Thursday, 3 December 2020

प्रदर्शनकारी किसान बोले, हम निर्णायक जंग लड़ने आए हैं

नए कृषि कानूनों के मसले पर किसानों के आंदोलन का दायरा फैलने के साथ अब सरकार के सामने यह चुनौती बड़ी हो रही है कि अब वह इस मामले को कैसे सुलझाए? 7 दिनों से राजधानी की सीमा पर डटे पंजाब, हरियाणा समेत कई राज्यों के किसानों ने लंबी लड़ाई का ऐलान किया है। सिंघु बार्डर पर पंचायत के बाद किसान संगठनों ने एक स्वर में कहा कि वह यहां निर्णायक लड़ाई लड़ने के लिए आए हैं और जब तक हमारी मांगे नहीं मान ली जाती तब तक यह लड़ाई जारी रहेगी। सरकार ने मंगलवार को नए कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलन कर रहे किसानों की मांगों पर गौर करने के लिए समिति गठित करने की पेशकश की जिसे आंदोलनरत किसानों ने ठुकरा दिया। किसान संगठन तीनों नए कृषि कानूनों को पूरी तरह रद्द करने पर अड़े हुए हैं। किसानों ने कहा, हम चाहते हैं कि प्रधानमंत्री हमारी बात सुनें। हम अपनी मांगों से समझौता नहीं करेंगे। यदि सत्तारूढ़ पार्टी हमारी चिंता पर विचार नहीं करती है तो उसे भारी कीमत चुकानी होगी। किसान नेता गुरनाम सिंह ने कहा कि आंदोलन को दबाने के लिए अब तक प्रदर्शनकारियों के खिलाफ लगभग 31 मामले दर्ज किए जा चुके हैं। कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों के सवाल कितने जायज हैं और सरकारी दावे कितने खोखले, किसान नेताआंs ने रविवार को प्रेस कांप्रेंस में एक-एक कर सरकार के पूरे एजेंडे को बेपरदा कर दिया है। रही सही कसर विपक्ष और खुद सरकार ने अपनी मंशा जगजाहिर कर पूरी कर दी है। मसलन, नाराज किसानों ने सवाल किया कि सरकार बताए कि नए कृषि कानूनों को उसे क्यों लाना पड़ा? बताए कि किस किसान संगठन और किन किसानों ने सरकार से इन कृषि कानूनों (तथाकथित सुधारों) को लाने की मांग की थी? सरकार के इन कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलन के बीच दिल्ली मार्च करने वाले किसान समूह के प्रतिनिधियों ने कहा है कि सरकार केवल कारपोरेट के कल्याण में रुचि रखती है, यही कारण है कि इस तरह के काले कानून लाए जा रहे हैं। अगर ऐसा नहीं है तो सरकार किसानों के सवालों से क्यों भाग रही है? गृह मंत्री अमित शाह के प्रस्ताव को खारिज करने के बाद संवाददाता सम्मेलन में किसान नेताओं ने कहा, हम सरकार से पूछते हैं कि किस किसान संगठन और किन किसानों ने सरकार से अपना भला करने की मांग की थी, दूसरा सरकार बताए कि कौन से बिचौलिए को निकालने की बात कर रहे हैं? बिचौलिए को डिफाइन करे सरकार। कहा बिचौलिए सरकार के रक्षा सौदों में होते है, मंडी में आढ़ती केवल सर्विस प्रोवाइडर हैं। उनका कहना है कि पूरे शहर में पुलिस बल दहशत और भय का माहौल बना रहे हैं। किसानों पर लाठियां बरसा रहे हैं, यह कहां का इंसाफ है? पंजाब से आए आंदोलनरत किसान जत्थे में शामिल एक किसान की मौत हो गई। लुधियाना के गज्जन सिंह (55) की मौत किसके सिर पर है? संयुक्त किसान संघर्ष समिति के साथ अब केरल, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश और राजस्थान सहित दूसरे प्र्रदेशों के किसान लामबंद हो रहे हैं। कृषि कानूनों के खिलाफ लामबंद हुए किसानों को हरियाणा की खाप पंचायतों के बाद दिल्ली की टैक्सी यूनियन ने भी समर्थन देने का दावा किया है। किसानों के इस आंदोलन में धीरे-धीरे दूसरे संगठन भी एक जुट होने लगे हैं, ताकि केन्द्र सरकार पर कृषि कानूनों को वापस लेने का दबाव बनाया जा सके। कृषि पर आश्रित भारी आबादी और उसके राजनीतिक फलितार्थ के मद्देनजर इस क्षेत्र की एहमियत को नकारा नहीं जा सकता। हम तो यह सुझाव देंगे कि सरकार किसान संगठनों को आश्वासन दे कि वह इन कानूनों को फिलहाल स्थगित करने को तैयार है और किसानों की जायज मांगों को कानून में शामिल करें।

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