कंपनियां भारत के बाहर मुकदमा लड़ना क्यों पसंद करती हैं? जानकारों की मानें तो इसकी दो वजह हैं। पहली भारतीय न्याय व्यवस्था में बार एसोसिएशन का दबदबा है और वह विदेशी वकीलों और लॉ फर्मों को देश में वकालत करने से रोकती है। इस वजह से कंपनियों को लगता है कि वह अपने लिए सर्वश्रेष्ठ वकील खड़ा नहीं कर सकते। दूसरी वजह है कि यह कंपनियों को जल्दी फैसले की इच्छा रहती है, क्योंकि मुकदमा लंबा चलने से दोनों पक्षों को नुकसान होता है। फिर इन्हें लगता है कि हमारी अदालतों पर सरकारी दबाव होता है।

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